हालावाद विशेष

हिन्दी शब्दकोश में हालावाद

हम पढ रहे हैं हालावाद, अर्थ, परिभाषा, प्रमुख हालावादी कवि, हालावाद का समय, विशेषताएं, हालावाद पर कथन, हालावादी काव्य पर विद्वानों के कथन।

गणपतिचन्द्र गुप्त ने उत्तर छायावाद/छायावादोत्तर काव्य को तीन काव्यधाराओं में व्यक्त किया है-

राष्ट्रीय चेतना प्रधान

व्यक्ति चेतना प्रधान

समष्टि चेतना प्रधान में बांटा है। इनमें से व्यक्ति चेतना प्रधान काव्य को ही हालवादी काव्य कहा गया है।

हालावाद का अर्थ/हालावाद की परिभाषा

हाला का शाब्दिक अर्थ है- ‘मदिरा’, ‘सोम’ शराब’ आदि। बच्चन जी ने अपनी हालावादी कविताओं में इसे गंगाजल, हिमजल, प्रियतम, सुख का अभिराम स्थल, जीवन के कठोर सत्य, क्षणभंगुरता आदि अनेक प्रतीकों के रूप में प्रयोग किया है।

हालावाद हिन्दी शब्दकोश के अनुसार— साहित्य, विशेषतः काव्य की वह प्रवृत्ति या धारा, जिसमें हाला या मदिरा को वर्ण्य विषय मानकर काव्यरचना हुई हो। साहित्य की इस धारा का आधार उमर खैयाम की रुबाइयाँ रही हैं।

हालावादी काव्य का संबंध ईरानी साहित्य से है जिस का भारत में आगमन अनूदित साहित्य के माध्यम से हुआ।

जब छायावादी काव्य की एक धारा स्वच्छंदत होकर व्यक्तिवादी-काव्य में विकसित हुआ। इस नवीन काव्य धारा में पूर्णतया वैयक्तिक चेतनाओं को ही काव्यमय स्वरों और भाषा में संजोया-संवारा गया है।

Halawad

डॉ.नगेन्द्र ने छायावाद के बाद और प्रगतिवाद के पूर्व की कविता को ‘वैयक्तिक कविता’ कहा है। डॉ. नगेन्द्र के अनुसार, “वैयक्तिक कविता छायावाद की अनुजा और प्रगतिवाद की अग्रजा है, जिसने प्रगतिवाद के लिए एक मार्ग प्रशस्त किया। यह वैयक्तिक कविता आदर्शवादी और भौतिकवादी,दक्षिण और वामपक्षीय विचारधाराओं के बीच का एक क्षेत्र है।”

इस नवीन काव्य धारा को ‘वैयक्तिक कविता’ या ‘हालावाद’ या ‘नव्य-स्वछंदतावाद’ या ‘उन्मुक्त प्रेमकाव्य’ या ‘प्रेम व मस्ती के काव्य’ आदि उपमाओं से अभिहित किया गया है। हजारी प्रसाद द्विवेदी ने उत्तर छायावाद को छायावाद का दूसरा उन्मेष कहा है।

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने उत्तर छायावाद/छायावादोत्तर काव्य को “स्वछन्द काव्य धारा” कहा है।

हालावाद परिभाषा कवि विशेषताएं
हालावाद परिभाषा कवि विशेषताएं

हालावाद के जनक

हरिवंश राय बच्चन हालावाद के प्रवर्तक माने जाते है। हिन्दी साहित्य में हालावाद का प्रचलन बच्चन की मधुशाला से माना जाता है। हालावाद नामकरण करने का श्रेय रामेश्वर शुक्ल अंचल को प्राप्त है।

हालावाद के प्रमुख कवि

हरिवंशराय बच्चन

भगवतीचरण वर्मा

रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’

नरेन्द्र शर्मा आदि।

हालावादी कवि और उनकी रचनाएं

हरिवंश राय बच्चन (1907-2003):

काव्य रचनाएं:

1.निशा निमंत्रण 2.एकांत-संगीत 3.आकुल-अंतर 4.दो चट्टाने 5.हलाहल 6.मधुबाला 7.मधुशाला 8.मधुकलश 9.मिलन-यामिनी 10.प्रणय-पत्रिका 11.आरती और अंगारे 12.धार के इधर-उधर 13.विकल विश्व 14.सतरंगिणी 15.बंगाल का अकाल 16.बुद्ध और नाचघर.17.कटती प्रतिमाओं की आवाज।

भगवती चरण वर्मा(1903-1980 )

काव्य रचनाएं:

1. मधुवन 2. प्रेम-संगीत 3.मानव 4.त्रिपथगा 5. विस्मृति के फूल।

रामेश्वर शुक्ल अंचल(1915-1996)

काव्य-रचनाएं

1.मधुकर 2.मधूलिका 3. अपराजिता 4.किरणबेला 5.लाल-चूनर 6. करील 7. वर्षान्त के बादल 8.इन आवाजों को ठहरा लो।

नरेंद्र शर्मा(1913-1989):

काव्य रचनाएं

1.प्रभातफेरी 2.प्रवासी के गीत 3.पलाश वन 4.मिट्टी और फूल 5.शूलफूल 6.कर्णफूल 7.कामिनी 8.हंसमाला 9.अग्निशस्य 10.रक्तचंदन 11.द्रोपदी 12.उत्तरजय।

हालावाद का समय

हालावाद का समय 1933 से 1936 तक माना जाता है।

छायावाद और हालावाद/छायावादोत्तर काव्य में अंतर

छायावादी तथा छायावादोत्तर काव्य की मूल प्रवृत्ति व्यक्ति निश्ड है फिर भी दोनों में अंतर है डॉ तारकनाथ बाली के अनुसार- “छायावादी व्यक्ति-चेतना शरीर से ऊपर उठकर मन और फिर आत्मा का स्पर्श करने लगती है जबकि इन कवियों में व्यक्तिनिष्ठ चेतना प्रधानरूप से शरीर और मन के धरातल पर ही व्यक्त होती रही है। इन्होंने प्रणय को ही साध्य के रूप में स्वीकार करने का प्रयास किया है । छायावादी काव्य जहाँ प्रणय को जीवन की यथार्थ-विषम व्यापकता से संजोने का प्रयास करता है वहाँ प्रेम और मस्ती का यह काव्य या तो यथार्थ से विमुख होकर प्रणय में तल्लीन दिखायी देता है, या फिर जीवन की व्यापकता को प्रणय की सीमाओं में ही खींच लाता है।” (हिंदी साहित्य का इतिहास सं. डॉ. नगेन्द्र)

छायावादी काव्य की प्रणयानुभूतियां आत्मा को स्पर्श करने वाली हैं। छायावादियों का प्रेम शनैः -शनैः सूक्ष्म से स्थूल की ओर, शरीर से अशरीर की ओर तथा लौकिक से अलौकिकता की ओर अग्रसर होता है, जबकि छायावादोत्तर (हालवादी) काल के कवियों के यहां प्रेम केंद्रीय शक्ति की तरह है।

हालावाद/छायावादोत्तर काव्य की प्रमुख विशेषताएं

जीवन के प्रति व्यापक दृष्टि का अभाव

आध्यात्मिक अमूर्तता तथा लौकिक संकीर्णता का विरोध

धर्मनिरपेक्षता

जीवन सापेक्ष दृष्टिकोण

द्विवेदी युगीन नैतिकता और छायावादी रहस्यात्मकता का परित्याग

स्वानुभूति और तीव्र भावावेग

उल्लास और उत्साह

जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण

जीवन का लक्ष्य स्पष्ट

भाषा एवं शिल्प

काव्य भाषा- छायावाद की भाषा में जो सूक्ष्मता और वक्रता है वह छायावादोत्तर काव्य में नहीं है।इसका कारण यह है कि इस काव्य में भावनाओं की वैसी जटिलता और गहनता नहीं है, जैसी छायावाद में थीं। लेकिन छायावाद की तरह यह काव्य भी मूलतः स्वच्छंदतावादी काव्य है, इसलिए इसकी भाषा में बौद्धिकता का अभाव है तथा मुख्य बल भाषा की सुकुमारता, माधुर्य और लालित्य पर है। छायावादोत्तर काव्य सीधी-सरल पदावली द्वारा जीवन की अनुभूतियों को व्यक्त करने का प्रयास करता है। छायावादोत्तर काल के कवियों का भाषा के क्षेत्र में सबसे बड़ा योगदान था- काव्य भाषा को बोलचाल की भाषा के नजदीक लाना। यह काम न तो द्विवेदी युग में हुआ था और न ही छायावाद में। यद्यपि इन कवियों ने भी आमतौर पर तत्सम प्रधान शब्दावली का ही प्रयोग किया परन्तु समास बहुलता, संस्कृतनिष्ठता से उन्होंने छुटकारा पा लिया। साथ ही जहाँ आवश्यक हुआ, वहाँ तद्भव, देशज और उर्दू शब्दों का भी प्रयोग किया।

Halawad

काव्य शिल्प – इस काव्यधारा ने भी मुख्यत: मुक्तक रचना की ओर ही अपना ध्यान केन्द्रित किया मुक्तक रचना में भी इन कवियों की प्रवृत्ति गीत रचना की और अधिक थी। इसका एक कारण तो इनका रोमानी प्रवृत्ति का होना था, दूसरा कारण संभवत: यह था कि इनमें से अधिकांश कवि अपनी रचनाओं को सभाओं, गोष्ठियों और कवि सम्मेलनों में पेश करते थे। इस काव्यधारा के गीतों में छायावाद जैसी रहस्यात्मकता और संकोच नहीं है बल्कि अपनी हृदयगत भावनाओं को कवियों ने बेबाक ढंग से प्रस्तुत किया है। यहाँ भी कवि का “मैं” उपस्थित है। इस दौर के गीतिकाव्य की विशेषता का उल्लेख करते हुए डॉ रामदरश मिश्र कहते हैं, “वैयक्तिक गीतिकविता की अभिव्यक्तिमूलक सादगी उसकी एक बहुत बड़ी देन है कवि सीधे-सादे शब्दों, परिचिंत चित्रों और सहज कथन भंगिमा के द्वारा अपनी बात बड़ी सफाई से कह देता है।” डॉ. रामदरश मिश्र

हालावादी काव्य पर विद्वानों के कथन

“व्यक्तिवादी कविता का प्रमुख स्वर निराशा का है, अवसाद का है, थकान का है, टूटन का है, चाहे किसी भी परिप्रेक्ष्य में हो।” -डॉ. रामदरश मिश्र

डॉ. हेतु भारद्वाज ने हालावादी काव्य को “क्षयी रोमांस और कुण्ठा का काव्य” कहा है।

डॉ. बच्चन सिंह ने हालावाद को “प्रगति प्रयोग का पूर्वाभास” कहा है।

“मधुशाला की मादकता अक्षय है”-सुमित्रानंदन पंत

” मधुशाला में हाला, प्याला, मधुबाला और मधुशाला के चार प्रतीकों के माध्यम से कवि ने अनेक क्रांतिकारी, मर्मस्पर्शी, रागात्मक एवं रहस्यपूर्ण भावों को वाणी दी है।” -सुमित्रानंदन पंत

हालावादी काव्य को हजारी प्रसाद द्विवेदी ने “मस्ती, उमंग और उल्लास की कविता” कहा है।

हालावादी कवियों ने “अशरीरी प्रेम के स्थान पर शरीरी प्रेम को तरजीह दी है।”

संदर्भ-

हिन्दी साहित्य का इतिहास – डॉ नगेन्द्र
हिन्दी साहित्य का इतिहास – आ. शुक्ल
इग्नू पाठ्यसामग्री

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‘रासो’ शब्द की व्युत्पत्ति – विभिन्न मत- https://thehindipage.com/raaso-sahitya/raaso-shabad-ki-jankari/

कामायनी के विषय में कथन- https://thehindipage.com/kamayani-mahakavya/kamayani-ke-vishay-me-kathan/

संस्मरण और रेखाचित्र- https://thehindipage.com/sansmaran-aur-rekhachitra/sansmaran-aur-rekhachitra/

आदिकाल के साहित्यकार
आधुनिक काल के साहित्यकार

‘रासो’ शब्द की व्युत्पत्ति – विभिन्न मत

‘रासो’ शब्द की जानकारी

‘रासो’ शब्द की व्युत्पत्ति, अर्थ, रासो साहित्य, विभिन्न प्रमुख मत, क्या है रासो साहित्य?, रासो शब्द का अर्थ एवं पूरी जानकारी।

‘रासो’ शब्द की व्युत्पति तथा ‘रासो-काव्य‘ के रचना-स्वरूप के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों ने विभिन्न प्रकार की धाराणाओं को व्यक्त किया है।

डॉ० गोवर्द्धन शर्मा ने अपने शोध- प्रबन्ध ‘डिंगल साहित्य में निम्नलिखित धारणाओं का उल्लेख किया है।

रास काव्य मूलतः रासक छंद का समुच्चय है।

रासो साहित्य की रचनाएँ एवं रचनाकार

अपभ्रंश में 29 मात्रओं का एक रासा या रास छंद प्रचलित था।

विद्वानों ने दो प्रकार के ‘रास’ काव्यों का उल्लेख किया है- कोमल और उद्धृत।

प्रेम के कोमल रूप और वीर के उद्धत रुप का सम्मिश्रण पृथ्वीराज रासो में है।

‘रासो’ साहित्य हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि है।

शब्द ‘रासो’ की व्युत्पत्ति के संबंध में विद्वानों में मतैक्य का अभाव है।

क्या है रासो साहित्य?

रासो शब्द का अर्थ बताइए?

‘रासो’ साहित्य अर्थ मत
‘रासो’ साहित्य अर्थ मत

विभिन्न विद्वानों ने इस संबंध में अनेक मत दिए हैं जिनमें से प्रमुख मत इस प्रकार से हैं-

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार बीसलदेव रासो में प्रयुक्त ‘रसायन’ शब्द ही कालान्तर में ‘रासो’ बना।

गार्सा द तासी के अनुसार ‘रासो’ की उत्पत्ति ‘राजसूय’ शब्द से है।

रामचन्द्र वर्मा के अनुसार इसकी उत्पत्ति ‘रहस्य’ से हुई है।

मुंशी देवीप्रसाद के अनुसार ‘रासो’ का अर्थ है कथा और उसका एकवचन ‘रासो’ तथा बहुवचन ‘रासा’ है।

ग्रियर्सन के अनुसार ‘रायसो’ की उत्पत्ति राजादेश से हुई है।

गौरीशंकर ओझा के अनुसार ‘रासा’ की उत्पत्ति संस्कत ‘रास’ से हुई है।

पं० मोहनलाल विष्णुलाल पंड्या के अनुसार ‘रासो’ की उत्पत्ति संस्कत ‘रास’ अथवा ‘रासक’ से हुई है।

मोतीलाल मेनारिया के अनुसार जिस ग्रंथ में राजा की कीर्ति, विजय, युद्ध तथा तीरता आदि का विस्तत वर्णन हो, उसे ‘रासो’ कहते हैं।

विश्वनाथप्रसाद मिश्र के अनुसार ‘रासो’ की व्युत्पत्ति का आधार ‘रासक’ शब्द है।

कुछ विद्वानों के अनुसार राजयशपरक रचना को ‘रासो’ कहते हैं।

विभिन्न विद्वानों ने इस संबंध में अनेक मत दिए हैं जिनमें से प्रमुख मत इस प्रकार से हैं-

बैजनाथ खेतान के अनुसार ‘रासो या ‘रायसों’ का अर्थ है झगड़ा, पचड़ा या उद्यम और उसी ‘रासो’ की उत्पत्ति है।

के० का० शास्त्री तथा डोलरराय माकंड के अनुसार ‘रास’ या ‘रासक मूलतः नत्य के साथ गाई जाने वाली रचनाविशेष है।

आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार ‘रासो’ तथा ‘रासक’ पर्याय हैं और वह मिश्रित गेय-रूपक हैं।

कुछ विद्वानों के अनुसार गुजराती लोक-गीत-नत्य ‘गरबा’, ‘रास’ का ही उत्तराधिकारी है।

डॉ० माताप्रसाद गुप्त के अनुसार विविध प्रकार के रास, रासावलय, रासा और रासक छन्दों, रासक और नाट्य-रासक, उपनाटकों, रासक, रास तथा रासो-नृत्यों से भी रासो प्रबन्ध-परम्परा का सम्बन्ध रहा है. यह निश्चय रूप से नहीं कहा जा सकता। कदाचित् नहीं ही रहा है।

मं० र० मजूमदार के अनुसार रासाओं का मुख्य हेतु पहले धर्मोपदेश था और बाद में उनमें कथा-तत्त्व तथा चरित्र-संकीर्तन आदि का समावेश हुआ।

विजयराम वैद्य के अनुसार ‘रास’ या ‘रासो’ में छन्द, राग तथा धार्मिक कथा आदि विविध तत्व रहते हैं।

डॉ० दशरथ शर्मा के अनुसार रास के नृत्य, अभिनय तथा गेय-वस्तु-तीन अंगों से तीन प्रकार के रासो (रास, रासक-उपरूपक तथा श्रव्य-रास) की उत्पत्ति हुई।

विभिन्न विद्वानों ने इस संबंध में अनेक मत दिए हैं जिनमें से प्रमुख मत इस प्रकार से हैं-

हरिबल्लभ भायाणी ने सन्देश रासक में और विपिनबिहारी त्रिवेदी ने पृथ्वीराज रासो में ‘रासा’ या ‘रासो’ छन्द के प्रयुक्त होने की सूचना दी है।

कुछ विद्वानों के अनुसार रसपूर्ण होने के कारण ही रचनाएँ, ‘रास’ कहलाई।

‘भागवत’ में ‘रास’ शब्द का प्रयोग गीत नृत्य के लिए हुआ है।

‘रास’ अभिनीत होते थे, इसका उल्लेख अनेक स्थान पर हुआ है। (जैसे-भावप्रकाश, काव्यानुशासन तथा साहितय-दर्पण आदि।)

हिन्दी साहित्य कोश में ‘रासो’ के दो रूप की ओर संकेत किया गया है गीत-नत्यपरक (पश्चिमी राजस्थान तथा गुजरात में समद्ध होने वाला) और छंद-वैविध्यपरक (पूर्वी राजस्थान तथा शेष हिन्दी में प्रचलित रूप।)

‘रासो’ शब्द की व्युत्पत्ति, अर्थ, रासो साहित्य, विभिन्न प्रमुख मत, क्या है रासो साहित्य?, रासो शब्द का अर्थ एवं पूरी जानकारी।

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कामायनी के विषय में कथन- https://thehindipage.com/kamayani-mahakavya/kamayani-ke-vishay-me-kathan/

संस्मरण और रेखाचित्र- https://thehindipage.com/sansmaran-aur-rekhachitra/sansmaran-aur-rekhachitra/

आदिकाल के साहित्यकार
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संस्मरण और रेखाचित्र

संस्मरण की परिभाषा अथवा संस्मरण किसे कहते हैं?

संस्मरण | रेखाचित्र | परिभाषा | प्रवर्तक | संस्मरण साहित्य के प्रवर्तक | हिन्दी संस्मरण एवं रेखाचित्र : कालक्रमानुसार | पूरी जानकारी |

स्मृति के आधार पर किसी विषय पर अथवा किसी व्यक्ति पर लिखित आलेख संस्मरण कहलाता है।

रेखाचित्र की परिभाषा अथवा रेखाचित्र किसे कहा जाता है?

जिस विधा में क्रमबद्धता का ध्यान न रखकर किसी व्यक्ति की आकृति उसकी चाल-ढाल या स्वभाव का, किन्हीं विशेषताएंओं का शब्दों द्वारा सजीव चित्रण किया है, रेखाचित्र कहलाती है।

संस्मरण रेखाचित्र परिभाषा प्रवर्तक
संस्मरण रेखाचित्र परिभाषा प्रवर्तक

हिंदी में संस्मरण एवं रेखाचित्र साहित्य विपुल मात्रा में रचा गया है।

संस्मरण साहित्य के प्रवर्तक

संस्मरण | रेखाचित्र | परिभाषा | प्रवर्तक | संस्मरण साहित्य के प्रवर्तक | हिन्दी संस्मरण एवं रेखाचित्र : कालक्रमानुसार | पूरी जानकारी |

इस कोश में प्रारम्भ से लेकर सन् 2013 तक प्रकाशित हुए मुख्य संस्मरण और रेखाचित्र कालक्रम के अनुसार दिए गए हैं।

संस्मरण साहित्य के प्रवर्तक पदम सिंह शर्मा को माना जाता है उससे पहले भी कुछ संस्मरण साहित्य प्रकाशित हुआ था। उन्हें भी इस सूची में शामिल किया गया है-

हिन्दी संस्मरण एवं रेखाचित्र : कालक्रमानुसार

1905-1909

1905 अनुमोदन का अन्त (महावीरप्रसाद द्विवेदी)

1907 इंग्लैंड के देहात में महाराज बनारस का कुआं (काशीप्रसाद जायसवाल)

1907 सभा की सभ्यता (महावीरप्रसाद द्विवेदी)

1908 लन्दन का फाग या कुहरा (प्यारेलाल मिश्र)

1909 मेरी नई दुनिया सम्बन्धिनी रामकहानी (भोलदत्त पांडेय)

1911-1930

1911 अमेरिका में आनेवाले विद्यार्थियों की सूचना (जगन्नाथ खन्ना)

1913 मेरी छुट्टियों का प्रथम सप्ताह (जगदीश बिहारी सेठ)

1913 वाशिंगटन महाविद्यालय का संस्थापन दिनोत्सव (पांडुरंग खानखोजे)

1918 इधर-उधर की बातें (रामकुमार खेमका)

1921 कुछ संस्मरण (वृन्दालाल वर्मा, सुधा 1921 में प्रकाशित)

1921 मेरे प्राथमिक जीवन की स्मृतियां (इलाचन्द्र जोशी, सुधा 1921 में प्रकाशित)

1929 पदम पराग (पदमसिंह शर्मा)

1930 रामा (महादेवी वर्मा)

1931-1940

1932 मदन मोहन के सम्बन्ध की कुछ पुरानी स्मृतियां (शिवराम पांडेय)

1934 बिन्दा (महादेवी वर्मा)

1935 घीसा (महादेवी वर्मा)

  ”  ”  बिट्टो (महादेवी वर्मा)

1935 सबिया (महादेवी वर्मा)

1936 शिकार (श्रीराम शर्मा)

1937 बोलती प्रतिमा (श्रीराम शर्मा, भाई जगन्नाथ इस संकलन का सर्वश्रेष्ठ संस्मरण)

  ”  ”  साहित्यिकों के संस्मरण (ज्योतिलाल भार्गव, हंस के प्रेमचन्द स्मृति अंक 1937 सं. पराड़कर)

1937 क्रान्तियुग के संस्मरण (मन्मथनाथ गुप्त)

1938 झलक (शिवनारायण टंडन)

1938 लाल तारा (रामवृक्ष बेनीपुरी)

1939 प्राणों का सौदा (श्रीराम शर्मा)

1940 रेखाचित्र (प्रकाशचन्द्र गुप्त)

1940 टूटा तारा (संस्मरण : मौलवी साहब, देवी बाबा, राजा राधिकारमण प्र. सिंह)

1941-1950

1941 अतीत के चलचित्र (महादेवी वर्मा)

1942 तीस दिन मालवीय जी के साथ (रामनरेश त्रिपाठी)

1942 गोर्की के संस्मरण (इलाचन्द्र जोशी)

1943 स्मृति की रेखाएं (महादेवी वर्मा)

1943 चरित्र रेखा (जनार्दन प्रसाद द्विज)

1946 माटी की मूरतें (रामवृक्ष बेनीपुरी)

  ”  ”  वे दिन वे लोग (शिवपूजन सहाय)

1946 पंच चिह्न (शांतिप्रसाद द्विवेदी)

1947 मिट्टी के पुतले (प्रकाशचन्द्र गुप्त)

  ”  ”  पुरानी स्मृतियां और नए स्केच (प्रकाशचन्द्र गुप्त)

1947 स्मृति की रेखाएं (महादेवी वर्मा)

1948 सन् बयालीस के संस्मरण (श्रीराम शर्मा)

1949 माटी हो गई सोना (कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’)

  ”  ”  एलबम (सत्यजीवन वर्मा ‘भारतीय’)

  ”  ”  रेखाएं बोल उठीं (देवेन्द्र सत्यार्थी)

  ”  ”  दीप जले शंख बजे (कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’)

  ”  ”  ज़्यादा अपनी, कम पराई (‘अश्क’)

1949 जंगल के जीव (श्रीराम शर्मा)

1950 गेहूं और गुलाब (रामवृक्ष बेनीपुरी)

  ”  ”  क्या गोरी क्या सांवरी (देवेन्द्र सत्यार्थी)

1950 लंका महाराजिन (ओंकार शरद)

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1951-1960

1951 अमिट रेखाएं (सत्यवती मल्लिक)

1952 हमारे आराध्य (बनारसीदास चतुर्वेदी)

  ”  ”  संस्मरण (बनारसीदास चतुर्वेदी)

  ”  ”  रेखाचित्र (बनारसीदास चतुर्वेदी)

1952 सेतुबन्ध (बनारसीदास चतुर्वेदी)

1953 संस्मरण (बनारसीदास चतुर्वेदी)

1954 ज़िन्दगी मुस्कायी (कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर)

  ”  ”  गांधी कुछ स्मृतियां (जैनेन्द्र)

1954 ये और वे (जैनेन्द्र)

1955 बचपन की स्मृतियां (राहुल सांकृत्यायन)

  ”  ”  मैं भूल नहीं सकता (कैलाशनाथ काटजू)

  ”  ”  रेखाएं और चित्र (उपेन्द्रनाथ अश्क)

1955 रेखा और रंग (विनय मोहन शर्मा)

1956 मंटो मेरा दुश्मन या मेरा दोस्त मेरा दुश्मन (उपेन्द्रनाथ अश्क)

1956 पथ के साथी (महादेवी)

1957 जिनका मैं कृतज्ञ (राहुल सांकृत्यायन)

  ”  ”  वे जीते कैसे हैं (श्रीराम शर्मा)

1957 माटी हो गई सोना (कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर)

1958 दीप जले, शंख बजे (कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर)

1958 बाजे पायलिया के घुंघरू (कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर)

1959 रेखाचित्र (प्रेमनारायण टंडन)

  ”  ”  स्मृति-कण (सेठ गोविन्ददास)

  ”  ”  ज़्यादा अपनी कम परायी (अश्क)

1959 मैं इनका ऋणी हूं (इन्द्र विद्यावाचस्पती)

1960 प्रसाद और उनके समकालीन (विनोद शंकर व्यास)

1961-1970

1962 जाने-अनजाने (विष्णु प्रभाकर)

  ”  ”  कुछ स्मृतियां और स्फुट विचार (डॉ॰ सम्पूर्णानन्द)

  ”  ”  समय के पांव (माखनलाल चतुर्वेदी)

  ”  ”  नए-पुराने झरोखे (हरिवंशराय बच्चन)

1962 अतीत की परछाइयां (अमृता प्रीतम)

1963 दस तस्वीरें (जगदीशचन्द्र माथुर)

  ”  ”  साठ वर्ष : एक रेखांकन (सुमित्रानन्दन पन्त)

1963 जैसा हमने देखा (क्षेमचन्द्र सुमन)

1965 कुछ शब्द : कुछ रेखाएं (विष्णु प्रभाकर)

  ”  ”  मेरे हृदय देव (हरिभाऊ उपाध्याय)

  ”  ”  वे दिन वे लोग (शिवपूजन सहाय)

  ”  ”  जवाहर भाई : उनकी आत्मीयता और सहृदयता (रायकृष्ण दास)

1965 लोकदेव नेहरू (रामधारीसिंह दिनकर)

1966 विकृत रेखाएं : धुंधले चित्र (महेन्द्र भटनागर)

  ”  ”  स्मृतियां और कृतियां (शान्तिप्रय द्विवेदी)

1966 चेहरे जाने-पहचाने (सेठ गोविन्ददास)

1967 कुछ रेखाएं : कुछ चित्र (कुन्तल गोयल)

1967 चेतना के बिम्ब (डॉ॰ नगेन्द्र)

1968 बच्चन निकट से (अजित कुमार एवं ओंकारनाथ श्रीवास्तव)

  ”  ”  संस्मरण और विचार (काका साहेब कालेलकर)

  ”  ”  स्मृति के वातायन (जानकीवल्लभ शास्त्री)

1968 घेरे के भीतर और बाहर (डाॅ॰ हरगुलाल)

1969 संस्मरण और श्रद्धांजलियां (रामधारी सिंह दिनकर)

1969 चांद (पद्मिनी मेनन)

1970 व्यक्तित्व की झांकियां (लक्ष्मीनारायण सुधांशु)

1971-1980

1971 जिन्होंने जीना जाना (जगदीशचन्द्र माथुर)

1971 स्मारिका (महादेवी वर्मा)

1972 मेरा परिवार (महादेवी वर्मा)

1972 अन्तिम अध्याय (पदुमलाल पुन्नालाल बख़्शी)

1973 जिनके साथ जिया (अमृतलाल नागर)

1974 स्मृति की त्रिवेणिका (लक्ष्मी शंकर व्यास)

1975 चन्द सतरें और (अनीता राकेश)

  ”  ”  मेरा हमदम मेरा दोस्त (कमलेश्वर)

1975 रेखाएं और संस्मरण (क्षेमचन्द्र सुमन)

1976 बीती बातें (परिपूर्णानन्द)

1976 मैंने स्मृति के दीप जलाए (रामनाथ सुमन)

1977 मेरे क्रान्तिकारी साथी (भगतसिंह)

1977 हम हशमत (कृष्णा सोबती)

1978 संस्मरण को पाथेय बनने दो (विष्णुकान्त शास्त्री)

1978 कुछ ख़्वाबों में कुछ ख़यालों में (शंकर दयाल सिंह)

1979 अतीत के गर्त से (भगवतीचरण वर्मा)

  ”  ”  श्रद्धांजलि संस्मरण (मैथिलीशरण गुप्त)

1979 पुनः (सुलोचना रांगेय राघव)

1980 यादों के झरोखे (कुंवर सुरेश सिंह)

1980 लीक-अलीक (भारतभूषण अग्रवाल)

1981-1990

1981 यादों की तीर्थयात्रा (विष्णु प्रभाकर)

  ”  ” औरों के बहाने (राजेन्द्र यादव)

  ”  ” जिनके साथ जिया (अमृतलाल नागर)

1981 सृजन का सुख-दुख (प्रतिभा अग्रवाल)

1982 संस्मरणों के सुमन (रामकुमार वर्मा)

  ”  ”  स्मृति-लेखा (अज्ञेय)

1082 आदमी से आदमी तक (भीमसेन त्यागी)

1983 मेरे अग्रज : मेरे मीत (विष्णु प्रभाकर)

  ”  ”  युगपुरुष (रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’)

1983 निराला जीवन और संघर्ष के मूर्तिमान रूप (डॉ॰ ये॰ पे॰ चेलीशेव)

1984 बन तुलसी की गन्ध (रेणु)

1984 दीवान ख़ाना (पद्मा सचदेव)

1986 रस गगन गुफा में (भगवतीशरण उपाध्याय)

1988 हज़ारीप्रसाद द्विवेदी : कुछ संस्मरण (कमल किशोर गोयनका)

1989 भारत भूषण अग्रवाल : कुछ यादें, कुछ चर्चाएं (बिन्दु अग्रवाल)

1990 सृजन के सेतु (विष्णु प्रभाकर)

1991-2000

1992 याद हो कि न याद हो (काशीनाथ सिंह)

  ”  ”  निकट मन में (अजित कुमार)

  ”  ”  जिनकी याद हमेशा रहेगी (अमृत राय)

1992 सुधियां उस चन्दन के वन की (विष्णुकान्त शास्त्री)

1994 लाहौर से लखनऊ तक (प्रकाशवती पाल)

1994 सप्तवर्णी (गिरिराज किशोर)

1995 लौट आ ओ धार (दूधनाथ सिंह)

  ”  ”  स्मृतियों के छंद (रामदरश मिश्र)

  ”  ”  मितवा घर (पदमा सचदेव)

1995 अग्निजीवी (प्रफुल्लचन्द्र ओझा)

  ”  ”  सृजन के सहयात्री (रवीन्द्र कालिया)

1996 अभिन्न (विष्णुचन्द्र शर्मा)

1998 यादें और बातें (बिन्दु अग्रवाल)

1998 हम हशमत (भाग-2, कृष्णा सोबती)

2000 अमराई (पदमा सचदेव)

  ”  ”  वे देवता नहीं हैं (राजेन्द्र यादव)

  ”  ”  यादों के काफिले (देवेन्द्र सत्यार्थी)

  ”  ”  नेपथ्य नायक लक्ष्मीचन्द्र जैन (मोहनकिशोर दीवान)

2000 याद आते हैं (रमानाथ अवस्थी)

2001

अपने-अपने रास्ते (रामदरश मिश्र)

अंतरंग संस्मरणों में प्रसाद (सं॰ पुरुषोंत्तमदास मोदी)

एक नाव के यात्री (विश्वनाथप्रसाद तिवारी)

प्रदक्षिणा अपने समय की (नरेश मेहता)

2002

चिडि़या रैन बसेरा (विद्यानिवास मिश्र)

लखनऊ मेरा लखनऊ (मनोहर श्याम जोशी)

काशी का अस्सी (काशीनाथ सिंह)

लौट कर आना नहीं होगा (कान्तिकुमार जैन)

नेह के नाते अनेक (कृष्णविहारी मिश्र)

स्मृतियों का शुक्ल पक्ष (डॉ॰ रामकमल राय)

2003

आंगन के वंदनवार (विवेकी राय)

रघुवीर सहाय : रचनाओं के बहाने एक संस्मरण (मनोहर श्याम जोशी)

2004

तुम्हारा परसाई (कान्तिकुमार जैन)

पर साथ-साथ चली रही याद विष्णुकान्त शास्त्री)

नंगा तलाई का गांव (डॉ॰ विश्वनाथ त्रिपाठी)

लाई हयात आए (लक्ष्मीधर मालवीय)

आछे दिन पाछे गए (काशीनाथ सिंह)

2005

सुमिरन को बहानो (केशवचन्द्र वर्मा)

मेरे सुहृद : मेरे श्रद्धेय (विवेकी राय)

2006

ये जो आईना है (मधुरेश)

जो कहूंगा सच कहूंगा (डाॅ॰ कान्ति कुमार जैन)

घर का जोगी जोगड़ा (काशीनाथ सिंह)

2007

एक दुनिया अपनी (डॉ॰ रामदरश मिश्र)

अब तो बात फैल गई (कान्तिकुमार जैन)

2009

कुछ यादें : कुछ बातें (अमरकान्त)

दिल्ली शहर दर शहर (डॉ॰ निर्मला जैन)

कालातीत (मुद्राराक्षस)

कितने शहरों में कितनी बार (ममता कालिया)

हाशिए की इबारतें (चन्द्रकान्ता)

मेरे भोजपत्र (चन्द्रकान्ता)

कविवर बच्चन के साथ (अजीत कुमार)

2010

जे॰ एन॰ यू॰ में नामवर सिंह (सं॰ सुमन केशरी)

अंधेरे में जुगनू (अजीत कुमार)

बैकुंठ में बचपन (कान्तिकुमार जैन)

अ से लेकर ह तक (यानी अज्ञेय से लेकर हृदयेश तक, डॉ॰ वीरेन्द्र सक्सेना)

2011

कल परसों बरसों (ममता कालिया)

स्मृति में रहेंगे वे (शेखर जोशी)

अतीत राग (नन्द चतुर्वेदी)

2012

स्मृतियों के गलियारे से (नरेन्द्र कोहली)

गंगा स्नान करने चलोगे (डॉ॰ विश्वनाथ त्रिपाठी)

आलोचक का आकाश (मधुरेश)

माफ़ करना यार (बलराम)

अपने-अपने अज्ञेय (दो खंड, ओम थानवी)

यादों का सफ़र (प्रकाश मनु)

हम हशमत (भाग-3, कृष्णा सोबती)

2013

मेरी यादों का पहाड़ (देवेंद्र मेवाड़ी)

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कामायनी के विषय में कथन- https://thehindipage.com/kamayani-mahakavya/kamayani-ke-vishay-me-kathan/

संस्मरण और रेखाचित्र- https://thehindipage.com/sansmaran-aur-rekhachitra/sansmaran-aur-rekhachitra/

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