राजस्थान के भौतिक प्रदेश
राजस्थान के भौतिक भूभाग, प्रदेश, उत्तर पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश, मध्यवर्ती अरावली पर्वतीय प्रदेश, पूर्वी मैदान, दक्षिणी पूर्वी पठारी मैदान
वेगनर सिद्धान्त के अनुसार प्रागैतिहासिक काल (इयोसीन व प्लास्टोसीन काल) में विश्व दो भूखण्डों 1. अंगारा लैण्ड व 2. गौड़वाना लैण्ड में विभक्त था जिनके मध्य टेथिस सागर विस्तृत था।
राजस्थान विश्व के प्राचीनतम भू-खण्डों का अवशेष है।
राजस्थान के उत्तरी पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश व पूर्वी मैदान टेथिस महासागर के अवशेष माने जाते है।
जो कालान्तर में नदियों द्वारा लाई गई तलछट के द्वारा पाट दिये गये थे।
राज्य के अरावली पर्वतीय एवं दक्षिणी-पूर्वी पठारी भाग गौड़वाना लैण्ड के अवशेष माने जाते है।
राजस्थान को चार भौतिक विभागों में बाँटा गया है-
उत्तर पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश
मध्यवर्ती अरावली पर्वतीय प्रदेश
पूर्वी मैदान
दक्षिणी पूर्वी पठारी मैदान
उत्तर पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश : राजस्थान के भौतिक प्रदेश
राजस्थान में अरावली पर्वतमाला के पश्चिम का क्षेत्र शुष्क एवं अर्द्धशुष्क मरूस्थलीय प्रदेश है, जिसे थार मरूस्थल के नाम से जाना जाता है।
राजस्थान में थार मरूस्थल, का लगभग 62 प्रतिशत भाग आता है
इसके अंतर्गत बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर, जोधपुर, पाली, जालौर, नागौर, सीकर, चूरू, झुंझुनूं, हनुमानगढ़ व गंगानगर आदि जिले आते है।
थार का मरूस्थल टेथिस सागर का अवशेष माना जाता है।
राजस्थान के कुल क्षेत्रफल का उत्तरपश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश 61.11 प्रतिशत है।
इस प्रदेश में राज्य की 40 प्रतिशत जनंसख्या निवास करती है।
देश के 142 डेजर्ट ब्लॉकों में से राजस्थान में 85 डेजर्ट ब्लॉक है।
सामान्य ढाल पूर्व से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण की और है।
रेतीले शुष्क मैदान एवं अर्द्धशुष्क मैदान को विभाजित करने वाली रेखा 25 सेमी. वर्षा रेखा जिसके आधार पर दो भागों में विभक्त हैं।
- पश्चिम विशाल मरूस्थल या रेतीला शुष्क मैदान
- राजस्थान बांगर (बांगड) या अर्द्ध शुष्क मैदान
पश्चिम विशाल मरूस्थल या रेतीला शुष्क मैदान
वर्षा का वार्षिक, औसत 20cm।
क्षेत्र – बाडमेर, जैसलमेर, गंगानगर, चूरू।
कम वर्षा के कारण- यह प्रदेश “शुष्क बालूका भी कहलाता है।
इस मैदान को दो भागों में बांटा जाता है
- बालूका स्तूप युक्त मरूस्थलीय प्रदेश
- बालुका स्तूप मुक्त क्षेत्र
- बालूका स्तूप युक्त मरूस्थलीय प्रदेश
बालू के टीले- ये क्षेत्र वायु अपरदन एवं निक्षेपण का परिणाम है।
यहाँ निम्न बालुका स्तूपों का बाहुल्य है-
- पवनानुवर्ती बालुका स्तूप- जैसलमेर, जोधपुर, बाडमेर में इन पर वनस्पति पाई जाती है।
- बरखान या अर्द्ध चन्द्राकार बालुका स्तूप- चूरू, जैसलमेर, सीकर, लुणकरणसर, सूरतगढ, बाड़मेर, जोधपुर आदि। ये गतिशील, रंध्रयुक्त, व नवीन बालुयुक्त होते है।
iii. अनुप्रस्थ बालुका स्तूप- बीकानेर, द. गंगानगर, हनुमानगढ़, चूरू, सूरतगढ़, झुंझुनू, ये पवन की दिशा में समकोण पर बनते है।
- पैराजोलिक बालुका स्तूप- सभी मरूस्थली जिलों में विद्यमान, निर्माण-वनस्पति एवं समतल मैदानी भाग के बीच उत्पादन से आकृति-हेयरपिननुमा।
- तारा बालुका स्तूप – मोहनगढ, पोकरण (जैसलमेर), सूरतगढ़ (गंगानगर)
निर्माण- अनियतवादी एवं संश्लिष्ट पवनों के क्षेत्र में।
- नेटवर्क बालुका स्तूप – हनुमानगढ़ से हिसार तक।
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बालुका स्तूप मुक्त क्षेत्र
पूर्वी भाग में स्थित
इसे जैसलमेर-बाड़मेर का चट्टानी क्षेत्र भी कहते है।
टर्शियरी व प्लीस्टोसीन काल की परतदार चट्टानों का बाहुल्य।
टेथिस के अवशेष वाले चट्टानी समूह।
चूना पत्थर की चट्टाने मुख्य।
इनमें वनस्पति अवशेष व जीवाश्म पाये जाते है।
उदाहरण – जैसलमेर के राष्ट्रीय मरूउद्यान में स्थित आकल वुड फॉसिल पार्क।
इसी प्रदेश की अवसादी शैलों मे भूमिगत जल का भारी भण्डार लाठी सीरीज क्षेत्र इसी भूगर्भीय जल पट्टी का उदाहरण है।
टर्शियरीकालीन चट्टानों मे गैस-खनिज तेल के व्यापक भण्डार बाडमेर (गुडामालानी, बायतु ) में एवं जैसलमेर में तेल व गैस के व्यापक भण्डार।
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राजस्थान बांगर (बांगड) या अर्द्ध शुष्क मैदान
अर्द्धशुष्क मैदान महान शुष्क रेतीले प्रदेश के पूर्व में व अरावली पहाड़ियों के पश्चिम मे लूनी नदी के जल प्रवाह क्षेत्र में अवस्थित।
यह आंतरिक प्रवाह क्षेत्र है।
इसका उत्तरी भाग घग्घर का मैदान, उत्तर- पूर्वी भाग शेखावाटी का आंतरिक जल प्रवाह क्षेत्र व दक्षिण- पूर्वी भाग लूनी नदी बेसिन तथा मध्यवर्ती भाग “नागौरी उच्च भूमि ” है।
पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश को मुख्यतः चार भागों बांटा गया है-
(i) घग्घर का मैदान
निर्माण- घग्घर, वैदिक सरस्वती, सतलज एवं चौतांग नदियों की जलोढ़ मिट्टी से।
घग्घर नदी के घाट को “नाली” कहते है । विस्तार- हनुमानगढ़, गंगानगर।
वर्तमान – मृत नदी नाम से विख्यात ।
उद्गम – कालका पहाड़ी (शिवालिक श्रेणी हिमाचल प्रदेश)
राज्य में प्रवेश – तलवाड़ा झील (टिब्बी) पर्यटक स्थल – भद्रकाली मंदिर, भटनेर दुर्ग, कालीबंगा व रंगमहल सभ्यता स्थल
इस नदी के किनारे हनुमानगढ़ सूरतगढ़ अनूपगढ़ शहर बसे हुए हैं।
आंतरिक अपवाह की राज्य की सबसे बड़ी नदी है।
उद्गम स्थल पर भारी वर्षा होने पर हनुमानगढ जलमग्न।
पाकिस्तान में इसे खाकरा नाम से जाना जाता है पाकिस्तान के फोर्ट अब्बास के निकट यह है रेगिस्तान मे विलुप्त।
(ii) लूनी बेसिन या गोडवार प्रदेश
उद्गम – नाग पहाड़ (अजमेर)
लूनी व सहायक नदियों का अपवाह प्रदेश- इसमें जोधपुर, जालौर, पाली एवं सिरोही शामिल।
इस क्षेत्र में जालौर- सिवाना पहाड़िया स्थित है जो ग्रेनाइट के लिए प्रसिद्ध है ।
मालाणी पहाड़िया व चूना पत्थर की चट्टाने भी स्थित।
साबरमती व सरस्वती के रूप में यह नदी पश्चिमी राज्य के 6 जिलों में प्रवाहित होती है।
जसवंत सागर बांध/पिचियाक बांध – जोधपुर
बालोतरा (बाड़मेर) – अपने उद्गम स्थल से बालोतरा तक जल मीठा इससे आगे जल खारा है, जिस कारण से इसे आधी मीठी आधी खारी नदी कहते हैं।
लूणी नदी के उद्गम स्थल पर अधिक वर्षा होती है तब बालोतरा में बाढ़ आ जाती है, क्योंकि यह क्षेत्र नदी के पेट से नीचे बसा है।
सांचौर (जालौर) को राजस्थान का पंजाब कहा जाता है।
यह नदी कच्छ के रण (गुजरात) में प्रवाहित होते हुए कच्छ की खाड़ी अरब सागर में अपना जल डाल देती है।
यह पश्चिमी राजस्थान की सबसे बड़ी नदी है।
प्रमुख सहायक नदियां
- लीलड़ी नदी – सोजत (पाली)
- मीठड़ी नदी – पाली
- जवाई नदी – गोरिया गांव (पाली)
इस पर जवाई बांध सुमेरपुर (पाली) में बना है।
जिसमें चूने व सीमेंट का प्रयोग नहीं किया गया है। इसे मारवाड़ का अमृत सरोवर कहा जाता है।
जवाई की सहायक नदी
- खारी नदी शेर गांव (पाली)
- सुकड़ी नदी – बांकली बांध (जालौर)
- बांडी नदी हेमावास गांव पाली
उपर्युक्त सभी नदियां अरावली पर्वतमाला की ओर से आकर लूणी में मिल जाती है।
जबकि लूणी की एकमात्र सहायक नदी जोजड़ी नदी जोधपुर नागौर की सीमावर्ती क्षेत्र पोंडलू गांव (नागौर) से निकलकर लूणी में आकर मिल जाती है।
(iii) नागौरी उच्च भूमि प्रदेश
अन्य नाम – धातु नगरी, अहीछत्रपुर
बांगड का मध्यवर्ती भाग, जहां नमक युक्त झीले, अंतर्प्रवाह, जलक्रम, प्राचीन चट्टाने एवं ऊंचा-नीचा धरातल मौजूद।
टंगस्टन की एकमात्र खान – डेगाना भाकरी
सफेद संगमरमर (मकराना), हरी मेथी (ताऊसर) के लिए प्रसिद्ध।
वहा डीडवाना, कुचामन, सांभर, डिगाना झीलें। यहां माइकाशिष्ट नमकीन चट्टानें, जिनसे केशिकात्व के कारण नमक सतह पर आता रहता है।
(iv) शेखावाटी आंतरिक प्रवाह क्षेत्र
चूरू, सीकर, झुंझुनू व नागौर का कुछ भाग। बरखान स्तूपों का बाहुल्य।
नदियां- कांतली, मेथा, रूपनगढ़, खारी इत्यादि।
शेखावाटी क्षेत्र में संग्रहित वर्षा जल को सर या सरोवर के नाम से जाना जाता है।
शेखावाटी क्षेत्र में कच्चे व पक्के कुओं को जोहड़ या नाडा कहा जाता है।
चूरू – सालासर धाम, ताल छापर अभ्यारण/झील काले हिरणों/कृष्ण मृग के संरक्षण हेतु
झुंझुनू – खेतड़ी को ताम्र नगरी व नवलगढ़ को हवेलियों की नगरी उपनाम से जाना जाता है।
सभ्यता स्थल – सुनारी यहां तांबा या लोहा गलाने की भट्टी प्राप्त हुई है
सीकर – अंब्रेला प्रोजेक्ट फ्लोराइड विमुक्तिकरण योजना हेतु।
मध्यवर्ती अरावती पर्वतीय प्रदेश : राजस्थान के भौतिक प्रदेश
अरावली प्राचीनतम वलित पर्वत श्रेणी है।
वर्तमान रूप अपशिष्ट पर्वतमाला के रूप में है। जो राज्य में उत्तर दक्षिण-पश्चिम तक फैली हुई है।
पूर्व से गौंडवानालैण्ड का अवशेष, उत्पत्ति-प्री -कैम्ब्रियन काल में। दक्षिण भाग में पठार, उत्तरी एवं पूर्वी भाग में मैदान एवं पश्चिमी भाग में मरूस्थल, प्रारम्भ में ऊंचे पर्वत, आज अवशेष।
संपूर्ण विस्तार-
खेडब्रह्मा पालनपुर गुजरात से रायसीना की पहाड़ी दिल्ली तक – 692 किमी
राज्य में कुल विस्तार सिरोही से खेतड़ी सिंघाना (झुंझुनू) तक 550 किमी।
अरावली पर्वतमाला की औसत ऊंचाई 930 मीटर है।
यह पर्वतमाला राज्य को दो समान भागों में विभक्त करती है, जिसके पश्चिम में 13 जिले तथा पूर्व में 20 जिले हैं।
पश्चिमी क्षेत्र में अवस्थित 13 जिलों में से 12 जिला (सिरोही को छोड़कर) मरुस्थलीय जिले हैं।
(घोषणा आईसीएआर नई दिल्ली द्वारा)
अरावली पर्वतमाला को मुख्यतः निम्न उप भागों में विभक्त किया जाता है-
- उत्तरी अरावली
- मध्य अरावली
- दक्षिण अरावली
उत्तरी अरावली-
उत्तरी अरावली की सर्वोच्च चोटी रघुनाथगढ़-1055 मी. (सीकर)
सीकर की अन्य पहाड़ियां-
मालखेत की पहाड़ी – 1092 मी.
नेछवा पहाड़ी – 360 मी.
नीम का थाना पहाड़ी – ताम्र उत्पादन (सीकर)
खंडेला पहाड़ी
हर्ष की पहाड़ी
रेवासा पहाड़ी व झील – खारे पानी की झील
झुंझुनू
लोहागर्ल – पहाड़ी 1052 मी.
मलयकेतु पहाड़ी (शाकंभरी माता मंदिर)
बाबई पहाड़ी – 780 मी.
जयपुर
खो पहाड़ी 920 मी.
आमेर पहाड़ी
जयगढ़ पहाड़ी 648 मी. (चिल्ह का टीला पहाड़ी)
नाहरगढ़/सुदर्शन पहाड़ी – 599 मी जमवाय पहाड़ी
बैराठ पहाड़ी – 792 मी.
बीजक डूंगरी – अशोक का भाब्रू शिलालेख यहीं से मिला था
गणेश डूंगरी
भीम डूंगरी
मोती डूंगरी
अलवर
सरिस्का/कांकनवाड़ी – 677 मी.
भानगढ़ पहाड़ी
उदयनाथ पर्वत – रूपारेल नदी का उद्गम
भरतपुर
दमदम चोटी पहाड़ी
मध्य अरावली –
अरावली पर्वत माला का न्यूनतम विस्तार – अजमेर
मध्य अरावली की प्रमुख चोटियां-
टॉडगढ़ पहाड़ी 934 मी
गोरमजी/मरायजी पहाड़ी 933/934 मी.
नाग पहाड़ी – 795 मी. (लूनी नदी का उद्गम)
तारागढ़ पहाड़ी – 873 मी.
बर्र दर्रा – बर्र पाली से ब्यावर
अररिया दर्रा
पठेरिया/परवेरिया दर्रा
शिवपुरा घाट दर्रा
दक्षिण अरावली-
अरावली पर्वतमाला का सर्वाधिक विस्तार – उदयपुर जिले में
दक्षिण अरावली क्षेत्र मुख्यतः उदयपुर, राजसमंद, सिरोही, बाड़मेर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, चित्तौड़, जालौर आदि में विस्तृत है।
कुंभलगढ़ से गोगुंदा तक के बीच के क्षेत्र को भोराठ का पठार कहते हैं।
इस पठार की सबसे ऊंची चोटी – जरगा पहाड़ी (1431 मी.)
उदयपुर
ऋषिकेश पहाड़ी (1017मी.)
सज्जनगढ़ पहाड़ी 938 मी.
गोगुंदा पहाड़ी 840 मी.
लासड़िया का पठार
जयसमंद झील – राज्य की मीठे पानी की सबसे बड़ी झील
तस्तरीनुमा पहाड़ी समूह – गिरवा पहाड़ी (छोटी पहाड़ी – मगरा)
झीलों की नगरी – उदयपुर
केवड़ा की नाल दर्रा
हाथी नाला दर्रा
फुलवारी की नाल दर्रा
पहाड़ों की नगरी – डूंगरपुर
वागड़/मेवल प्रदेश – बांसवाड़ा डूंगरपुर के मध्य
सौ द्वीपों का शहर – बांसवाड़ा
कांठल प्रदेश/छप्पन का मैदान – प्रतापगढ़
मेसा का पठार – चित्तौड़गढ़
सिरोही
गुरुशिखर सिरोही – 1722 मी.
शेर पहाड़ी – 1597 मी.
देलवाड़ा पहाड़ी – 1442 मी.
अचलगढ़ पहाड़ी – 1380 मी.
राज्य का एकमात्र पर्वतीय पर्यटन स्थल –
माउंट आबू
राज्य की सबसे ऊंची झील – नक्की झील
टॉड रॉक, नन रॉक – नक्की झील में
आबू पर्वत खण्ड:
सन्तों का शिखर- कर्नल टॉड ने गुरूशिखर को सन्तों का शिखर कहा है।
इसमें क्वार्ट्जाइट नीसशिष्ट व ग्रेनाइट चट्टानें पाई जाती है। सबसे ऊँची चोटी गुरूशिखर (1727 मी.) हिमालय से नीलगिरी के मध्य सबसे ऊंची चोटी ।
जालौर
रोजा भाकर – 730 मी.
डोरा भाकर – 869 मी.
इसराना भाकर – 839 मी.
सुंधा/सुंडा पर्वत – राज्य का प्रथम रोप वे अरावली की सिरोही में स्थिति नुकीली पहाड़ी के समुह को भास्कर/भाकर/हांकर कहा जाता है।
छप्पन पहाड़ियों का समूह – बाड़मेर (नाकोड़ा पर्वत)
पूर्वी मैदान : राजस्थान के भौतिक प्रदेश
राजस्थान के पूर्वी मैदानी प्रदेश में भरतपुर, अलवर के भाग, धौलपुर सवाई माधोपुर, जयपुर, टोंक, भीलवाड़ा के मैदानी भाग सम्मिलित किए जाते हैं तो दूसरी ओर दक्षिण में स्थित मध्य माही का क्षेत्र भी इसमें सम्मिलित किया जाता है ।
यह मैदान संपूर्ण राज्य के 23.3% भू-भाग को घेरे हुये है।
पश्चिमी सीमा अरावली के पूर्वी किनारों द्वारा उदयपुर के उत्तर तक और इससे आगे उत्तर में 50 सेमी. की समवर्षा रेखा द्वारा निर्धारित होती है।
मैदान की दक्षिण-पूर्वी सीमा विन्ध्यन पठार द्वारा बनाई जाती है।
इस मैदान के अंतर्गत चम्बल बेसिन, माही बेसिन (छप्पन बेसिन) और बनास बेसिन आते हैं।
यहाँ वर्षा का वार्षिक औसत 60 से 100 सेमी. तक रहता है।
राज्य की लगभग 39 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है।
पूर्वी मैदान के चार प्रमुख उपभाग
(अ) चम्बल बेसिन
यह क्षेत्र डांग नाम से जाना जाता है।
कोटा, बूंदी, झालावाड़, सवाई माधोपुर, करौली, धौलपुर जिले इसके अंतर्गत आते है।
चम्बल बेसिन क्षेत्र में मुख्यतः उत्खात स्थलाकृति (Badland Topography) फैली है, तथा यहाँ नवीन कांपीय जमाव भी पाए जाते हैं।
डांग ऊबड़-खाबड़ अनुपजाऊ भूमि है जहाँ दस्यु शरण पाते है।
खादर-5 से 30 मीटर गहरे खड्डे वाली भूमि स्थानीय भाषा में खादर के नाम से जानी जाती है।
चंबल नदी – उद्गम – जानापाव की पहाड़ी विंध्याचल पर्वतमाला (मध्य प्रदेश)
गांधी सागर बांध – मध्य प्रदेश
राणा प्रताप सागर बांध – रावतभाटा चित्तौड़
बापनी/ब्राह्मणी नदी – हरिपुर गांव (चित्तौड़)
राज्य का सबसे ऊंचा जलप्रपात – चूलिया जलप्रपात भैंस रोड गढ़ (चित्तौड़)
जवाहर सागर बांध – बोरवास (कोटा)
कोटा बैराज – कोटा (इस बाँध से मात्र कृषि कार्य किया जाता है)
चंबल नदी की चौड़ाई और गहराई सर्वाधिक – केशोरायपाटन (बूंदी)
रामेश्वर की त्रिवेणी (सवाईमाधोपुर) – बनास + चंबल + सीप नदी संगम
मचकुंड – तीर्थों का भांजा
इटावा के नजदीक जमुना नदी में मिल जाती है
यह राज्य की प्रथम ऐसी नदी है जो अपना जल उत्तर प्रदेश में ले जाकर यमुना में डालती है।
दूसरी नदी – बाणगंगा, तीसरी – गंभीरी
गंभीरी नदी – पांचना बांध (करौली) मिट्टी से निर्मित बांध
विश्व की एकमात्र ऐसी नदी जिस पर न्यूनतम दूरी पर अधिक बांधों का निर्माण किया गया है।
सर्वाधिक लंबी नदीकृत सीमा का निर्माण करती है।
हैंगिंग ब्रिज/झूलता हुआ ब्रिज – चंबल पर (राज्य का प्रथम)
कोटा जिले में चंबल परियोजना मध्य प्रदेश राजस्थान कि 50-50% की संयुक्त परियोजना है।
प्रमुख सहायक नदियां –
- बामणी नदी
- कालीसिंध नदी – उद्गम – देवास की पहाड़ी मध्य प्रदेश
सहायक नदी – आहु नदी उद्गम सुसनेर की पहाड़ी (मध्य प्रदेश)
परवन नदी – इस नदी पर शेरगढ़ अभ्यारण निर्मित है।
सर्पों की शरण स्थली है
सहायक नदी – निमाज नदी
मेज नदी बिजोलिया भीलवाड़ा
मांगली नदी – भीमतल जलप्रपात
घोड़ा पछाड़ नदी कही जाती है – सर्वाधिक बाढ़ आती है
कुराल नदी
सीप नदी
उपर्युक्त नदिया बंगाल की खाड़ी की है
(ब) बनास बेसिन
यह कांप मिटटी से बना उपजाऊ क्षेत्र है यह मैदान बनास तथा उसकी सहायक नदियों द्वारा सिंचित है।
इस मैदान को दक्षिण में मेवाड़ का मैदान तथा उत्तर में मालपुरां करौली का मैदान कहते हैं।
बनास – उद्गम खमनोर की पहाड़ी (राजसमंद)
बाघेरी का नाका पेयजल परियोजना राजसमंद
बीगोद की त्रिवेणी – मांडलगढ़, भीलवाड़ा, बनास नदी का संगम है।
राज महल की त्रिवेणी – राजमहल टोंक खारी, डाई व बनास नदी का संगम।
बीसलपुर बांध – टोंक राज्य की सबसे बड़ी पेयजल परियोजना
रामेश्वर की त्रिवेणी (सवाई माधोपुर)
चंबल, बनास, सीप नदी का संगम
बनास नदी राज्य की राज्य में बहने वाली अपवाह की दृष्टि से सबसे बड़ी नदी है।
बनास नदी के टीलेनुमा भाग को पिंडमांड का मैदान कहते हैं।
प्रमुख सहायक नदियां –
- आयड़ नदी – उद्गम – गोगुंदा की पहाड़ी उद्गम स्थल से उदयसागर झील तक इसे आयड़ तथा उदयसागर झील से इसे बेड़च के नाम से जाना जाता है।
इस नदी पर आहड़ सभ्यता विकसित हुई 2. गंभीरी नदी – उद्गम जावर की पहाड़ी (मध्य प्रदेश)
राजस्थान में प्रवेश-
निंबाहेड़ा (चित्तौड़) में 3. मेनाल नदी – उद्गम – बेगू (चित्तौड़)
मेनाल जलप्रपात – भीलवाड़ा
- कोठारी नदी – उद्गम – दिवेर की पहाड़ी (राजसमंद)
मेजा बाँध – भीलवाड़ा
मेजा बाँध को ग्रीनमाउंट पार्क कहा जाता है।
(स) बाणगंगा नदी बेसिन –
अन्य नाम रुंठित नदी, अर्जुन गंगा नदी
उद्गम – बैराठ की पहाड़ी जयपुर
बैराठ सभ्यता स्थल
जमवा रामगढ़ अभ्यारण व बाँध – जयपुर
यह नदी जयपुर, दौसा, भरतपुर में प्रवाहित होते हुए इटावा के नजदीक यमुना नदी में मिल जाती है।
चंबल के बाद यमुना में मिलने वाली दूसरी नदी है।
(द) माही बेसिन
यह क्षेत्र माही नदी का प्रवाह क्षेत्र है ।
वागड़ इसका दक्षिण से अधिक गहरा व विच्छेदित क्षेत्र ‘वागड़ का मैदान’ कहलाता है।
छप्पन का मैदान – प्रतापगढ़ तथा बाँसवाड़ा के मध्य 56 ग्रामों का समूह छप्पन का मैदान कहलाता है।
कांठल का मैदान
प्रतापगढ़ का सम्पूर्ण क्षेत्र कांठल का मैदान कहलाता है।
- माही नदी – उद्गम – मेहंद झील विंध्याचल पर्वत माला अमरोरु की पहाड़ी (मध्य प्रदेश)
माही-बजाज सागर बांध – बांसवाड़ा भीखाभाई सागवाड़ा नहर परियोजना सर्वाधिक लाभ – डूंगरपुर
माही-परियोजना गुजरात (55%) व राजस्थान (45%) की संयुक्त परियोजना विद्युत का शत-प्रतिशत लाभ – बांसवाड़ा जिले को
डूंगरपुर – बेणेश्वर त्रिवेणी संगम – माही, सोम, जाखम नदी संगम
गलियाकोट – डूंगरपुर बोहरा संप्रदाय से संबंधित स्थान
अजास व मोरन नदी इस स्थान पर माही नदी में आकर मिलती है।
यह नदी राज्य के दक्षिण भाग में प्रवेश कर पुनः दक्षिण भाग से ही लौट जाती है।
यह कर्क रेखा को दो बार काटती है।
इस नदी पर गुजरात में कडाणा बांध का निर्माण किया गया
यस.नदी खंभात की खाड़ी अरब सागर में अपना जल डाल देती है।
प्रमुख सहायक नदियां –
- सोम नदी – उद्गम – बिछामेडा की पहाड़ी बाबड़वाड़ा के जंगल, फुलवारी की नाल अभ्यारण (उदयपुर) से
सोम, कमला, अंबा त्रिवेणी संगम
- जाखम नदी – उद्गम – भंवर माता की पहाड़ी सीता माता अभ्यारण (प्रतापगढ़)
राज्य का सबसे ऊंचा बांध – जाखम बांध
- चाप नदी
- अनास/अजास नदी
- मोरन नदी
- भागदर नदी
अरब सागर के अपवाह तंत्र की प्रमुख नदियां
- लूनी नदी
- पश्चिमी बनास नदी – उद्गम नया सानवाड़ा गांव (सिरोही) से
यह नदी अंत में कच्छ की खाड़ी अरब सागर में गिर जाती है।
- साबरमती – उद्गम – पदराडा गांव
अंत में यह नदी खंभात की खाड़ी अरब सागर में अपना जल गिराती है।
दक्षिणी पूर्वी पठार (हाड़ौती पठार) : राजस्थान के भौतिक प्रदेश
यह प्रदेश अरावली व विंध्याचल पर्वतमाला के मिलन बिंदुओं की वजह से संक्रांति प्रदेश के रूप में भी जाना जाता है।
राजस्थान के 9. 6% भू-भाग को घेरे हुये है तथा 11 प्रतिशत जनसख्या निवास करती है।
यह उत्तर पश्चिम में अरावली के महान सीमा भ्रंश द्वारा सीमांकित है और राजस्थान की सीमा के पार तब तक फैला हुआ है जब तक बुंदेल- खण्ड के पूर्ण विकसित कगार दिखाई नहीं देते ।
मालवा पठार का ही भाग, इसे “हाड़ौती का पठार” लावा का पठार भी कहते है।
यह आगे जाकर मालवा के पठार में मिल जाता है।
इस प्रदेश में लावा मिश्रित शैल एवं विन्ध्य शैलों का सम्मिश्रण है।
हाड़ौती पठार मुख्यतः कोटा व बुंदी जिलों में फैला हुआ है। हाड़ौती पठार मुख्यतः दो भागों में बाँटा हुआ है
(i) विन्ध्य कगार भूमि –
यह कगार भूमि क्षेत्र बड़े-बड़े बलुआ पत्थरों से निर्मित है।
यह क्षेत्र इमारती पत्थरों के दो प्रसिद्ध है जिसमें करौली तथा धौलपुर से लाल गुलाबी पत्थरों, बूंदी से स्लेट पत्थर कोटा से कोटा स्टोन तथा भीलवाड़ा से पट्टी कातिले पत्थरों प्राप्त किए जाते हैं।
प्रतापगढ़ से हीरे केसरपुरा मोहनपुरा की खान से प्राप्त होते हैं।
(ii) दक्कन लावा पठार-
यह भौतिक इकाई ऊपरमाल (उच्च पठार या पथरीला) के नाम से जानी जाती है।
यह क्षेत्र ज्वालामुखी उद्गार के समय निकली हुई लवी के ठंडे होने से निर्मित हुआ है।
पार्वती, कालीसिंध चम्बल व अन्य नदियों द्वारा सिंचित है।
चम्बल और उसकी सहायक नदियों ने कोटा में एक त्रिकोणीय कांपीय बेसिन का निर्माण किया है।
इस भौतिक प्रदेश में मुख्यतः काली मृदा पाई जाती है जो कि कपास, सोयाबीन, संतरा, गन्ना व अमल की खेती हेतु प्रसिद्ध है।
उपभाग
उड़िया या ठडिया का पठार- सिरोही जिले में स्थित यह राजस्थान का सबसे ऊँचा पठार।
आबू का पठार- सिरोही जिले में मॉऊट आबू पर्वत के निकट, राजस्थान का दूसरा ऊँचा पठार।
भोराट का पठार- कुम्भलगढ़ ( राजसमंद) एवं गोगुन्दा (उदयपुर) के मध्य स्थित पठार, इसे मेवाड़ का पठार भी कहते है।
मेसा का पठार चित्तौड़ जिले मे स्थित इसी पठार की चित्रकूट की पहाड़ी पर प्राचीनकाल में चित्रागंद मौर्य के द्वारा चित्तौड़ दुर्ग का निर्माण हुआ।
उपरमाल का पठार- भैंसरोडगढ़ एवं बिजोलिया के मध्य स्थित। विस्तार-चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, बूंदी, कोटा, झालावाड़ इत्यादि जिलों में है।
मुकुन्दवाड़ा की पहाडियाँ- कोटा व झालरापाटन झालावाड़ के बीच स्थित इस भू-भाग का ढाल दक्षिण से उत्तर की ओर।
गिरवा- उदयपुर क्षेत्र मे तश्तरीनुमा आकृति वाले पहाड़ों की मेखला को स्थानीय भाषा में गिरवा कहते है।
मगरा- उदयपुर के उत्तर-पश्चिमी पर्वतीय भाग में स्थित पहाड़ी क्षेत्र का मगरा के नाम से जाना जाता है।
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
रघुनाथगढ़ पर्वत सीकर में स्थित है।
खड़- खेती में पाये जाने वाले घास का एक प्रकार है।
खड़ीन- जैसलमेर जिले के उत्तर दिशा में बड़ी संख्या में स्थित प्याला झीलें जो कि प्रायः निम्न कगारों से घिरी रहती है।
बीजासण का पहाड़ है। (भीलवाड़ा)। यह मांडलगढ़ कस्बे के पास स्थित है।
रन- बालुका स्तुपों के बीच की निम्न भूमि में जल भर जाने से निर्मित अस्थाई झीलें व दलदली भूमि रन कहलाती है ।
कानोड़ झाकरी, रामपुर, पोकरण, (जैसलमेर), (जोधपुर) तथा थोब (बाड़मेर) में स्थित प्रमुख रन है।
अरावली की अन्य चोटियाँ गुरूशिखर, सेर (1597 मी.), देलवाड़ा (1442 मी.), जरगा (1431 मी.) अचलगढ़ (1380 मी.) कुम्भलगढ़ (1274 मी), रघुनाथगढ़ (1155 मी.)
देशहरो- जरगा व रागा पहाड़ियों के बीच का पठारी क्षेत्र। पीडमांट मैदान- देवगढ़ के समीप अरावली श्रेणी का निर्जन पहाड़ी क्षेत्र।
ऊपरमाल- चित्तौड़गढ़ के भैसरोड़गढ़ से भीलवाड़ा के बिजोलिया तक का पठारी भाग।
खेराड तथा माल खेराड़- भीलवाड़ा जिले की जहाजपुर तथा टाँक का अधिकांश भाग जो बनास बेसिन में स्थित है। लासड़िया पठार- जयसमन्द उदयपुर से आगे पूर्व की और विच्छेद व कटा- फटा पठार लासडिया का पठार कहलाता है।
राजस्थान के भौतिक भूभाग
कूबड़ पटटी- अजमेर-नागौर में फ्लोराइड युक्त पानी वाला क्षेत्र।
घूघरा घाटी अजमेर में स्थित प्रसिद्ध अरावली पर्वतमाला की घाटी है जिसमें राजस्थान लोक सेवा आयोग का कार्यालय स्थित है।
अरावली पर्वतमाला के पश्चिम में 12 तथा पूर्व में 21 जिले है।
अरावली पर्वतमाला के मानसून के समानान्तर होने के कारण राजस्थान में अनियमित वर्षा होती है।
भोराट का पठार गोगुन्दा व कुम्भलगढ़ के मध्य स्थित अरावली पर्वत श्रृंखला का भाग।
उत्तरी क्षेत्र में अरावली श्रृंखला फाइलाइट और क्वार्ट्ज से निर्मित है।
अरावली के ढालों पर मुख्यत: मक्का की खेती की जाती है। अरावली पर्वतमाला की औसत ऊँचाई समुन्द्र तल से 930 मी. है।
अरावली पर्वतमाला उत्तर-पश्चिम में सिन्धु बेसिन और पूर्व में गंगा बेसिन के मध्य जल विभाजक रेखा का कार्य करती है।
नाल- मध्यवर्ती अरावली पर्वतीय श्रेणी में स्थित दर्रे व पहाड़ी मार्ग।
सीकर जिले की पहाड़ियों का स्थानीय नाम मालखेत की पहाड़ियाँ कहते हैं।
हर्ष की पहाड़ियां जिन पर जीण माता का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है सीकर जिले में हैं। लूनी बेसिन मे मध्यवर्ती घाटी को मालाणी पर्वत श्रृंखला कहते है। यह जालौर व बालोतरा के मध्य स्थित है ।
अरावली पर्वत श्रृंखला को राजस्थानी भाषा में आड़ा वाला Ada- Wla’ कहाँ जाता है।
बीजासण का पहाड़ यह मांडलगढ़ कस्बे के पास स्थित है। (भीलवाड़ा)।
राजस्थान के भौतिक भूभाग
रन- बालुका स्तुपों के बीच की निम्न भूमि में जल भर जाने से निर्मित अस्थाई झीलें व दलदली भूमि रन कहलाती है । कनोड़ झाकरी, बरमसर, पोकरण, ( जैसलमेर), (जोधपुर) तथा थोब (बाड़मेर) में स्थित प्रमुख रन है । बावड़ी – ऐसे सीढ़ीदार कुएं जिनमें सीढ़ीयों की सहायता से बाप –
सहज ही पानी की सतह तक उतरा जा सकता है। धोरे-रेत के बड़े-बड़े टीले जिनकी आकृति लहरदार होती है
लाठी सीरीज क्षेत्र- उपयोगी सेवण घास की चौड़ी पट्टी जो जैसलमेर में पोकरण से मोहनगढ़ तक पाकिस्तानी सीमा के सहारे विस्तृत है। यह क्षेत्र भू-गर्भीय जल पट्टी के लिए प्रसिद्ध है।
धरियन- जैसलमेर जिले के भू-भाग जहाँ आबादी लगभग नगण्य है। स्थानांतरित बालका स्तपों को स्थानीय भाषा में ‘धरियन’ नाम से पुकारते है।
लघु मरूस्थलीय- थार का मरूस्थल का पूर्वी भाग जो कि कच्छ से बीकानेर तक फैल हुआ है।
त्रिकुट पहाड़ी इस पर्वत पर जैसलमेर का किला अवस्थित है।
चिड़ियाटूक पहाड़ी इस पहाड़ी पर जोधपुर को मेहरानगढ़ दुर्ग स्थित है।
तारागढ़ पहाड़ी अजमेर में स्थित मध्य अरावली की सबसे ऊँची चोटी (870 मी)।
राजस्थान के भौतिक प्रदेश, भूभाग, उत्तर पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश, मध्यवर्ती अरावली पर्वतीय प्रदेश, पूर्वी मैदान, दक्षिणी पूर्वी पठारी मैदान
वायुदाब
पवनें
वायुमण्डल
चट्टानें अथवा शैल
जलवायु
चक्रवात-प्रतिचक्रवात
भौतिक प्रदेश
अपवाह तंत्र
पारिस्थितिकी