हिन्दी शब्दकोश में हालावाद
हम पढ रहे हैं हालावाद, अर्थ, परिभाषा, प्रमुख हालावादी कवि, हालावाद का समय, विशेषताएं, हालावाद पर कथन, हालावादी काव्य पर विद्वानों के कथन।
गणपतिचन्द्र गुप्त ने उत्तर छायावाद/छायावादोत्तर काव्य को तीन काव्यधाराओं में व्यक्त किया है-
राष्ट्रीय चेतना प्रधान
व्यक्ति चेतना प्रधान
समष्टि चेतना प्रधान में बांटा है। इनमें से व्यक्ति चेतना प्रधान काव्य को ही हालवादी काव्य कहा गया है।
हालावाद का अर्थ/हालावाद की परिभाषा
हाला का शाब्दिक अर्थ है- ‘मदिरा’, ‘सोम’ शराब’ आदि। बच्चन जी ने अपनी हालावादी कविताओं में इसे गंगाजल, हिमजल, प्रियतम, सुख का अभिराम स्थल, जीवन के कठोर सत्य, क्षणभंगुरता आदि अनेक प्रतीकों के रूप में प्रयोग किया है।
हालावाद हिन्दी शब्दकोश के अनुसार— साहित्य, विशेषतः काव्य की वह प्रवृत्ति या धारा, जिसमें हाला या मदिरा को वर्ण्य विषय मानकर काव्यरचना हुई हो। साहित्य की इस धारा का आधार उमर खैयाम की रुबाइयाँ रही हैं।
हालावादी काव्य का संबंध ईरानी साहित्य से है जिस का भारत में आगमन अनूदित साहित्य के माध्यम से हुआ।
जब छायावादी काव्य की एक धारा स्वच्छंदत होकर व्यक्तिवादी-काव्य में विकसित हुआ। इस नवीन काव्य धारा में पूर्णतया वैयक्तिक चेतनाओं को ही काव्यमय स्वरों और भाषा में संजोया-संवारा गया है।
Halawad
डॉ.नगेन्द्र ने छायावाद के बाद और प्रगतिवाद के पूर्व की कविता को ‘वैयक्तिक कविता’ कहा है। डॉ. नगेन्द्र के अनुसार, “वैयक्तिक कविता छायावाद की अनुजा और प्रगतिवाद की अग्रजा है, जिसने प्रगतिवाद के लिए एक मार्ग प्रशस्त किया। यह वैयक्तिक कविता आदर्शवादी और भौतिकवादी,दक्षिण और वामपक्षीय विचारधाराओं के बीच का एक क्षेत्र है।”
इस नवीन काव्य धारा को ‘वैयक्तिक कविता’ या ‘हालावाद’ या ‘नव्य-स्वछंदतावाद’ या ‘उन्मुक्त प्रेमकाव्य’ या ‘प्रेम व मस्ती के काव्य’ आदि उपमाओं से अभिहित किया गया है। हजारी प्रसाद द्विवेदी ने उत्तर छायावाद को छायावाद का दूसरा उन्मेष कहा है।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने उत्तर छायावाद/छायावादोत्तर काव्य को “स्वछन्द काव्य धारा” कहा है।
हालावाद के जनक
हरिवंश राय बच्चन हालावाद के प्रवर्तक माने जाते है। हिन्दी साहित्य में हालावाद का प्रचलन बच्चन की मधुशाला से माना जाता है। हालावाद नामकरण करने का श्रेय रामेश्वर शुक्ल अंचल को प्राप्त है।
हालावाद के प्रमुख कवि
हरिवंशराय बच्चन
भगवतीचरण वर्मा
रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’
नरेन्द्र शर्मा आदि।
हालावादी कवि और उनकी रचनाएं
हरिवंश राय बच्चन (1907-2003):
काव्य रचनाएं:
1.निशा निमंत्रण 2.एकांत-संगीत 3.आकुल-अंतर 4.दो चट्टाने 5.हलाहल 6.मधुबाला 7.मधुशाला 8.मधुकलश 9.मिलन-यामिनी 10.प्रणय-पत्रिका 11.आरती और अंगारे 12.धार के इधर-उधर 13.विकल विश्व 14.सतरंगिणी 15.बंगाल का अकाल 16.बुद्ध और नाचघर.17.कटती प्रतिमाओं की आवाज।
भगवती चरण वर्मा(1903-1980 )
काव्य रचनाएं:
1. मधुवन 2. प्रेम-संगीत 3.मानव 4.त्रिपथगा 5. विस्मृति के फूल।
रामेश्वर शुक्ल अंचल(1915-1996)
काव्य-रचनाएं
1.मधुकर 2.मधूलिका 3. अपराजिता 4.किरणबेला 5.लाल-चूनर 6. करील 7. वर्षान्त के बादल 8.इन आवाजों को ठहरा लो।
नरेंद्र शर्मा(1913-1989):
काव्य रचनाएं
1.प्रभातफेरी 2.प्रवासी के गीत 3.पलाश वन 4.मिट्टी और फूल 5.शूलफूल 6.कर्णफूल 7.कामिनी 8.हंसमाला 9.अग्निशस्य 10.रक्तचंदन 11.द्रोपदी 12.उत्तरजय।
हालावाद का समय
हालावाद का समय 1933 से 1936 तक माना जाता है।
छायावाद और हालावाद/छायावादोत्तर काव्य में अंतर
छायावादी तथा छायावादोत्तर काव्य की मूल प्रवृत्ति व्यक्ति निश्ड है फिर भी दोनों में अंतर है डॉ तारकनाथ बाली के अनुसार- “छायावादी व्यक्ति-चेतना शरीर से ऊपर उठकर मन और फिर आत्मा का स्पर्श करने लगती है जबकि इन कवियों में व्यक्तिनिष्ठ चेतना प्रधानरूप से शरीर और मन के धरातल पर ही व्यक्त होती रही है। इन्होंने प्रणय को ही साध्य के रूप में स्वीकार करने का प्रयास किया है । छायावादी काव्य जहाँ प्रणय को जीवन की यथार्थ-विषम व्यापकता से संजोने का प्रयास करता है वहाँ प्रेम और मस्ती का यह काव्य या तो यथार्थ से विमुख होकर प्रणय में तल्लीन दिखायी देता है, या फिर जीवन की व्यापकता को प्रणय की सीमाओं में ही खींच लाता है।” (हिंदी साहित्य का इतिहास सं. डॉ. नगेन्द्र)
छायावादी काव्य की प्रणयानुभूतियां आत्मा को स्पर्श करने वाली हैं। छायावादियों का प्रेम शनैः -शनैः सूक्ष्म से स्थूल की ओर, शरीर से अशरीर की ओर तथा लौकिक से अलौकिकता की ओर अग्रसर होता है, जबकि छायावादोत्तर (हालवादी) काल के कवियों के यहां प्रेम केंद्रीय शक्ति की तरह है।
हालावाद/छायावादोत्तर काव्य की प्रमुख विशेषताएं
जीवन के प्रति व्यापक दृष्टि का अभाव
आध्यात्मिक अमूर्तता तथा लौकिक संकीर्णता का विरोध
धर्मनिरपेक्षता
जीवन सापेक्ष दृष्टिकोण
द्विवेदी युगीन नैतिकता और छायावादी रहस्यात्मकता का परित्याग
स्वानुभूति और तीव्र भावावेग
उल्लास और उत्साह
जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण
जीवन का लक्ष्य स्पष्ट
भाषा एवं शिल्प
काव्य भाषा- छायावाद की भाषा में जो सूक्ष्मता और वक्रता है वह छायावादोत्तर काव्य में नहीं है।इसका कारण यह है कि इस काव्य में भावनाओं की वैसी जटिलता और गहनता नहीं है, जैसी छायावाद में थीं। लेकिन छायावाद की तरह यह काव्य भी मूलतः स्वच्छंदतावादी काव्य है, इसलिए इसकी भाषा में बौद्धिकता का अभाव है तथा मुख्य बल भाषा की सुकुमारता, माधुर्य और लालित्य पर है। छायावादोत्तर काव्य सीधी-सरल पदावली द्वारा जीवन की अनुभूतियों को व्यक्त करने का प्रयास करता है। छायावादोत्तर काल के कवियों का भाषा के क्षेत्र में सबसे बड़ा योगदान था- काव्य भाषा को बोलचाल की भाषा के नजदीक लाना। यह काम न तो द्विवेदी युग में हुआ था और न ही छायावाद में। यद्यपि इन कवियों ने भी आमतौर पर तत्सम प्रधान शब्दावली का ही प्रयोग किया परन्तु समास बहुलता, संस्कृतनिष्ठता से उन्होंने छुटकारा पा लिया। साथ ही जहाँ आवश्यक हुआ, वहाँ तद्भव, देशज और उर्दू शब्दों का भी प्रयोग किया।
Halawad
काव्य शिल्प – इस काव्यधारा ने भी मुख्यत: मुक्तक रचना की ओर ही अपना ध्यान केन्द्रित किया मुक्तक रचना में भी इन कवियों की प्रवृत्ति गीत रचना की और अधिक थी। इसका एक कारण तो इनका रोमानी प्रवृत्ति का होना था, दूसरा कारण संभवत: यह था कि इनमें से अधिकांश कवि अपनी रचनाओं को सभाओं, गोष्ठियों और कवि सम्मेलनों में पेश करते थे। इस काव्यधारा के गीतों में छायावाद जैसी रहस्यात्मकता और संकोच नहीं है बल्कि अपनी हृदयगत भावनाओं को कवियों ने बेबाक ढंग से प्रस्तुत किया है। यहाँ भी कवि का “मैं” उपस्थित है। इस दौर के गीतिकाव्य की विशेषता का उल्लेख करते हुए डॉ रामदरश मिश्र कहते हैं, “वैयक्तिक गीतिकविता की अभिव्यक्तिमूलक सादगी उसकी एक बहुत बड़ी देन है कवि सीधे-सादे शब्दों, परिचिंत चित्रों और सहज कथन भंगिमा के द्वारा अपनी बात बड़ी सफाई से कह देता है।” डॉ. रामदरश मिश्र
हालावादी काव्य पर विद्वानों के कथन
“व्यक्तिवादी कविता का प्रमुख स्वर निराशा का है, अवसाद का है, थकान का है, टूटन का है, चाहे किसी भी परिप्रेक्ष्य में हो।” -डॉ. रामदरश मिश्र
डॉ. हेतु भारद्वाज ने हालावादी काव्य को “क्षयी रोमांस और कुण्ठा का काव्य” कहा है।
डॉ. बच्चन सिंह ने हालावाद को “प्रगति प्रयोग का पूर्वाभास” कहा है।
“मधुशाला की मादकता अक्षय है”-सुमित्रानंदन पंत
” मधुशाला में हाला, प्याला, मधुबाला और मधुशाला के चार प्रतीकों के माध्यम से कवि ने अनेक क्रांतिकारी, मर्मस्पर्शी, रागात्मक एवं रहस्यपूर्ण भावों को वाणी दी है।” -सुमित्रानंदन पंत
हालावादी काव्य को हजारी प्रसाद द्विवेदी ने “मस्ती, उमंग और उल्लास की कविता” कहा है।
हालावादी कवियों ने “अशरीरी प्रेम के स्थान पर शरीरी प्रेम को तरजीह दी है।”
संदर्भ-
हिन्दी साहित्य का इतिहास – डॉ नगेन्द्र
हिन्दी साहित्य का इतिहास – आ. शुक्ल
इग्नू पाठ्यसामग्री
हालावाद | अर्थ | परिभाषा | प्रमुख हालावादी कवि | हालावाद का समय | विशेषताएं | हालावाद पर कथन | हालावादी काव्य पर विद्वानों के कथन |
हालावाद विशेष- https://thehindipage.com/halawad-hallucination/halawad/
‘रासो’ शब्द की व्युत्पत्ति – विभिन्न मत- https://thehindipage.com/raaso-sahitya/raaso-shabad-ki-jankari/
कामायनी के विषय में कथन- https://thehindipage.com/kamayani-mahakavya/kamayani-ke-vishay-me-kathan/
संस्मरण और रेखाचित्र- https://thehindipage.com/sansmaran-aur-rekhachitra/sansmaran-aur-rekhachitra/
Nice
Welcome
Howdy, would you mind letting me know which web host you’re utilizing? I’ve loaded your blog in 3 completely different web browsers, and I must say this blog loads a lot quicker then most. Can you suggest a good internet hosting provider at a reasonable price?