रीतिकाल के ध्वनि ग्रंथ
रीतिकाल में काव्यशास्त्र से संबंधित अनेक ग्रंथों की रचना हुई। यह ग्रंथ काव्यशास्त्र के विभिन्न अंगों को लेकर लिखे गए। इनमें से कुछ ग्रंथ सर्वांग निरूपक ग्रंथ से थे जबकि कुछ विशेषांग निरूपक थे। रीतिकाल के ध्वनि ग्रंथ।
विशेषांग निरूपक ग्रंथों में ध्वनि संबंधी ग्रंथ, रस संबंधी ग्रंथ, अलंकार संबंधी ग्रंथ, छंद शास्त्र संबंधी ग्रंथ, इत्यादि ग्रंथों का प्रणयन हुआ।
1. कुलपति ― रस रहस्य (1670 ई.) ―
हिंदी रीतिशास्त्र के अंतर्गत ध्वनि के सर्वप्रथम आचार्य कुलपति मिश्र माने जाते हैं।
2. देव ― काव्यरसायन (1743 ई.) ―
देव ने ‘काव्यरसायन’ नामक ध्वनि-सिद्धांत निरूपण संबंधित ग्रंथ लिखा। इसका आधार ध्वन्यालोक ग्रंथ है। इसी ग्रंथ में अभिधा और लक्षणा का महत्त्व प्रतिपादित करते हुए लिखा- “अभिधा उत्तम काव्य है, मध्य लक्षणालीन ।
अधम व्यंजना रस कुटिल, उलटी कहत नवीन।” ( काव्य रसायन)
3. सूरति मिश्र ― काव्य सिद्धांत (18वीं सदी का उतरार्द्ध) ―
इस ग्रंथ पर मम्मट के काव्यप्रकाश का प्रभाव है। इनका काव्य-संबंधी परिभाषा निजी एवं वैशिष्ट्यपूर्ण है।
4. कुमारमणि भट्ट ― रसिक रसाल (1719 ई.) ―
यह काव्यशास्त्र का एक श्रेष्ठ ग्रंथ है।
5. श्रीपति ― काव्यसरोज (1720 ई.) –
यह मम्मट के काव्यप्रकाश पर आधारित ग्रंथ है।
रीतिकाल के ध्वनि ग्रंथ
6. सोमनाथ ― रसपीयूषनिधि (1737 ई.) ―
सोमनाथ ने भरतपुर के महाराज बदनसिंह हेतु रसपीयूषनिधि की रचना की थी।
7. भिखारीदास ― काव्यनिर्णय (1750 ई.)
इसमें 43 प्रकार की ध्वनियों का निरूपण हुआ है।
8. जगत सिंह ― साहित्य सुधानिधि, (1801 ई.) ―
भरत, भोज, मम्मट, जयदेव, विश्वनाथ, गोविन्दभट्ट, भानुदत्त, अप्पय दीक्षित इत्यादि आचार्यों के ग्रंथों का आधार लेकर यह ग्रंथ सृजित हुआ है।
9. रणधीर सिंह ― काव्यरत्नाकर ―
‘काव्यप्रकाश’ और ‘चंद्रलोक’ के आधार पर तथा कुलपति के रस रहस्य’ ग्रंथ का आदर्श ग्रहणकर ‘काव्यरत्नाकर’ की रचना हुई।
रीतिकालीन ध्वनि ग्रंथ
10. प्रताप साहि ― व्यंग्यार्थ कौमुदी ―
यह व्यंग्यार्थ प्रकाशक ग्रंथ है, जिसमें ध्वनि की महत्ता प्रतिपादित हुई है।
11. रामदास ― कविकल्पद्रुम, (1844 ई.) ―
रामदास ने ध्वनि विषयक ग्रंथ ‘कविकल्पद्रुम’ या ‘साहित्यसार लिखा।
12. लछिराम रावणेश्वर ― कल्पतरु (1890) ―
लछिराम ने गिद्धौर नरेश महाराज रावणेश्वर प्रसाद सिंह के प्रसन्नार्थ 1890 ई. में ध्वनि विषयक रावणेश्वर कल्पतरु’ लिखा।
13. कन्हैयालाल पोद्दार ― रसमंजरी ―
यह ‘रस’ से संबंधित रचना है परन्तु इसका ढाँचा ‘ध्वनि’ पर निर्मित हुआ है। यह रचना गद्य में है जबकि इसके उदाहरण पद्यमय है। इस ग्रंथ पर मम्मट के ‘काव्यप्रकाश’ का प्रभाव है।
14. रामदहिन मिश्र ― काव्यालोक ―
यह आधुनिक काल का एक काव्यशास्त्रीय ग्रंथ है।
15. जगन्नाथ प्रसाद भानु ― काव्यप्रभाकर ―
यह आधुनिक काल का एक काव्यशास्त्रीय ग्रंथ है जिसकी रचना 1910 ई. में हुई।