भारत के भौतिक प्रदेश Bharat ke Bhautik Pradesh

भारत के भौतिक प्रदेश भारत के भौतिक प्रदेश Bharat ke Bhautik Pradesh

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भूगर्भिक संरचना की विविधता ने भारत देश के उच्चावच तथा भौतिक लक्षणों की विविधता को जन्म दिया है।

देश के धरातल के संपूर्ण क्षेत्रफल का 10.7% भाग पर्वतीय।

18.6% भाग पहाड़ीयाँ।

27.7% भाग पठारी।

46% भाग मैदानी है।

उच्चावच के आधार पर भारत को चार स्थल आकृति प्रदेशों में बांटा  गया है-

उत्तर का पर्वतीय प्रदेश या हिमालय पर्वत माला।

मैदानी प्रदेश/उत्तर पूर्वी मैदानी प्रदेश/जलोढ़ मैदान।

दक्षिण का प्रायद्वीपीय पठार।

तटीय मैदानी प्रदेश एवं द्वीप समूह।

उत्तर का पर्वतीय प्रदेश या हिमालय पर्वत माला : भारत के भौतिक प्रदेश Bharat ke Bhautik Pradesh

करोड़ों वर्ष पूर्व टेर्शियरी काल में संपूर्ण पृथ्वी एक ही महाद्वीप पैंजिया व एक ही महासागर पेंथालासा के रूप में विस्तृत था।

जिसके मध्य में टेथिस सागर विस्तृत था जो कि इस पैंजिया को दो भागों में उत्तरी भाग अंगारालैंड दक्षिण भाग गोंडवाना लैंड में बांटता था।

हिमालय की पर्वत श्रेणियां उत्तर पश्चिम दिशा से दक्षिण पूर्व दिशा की ओर फैली हैं।

उत्तरी पर्वतीय प्रदेश को तीन समूह में विभाजित किया जाता है –

हिमालय

ट्रांस हिमालय

III. पूर्वांचल हिमालय

हिमालय – हिमालय को पुनः तीन उप भागों में विभाजित किया जाता है-

महान हिमालय/हिमाद्री/ग्रेट हिमालय/वृहत हिमालय-

वृहत हिमालय श्रृंखला जिसे केंद्रीय अक्षीय श्रेणी भी कहा जाता है, वृहत हिमालय कि पूर्व पश्चिम लंबाई लगभग 2500 किलोमीटर तथा उत्तर से दक्षिण इसकी चौड़ाई 160 से 400 किलोमीटर है। इसकी ऊंचाई 6100 मीटर है।

यह विश्व का सबसे ऊंचा पर्वत है।

विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट (8848 मीटर) नेपाल में स्थित है।

इसी पर्वत श्रृंखला में मकालू (8481 मीटर) व धौलागिरी (8172 मीटर) पर्वत शिखर नेपाल में स्थित है।

बद्रीनाथ, केदारनाथ, नंदा देवी उत्तराखंड भारत में स्थित है।

अमरनाथ व नंगा पर्वत जम्मू और कश्मीर भारत में स्थित है।

उत्तराखंड को ‘देवभूमि के नाम’ से भी जाना जाता है

विश्व की तीसरी सबसे ऊंची चोटी तथा भारत की सबसे ऊंची चोटी कंचनजंगा (8598 मीटर) सिक्किम में स्थित है।

मध्य हिमालय/लघु हिमालय/ हिमाचल हिमालय-

औसत ऊंचाई 3700 मीटर से 4500 मीटर है।

इस हिमालय प्रदेश में निर्मित घास के मैदान को मृग (कश्मीर) बुग्याल (उत्तराखंड) कहते हैं।

हिल स्टेशन – कुल्लू, मनाली, शिमला, कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) कुल्लू घाटी श्रेणियों में स्थित है।

इसे देवताओं की घाटी कहा जाता है। नैनीताल, रानीखेत (उत्तराखंड) क्षेत्र को हिमाचल प्रदेश में धोलाधार कहते हैं।

iii. शिवालिक हिमालय-

औसत ऊंचाई 900 मीटर से 1200 मीटर है।

हिमालय पर्वतमाला की नवीनतम पर्वत श्रृंखला है।

शिवालिक श्रेणी में नदियां निकलती है हिमालय हिमालय के बीच की घाटी में बसे नगरों को दून या द्वार कहते हैं। जैसे – देहरादून, कोटलीदून, पाटलीदून, हरिद्वार

ट्रांस हिमालय –

इस हिमालय से निकलकर सिंधु और ब्रह्मपुत्र नदी भारत में आती है।

लद्दाख श्रेणी और कैलास पर्वत इसी से संबंधित है।

ट्रांस हिमालय के अन्तर्गत शामिल तीन श्रेणियां निम्न प्रकार हैं- (i) काराकोरम पर्वत श्रेणी (ii) लद्दाख पर्वत श्रेणी (iii) जास्कर पर्वत श्रेणी

विश्व की दूसरी सबसे ऊंची चोटी K2 स्थित है। (पाक अधिकृत कश्मीर में)

ट्रांस हिमालय को एशिया की रीड कहा जाता है।

भारत का सबसे ठंडा स्थान द्रास लद्दाख में स्थित है।

काराकोरम पर्वत श्रेणी पर चार प्रमुख ग्लेशियर पाये जाते हैं –

(i) सियाचिन (ii) हिस्पर

(iii) वियाफो(iv) बाल्टोरा

विश्व में सर्वाधिक तीव्र ढाल वाली चोटी राकापोशी लद्दाख में है।

III.  पूर्वांचल  हिमालय –

ब्रह्मपुत्र महाखड्ड के पार भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में फैली पहाड़ियों का सम्मिलित नाम पूर्वाचल है।

इन पहाड़ियों की औसत ऊँचाई समुद्रतल से 500 से 3000 मी. तक है।

मिश्मी, पटकाई बुम, नागा, मणिपुर और मिजो (लुशाई) तथा त्रिपुरा इस क्षेत्र की प्रमुख पहाड़ियाँ हैं।

उच्चावच, पर्वत श्रेणियों के सरेखण और दूसरी भू आकृतियों के आधार पर हिमालय को निम्नलिखित खंडों में विभाजित किया जा सकता है-

कश्मीर हिमालय या उत्तरी पश्चिमी हिमालय-

कश्मीर हिमालय में अनेक पर्वत श्रेणियां हैं, जैसे काराकोरम, लद्दाख, जास्कर और पीर पंजाल।

यह एक ठंडा मरुस्थल है। वृहद् हिमालय और पीरपंजाल के बीच विश्व प्रसिद्ध कश्मीर घाटी और डल झील है।

कश्मीर हिमालय करेवा (एक पदार्थ विशेष) के लिए प्रसिद्ध है। यहां जाफरान की खेती की जाती है।

हिमालय में जोजीला, पीर पंजाल में बनिहाल, जास्कर श्रेणी में फोटुला और लद्दाख श्रेणी में खर्दूगला जैसे महत्वपूर्ण दर्रे स्थित है।

यहां अलवणीय झीलें डल और वूलर तथा लवणीय झीले पाँगाँग सो और सोमुरीरी इसी क्षेत्र में है।

वैष्णोदेवी, अमरनाथगुफा और चरार ए शरीफ जैसे धार्मिक स्थल भी यहीं पर है।

कश्मीर घाटी में झेलम नदी युवावस्था में बहती है।

इस प्रदेश के दक्षिणी भाग में अनुदैर्ध्य घाटियां पाई जाती हैं, जिन्हें दून कहा जाता है इनमें जम्मू दून और पठानकोट दून प्रमुख हैं।

हिमाचल और उत्तराखंड हिमालय-

हिमालय की तीनों मुख्य पर्वत श्रंखला वृहद हिमालय, लघु हिमालय (जिन्हें हिमाचल में धौलाधार और उत्तराखंड में नागतीभा कहा जाता है) और शिवालिक श्रेणी इस हिमालय खंड में स्थित है।

इस क्षेत्र के प्रमुख नगर धर्मशाला, मसूरी, कसौली, अल्मोड़ा, लैंसडाउन और रानीखेत है।

इस क्षेत्र के दो महत्त्वपूर्ण स्थलाकृतियाँ शिवालिक और दून है।

कुछ महत्वपूर्ण दून चंडीगढ़ कालका दून, नालागढ़ दून, देहरादून, हरिके दून तथा कोटा दून प्रमुख हैं।

वृहत हिमालय की घाटियों में भोटिया प्रजाति के लोग रहते हैं।

यह खानाबदोश लोग हैं जो ग्रीष्म ऋतु में बुग्याल में चले जाते हैं और शरद ऋतु में घाटियों में लौट आते हैं।

प्रसिद्ध फूलों की घाटी भी इसी पर्वत श्रेणी में स्थित है।

गंगोत्री यमुनोत्री केदारनाथ बद्रीनाथ और हेमकुंड साहिब भी इसी क्षेत्र में स्थित है। इसी क्षेत्र में पांच प्रयाग (नदी संगम) हैं।

दार्जिलिंग और सिक्किम हिमालय –

यहां तेज बहाव वाली तीस्ता नदी बहती है। इन पर्वतों के ऊंचे शिखरों पर लेपचा जनजाति और दक्षिणी भाग में मिश्रित जनसंख्या पाई जाती है।

यहां मध्यम ढाल वाली गहरी जीवाश्म युक्त मिट्टी, संपूर्ण वर्ष वर्षा तथा मंद शीत ऋतु का लाभ उठाकर अंग्रेजों ने चाय के बागान लगाये।

अरुणाचल हिमालय-

यह पर्वत क्षेत्र भूटान हिमालय से लेकर पूर्व में डीफू दर्रे तक फैला है।

इस क्षेत्र की प्रमुख चोटियों में कांगतु और नेमचा बरवा शामिल हैं।

इस क्षेत्र पश्चिम से पूर्व में बसी मुख्य जनजातियां मोनपा, डफ्फला, अबोर, मिसमी, निशि और नागा है।

यह जनजातियां अधिकतर झूम खेती करती हैं। जिसे स्थानांतरित कृषि या स्लैश और बर्न कृषि भी कहा जाता है

पूर्वी पहाड़ियां और पर्वत-

उत्तर में यह पटकाई बूम, नागा पहाड़िया, मणिपुर पहाड़िया और दक्षिण में मिजो या लुसाई पहाड़ियों के नाम से जानी जाती है।

मणिपुर घाटी के मध्य स्थित झील को लोकताक झील कहा जाता है, यह चारों ओर से पहाड़ियों से घिरी है। मिजोरम जिसे ‘मोलेसिस बेसिन’ भी कहा जाता है मृदुल और असंगठित चट्टानों से बना है।

पश्चिम से पूर्व तक हिमालय का वर्गीकरण नदी घाटी की सीमाओं के आधार पर है किया गया है-

(क) सिंधु-सतलज= पंजाब हिमालय, पश्चिम से पूर्व तक क्रमशः इसे कश्मीर हिमालय, और हिमाचल हिमालय  कहा जाता है।

(ख) सतलुज-शारदा (काली)= कुमायूं हिमालय

(ग)  शारदा (काली)-तीस्ता = नेपाल हिमालय

(घ) तीस्ता – ब्रह्मपुत्र (देहांग) = असम हिमालय

मैदानी प्रदेश/उत्तर पूर्वी मैदानी प्रदेश/जलोढ़ मैदान : भारत और राजस्थान के भौतिक प्रदेश

उत्तरी मैदान तीन प्रमुख नदी प्रणालियों सिंधु, गंगा एवं ब्रह्मपुत्र तथा उसकी सहायक नदियों से बना है, जो कि जलोढ़ मृदा से निर्मित है।

इस मैदान की पूर्व से पश्चिम लंबाई लगभग 3200 किलोमीटर तथा औसत चौड़ाई 150 से 300 किलोमीटर है

इस मैदान के तीन उपवर्ग हैं –

पश्चिमी भाग – पंजाब का मैदान कहलाता है।

इस क्षेत्र में दोआब की संख्या बहुत है।

(दोआब = दो नदियों के बीच का भाग)

इस मैदान का बड़ा भाग पाकिस्तान में है।

II. उत्तर भारत में गंगा का मैदान।

III. पश्चिम में ब्रह्मपुत्र का मैदान।

आकृति भिन्नता के आधार पर उत्तरी मैदान को चार भागों में बांट सकते हैं-

भाबर- पर्वतों से नीचे उतरने वाली नदियों शिवालिक की ढाल पर 8 से 16 किलोमीटर चौड़ी पट्टी में गुटिका बनाती है इसे भाबर कहते हैं। सभी सरिताएं भाबर में लुप्त हो जाती है।

तराई- उक्त पट्टी के दक्षिण में यह सरिता एवं नदियां पुनः निकल आती हैं, एवं नम तथा दलदली क्षेत्र का निर्माण करती है जिसे तराई कहा जाता है।

III. भांगर- उत्तरी मैदान का सबसे विशाल भाग पुरानी जलोढ़ का बना है।

यह नदियों के बाढ़ वाले मैदान के ऊपर स्थित है तथा वैदिका जैसी आकृति प्रदर्शित करता है, जिसे भांगर कहा जाता है।

इस क्षेत्र की मृदा में चुनेदार निक्षेप होते हैं, जिसे स्थानीय भाषा में कंकड़ कहते हैं।

खादर- बाढ़ वाले मैदानों के नए तथा युवा निक्षेपों को खादर कहा जाता है। लगभग प्रत्येक वर्ष इसका पुनर्निर्माण होता है। इसलिए यह उपजाऊ और गहन खेती के लिए आदर्श होते हैं।

तटीय मैदान : भारत और राजस्थान के भौतिक प्रदेश

स्थिति और सक्रिय भू-आकृति प्रक्रियाओं के आधार पर तटीय मैदान को दो भागों में बांटा जा सकता है-

पश्चिमी तटीय मैदान 2. पूर्वी तटीय मैदान

पश्चिमी तटीय मैदान-

दीव से दमन तक का क्षेत्र गुजरात तट, दमन से गोवा तक का क्षेत्र कोंकण तट, गोवा से कर्नाटक के मंगलूरू तक का क्षेत्र कन्नड़ तट तथा मंगलूरू से कन्याकुमारी तक का क्षेत्र मालाबार तट कहलाता है, यद्यपि कन्नड़ तक को यदा कदा मालाबार तट में शामिल किया जाता हैं।

इस तटीय मैदान में बहने वाली नदियां डेल्टा नहीं बनाती है।

इस तट को मुख्यतः तीन भागों में विभक्त किया गया-

कच्छ या गुजरात का तट – कांडला (कच्छ) से सूरत तक विस्तृत है।

इस तट का महत्त्वपूर्ण बंदरगाह कांडला बंदरगाह है, जो कि एक ज्वारीय बंदरगाह है।

इसे दीनदयाल उपाध्याय बंदरगाह भी कहते हैं।

गुजरात का तट दो उपभागों में  विभक्त है-

काठियावाड़ का तट

सौराष्ट्र का तट

 

कोंकण तट – दमन से गोवा तक विस्तृत है।

इस तट में यंत्रीकृत बंदरगाह न्हावाशेवा बंदरगाह या जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट बंदरगाह है।

 

मालाबार तट – गोवा से कन्याकुमारी तक विस्तृत है।

भारत में सर्वाधिक लैगुन झीलों हेतु प्रसिद्ध है।

यहां इसे स्थानीय भाषा में क्याल कहा जाता है। जिसे मछली पकड़ने और अंतरराष्ट्रीय नौकायन के लिए प्रयोग किया जाता है केरल में हर्ष वर्ष प्रसिद्ध नेहरू ट्रॉफी वलामकाली (नौका दौड़) का आयोजन पुन्नामदा कयाल में किया जाता है

केरल की सबसे बड़ी लैगून झील (कयाल) वेंबनाड है।

भारत का सबसे छोटा राष्ट्रीय राजमार्ग एनएच 47A (वेलिंगटन से कोचीन) इसी क्षेत्र में विस्तृत है।

पूर्वी तटीय मैदान-

पूर्वी तटीय मैदान में गोदावरी, महानदी, कृष्णा तथा कावेरी नदियां विशाल डेल्टा का निर्माण करती हैं।

चिल्का झील भी इसी मैदान में स्थित है।

उभरा हुआ तट होने के कारण यहां पत्तन और पोताश्रय कम है।

इस मैदानी प्रदेश को दो भागों में विभक्त किया गया है-

कोरोमंडल तट-

तमिलनाडु से आंध्र प्रदेश तक विस्तृत है।

तमिलनाडु का चेन्नई बंदरगाह (कृत्रिम बंदरगाह) स्थित है।

विशाखापट्टनम (आंध्र प्रदेश) भारत का सबसे गहरा बंदरगाह है।

उत्तरी सरकार तट या गोलकुंडा तट-

पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश तक विस्तृत है।

पारादीप बंदरगाह (उड़ीसा)

कोलकाता बंदरगाह कोलकाता

प्रायद्वीपीय पठार

इसका प्राचीन नाम गोंडवाना लैंड है।

खनिजों की दृष्टि से यह समृद्ध क्षेत्र है।

यह एक त्रिकोणीय उच्च भूमि है।

प्रायद्वीपीय पठार की एक विशेषता यहां की काली मिट्टी है जिसे ‘दक्कन ट्रैप’ कहा जाता है।

यह गुजरात, महाराष्ट्र, बिहार, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश तक विस्तृत है।

नर्मदा नदी प्रायद्वीपीय पठार को दो भागों- मध्य उच्च भूमि और दक्कन का पठार में बांटती है-

मध्य उच्च भूमि-

इसका विस्तार नर्मदा नदी से उत्तरी मैदान के मध्य है।

नर्मदा नदी पूर्व से पश्चिम में बहती हुई अरब सागर में मिलती है।

मालवा पठार तथा छोटा नागपुर पठार मध्य उच्च भूमि का हिस्सा है।

अरावली क्षेत्र का एक महत्त्वपूर्ण पर्वत है।

अरावली पर्वतमाला-

इसकी उत्पत्ति प्रीकैंब्रियन काल में हुई।

अरावली का विस्तार खेड़ा ब्रह्म पालनपुर गुजरात से रायसीना की पहाड़ी दिल्ली तक माना जाता है।

कुल लंबाई 692 किलोमीटर और ऊंचाई 930 मीटर है।

सर्वाधिक विस्तार – राजस्थान में (550 किमी)

अरावली पर्वतमाला उत्पत्ति के आधार पर वलित पर्वतमाला है, जबकि वर्तमान में यह एक अपशिष्ट पर्वतमाला है।

अरावली पर्वतमाला का सबसे ऊंचा शिखर गुरु शिखर (1722 मीटर) है।

विंध्याचल पर्वतमाला-

चित्तौड़ से बिहार (सासारामगढ़) तथा उत्तरप्रदेश एवं मध्य प्रदेश में विस्तृत है।

यह उत्तर भारत को दक्षिण भारत से पृथक करती है।

III. सतपुड़ा पर्वतमाला

इसे मुख्यतः तीन श्रेणियों में विभक्त किया गया है –

मूल सतपुड़ा

इस पहाड़ी क्षेत्र में विस्तृत अमरकंटक पहाड़ी से ताप्ती नदी का उद्गम होता है।

ताप्ती नदी- यह नदी भृंश घाटी में प्रवाहित होती है।

इस पर गुजरात राज्य में उकाई परियोजना का निर्माण हुआ है।

महादेव की पहाड़ी-

धूपगढ़ पहाड़ी पर पंचमढ़ी हिलस्टेशन है (मध्यप्रदेश)

iii. मैकाल पहाड़ी-

इस पहाड़ी से नर्मदा नदी (अमरकंटक की पहाड़ी) का उद्गम होता है।

यह एक भ्रंश घाटी में प्रवाहित होती है। ताप्ती और नर्मदा नदी दोनों ज्वारनदमुख (estuary एश्चुरी) का निर्माण करते हुए खंभात की खाड़ी (अरब सागर) में जाकर गिर जाती है।

सोन नदी जो गंगा की सहायक नदी है उसका उदगम अमरकंटक की पहाड़ी अर्थात नर्मदा की विपरीत दिशा से होता है।

धुआंधार जलप्रपात – जबलपुर (मध्य प्रदेश) के निकट है।

सरदार सरोवर बांध – गुजरात

इसे गुजरात की जीवन रेखा भी कहा जाता है।

इंदिरा गांधी बांध व ओंकारेश्वर बांध – नर्मदा नदी पर (मध्य प्रदेश)

सतपुड़ा पर्वत माला एक ब्लॉक पर्वत माला है।

दक्कन का पठार-

यह ज्वालामुखी विस्फोट से बना है।

मिट्टी कपास और गन्ना की खेती के लिए उपयुक्त है।

यह नर्मदा नदी के दक्षिण में स्थित है।

इस पठार को दो भागों में विभाजित किया जाता है-

पश्चिमी घाट पर्वत या सह्याद्री पर्वत माला-

पश्चिमी घाट को अनेक नामों से जाना जाता है, जैसे – महाराष्ट्र में सह्याद्री, कर्नाटक और तमिलनाडु में नीलगिरी और केरल में अन्नामलाई और इलायची (कार्डामम) पहाड़ियां।

यह सूरत से कन्याकुमारी तक विस्तृत है।

थाल घाट – मुंबई से नासिक

भौरघाट – मुंबई से पुणे

पालघाट – कोची (केरल) से कोयंबटूर (तमिलनाडु)

सिमकोर – तिरुवंतपुरम (केरल) से मदुरई (तमिलनाडु)

पश्चिमी घाट पर्वत या सह्याद्री पर्वत माला की प्रमुख पहाड़िया निम्नलिखित हैं-

नीलगिरी पर्वत –

पश्चिमी घाट और पूर्वी घाट को जोड़ने वाली पर्वत श्रृंखला है।

यह पर्वत श्रृंखला मुख्यतः कर्नाटक, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु क्षेत्र में विस्तृत है।

इस क्षेत्र में पायकारा जलप्रपात (तमिलनाडु) में स्थित है।

प्रायद्वीपीय पठार की दूसरी तथा इस पहाड़ी समूह की सर्वोच्च चोटी डोडा बेटा है।

पूर्वी और पश्चिमी घाट नीलगिरी की पहाड़ियों में आपस में मिलते हैं।

अन्नामलाई पर्वत माला-

प्रायद्वीपीय पठार तथा इस पर्वत श्रृंखला की सबसे ऊंची चोटी अनाईमुडी (2195 मी) तमिलनाडु है।

यह दक्षिण भारत की सर्वोच्च चोटी है।

iii. कार्डोम्म पहाड़ी या इलायची पहाड़ी-

यह पहाड़ी तमिलनाडु व केरल में विस्तृत है।

II.पूर्वी घाट पर्वत –

यह पर्वत समूह पश्चिम बंगाल से तमिलनाडु तक विस्तृत है।

इसके प्रमुख  पहाड़िया निम्नलिखित है-

नल्लामलाई पहाड़ी (आंध्र प्रदेश) –

पूर्वी घाट पर्वत की सबसे ऊंची चोटी महेंद्रगिरी पहाड़ी (उड़ीसा) है।

दक्कन का पठार – ज्वालामुखी लावा से निर्मित भाग है।

इसी पठार पर बेंगलुरु स्थित है, जिसे सिलीकान वैली के नाम से जाना जाता है। मैसूर का पठार – कर्नाटक

तेलंगाना का पठार – तेलंगाना

काठियावाड़ का पठार – गुजरात

मालवा का पठार – राजस्थान व मध्य प्रदेश

हाड़ौती का पठार – राजस्थान

छोटा नागपुर का पठार – यह पठारी क्षेत्र मुख्यता झारखंड क्षेत्र में विस्तृत है, जिसे मुख्यतः दामोदर में स्वर्ण रेखा नदी काटती है।

शिलांग के पठार में गारो, खासी, जयंतिया पहाड़ी (मेघालय)

कार्विंग पहाड़ी (असम)

बुंदेलखंड की पहाड़ी – उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश

दंडकारण्य का पठार- उड़ीसा, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, पूर्वी महाराष्ट्र में विस्तृत विस्तृत है।

महानदी इसी पठार में प्रवाहित होती है।

भारतीय रेगिस्तान : भारत के भौतिक प्रदेश Bharat ke Bhautik Pradesh

यह अरावली पहाड़ियों के पश्चिम किनारे की ओर स्थित है।

यह माना जाता है कि मेसोजोइक काल में यह क्षेत्र समुद्र का हिस्सा था।

लूणी यहां की सबसे महत्वपूर्ण और बड़ी नदी है।

इसी मरुस्थल में अकल वुड फॉसिल पार्क स्थित है।

इसे थार का मरुस्थल भी कहा जाता है।

यह विश्व का नौवा सबसे बड़ा रेगिस्तान है।

यहां वार्षिक वर्षा 150 मिमी से कम होती है।

इसका विस्तार गुजरात तथा राजस्थान में है।

द्वीप समूह : भारत के भौतिक प्रदेश Bharat ke Bhautik Pradesh

भारत में दो द्वीप समूह है-

बंगाल की खाड़ी में 204 देशों का समूह अंडमान निकोबार द्वीप समूह

अरब सागर में 43 देशों का समूह लक्षद्वीप समूह

अंडमान निकोबार द्वीप समूह-

यह अंडमान तथा निकोबार दो अलग-अलग द्वीपों का समूह है।

राजधानी – पोर्ट ब्लेयर

अंडमान द्वीपों समूह को चार भागों में बांटा गया है-

उत्तर अंडमान

मध्य अंडमान

दक्षिण अंडमान

लिटिल अंडमान

दक्षिण अंडमान तथा लिटिल अंडमान के बीच के भाग को ‘डंकन पैसेज’ कहा जाता है।

निकोबार द्वीप समूह को तीन भागों में बांटा गया है-

कार निकोबार

लिटिल निकोबार

ग्रेट निकोबार

बैरन आईलैंड नामक भारत का एकमात्र जीवंत ज्वालामुखी भी निकोबार द्वीपसमूह में स्थित है।

निकोबार द्वीप समूह का सबसे दक्षिणी बिंदु भारत का दक्षिणतम बिंदु इंदिरा प्वाइंट ग्रेट निकोबार में है।

लक्षदीप-

राजधानी – कारावती

क्षेत्रफल – 32 वर्ग किमी

मानव आवास – ग्यारह द्वीपों पर

सबसे छोटा केंद्र शासित प्रदेश है।

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द्वीपों का यह समूह छोटे प्रवाल द्वीपों  (प्रवाल – प्रवाल पॉलिप्स कम समय तक जीवित रहने वाले सूक्ष्म प्राणी हैं, जो कि समूह में रहते हैं। इनका विकास छिछले तथा गर्म जल में होता है। इनसे कैल्शियम कार्बोनेट का स्राव होता है। प्रवाल स्राव एवं प्रवाल अस्थियाँ टीले के रूप में निक्षेपित होती हैं। ये मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं- 1. प्रवाल रोधिका, 2. तटीय प्रवाल भित्ति तथा 3. प्रवाल वलय द्वीप आस्ट्रेलिया का ‘ग्रेट बैरियर रीफ” प्रवाल रोधिका का अच्छा उदाहरण है। प्रवाल वलय द्वीप गोलाकार या हार्स शू आकार वाले रोधिका होते हैं।) से बना है।

पहले इनको लकादीव, मीनीकाय तथा एमीनदीव के नाम से जाना जाता था। 1973 में इनका नाम लक्षद्वीप रखा गया।

इसके पिटली द्वीप पर पक्षी अभयारण्य है।

खंभात की खाड़ी में आलियाबेट दीप स्थित है जिस पर एलिफेंटा की गुफाएं हैं।

भारत और राजस्थान के भौतिक प्रदेश, भौतिक प्रदेश के क्वेश्चन, भौगोलिक प्रदेश, भौतिक प्रदेश के प्रश्न एवं अन्य परीक्षोपयोगी महत्त्वपूर्ण जानकारी

वायुदाब

पवनें

वायुमण्डल

चट्टानें अथवा शैल

जलवायु

चक्रवात-प्रतिचक्रवात

भौतिक प्रदेश

अपवाह तंत्र

पारिस्थितिकी