हिन्दी साहित्य काल विभाजन एवं नामकरण
साहित्येतिहास की आवश्यकता
हिन्दी साहित्य काल विभाजन एवं कालखण्डों के नामकरण तथा हिंदी साहित्य में प्रचलित काल विभाजन और नामकरण की संपूर्ण जानकारी
“प्रत्येक देश का साहित्य वहाँ की जनता की चित्तवृत्ति का संचित प्रतिबिंब होता है, तब यह निश्चित है कि जनता की चित्तवृत्ति के परिवर्तन के साथ-साथ साहित्य के स्वरूप में भी परिवर्तन होता चला जाता है। आदि से अंत तक इन्हीं चित्तवृत्तियों की परंपरा को परखते हुए साहित्य-परंपरा के साथ उनका सामंजस्य दिखाना ‘साहित्य का इतिहास’ कहलाता है।” (आ.शुक्ल)
पूर्व काल में घटित घटनाओं, तथ्यों का विवेचन, विश्लेषण एवं मूल्यांकन इतिहास में किया जाता है, और साहित्य में मानव-मन एवं जातीय जीवन की सुखात्मक दुखात्मक ललित भावनाओं की अभिव्यक्ति इस प्रकार की जाती है कि वे भाव सर्वसामान्य के भाव बन जाते हैं।
इससे स्पष्ट होता है कि, विभिन्न परिस्थितियों अनुसार परिवर्तित होने वाली जनता की सहज चित्तवृत्तियों की अभिव्यक्ति साहित्य में की जाती है जिससे साहित्य के स्वरूप में भी परिवर्तन होता रहता है।
विभिन्न परिस्थितियों के आलोक में साहित्य के इसी परिवर्तनशील प्रवृत्ति और साहित्य में अंतर्भूत भावाभिव्यक्ति को प्रस्तुत करना ही साहित्येतिहास कहलाता है।
हिन्दी साहित्य काल विभाजन
आज साहित्य का अध्ययन एवं विश्लेषण केवल साहित्य और साहित्यकार को केंद्र में रखकर नहीं किया जा सकता बल्कि साहित्य का भावपक्ष, कलापक्ष, युगीन परिवेश, युगीन चेतना, साहित्यकार की प्रतिभा, प्रवृत्ति आदि का भी विवेचन विश्लेषण किया जाना चाहिए।
अतः कहा जा सकता है कि साहित्येतिहास का उद्देश्य ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्में साहित्य को वस्तु, कला पक्ष, भावपक्ष, चेतना तथा लक्ष्य की दृष्टि से स्पष्ट करना है साहित्य का बहुविध विकास, साहित्य में अभिव्यक्त मानव जीवन की जटिलता, ऐतिहासिक तथ्यों की खोज, अनेक सम्यक अनुशीलन के लिए साहित्येतिहास की आवश्यकता होती है।
“किसी भाषा में उस साहित्य का इतिहास लिखा जाना उस साहित्य की समृद्धि का परिणाम है। साहित्य के इतिहास का लिखा जाना अपनी साहित्यिक निधि की चिंता करना एवं उन साहित्यिकों के प्रति न्याय एवं कृतज्ञता प्रकट करना है जिन्होंने हमारे जातीय एवं राष्ट्रीय जीवन को प्रभावित किया है साहित्य के इतिहास को वह भित्तिचित्र समझिए जिसमें साहित्यिकों के आकृति-चित्र ही नहीं होते, हृदयचित्र और मस्तिष्क-चित्र भी होते हैं। इसके लिए निपुण चित्रकार की आवश्यकता होती है।” (विश्वंभर मानव)
हिन्दी साहित्य का काल विभाजन
जॉर्ज ग्रियर्सन द्वारा किया गया काल – विभाजन :
चारणकाल (700 इ. से 1300 इ. तक)
19 शती का धार्मिक पुनर्जागरण
जयसी की प्रेम कविता
कृष्ण संप्रदाय
मुगल दरबार
तुलसीदास
प्रेमकाव्य
तुलसीदास के अन्य परवर्ती
18 वीं शताब्दी
कंपनी के शासन में हिंदुस्तान
विक्टोरिया के शासन में हिंदुस्तान
इस काल विभाजन में एकरूपता का अभाव है। यह काल विभाजन कहीं कवियों के नाम पर; कहीं शासकों के नाम पर; कहीं शासन तंत्र के नाम पर किया गया है।
इस काल विभाजन में साहित्यिक प्रवृत्तियों और साहित्यिक चेतना का सर्वथा अभाव है।
अनेकानेक त्रुटियां होने के बाद भी काल विभाजन का प्रथम प्रयास होने के कारण ग्रियर्सन का काल विभाजन सराहनीय एवं उपयोगी तथा परवर्ती साहित्येतिहासकारों के लिए मार्गदर्शक सिद्ध हुआ है।
मिश्र बंधुओं द्वारा किया गया काल-विभाजन :
मिश्र बंधुओं ने अपने साहित्येतिहास ग्रंथ ‘मिश्र बंधु विनोद’ (1913) में नया काल विभाजन प्रस्तुत किया।
यह काल विभाजन भी सर्वथा दोष मुक्त नहीं है, इस काल विभाजन में वैज्ञानिकता का अभाव है परंतु यह काल विभाजन ग्रियर्सन के काल विभाजन से कहीं अधिक प्रौढ़ और विकसित है-
प्रारंभिक काल (सं. 700 से 1444 विक्रमी तक)
माध्यमिक काल (सं. 1445 से 1680 विक्रमी तक)
अलंकृत काल (सं. 1681 से 1889 विक्रमी तक)
परिवर्तन काल (सं. 1890 से 1925 विक्रमी तक)
वर्तमान काल (सं. 1926 से अब तक)
आ. रामचंद्र शुक्ल द्वारा किया गया काल विभाजन :
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अपनी पुस्तक ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ (1929) में हिंदी साहित्य के इतिहास का नवीन काल विभाजन प्रस्तुत किया, यह काल विभाजन पूर्ववर्ती काल विभाजन से अधिक सरल, सुबोध और श्रेष्ठ है।
आचार्य शुक्ल द्वारा किया गया काल विभाजन वर्तमान समय तक सर्वमान्य है-
आदिकाल (वीरगाथा काल, सं. 1050 से 1375 विक्रमी तक)
पूर्व मध्यकाल (भक्तिकाल, सं. 1375 से 1700 विक्रमी तक)
उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल, सं. 1700 से 1900 विक्रमी तक)
आधुनिक काल (गद्य काल, सं. 1900 से आज तक)
डॉ. रामकुमार वर्मा द्वारा किया गया काल-विभाजन :
डॉ रामकुमार वर्मा ने अपनी पुस्तक ‘हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास’ में काल विभाजन हेतु आचार्य शुक्ल का अनुसरण करते हुए अपना काल विभाजन प्रस्तुत किया है
कालविभाजन के अंतिम चार खंड तो आ. शुक्ल के समान ही है, लेकिन वीरगाथा काल को चारण काल नाम देकर इसके पूर्व एक संधिकाल और जोडकर हिंदी साहित्य का आरंभ सं. 700 से मानते हुए काल-विभाजन प्रस्तुत किया है।
संधिकाल (सं. 750 ते 1000 वि. तक)
चारण काल (सं. 1000 से 1375 वि. तक)
भक्तिकाल (सं. 1375 से 1700 वि. तक)
रीतिकाल (सं. 1700 से 1900 वि. तक)
आधुनिक काल (सं. 1900 से अबतक)
आ. हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा किया गया काल-विभाजन:
आ. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने आ. शुक्ल जी के काल-विभाजन को ही स्वीकार कर केवल संवत् के स्थान पर ईस्वी सन् का प्रयोग किया है।
द्विवेदीजी ने पूरी शताब्दी को काल विभाजन का आधार बनाकर वीरगाथा की अपेक्षा आदिकाल नाम दिया है।
आदिकाल (सन् 1000 ई. से 1400 ई. तक)
पूर्व मध्यकाल (सन् 1400 ई. से 1700 ई. तक)
उत्तर मध्यकाल (सन् 1700 ई. से 1900 ई. तक)
आधुनिक काल (सन् 1900 ई. से अब तक)
बाबू श्यामसुन्दर दास द्वारा किया गया काल-विभाजन:
बाबू श्यामसुन्दर दास द्वारा किया गया काल-विभाजन आ. शुक्ल के काल-विभाजन से साम्य रखता है।
दोनों के काल विभाजन में कोई अधिक भिन्नता नहीं है का काल-विभाजन इस प्रकार है-
आदिकाल (वीरगाथा का युग संवत् 1000 से संवत् 1400 तक)
पूर्व मध्य युग (भक्ति काल युग, संवत् 1400 से संवत् 1700 तक)
उत्तर मध्ययुग (रीति ग्रन्थों का युग, संवत् 1700 से, संवत् 1900 तक)
आधुनिक युग (नवीन विकास का युग, संवत् 1900 से अब तक)
डॉ. गणपतिचन्द्र गुप्त द्वारा किया गया काल-विभाजन:
डॉ. गणपतिचन्द्र गुप्त ने अपने ग्रन्थ ‘हिन्दी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास’ में शुक्ल जी के काल विभाजन का ही समर्थन किया है। उनका काल-विभाजन इस प्रकार है-
प्रारम्भिक काल (1184 – 1350 ई.)
पूर्व मध्यकाल (1350 – 1600 ई.)
उत्तर मध्यकाल (1600 – 1857 ई.)
धुनिक काल (1857 ई. अब तक)
डॉ. नगेंद्र द्वारा किया गया काल-विभाजन :
आदिकाल (7 वी सदी के मध्य से 14 वीं शती के मध्यतक)
भक्तिकाल (14 वीं सदी के मध्य से 17 वीं सदी के मध्यतक)
रीतिकाल (17 वीं सदी के मध्य से 19 वीं शती के मध्यतक)
आधुनिक काल (19वीं सदी के मध्य से अब तक)
आधुनिक काल का उप विभाजन
(अ) पुनर्जागरण काल (भारतेन्दु काल) 1877 – 1900 ई.
(ब) जागरण-सुधार काल (द्विवेदी काल) 1900 – 1918 ई.
(स) छायावाद काल 1918 – 1938 ई.
(द) छायावादोत्तर काल –
प्रगति-प्रयोग काल- 1938 – 1953 ई.
नवलेखन काल 1953 ई. से अब तक।
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