चक्रवात प्रतिचक्रवात Cyclone Anticyclone
चक्रवात-प्रतिचक्रवात कैसे बनता है? चक्रवात प्रतिचक्रवात-Cyclone Anticyclone परिभाषा, प्रभाव, प्रबंधन, विशेषताएँ, प्रकार, क्षेत्र, अंतर
चक्रवात Cyclone
हवाओं का परिवर्तनशील और अस्थिर चक्र, जिसके केंद्र में निम्न वायुदाब तथा बाहर उच्च वायुदाब होता है, ‘चक्रवात’ कहलाता है।
चक्रवात सामान्यत: निम्न वायुदाब का केंद्र होता है, इसके चारों ओर समवायुदाब रेखाएँ संकेंद्रित रहती हैं तथा परिधि या बाहर की ओर उच्च वायुदाब रहता है, जिसके कारण हवाएँ चक्रीय गति से परिधि से केंद्र की ओर चलने लगती हैं।
चक्रवात (साइक्लोन) घूमती हुई वायुराशि का नाम है।
उत्पत्ति के क्षेत्र के आधार पर चक्रवात के दो प्रकार हैं :
(1) उष्ण कटिबंधीय चक्रवात या वलकियक चक्रवात (Tropical cyclone)
(2) शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात या बाह्योष्णकटिबंधीय चक्रवात या उष्णवलयपार चक्रवात या वाताग्री चक्रवात (Extra tropical cyclone या Temperate cyclones)
(1) उष्ण कटिबंधीय चक्रवात या वलकियक चक्रवात (Tropical cyclone) –
उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों के महासागरों में उत्पन्न तथा विकसित होने वाले चक्रवातों को ‘उष्ण कटिबंधीय चक्रवात’ कहते हैं।
ये वायुसंगठन या तूफान हैं, जो उष्ण कटिबंध में तीव्र और अन्य स्थानों पर साधारण होते हैं। इनसे प्रचुर वर्षा होती है।
इनका व्यास 50 से लेकर 1000 मील तक का तथा अपेक्षाकृत निम्न वायुदाब वाला क्षेत्र होता है।
ये 20 से लेकर 30 मील प्रति घंटा तक के वेग से चलते हैं। इनमें वायुघूर्णन 90 से लेकर 130 मील प्रति घंटे तक का होता है।
उष्णकटिबंधीय चक्रवात को अलग-अलग देशों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है :
ऑस्ट्रेलिया व मेडागास्कर – विलीविली
हिंद महासागर – साइक्लोन
पश्चिमी द्वीप समूह के निकट (कैरेबियन सागर – वेस्टइंडीज) – हरिकेन
चीन जापान फिलिपींस – टायफून
दक्षिणी एवं पूर्वी संयुक्त राष्ट्र अमेरिका – टोरनैडो
ये 5° से 30° उत्तर तथा 5° से 30° दक्षिणी अक्षांशों के बीच उत्पन्न होते हैं। ध्यातव्य है कि भूमध्य रेखा के दोनों ओर 5° से 8° अक्षांशों वाले क्षेत्रों में न्यूनतम कोरिऑलिस बल के कारण इन चक्रवातों का प्राय: अभाव रहता है।
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात अत्यधिक विनाशकारी वायुमंडलीय तूफान होते हैं, जिनकी उत्पत्ति कर्क एवं मकर रेखाओं के मध्य महासागरीय क्षेत्र में होती है, तत्पश्चात् इनका प्रवाह स्थलीय क्षेत्र की तरफ होता है।
ITCZ (इंटरट्रॉपिकल कन्वर्जेंस ज़ोन, या ITCZ, वह क्षेत्र है जो भूमध्य रेखा के पास पृथ्वी को घेरता है, जहाँ उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध की व्यापारिक हवाएँ एक साथ आती हैं।) के प्रभाव से निम्न वायुदाब के केंद्र में विभिन्न क्षेत्रों से पवनें अभिसरित होती हैं तथा कोरिऑलिस बल के प्रभाव से वृत्ताकार मार्ग का अनुसरण करती हुई ऊपर उठती हैं। फलत: वृत्ताकार समदाब रेखाओं के सहारे उष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति होती है।
व्यापारिक पूर्वी पवन की पेटी का अधिक प्रभाव होने के कारण सामान्यत: इनकी गति की दिशा पूर्व से पश्चिम की ओर रहती है। (ये चक्रवात सदैव गतिशील नहीं होते हैं। कभी-कभी ये एक ही स्थान पर कई दिनों तक स्थायी हो जाते हैं तथा तीव्र वर्षा करते हैं।)
उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों के प्रमुख क्षेत्र-
कैरेबियन
चीन सागर
हिंद महासागर
ऑस्ट्रेलिया
(ध्यान दें – उष्ण कटिबंधीय चक्रवात के मध्य/केंद्र में शांत क्षेत्र पाया जाता है, जिसे ‘चक्रवात की आँख’कहते हैं, जबकि शीतोष्ण चक्रवात में इसका अभाव रहता है।)
(2) शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात या बाह्योष्णकटिबंधीय चक्रवात या उष्णवलयपार चक्रवात या वाताग्री चक्रवात (Extra tropical cyclone या Temperate cyclones)-
शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति तथा प्रभाव क्षेत्र शीतोष्ण कटिबंध अर्थात् मध्य अक्षांशों में होता है।
ये चक्रवात उत्तरी गोलार्द्ध में केवल शीत ऋतु में उत्पन्न होते हैं,
जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में जलीय भाग के अधिक होने के कारण ये वर्ष भर उत्पन्न होते रहते हैं।
ये चक्रवात अंडाकार, गोलाकार, अर्द्ध-गोलाकार तथा ‘V’ आकार के होते हैं, जिस कारण इन्हें ‘निम्न गर्त’या ‘ट्रफ’कहते हैं।
ये चक्रवात दोनों गोलार्द्धों में 35° से 65° अक्षांशों के मध्य पाए जाते हैं, जिनकी गति पछुआ पवनों के कारण प्राय: पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर रहती है। ये शीत ऋतु में अधिक विकसित होते हैं।
इनकी उत्पत्ति ठंडी एवं गर्म, दो विपरीत गुणों वाली वायुराशियों के मिलने से होती है।
यह मध्य एवं उच्च अक्षांशों का निम्न वायुदाब वाला तूफान है।
इसका वेग 20 से लेकर 30 मील प्रति घंटे के वेग से सर्पिल रूप से चलती है। प्राय: इससे हिमपात एवं वर्षा होती है।
शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों के मुख्य क्षेत्र : चक्रवात प्रतिचक्रवात Cyclone Anticyclone
उत्तरी अटलांटिक महासागर
भूमध्य सागर
उत्तरी प्रशांत महासागर
चीन सागर
वायुमंडलीय विक्षोभ
दोनों प्रकार के चक्रवात दिशा पृथ्वी के घूर्णन के कारण उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के चलने की दिशा के विपरीत (वामावर्त) तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों की दिशा (दक्षिणावर्त) में होती है। चक्रवात प्राय: गोलाकार, अंडाकार या ‘V’ आकार के होते हैं। चक्रवात को ‘वायुमंडलीय विक्षोभ’(Atmospheric Disturbance) के अंतर्गत शामिल किया जाता है।
शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात में साधरणतया वायु-विचनल-रेखा होती है, जो विषुवत की ओर निम्नवायुकेंद्र में सैकड़ों मील तक बढ़ी रहती है तथा गरम एवं नम वायु को ठंडी और शुष्क वायु से पृथक् करती है।
प्रति-चक्रवात (anticyclone) की प्रकृति तथा विशेषताएं
प्रति-चक्रवात (anticyclone) की प्रकृति तथा विशेषताएं चक्रवात से पूर्णतः विपरीत होती हैं।
इसके केन्द्र में उच्च वायुदाब का क्षेत्र होता है जबकि परिधि की ओर निम्न वायुदाब पाया जाता है|
इसके कारण हवाएं केन्द्र से परिधि की ओर प्रवाहित होती हैं।
इनमें दाब प्रवणता कम (10 – 15 मिलीबार) ही होती है।
प्रतिचक्रवातों की उत्पत्ति अधिकांशतः उपोष्ण कटिबंधीय उच्च दाब क्षेत्रों में होती है।
भू-मध्यरेखीय निम्न दाब वाले क्षेत्र में ये नहीं पाये जाते ।
प्रति चक्रवातों में मौसम स्वच्छ रहता है तथा हवाएँ मंद गति से चलती हैं।
इनमें हवाओं की गति की दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुईयों के अनुकुल तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में प्रतिकुल होती है।
इनमें वाताग्र (दो भिन्न स्वभाव वाली वायु राशियां (तापमान गति, दिशा, आर्द्रता, घनत्व आदि के संदर्भ में) के मिलने से निर्मित ढलुआ सतह को ‘वाताग्र’ कहते हैं।) नहीं बनते इसलिए वर्षा की संभावना भी लगभग नहीं जैसी होती है ।
प्रतिचक्रवातों से शीतकाल में बर्फ की आँधियाँ चलती है, जिसे ‘शीत-लहर’ कहते हैं,
इसलिए जब ये शीत प्रति चक्रवात गर्मी के मौसम में आते हैं, तो मौसम सुहावना हो जाता है।
शीतोष्ण कटिबंधी चक्रवातों के विपरीत प्रति चक्रवातों में मौसम साफ़ होता है।
प्रतिचक्रवातों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नवत हैं : चक्रवात प्रतिचक्रवात Cyclone Anticyclone
इनका आकर प्रायः गोलाकार होता है परन्तु कभी-कभी U आकर में भी मिलते हैं।
केंद्र में वायुदाब अधिकतम होता है और केंद्र तथा परिधि के वायुदाबों के अंतर 10-20 मी. तथा कभी-कभी 35 मीटर होता है.
दाब प्रवणता कम होती है।
आकर में प्रतिचक्रवात, चक्रवातों के अपेक्षा काफी विस्तृत होते हैं.
इनका व्यास चक्रवातों की अपेक्षा 75% अधिक बड़ी होती है।
प्रतिचक्रवात 30-35 किमी. प्रतिघंटा की चाल से चक्रवातों के पीछे चलते हैं।
इनका मार्ग व दिशा निश्चित नहीं होता है।
प्रतिचक्रवात के केंद्र में उच्चदाब अधिक होने के कारण हवाएँ केंद्र से बाहर की ओर चलती है।
उत्तरी गोलार्द्ध में इनकी दिशा घड़ी की सुई के अनुकूल (clockwise) एवं दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुई के प्रतिकूल (anti clockwise) होती है।
इस पूरे मैटर की PDF प्राप्त करने के लिए यहां क्लिक कीजिए
प्रतिचक्रवात के केंद्र में हवाएँ ऊपर से नीचे उतरती है
अतः केंद्र का मौसम साफ़ होता है और वर्षा की संभावना नहीं होती है।
Bahut accha he
thank you for visit this post.
aap other post bhi visit kijiye.