सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय, जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, रचनाएं, कविताएं, कहानियाँ, काव्य विशेषताएं, भाषा शैली, पुरस्कार एवं सम्मान
जीवन परिचय
जन्म- 7 मार्च 1911 कुशीनगर, देवरिया, उत्तर प्रदेश, भारत
मृत्यु- 4 अप्रैल 1987 दिल्ली, भारत
उपनाम- अज्ञेय
बचपन का नाम- सच्चा
ललित निबंधकार नाम- कुट्टिचातन
रचनाकार नाम- अज्ञेय (जैनेन्द्र-प्रेमचंद द्वारा दिया गया)
पिता- पंडित हीरानन्द शास्त्री
माता- कांति देवी
कार्यक्षेत्र- कवि, लेखक
भाषा- हिन्दी
काल- आधुनिक काल
विधा- कहानी, कविता, उपन्यास, निबंध
विषय- सामाजिक, यथार्थवादी
आन्दोलन- नई कविता, प्रयोगवाद
1930 से 1936 तक इनका जीवन विभिन्न जेलों में कटा।
1943 से 1946 ईसवी तक सेना में नौकरी की।
आपने क्रांतिकारियों के लिए बम बनाने का कार्य भी किया और बम बनाने के अपराध में जेल गए।
इसके बाद उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो में नौकरी की।
सन् 1971-72 में जोधपुर विश्वविद्यालय में ‘तुलनात्मक साहित्य’ के प्रोफेसर।
1976 में छह माह के लिए हइडेलबर्ग जर्मनी के विश्वविद्यालय में अतिथि प्रोफेसर।
इनका जीवन यायावरी एवं क्रांतिकारी रहा जिसके कारण वह किसी एक व्यवस्था में बंद कर नहीं रह सके।
साहित्यिक परिचय
कलिष्ट शब्दों का प्रयोग करने के कारण आचार्य शुक्ल ने इन्हें ‘कठिन गद्य का प्रेत’ कहा है।
इनको व्यष्टि चेतना का कवि भी कहा जाता है।
‘हरी घास पर क्षणभर’ इनकी प्रौढ़ रचना मानी जाती है इसमें बुलबुल श्यामा, फुदकी, दंहगल, कौआ जैसे विषयों को लेकर कवि ने अपनी अनुभूति का परिचय दिया है।
इंद्रधनुष रौंदे हुए रचना में नए कवियों की भावनाओं को अभिव्यक्त किया गया है।
उनका लगभग समग्र काव्य सदानीरा (दो खंड) नाम से संकलित हुआ है।
इन्होंने गधे जैसे जानवर को भी काव्य का विषय बनाया।
इनके काव्य की मूल प्रवृतियां आत्म-स्थापन या अपने आपको को थोपने की रही है अर्थात इन्होंने स्वयं का गुणगान करके दूसरों को तुच्छ सिद्ध करने का प्रयास किया है।
इनकी कविताओं में प्रकृति, नारी, कामवासना आदि विभिन्न विषयों का निरूपण हुआ है किंतु वहां भी यह अपनी ‘अहं और दंभ ‘को छोड़ नहीं पाए हैं।
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय : रचनाएं
कविता संग्रह
भग्नदूत 1933,
चिन्ता 1942,
इत्यलम्1946,
हरी घास पर क्षण भर 1949,
बावरा अहेरी 1954,
इंद्रधनुष रौंदे हुए 1957,
अरी ओ करुणा प्रभामय 1959,
आँगन के पार द्वार 1961,
कितनी नावों में कितनी बार (1967),
क्योंकि मैं उसे जानता हूँ (1970),
सागर मुद्रा (1970),
पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ (1974),
महावृक्ष के नीचे (1977),
नदी की बाँक पर छाया (1981),
प्रिज़न डेज़ एण्ड अदर पोयम्स (अंग्रेजी में,1946)
रूपाम्बरा,
सावन मेघ,
अन्तर्गुहावासी (कविता),
ऐसा कोई घर आपने देखा है- 1986
असाध्य वीणा कविता चीनी (जापानी) लोक कथा पर आधारित है, जो ‘ओकाकुरा’ की पुस्तक ‘दी बुक ऑफ़ टी’ में ‘टेमिंग ऑफ द हार्प’ शीर्षक से संग्रहित है। यह एक लम्बी रहस्यवादी कविता है जिस पर जापान में प्रचलित बौद्धों की एक शाखा जेन संप्रदाय के ‘ध्यानवाद’ या ‘अशब्दवाद’ का प्रभाव परिलक्षित होता है। यह कविता अज्ञेय के काव्य संग्रह ’आँगन के पार द्वार’ (1961) में संकलित है। आँगन के पार द्वार कविता के तीन खण्ड है –
1. अंतः सलिला
2. चक्रान्त शिला
3. असाध्य वीणा
कहानियाँ
विपथगा 1937,
परम्परा 1944,
कोठरीकी बात 1945,
शरणार्थी 1948,
जयदोल 1951
उपन्यास
शेखर एक जीवनी- प्रथम भाग 1941, द्वितीय भाग 1944
नदी के द्वीप 1951
अपने – अपने अजनबी 1961
यात्रा वृतान्त
अरे यायावर रहेगा याद? 1943
एक बूँद सहसा उछली 1960
निबंध संग्रह
सबरंग,
त्रिशंकु, 1945
आत्मनेपद, 1960
आधुनिक साहित्य: एक आधुनिक परिदृश्य,
आलवाल,
भवन्ती 1971 (आलोचना)
अद्यतन 1971 (आलोचना)
संस्मरण
स्मृति लेखा
डायरियां
भवंती
अंतरा
शाश्वती
नाटक
उत्तरप्रियदर्शी
संपादित ग्रंथ
आधुनिक हिन्दी साहित्य (निबन्ध संग्रह) 1942
तार सप्तक (कविता संग्रह) 1943
दूसरा सप्तक (कविता संग्रह)1951
नये एकांकी 1952
तीसरा सप्तक (कविता संग्रह), सम्पूर्ण 1959
रूपांबरा 1960
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय : पत्र पत्रिकाओं का संपादन
विशाल भारत (कोलकता से)
सैनिक (आगरा से)
दिनमान (दिल्ली)
प्रतीक (पत्रिका) (इलाहाबाद)
नवभारत टाईम्स
1973-74 में जयप्रकाश नारायण के अनुरोध पर ‘एवरी मेंस वीकली’ का संपादन।
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय द्वारा कहे गए प्रमुख कथन
‘‘प्रयोगवादी कवि किसी एक स्कूल के कवि नहीं हैं, सभी राही हैं, राही नहीं, राह के अन्वेषी हैं।’’ -तार सप्तक की भूमिका में
‘‘प्रयोगवाद का कोई वाद नहीं है, हम वादी नहीं रहे, नहीं हैं। न प्रयोग अपने आप में इष्ट या साध्य है। इस प्रकार कविता का कोई वाद नहीं।’’ -दूसरा सप्तक की भूमिका में
‘‘प्रयोग दोहरा साधन है।’’
‘‘प्रयोगशील कवि मोती खोजने वाले गोताखोर हैं।’’
‘‘हमें प्रयोगवादी कहना उतना ही गलत है, जितना कहना कवितावादी।’’
‘‘काव्य के प्रति एक अन्वेषी का दृष्टिकोण ही उन्हें (तार सप्तक के कवियों को) समानता के सूत्र में बांधता है।’’
‘‘प्रयोगशील कविता में नये सत्यों, कई यथार्थताओं का जीवित बोध भी है, उन सत्यों के साथ नये रागात्मक संबंध भी और उनको पाठक या सहृदय तक पहुँचाने यानी साधारणीकरण की शक्ति है।’’
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय : पुरस्कार एवं सम्मान
आंगन के पार द्वार रचना के लिए इनको 1964 ई. में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ।
‘कितनी नावों में कितनी बार’ रचना के लिए इनको 1978 ईस्वी में भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ।
1979 में ज्ञानपीठ पुरस्कार राशि के साथ अपनी राशि जोड़कर ‘वत्सल निधि’ की स्थापना।
1983 में यूगोस्लाविया के कविता-सम्मान गोल्डन रीथ से सम्मानित।
1987 में ‘भारत-भारती’ सम्मान की घोषणा।
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय संबंधी विशेष तथ्य
प्रयोगवाद के प्रवर्तन का श्रेय अज्ञेय को है।
अज्ञेय अस्तित्ववाद में आस्था रखने वाले कवि हैं।
अज्ञेय को प्रयोगवाद तथा नयी कविता का शलाका पुरुष भी कहा जाता है।
असाध्य वीणा एक लंबी कविता है। इसका मूल भाव अहं का विसर्जन है।
असाध्य वीणा चीनी लोक कथा ‘टेमिंग आफ द हाॅर्प’ की भारतीय परिवेश में प्रस्तुति है।
‘एक चीड़ का खाका’ जापानी छंद हायकू में लिखा हुआ है।
‘बावरा अहेरी’ की प्रारंभिक पंक्तियों पर फारसी के प्रसिद्ध कवि उमर खैय्याम की रूबाइयों का प्रभाव माना जाता है।
‘बावरा अहेरी’ इनके जीवन दर्शन को प्रतिबिंबित करने वाली रचना है।
‘असाध्य वीणा’ कविता में मौन भी है अद्वैत भी है यह इनकी प्रतिनिधि कविता मानी जाती है यह कविता जैन बुद्धिज्म पर आधारित मानी जाती है।
प्रयोगवाद का सबसे ज्यादा विरोध करने वाले अज्ञेय ही थे।
डाॅ. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इनको ‘‘बीसवीं सदी का बाणभट्ट’’ कहा है।
जैनेंद्र के उपन्यास ‘त्यागपत्र’ का ‘दि रिजिग्नेशन’ नाम से अंग्रेजी अनुवाद किया।