चट्टानें अथवा शैल
चट्टानें अथवा शैल Rocks के प्रकार, विशेषताएं एवं उदाहरण की पूरी जानकारी।
जिन पदार्थो से भूपर्पटी बनी है, उन्हें शैल कहते हैं। शैलें विभिन्न प्रकार की होती हैं । भूपर्पटी पर मिलने वाले सभी पदार्थ जो धातु नहीं होती चाहे वे ग्रेनाइट की तरह कठोर, चीका मिट्टी की तरह मुलायम अथवा बजरी के समान बिखरी हुई हों शैल कहलाती हैं। शैलें विभिन्न रंग, भार और कठोरता लिए होती है।
चट्टानें अथवा शैल के प्रकार
शैलें अपने गुण, कणों के आकार और उनके बनने की प्रक्रिया के आधार पर विभिन्न प्रकार की होती हैं। निर्माण क्रिया की दृष्टि से शैलों के तीन वर्ग हैं-
आग्नेय या प्राथमिक चट्टान/शैल
अवसादी या परतदार चट्टान/शैल
कायंतरित या रूपांतरित चट्टान/शैल
आग्नेय या प्राथमिक चट्टान: चट्टानें शैल प्रकार विशेषताएं
Igneous (“इगनियस”) अंग्रेजी भाषा का शब्द है जो कि लैटिन भाषा के इग्निस शब्द से बना है जिसका अर्थ अग्नि होता है। अर्थात वह शैल जिनकी उत्पत्ति अग्नि से हुई है, उन्हें आग्नेय शैल कहते हैं। अर्थात आग्नेय शैलें अति तप्त चट्टानी तरल पदार्थ, जिसे मैग्मा कहते हैं, के ठण्डे होकर जमने से बनती हैं।
पृथ्वी की प्रारम्भिक भूपर्पटी आग्नेय शैलों से बनी है, अतः अन्य सभी शैलों का निर्माण आग्नेय शैलों से ही हुआ है। इसी कारण आग्नेय शैलों को जनक या मूल शैल भी कहते हैं।
भूगर्भ के सबसे ऊपरी 16 किलोमीटर की मोटाई में आग्नेय शैलों का भाग लगभग 95 प्रतिशत है।
आग्नेय शैलें सामान्यतया कठोर, भारी, विशालकाय और रवेदार होती हैं।
निर्माण-स्थल के आधार पर आग्नेय शैलों को दो वर्गों में बाँटा गया है –
(i) बाह्य या बहिर्भेदी (ज्वालामुखी) आग्नेय शैल
(ii) आन्तरिक या अन्तर्भेदी आग्नेय शैल।
(i) बाह्य आग्नेय शैलें:
धरातल पर लावा के ठण्डा होकर जमने से बनी है। इन्हें ज्वालामुखी शैल भी कहते हैं। गेब्रो और बैसाल्ट बाह्य आग्नेय शैलों के सामान्य उदाहरण हैं। भारत के दक्कन पठार की “रेगुर” अथवा काली मिट्टी लावा से बनी है।
(ii) आन्तरिक आग्नेय शैल:
इन शैलों की रचना मैग्मा (लावा) के धरातल के नीचे जमने से होती है। ग्रेनाइट और डोलोमाइट आंतरिक आग्नेय शैल के सामान्य उदाहरण हैं।
रासायनिक गुणों के आधार पर आग्नेय शैलों को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है- अम्लीय और क्षारीय शैल। ये क्रमशः अम्लीय और क्षारीय लावा के जमने से बनती है।
अम्लीय आग्नेय शैल:
ऐसी शैलों में सिलीका की मात्रा 65 प्रतिशत होती है। इनका रंग बहुत हल्का होता है। ये कठोर और मजबूत शैल है ग्रेनाइट इसी प्रकार की शैल का उदाहरण है।
क्षारीय आग्नेय शैल: ऐसी शैलों में लोहा और मैगनीशियम की अधिकता है। इनका रंग गहरा और काला होता है। गैब्रो, बैसाल्ट तथा डोलेराइट क्षारीय शैलों के उदाहरण हैं।
आग्नेय चट्टानों की विशेषताएं: चट्टानें शैल प्रकार विशेषताएं
यह चट्टाने लावा के धीरे-धीरे ठंडा होने से बनती है, इसलिए रवेदार और दानेदार होती है।
इन में धात्विक खनिज सर्वाधिक मात्रा में पाए जाते हैं।
यह अत्यधिक कठोर होती है जिससे वर्षा का जल इनमें प्रवेश नहीं कर पाता और रासायनिक अपक्षय की क्रिया कम होती है।
यह चट्टाने लावा के ठंडे होने से बनती है, जिसके कारण इनमें जीवा अवशेष नहीं पाए जाते हैं।
इन चट्टानों में परते नहीं पाई जाती हैं।
अवसादी या परतदार चट्टान:
अवसादी अर्थात् Sedimentary (सेडीमेंटेरी) शब्द की व्युत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द सेडिमेंटस से हुई है जिसका अर्थ है, व्यवस्थित होना।
इन शैलों की रचना अवसादों के एक के ऊपर एक जमा होने के परिणाम स्वरूप होती है। इन शैलों में परतें होती हैं। अतः इन्हें परतदार शैल भी कहते हैं।
इन शैलों की परतों के बीच जीवाश्म भी मिलते हैं
जीवाश्म प्रागैतिहासिक काल के पेड़ – पौधों अथवा पशुओं के अवशेष हैं, जो अवसादी शैलों की परतों के बीच में दबकर ठोस रूप धारण कर चुके हैं।
संसार के सभी जलोढ़ निक्षेप भी अवसादों के एकीकृत रूप हैं।
अतः सभी नदी द्रोणियां विशेषकर उनके मैदान तथा डेल्टा अवसादों के जमाव से बने हैं।
इनमें सिंधु-गंगा का मैदान और गंगा-ब्रह्मपुत्र का डेल्टा सबसे उत्तम उदाहरण है।
धरातल पर विभिन्न शैलों पर बाह्य कारकों के प्रभाव से विभिन्न पदार्थों की परत बनती जाती है और सघनता के कारण यह परतें शैल में परिवर्तित हो जाती है इस प्रक्रिया को शिलीभवन (Lithification) कहते हैं।
संसार के विशालकाय वलित पर्वतों जैसे हिमालय, एण्डीज आदि की रचना शैलों से हुई है।
बलुआ पत्थर, शैल, चूना पत्थर और डोलोमाइट यांत्रिक अवसादी शैलें हैं।
कोयला और चूना पत्थर जैविक/कार्बनिक मूल की अवसादी शैलें हैं।
सेंधा नमक, जिप्सम, शोरा आदि सब रासायनिक प्रकार की शैलें है।
कायंतरित या रूपांतरित चट्टान: चट्टानें शैल प्रकार विशेषताएं
अवसादी अथवा आग्नेय शैलों पर अत्याधिक ताप से या दाब पड़ने के कारण रूपान्तरित शैलें बनती हैं।
उच्च ताप और उच्च दाब, पूर्ववर्ती शैलों के रंग, कठोरता, गठन तथा खनिज संघटन में परिवर्तन कर देते हैं।
इस परिवर्तन की प्रक्रिया को रूपान्तरण कहते हैं।
इस प्रक्रिया द्वारा बनी शैल को रूपांतरित शैल कहते हैं।
स्लेट, नीस-शीस्ट, संगमरमर और हीरा रूपान्तरित शैलों के उदाहरण हैं।
यह चट्टानी अपनी मूल चट्टान से अधिक मजबूत और कठोर होती हैं।
रूपांतरण के कारण इन चट्टानों में जीवावशेष नष्ट हो जाते हैं अतः इन में जीवाश्म लगभग नहीं पाए जाते हैं।
कायांतरण की प्रक्रिया में शैलों के कुछ कण या खनिज सतहों या रेखाओं के रूप में व्यवस्थित हो जाते हैं।
इस व्यवस्था को पत्रण (Foliation) या रेखांकन कहते हैं।
कभी-कभी खनिज या विभिन्न समूहों के कण पतली से मोटी सतह में इस प्रकार व्यवस्थित होते हैं, कि वे हल्के एवं गहरे रंगों में दिखाई देते हैं।
कायांतरित शैलों में ऐसी संरचनाओं को बैंडिंग कहते हैं।
शैल अथवा चट्टानों से संबंधित विज्ञान को पैट्रोलॉजी कहते हैं।
कठोरता-
दस चुने हुए खनिजों में से दस तक की श्रेणी में कठोरता मापना।
ये खनिज हैं 1. टैल्क, 2. जिप्सम, 3. कैल्साइट, 4. फ्लोराइट, 5. ऐपेटाइट, 6. फ़ेल्डस्पर. 7. क्वार्ट्ज, 8. टोपाज, 9. कोरंडम, 10. हीरा।
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