अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध

अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध – Ayodhya Singh Upadhyay Hariaudh – जीवन परिचय – साहित्यिक परिचय – प्रमुख रचनाएं – कविताएं-उपन्यास-आलोचना-नाटक

जीवन परिचय

उपनाम -‘हरिऔध’

जन्म:- 15 अप्रैल, 1865 (निजामाबाद, आज़मगढ़, उत्तर प्रदेश)

मृत्यु:- 16 मार्च, 1947 (निजामाबाद, आज़मगढ़, उत्तर प्रदेश)

पिता का नाम- भोला सिंह उपाध्याय

माता का नाम- रुक्मणि देवी

पत्नी – आनंद कुमारी

कार्यक्षेत्र – अध्यापक, लेखक

भाषा – हिन्दी

विषय – गद्य, पद्य, नाटक तथा उपन्यास

काल -आधुनिक काल (द्विवेदी युग)

अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ का साहित्यिक परिचय

प्रमुख रचनाएं

अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध - Ayodhya Singh Upadhyay Hariaudh - जीवन परिचय - साहित्यिक परिचय - प्रमुख रचनाएं - कविताएं-उपन्यास-आलोचना-नाटक
अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध

कविताएं

श्री कृष्ण शतक – 1882

रसिक रहस्य – 1899

प्रेमाम्बुवारिधि – 1900

प्रेम प्रपंच – 1900

प्रेमाम्बु प्रश्रवण – 1901

प्रेमाम्बु प्रवाह – 1901

प्रेम पुष्पहार – 1904

उद्बोधन – 1906

काव्योपवन – 1909

प्रियप्रवास (महाकाव्य) – 1914

कर्मवीर – 1916

ऋतु मुकुर – 1917

चुभते चौपदे – 1924

पद्म प्रसून – 1925

चोखे चौपदे – 1925

पद्य प्रमोद – 1927

बोलचाल – 1928

रसकलश – 1931

पारिजात – 1937 (इसमें कुल 15 सर्ग हैं)

कल्पलता – 1937

ग्राम गीत – 1938

हरिऔध सतसई – 1940

वैदेही बनवास (महाकाव्य) – 1940 (इसमें कुल 18 सर्ग हैं)

कबीर कुण्डल

मर्म स्पर्श – 1956

बाल साहित्य : अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध

बाल विभव

फूल पत्ते

चन्द्र खिलौना

बाल विलास

खेल तमाशा

उपदेश कुसुम

बाल गीतावली

चाँद सितारे

उपन्यास

ठेठ हिन्दी का ठाठ – 1899

अधखिला फूल – 1907

वेनिस का बाँका (अनूदित)

आलोचना

कबीर वचनावली

साहित्य सन्दर्भ

हिन्दी भाषा और साहित्य का विकास

नाटक

प्रद्युमन विजय – 1893

रुक्मणी परिणय – 1894

अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ संबंधी विशेष तथ्य

प्रियप्रवास इनका श्रेष्ठ महाकाव्य है यह खड़ी बोली हिंदी का प्रथम महाकाव्य माना जाता है इसमें कुल 17 सर्ग हैं।

इसकी नायिका राधा लोकनायिका एवं लोकसेविका के रूप में चित्रित है।

प्रियप्रवास रचना के लिए इनको मंगला प्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था।

इसका (प्रियप्रवास) का मूल नाम ब्रजांगना विलाप था। यह संपूर्ण काव्य संस्कृत के वर्णवृंतो पर आधारित है।

अपनी अपूर्व साहित्य साधना के कारण इनको कवि सम्राट भी कहा जाता है।

वैदेही वनवास मूलतः वाल्मीकि रामायण पर आधारित है इसमें राम के द्वारा सीता के निर्वासन की कथा 18 सर्गो में वर्णित है।

प्रियप्रवास मूलतः वियोग श्रृंगार का ग्रंथ है वियोग वात्सल्य का चित्रण भी इस में प्रमुखता से हुआ है राधा के विरह का निरूपण चतुर्थ सर्ग में मिलता है।

रसकलश एक रीति ग्रंथ रचना है इसमें रस एवं रस स्वरूप, नायिका भेद व ऋतु वर्णन किया गया है यह ब्रज भाषा में लिखी गई रचना है।

गणपति चंद्र गुप्त ने इनको आधुनिक काल का सूरदास कहा है।

इनका प्रियप्रवास महाकाव्य अपनी काव्यगत विशेषताओं के कारण हिंदी महाकाव्यों में माइल-स्टोन माना जाता है।

निराला जी का इनके बारे में कथन- “इनकी यह एक सबसे बड़ी विशेषता है कि ये हिंदी के सार्वभौम कवि हैं। खड़ी बोली, उर्दू के मुहावरे, ब्रजभाषा, कठिन-सरल सब प्रकार की कविता की रचना कर सकते हैं।”

हरिऔध जी हिंदी साहित्य सम्मेलन के दो बार सभापति रह चुके हैं और सम्मेलन द्वारा विद्या वाचस्पति की उपाधि से सम्मानित किये जा चुके हैं।

चुभते चौपदे, चोखे चौपदे तथा बोलचाल मुहावरेदार भाषा में है।

आदिकाल के साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार

जैनेन्द्र कुमार Jainendra Kumar

जैनेन्द्र कुमार

जैनेन्द्र कुमार Jainendra Kumar -जीवन परिचय-साहित्यिक परिचय-जैनेन्द्र कुमार की प्रमुख रचनाएं-भाषा शैली-पुरस्कार एवं मान-सम्मान-विशेष तथ्य

जीवन परिचय

जन्म : 2 जनवरी, 1905 (अलीगढ़)

निधन : 24 दिसंबर, 1988 (दिल्ली)

मूल नाम- आनंदी लाल

पत्नी- भगवती देवी

काल- आधुनिक काल (मनोविश्लेषणवादी उपन्यासकार)

जैनेन्द्र कुमार की साहित्यिक परिचय

जैनेन्द्र कुमार की प्रमुख रचनाएं

Jainendra Kumar जैनेन्द्र कुमार
Jainendra Kumar

उपन्यास

परख (1929, पात्र : सत्यधन, कट्टो, गरिमा, बिहारी)

सुनीता (1935, पात्र : सुनीता, श्रीकान्त और हरिप्रसन्न)

त्यागपत्र (1937, पात्र : मृणाल, प्रमोद, शीला)

कल्याणी (1939, पात्र : डॉ. असरानी)

विवर्त (1953, भुवनमोहिनी, जितेन)

सुखदा (1952)

व्यतीत (1953, पात्र : अनीता)

जयवर्धन (1956)

मुक्तिबोध (1966, पात्र : सहाय, राजेश्वरी, नीलिमा)

अनन्तर (1968, पात्र : अपराजिता, प्रसाद, रामेश्वरी)

अनामस्वामी (1974, पात्र : वसुन्धरा, कुमार, शंकर उपाध्याय)

दशार्क (1985, वेश्या समस्या पर, पात्र : सरस्वती, रंजना)

कहानी संग्रह : जैनेन्द्र कुमार Jainendra Kumar

फाँसी (1929)

वातायन (1930)

नीलम देश की राजकन्या (1933)

एक रात (1934)

दो चिड़ियाँ (1935)

पाजेब (1942)

जयसंधि (1949)

जैनेन्द्र की कहानियाँ (सात भाग)

जैनेंद्र कुमार की कहानियाँ (2000)

निबंध संग्रह : जैनेन्द्र कुमार Jainendra Kumar

प्रस्तुत प्रश्न (1936)

जड़ की बात (1945)

पूर्वोदय (1951)

साहित्य का श्रेय और प्रेय (1953)

मंथन (1953)

सोच-विचार (1953)

काम, प्रेम और परिवार (1953)

समय और हम (1962)

परिप्रेक्ष (1964)

राष्ट्र और राज्य

सूक्तिसंचयन

इस्ततः (1962)

संस्मरण : जैनेन्द्र कुमार Jainendra Kumar

ये और वे (1954)

मेरे भटकाव

जैनेन्द्र कुमार की मौत पर (स्वयं पर)

आलोचनात्मक ग्रंथ

कहानी : अनुभव और शिल्प’ (1967)

प्रेमचन्द एक कृती व्यक्तित्व (1967)

जीवनी

अकाल पुरुष गांधी (1968)

अनूदित ग्रंथ

मंदालिनी (नाटक, 1935)

प्रेम में भगवान (कहानी-संग्रह, 1937)

पाप और प्रकाश (नाटक, 1953)

सह-लेखन

तपोभूमि (उपन्यास, ऋषभचरण जैन के साथ, 1932)

संपादित ग्रंथ

साहित्य चयन (निबंध-संग्रह, 1951)

विचारवल्लरी (निबंध-संग्रह, 1952)

जैनेन्द्र कुमार Jainendra Kumar के पुरस्कार एवं मान-सम्मान

हिन्दुस्तानी अकादमी पुरस्कार, 1929 में ‘परख’ (उपन्यास) के लिए

भारत सरकार शिक्षा मंत्रालय पुरस्कार, 1952 में ‘प्रेम में भगवान’ (अनुवाद) के लिए

1966 में साहित्य अकादमी पुरस्कार ‘मुक्तिबोध’ (लघु उपन्यास) के लिए

पद्म भूषण, 1971

साहित्य अकादमी फैलोशिप, 1974

हस्तीमल डालमिया पुरस्कार (नई दिल्ली)

उत्तर प्रदेश राज्य सरकार (समय और हम,1970)

उत्तर प्रदेश सरकार का शिखर सम्मान ‘भारत-भारती’

मानद डी. लिट् (दिल्ली विश्वविद्यालय, 1973, आगरा विश्वविद्यालय,1974)

हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग (साहित्य वाचस्पति,1973)

विद्या वाचस्पति (उपाधि : गुरुकुल कांगड़ी)

साहित्य अकादमी की प्राथमिक सदस्यता

प्रथम राष्ट्रीय यूनेस्को की सदस्यता

भारतीय लेखक परिषद् की अध्यक्षता

दिल्ली प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन का सभापतित्व।

जैनेन्द्र कुमार Jainendra Kumar संबंधी विशेष तथ्य

इन्होंने महात्मा गाँधी के साथ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के असहयोग आंदोलन में भाग लिया। जेल भी गए।

ये फ्रायड के मनोविज्ञान से प्रभावित उपन्यासकार हैं।

इनके उपन्यास नायिका प्रधान उपन्यास माने जाते हैं।

हिन्दी साहित्य का इतिहास’ में गोपाल राय जी लिखते हैं- “उनके उपन्यासों की कहानी अधिकतर एक परिवार की कहानी होती है और वे शहर की गली और कोठरी की सभ्यता में ही सिमट कर व्यक्ति-पात्रों की मानसिक गहराइयों में प्रवेश करने की कोशिश करते हैं।”

आदिकाल के साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार

बदरीनारायण चौधरी उपाध्याय प्रेमघन

बदरीनारायण चौधरी उपाध्याय ‘प्रेमघन’

बदरीनारायण चौधरी उपाध्याय प्रेमघन – जीवन परिचय – साहित्यिक परिचय – रचनाएं – कविताएं – नाटक – निबंध -पत्र-पत्रिकाएं – Badrinarayan Chaudhary

जीवन परिचय

जन्मकाल- 1855 ई

जन्मस्थान- मिर्जापुर (उ.प्र.) एक संपन्न ब्राह्मण परिवार में

मृत्युकाल- 1923 ई.

पिता- पंडित गुरुचरणलाल उपाध्याय

काल- आधुनिक काल (भारतेंदु युग)

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साहित्यिक परिचय

इनकी ‘लालित्य लहरी’ रचना में वंदना संबंधी दोहों को शामिल किया गया है|

‘ब्रजचंद पंचक’ रचना में उनकी भक्ति भावना अभिव्यक्त हुई है|

इनकी समस्त काव्य रचनाओं का संकलन ‘प्रेमघन सर्वस्व’ संग्रह के प्रथम भाग में किया गया है|

बदरीनारायण प्रेमघन की गद्यशैली की समीक्षा के कारण यह स्पष्ट हो जाता है कि खड़ी बोली गद्य के वे प्रथम आचार्य थे।

बदरीनारायण चौधरी उपाध्याय प्रेमघन की रचनाएं

कविताएं

जीर्ण जनपद

आनंद अरुणोदय

हार्दिक हर्षादर्श (राष्ट्रीयता)

मंयक महिमा (प्रकृति वर्णन)

अलौकिक लीला

वर्षा बिंदु

लालित्य लहरी

बृजचंद-पंचक

युगल-स्तोत्र

पितर प्रताप

होली की नकल

मन की मौज

प्रेम पीयुष वर्षा

मंगलाशा

हास्य बिंदु

भारत-बधाई

स्वागत-सभा

आर्याभिनंदन

सूर्यस्तोत्र

नाटक

भारत सौभाग्य 1888 ई.

प्रयाग रामागमन

वृद्ध विलाप

वीरांगना रहस्य महानाटक (वेश्या विनोद महानाटक) (अपूर्ण)

निबंध

बनारस का बुढ़वा मंगल

दिल्ली दरबार में मित्र मंडली के यार

बदरीनारायण चौधरी उपाध्याय प्रेमघन संबंधी विशेष तथ्य

इनकी नागरी नीरद (1893 ई.) नामक एक साप्ताहिक पत्र एवं आनंद कादंबिनी (1881 ई.) नामक एक मासिक पत्रिका का संपादन कार्य किया था| (प्रकाशन स्थल मिर्जापुर)

इन्होंने ‘अब्र’ उपनाम से उर्दू काव्य में भी लेखन कार्य किया है|

एक बार दादा भाई नारोजी को विदेश में ‘काला’ कहकर पुकारा गया था, जिसकी प्रतिक्रियास्वरुप इन्होंने एक क्षोभपूर्ण कविता भी लिखी थी|

आचार्य शुक्ल के अनुसार हिंदी में समालोचना का सूत्रपात एक प्रकार से बालकृष्ण भट्ट एवं चौधरी के द्वारा ही किया गया था|

बेसुरी तान शीर्षक लेख में इन्होने भारतेंदु की आलोचना करने में भी चूक न की।

विक्रमी संवत् 1930 में बदरीनारायण चौधरी उपाध्याय प्रेमघन जी ने सद्धर्म सभा तथा 1931 विक्रमी संवत् रसिक समाज की मीरजापुर में स्थापना की।

आदिकाल के साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार

लेखक प्रताप नारायण मिश्र Pratap Narayan Mishra

लेखक प्रताप नारायण मिश्र

लेखक प्रताप नारायण मिश्र का जीवन परिचय, प्रताप नारायण मिश्र का साहित्यिक परिचय, प्रताप नारायण मिश्र के निबंध, रचनाएं, कविताएं

प्रताप नारायण मिश्र का जीवन परिचय

जन्म- 24 सितम्बर, 1856

जन्म स्थान- बैजेगांव,जिला- उन्नाव, उत्तर प्रदेश

मृत्यु- 6 जुलाई, 1894

अभिभावक – पण्डित संकटादीन

काल- आधुनिक काल (भारतेंदु युग के कवि)

भाषा- हिन्दी, उर्दू, बंगला, फ़ारसी, अंग्रेज़ी और संस्कृत।

प्रसिद्धि – लेखक, कवि, पत्रकार, निबन्धकार, नाटककार।

लेखक प्रताप नारायण मिश्र
लेखक प्रताप नारायण मिश्र

प्रताप नारायण मिश्र का साहित्यिक परिचय

रचनाएं

काव्य

कानपुर माहात्म्य

तृप्यन्ताम्‌

तारापति पचीसी

दंगल खण्ड

प्रार्थना शतक

प्रेम पुष्पावली

फाल्गुन माहात्म्य

ब्रैडला स्वागत

मन की लहर

युवराज कुमार स्वागतन्ते

लोकोक्ति शतक

शोकाश्रु

श्रृंगार विलास

श्री प्रेम पुराण

होली है

दीवाने

बरहमन

रसखान शतक

बुढ़ापा

प्रताप लहरी

हिंदी की हिमायत

नवरात्र के पद
उपर्युक्त रचनाओं में से ‘तृप्यन्ताम्‌’, ‘तारापति पचीसी’, ‘प्रेम पुष्पावली’, ‘ब्रैडला स्वागत’, ‘मन की लहर’, ‘युवराजकुमार स्वागतन्तें’, ‘शोकाश्रु’, ‘प्रेम पुराण’ तथा ‘होली’ ‘प्रताप नारायण मिश्र कवितावली’ में संगृहीत हैं।

नाटक

कलि कौतुक (रूपक) 1886 – पाखंडियो एवं दुराचारियों से दुर रहने के लिए प्रेरित करने वाला नाटक

गो-संकट – 1886

जुआरी खुआरी (प्रहसन, अपूर्ण)

हठी हमीर – अलाउद्दीन की रणथम्भौर पर चढ़ाई का वृत्तांत लेकर लिखा गया नाटक ‘संगीत शाकुन्तल’ (‘अभिज्ञान शाकुन्तलम्’ के आधार पर रचित गीति रूपक), -लावनी के ढंग पर गाने योग्य खड़ी बोली में पदबद्ध नाटक

भारत दुर्दशा (रूपक) 1902

कलि प्रभाव (गीतिरूपक)

दूध का दूध और पानी का पानी (भाण, अपूर्ण)।

उपन्यास (अनूदित)

अमरसिंह

इन्दिरा

कपाल कुंडला

देवी चौधरानी

युगलांगुलीय

राजसिंह राधारानी
नोट- इनके सभी उपन्यास प्रसिद्ध कथाकार बंकिम चन्द्र के उपन्यासों के अनुवाद हैं।

कहानी (अनूदित)

कथा बाल संगीत

कथा माला

चरिताष्टक

प्रताप नारायण मिश्र के निबंध

धोखा

खुशामद

आप

बात

दाँत

भौं

नारी

मुच्छ

परीक्षा

समझदार की मौत

मनोयोग

पेट

नाक

वृद्ध

दान

जुआ

अपव्यय

नास्तिक

ईश्वर की मूर्ति

सोने का डंडा

टेढ़ जान शंका

सब काहू

धूरे क लताँ विनै

कनातन क डौल बाँधे

होली है अथवा होरी है

आँसू

लक्ष्मी

रुचि

विश्वास

  1. प्रेम बाण के सैलानी
    ‘प्रताप नारायण ग्रंथावली भाग एक’ – इसमें मिश्र जी के लगभग 200 निबन्ध संगृहीत हैं।

आत्मकथा

प्रताप चरित्र (अपूर्ण) – यह प्रताप नारायण ग्रंथावली भाग एक में संकलित है।

जीवनी

आर्यचरितामृत-1884  – बंगला से हिंदी मे अनुदित

यात्रावृत

विलायतयात्रा – हिंदी प्रदीप पत्र मेम नवंबर-1897 में प्रकाशित

प्रताप नारायण मिश्र संबंधी विशेष तथ्य

उन्होंने ब्राह्मण नामक पत्रिका (1883 ई.,मासिक पत्रिका,कानपुर से) का संपादन कार्य किया था|

अपने ब्राह्मण पत्रिका के ग्राहकों से चंदा मांगते मांगते थक जाने पर इन्हें कभी इन शब्दों से यात्रा करनी पड़ी थी- “आठ मास बीते जजमान| अब तौं करौ दच्छिना दान||”

किसी नाटक में अभिनय करने के लिए उन्होंने अपने पिता से मूंछ मुंडवाने की आज्ञा भी ली थी|

अपनी ‘हरगंग’ कविता के कारण इनको सर्वाधिक प्रसिद्धि प्राप्त हुई|

यह हिंदी के बड़े हिमायती थे| ‘हिंदी- हिंदू- हिंदुस्तान’ का नारा इनके द्वारा ही दिया गया था|

हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार यह सहज चटुल शैली के पुरस्कर्ता माने जाते हैं|

यह कानपुर की साहित्यक संस्था ‘रसिक समाज’ से भी जुड़े हुए थे|

इन्होंने ‘लावणी व आल्हा’ जैसी लोक प्रचलित शैलियों का भी काव्य में प्रयोग किया था|

आचार्य रामचंद्र शुकल ने इनको ‘हिंदी का एडिसन’ कहा है|

मिश्र जी की भारतेन्दु हरिश्चन्द्र में अनन्य श्रद्धा थी। वह स्वयं को उनका शिष्य कहते थे तथा देवता के समान उनका स्मरण करते थे। भारतेन्दु जैसी रचना शैली, विषयवस्तु और भाषागत विशेषताओं के कारण ही प्रताप नारायण मिश्र को ‘प्रतिभारतेन्दु’ या ‘द्वितीयचन्द्र’ आदि कहा जाने लगा था।

आदिकाल के साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार

त्रिलोचन शास्त्री Trilochana Shastri

त्रिलोचन शास्त्री Trilochana Shastri

Trilochana Shastri त्रिलोचन शास्त्री – जीवन परिचय – त्रिलोचन शास्त्री का साहित्य – रचनाएं – त्रिलोचन शास्त्री की काव्य कला – प्रसिद्ध काव्य

त्रिलोचन शास्त्री का जीवन परिचय

मूल नाम – वासुदेव सिंह

जन्म -20 अगस्त, 1917 सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश

मृत्यु -9 दिसम्बर, 2007 गाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश

विद्यालय -काशी हिन्दू विश्वविद्यालय

शिक्षा -एम.ए. (अंग्रेज़ी) एवं संस्कृत में ‘शास्त्री’ की डिग्री

विद्या- गद्य व पद्य

प्रसिद्धि -कवि तथा लेखक

काल- आधुनिक काल

युग- प्रगतिवादी युग

साहित्यिक आन्दोलन -प्रगतिशील धारा यथार्थवाद

त्रिलोचन शास्त्री Trilochana Shastri
त्रिलोचन शास्त्री Trilochana Shastri

त्रिलोचन शास्त्री का साहित्य

रचनाएँ

त्रिलोचन शास्त्री Trilochana Shastri के कविता संग्रह

धरती (1945)

गुलाब और बुलबुल (1956)

दिगंत (1957)

ताप के ताए हुए दिन (1980)

शब्द (1980)

उस जनपद का कवि हूँ (1981)

अरधान (1984)

तुम्हें सौंपता हूँ (1985)

मेरा घर

चैती

अनकहनी भी

काव्य और अर्थबोध

अरधान

अमोला मेरा घर

फूल नाम है एक (1985)

सबका अपना अपना आकाश-1987

जीने की कला (2004)

संपादित

मुक्तिबोध की कविताएँ

कहानी संग्रह

देशकाल

डायरी

दैनंदिनी

त्रिलोचन शास्त्री Trilochana Shastri के पुरस्कार एवं सम्मान

त्रिलोचन शास्त्री को 1989-90 में हिंदी अकादमी ने शलाका सम्मान से सम्मानित किया था।

हिंदी साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हे ‘शास्त्री’ और ‘साहित्य रत्न’ जैसे उपाधियों से सम्मानित किया जा चुका है।

1982 में ताप के ताए हुए दिन के लिए उन्हें साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिला था।

उत्तर प्रदेश हिंदी समिति पुरस्कार,

हिंदी संस्थान सम्मान,

मैथिलीशरण गुप्त सम्मान,

शलाका सम्मान,

भवानी प्रसाद मिश्र राष्ट्रीय पुरस्कार,

सुलभ साहित्य अकादमी सम्मान,

भारतीय भाषा परिषद सम्मान

त्रिलोचन शास्त्री Trilochana Shastri संबंधी विशेष तथ्य

इन्हें हिंदी सॉनेट (अंग्रेजी छंद) का साधक (स्थापित करने वाला कवि) माना जाता है। उन्होंने इस छंद को भारतीय परिवेश में ढाला और लगभग 550 सॉनेट की रचना की।

इन्होंने ‘प्रभाकर’, ‘वानर’, ‘हंस’, ‘आज’ और ‘समाज’ जैसी पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया।

ये जीवन में निहित मंद लय के कवि हैं|

इन्हें हिंदी के अनेक शब्द कोशों के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है|

“उनकी राष्ट्रीयता चेतना और व्यापकता सांस्कृतिक दृष्टि, उनकी वाणी का ओज और काव्यभाषा के तत्त्वों पर बल, उनका सात्त्विक मूल्यों का आग्रह उन्हें पारम्परिक रीति से जोड़े रखता है।” -अज्ञेय

“हमारे क्रान्ति-युग का सम्पूर्ण प्रतिनिधित्व कविता में इस समय दिनकर कर रहा है। क्रान्तिवादी को जिन-जिन हृदय-मंथनों से गुजरना होता है, दिनकर की कविता उनकी सच्ची तस्वीर रखती है।” -रामवृक्ष बेनीपुरी

“दिनकर जी सचमुच ही अपने समय के सूर्य की तरह तपे। मैंने स्वयं उस सूर्य का मध्याह्न भी देखा है और अस्ताचल भी। वे सौन्दर्य के उपासक और प्रेम के पुजारी भी थे। उन्होंने ‘संस्कृति के चार अध्याय’ नामक विशाल ग्रन्थ लिखा है, जिसे पं. जवाहर लाल नेहरू ने उसकी भूमिका लिखकर गौरवन्वित किया था। दिनकर बीसवीं शताब्दी के मध्य की एक तेजस्वी विभूति थे।” -नामवर सिंह

आदिकाल के साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार

लेखिका चित्रा मुद्गल-Chitra Mudgal

लेखिका चित्रा मुद्गल-Chitra Mudgal

लेखिका चित्रा मुद्गल-Chitra Mudgal – जीवन परिचय – साहित्य – रचनाएं – कहानी संग्रह – कहानियाँ – व्यक्तित्व – बालकथा – पुरस्कार एवं सम्मान

जीवन परिचय

जन्म- 10 सितंबर 1944 को चेन्नई, तमिलनाडु में हुआ था।

शिक्षा- प्रारंभिक शिक्षा पैतृक गांव उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में स्थित निहाली खेड़ा और उच्च शिक्षा मुंबई विश्वविद्यालय में हुई।

काल-आधुनिक काल

विधा- गद्य

विवाह:- 17 फरवरी 1965 को प्रखर कथाकार-कवि-पत्रकार श्री अवधनारायण मुद्गल से।

चित्रा मुद्गल का साहित्य

चित्रा जी पहली कहानी स्त्री-पुरुष संबंधों पर थी।

पहली कहानी सफेद सेनारा (1964) में प्रकाशित हुई।

उनके अब तक तेरह कहानी संग्रह, तीन उपन्यास, तीन बाल उपन्यास, चार बाल कथा संग्रह, पांच संपादित पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।

रचनाएं : लेखिका चित्रा मुद्गल-Chitra Mudgal

उपन्यास

एक जमीन अपनी

आवां

गिलिगडु

कहानी संग्रह

भूख

जहर ठहरा हुआ

लाक्षागृह

अपनी वापसी

इस हमाम में

ग्यारह लंबी कहानियाँ

जिनावर

लपटें

जगदंबा बाबू गाँव आ रहे हैं

मामला आगे बढ़ेगा अभी

केंचुल

आदि-अनादि

लघुकला संकलन

बयान

कथात्मक रिपोर्ताज

तहकानों मे बंद

लेख

बयार उनकी मुठ्ठी में

बाल उपन्यास

जीवक

माधवी कन्नगी

मणिमेख

नवसाक्षरों के लिए – जंगल

बालकथा संग्रह

दूर के ढोल

सूझ बूझ

देश-देश की लोक कथाएँ

नाट्य रूपांतर

पंच परमेश्वर तथा अन्य नाटक, सद्गगति तथा अन्य नाटक, बूढ़ी काकी तथा अन्य नाटक

पुरस्कार एवं सम्मान : लेखिका चित्रा मुद्गल-Chitra Mudgal

व्यास सम्मान

इंदु शर्मा कथा सम्मान

साहित्य भूषण

वीर सिंह देव सम्मान

चित्रा मुद्गल संबंधी विशेष तथ्य : लेखिका चित्रा मुद्गल-Chitra Mudgal

2003 में तेरहवां व्यास सम्मान पाने वाली देश की प्रथम लेखिका हैं। उन्हें ये सम्मान उपन्यास ‘आवां’ के लिए दिया गया।

उपन्यास ‘आवां’ आठ भाषाओं में अनूदित तथा देश के 6 प्रतिष्ठित सम्मानों से अलंकृत है।

चित्रा मुद्गल को उदयराज सिंह स्मृति पुरस्कार से सन् 2010 में सम्मानित किया गया।

बहुचर्चित उपन्यास ‘एक ज़मीन अपनी’ के लिए सहकारी विकास संगठन मुंबई द्वारा फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ सम्मान से सम्मानित।

गरीब, पीड़ित और शोषित महिलाओं के हितों की रक्षा करने वाली संस्था ‘जागरण’ की 1965 से 1972 तक सक्रिय सदस्य रहीं।

मुंबई की एक मजदूर यूनियन, कामगार आघाही की भी सक्रिय कार्यकर्ता रहीं।

सन् 1979 से 1983 तक महिलाओं को स्वावलंबन का पाठ पढ़ानेवाली संस्था ‘स्वाधार’ की सक्रिय कार्यकर्ता रहीं।

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद की ‘वूमेन स्टडीज़ यूनिट’ की कुछ महत्त्वपूर्ण पुस्तक योजनाओं जैसे दहेज-दावानल, बेगम हज़रत महल, स्त्री समता आदि में 1986 से 1990 तक

दिल्ली दूरदर्शन के लिए फ़िल्म ‘वारिस’ का निर्माण।

आदिकाल के साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार

रामचन्द्र शुक्ल Ramchandra Shukla

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल Aachrya Ramchandra Shukla 

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल Aachrya Ramchandra Shukla जीवन-परिचय साहित्य परिचय निबंध संग्रह आलोचना ग्रंथ भाषा शैली हिंदी साहित्य काल विभाजन

जीवन-परिचय

जन्म- 4 अक्टूबर, 1884

जन्म भूमि – अगोना, बस्ती ज़िला, उत्तर प्रदेश

मृत्यु -1941 ई.

अभिभावक- पं. चंद्रबली शुक्ल

कर्म भूमि- वाराणसी

कर्म क्षेत्र- साहित्यकार, निबंध सम्राट, आलोचक, लेखक

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल Aachrya Ramchandra Shukla जीवन-परिचय साहित्य परिचय निबंध संग्रह आलोचना ग्रंथ भाषा शैली हिंदी साहित्य काल विभाजन
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

साहित्य परिचय

रचनाएं

कहानी

ग्याहर वर्ष का समय,1903 ई (सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित)

आलोचना ग्रंथ

जायसी ग्रंथावली 1925

भ्रमरगीतसार 1926

हिंदी साहित्य का इतिहास,1929

काव्य में रहस्यवाद-1929

रस मीमांसा (सैद्धान्तिक समीक्षा)

महाकवि सूरदास (व्यावहारिक समीक्षा)

विश्व प्रपंच (दर्शन)

गोस्वामी तुलसीदास,1933

साधारणीकरण और व्यक्ति वैचित्र्यवाद

रसात्मक बोध के विविध रूप

निबंध

चिंतामणि (चार खण्ड)

इनके समस्त निबंधों को चिंतामणि के दो भागों में संकलित किया गया था चिंतामणि का प्रथम भाग 1939 वह द्वितीय भाग 1945 ईसवी में प्रकाशित हुआ था। वर्तमान में इसके चार खंड उपलब्ध हैं।

चिंतामणि के प्रथम भाग में संकलित निबंध (सत्रह)

भाव या मनोविकार

उत्साह

श्रद्धा- भक्ति

करुणा

लज्जा और ग्लानि

लोभ और प्रीति

घृणा

ईर्ष्या

भय

क्रोध

कविता क्या है

भारतेंदु हरिश्चंद्र

तुलसी का भक्ति मार्ग

‘मानस’ की धर्म भूमि

काव्य में लोकमंगल की साधनावस्था

साधारणीकरण और व्यक्ति वैचित्र्यवाद (आलोचना विद्या)

रसात्मक बोध के विविध रूप (आलोचना विद्या)

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भाग दो में

प्राकृतिक दृश्य

काव्य में रहस्यवाद

काव्य में अभिव्यंजनावाद

चिंतामणि को पहले ‘विचार-विथि’ नाम से प्रकाशित करवाया गया था।

चिंतामणि रचना के लिए इनको ‘देव पुरस्कार’ प्राप्त हुआ था।

ये हिंदी में ‘कलात्मक निबंधों’ के जनम दाता माने जाते हैं।

इनको ‘निबंध सम्राट’ के नाम से जाना जाता है।

चिंतामणि भाग-3 (1983 ई.)

इसके संपादक डॉ. नामवरसिंह हैं। इस कृति में कुल 21 निबंध है।

चिंतामणि भाग-4 (2002 ई.)

इसके संपादक डॉ. कुसुम चतुर्वेदी और डॉ. ओमप्रकाश सिंह है। इस रचना में कुल 47 निबंध है।

इतिहास ग्रंथ

हिंदी साहित्य का इतिहास

(सच्चे अर्थों में हिंदी साहित्य का सर्वप्रथम परंपरागत इतिहास)

रचनाकाल- 1929 ई.

प्रकाशक- नागरी प्रचारणी सभा, काशी

जनवरी, 1929 में यह पुस्तक ‘नागरी प्रचारणी सभा, काशी’ द्वारा प्रकाशित ग्रंथ ‘हिंदी शब्दसागर की भूमिका’ (‘हिंदी साहित्य का विकास’ नाम से) के रूप में प्रकाशित हुई थी।

इसी वर्ष के मध्य में उस भूमिका के आरंभ एवं अंत में बहुत सी बातें बढ़ाकर आचार्य शुक्ल ने इसे स्वतंत्र पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया।

1940 ईस्वी में इसका परिवर्तित एवं संशोधित संस्करण प्रकाशित करवाया गया।

(हिंदी शब्द सागर के निर्माण में निम्न तीन विद्वानों का योगदान महत्त्वपूर्ण माना जाता है- बाबू श्यामसुंदर दास, रामचंद्र शुक्ल, रामचंद्र वर्मा)

‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ ग्रंथ की प्रमुख विशेषताएं : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जीवन-परिचय

सच्चे अर्थों में हिंदी साहित्य का इतिहास लेखन की परंपरा का विकास आचार्य रामचंद्र शुक्ल के द्वारा ही किया गया।

इस पुस्तक में लगभग 1000 कवियों के जीवन चरित्र का विवेचन किया गया है|

कवियों की संख्या की अपेक्षा उनके साहित्यिक मूल्यांकन को महत्व प्रदान किया गया है अर्थात हिंदी साहित्य के विकास में विशेष योगदान देने वाले कवियों को ही इसमें शामिल किया गया है कम महत्व वाले कवियों को इसमें जगह नहीं मिली है।

इसमें प्रत्येक काल या शाखा की सामान्य प्रवृत्तियों का वर्णन कर लेने के बाद उससे संबंध प्रमुख कवियों का वर्णन किया गया है।

कवियों के काव्य निरुपण में आधुनिक समालोचनात्मक दृष्टिकोण को अपनाया गया है।

कवियों एवं लेखकों की रचना शैली का वैज्ञानिक विश्लेषण किया गया है।

उस युग में आने वाले अन्य कवियों का विवरण उसके बाद फुटकल खाते में दिया गया है।

केदारनाथ पाठक ने इस रचना के लेखन में शुक्ल जी को अपूर्व सहयोग प्रदान किया था।

इस रचना के लेखन में शुक्ल जी ने निम्न रचनाओं से विशेष साहित्य सामग्री ग्रहण की थी-

मिश्रबंधु विनोद- मिश्रबंधु

हिंदी कोविद् रत्नमाला- श्यामसुंदरदास

कविता कौमुदी- रामनरेश त्रिपाठी

ब्रजमाधुरी सार- वियोगी हरी

काल विभाजन : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जीवन-परिचय

आचार्य शुक्ल ने हिंदी साहित्य के 900 वर्षों के इतिहास को निम्न चार सुस्पष्ट काल खंडों में वर्गीकृत किया है, जो आज तक भी लगभग सभी इतिहासकारों द्वारा मान्य किया जा रहा है, यथा-

वीरगाथाकाल (आदिकाल)- वि.स. 1050 से वि.स. 1375 तक ( 993-1318 ई.)
वीरगाथाकाल के दो भाग-

(I) अपभ्रंस काल या प्राकृताभाषा हिंदी काल (1050-1200 वि.)
(II) वीरगाथाकाल (1200-1375 वि.)

पूर्व मध्यकाल (भक्तिकाल)- वि.स. 1375 से वि.स. 1700 (1318-1643 ई)

उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल)- वि.स. 1700 से वि.स. 1900 तक (1643-1843 ई.)

गद्य काल (आधुनिक काल)-वि.स. 1900 सें वि.स 1984 (1843-1927 ई.)

रामचंद्र शुक्ल ने वीरगाथा काल के नामकरण के लिए निम्न 12 ग्रंथों का आधार लिया था-

विजयपाल रासो

हम्मीर रासो

पृथ्वीराज रासो

परमाल रासो

बिसलदेव रासो

खुमान रासो

कीर्ति लता

कीर्तिपताका

विद्यापति की पदावली

जयचंदप्रकाश

जयमयंकजसचंद्रिका

खुसरो की पहेलियां

विशेष तथ्य : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जीवन-परिचय

सन् 1909 से 1910 ई. के लगभग वे ‘हिन्दी शब्द सागर’ के सम्पादन में सहायक के रूप में काशी आ गये, यहीं पर काशी नागरी प्रचारिणी सभा के विभिन्न कार्यों को करते हुए उनकी प्रतिभा चमकी।

‘नागरी प्रचारिणी पत्रिका’ का सम्पादन भी उन्होंने कुछ दिनों तक किया था।

सन् 1937 ई. में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष नियुक्त हुए एवं इस पद पर रहते हुए ही सन् 1941 ई. में उनकी श्वास के दौरे में हृदय गति बन्द हो जाने से मृत्यु हो गई।

शुक्ल जी ने हिंदी साहित्य का पहला क्रमबद्ध इतिहास तैयार किया और साहित्यक आलोचना की पद्धति विकसित की।

चिंतन और विश्लेषण परक निबंधकार के रूप में भी उनका स्थान शीर्ष पर है।

कविता, नाटक, कहानी आदि सर्जनात्मक विद्याओं में भी उनका उल्लेखनीय योगदान है।

गोस्वामी तुलसीदास, जायसी ग्रंथावली एवं भ्रमरगीत सार इन तीनों ग्रंथों की भूमिका त्रिवेणी में संकलित है।

त्रिवेणी में तीन महाकवियों सूरदास तुलसीदास और जायसी की समीक्षाएँ प्रस्तुत की हैं।

‘काव्य में रहस्यवाद’ इनकी सर्वप्रथम सैद्धांतिक आलोचना मानी जाती है।

‘रस मीमांसा’ रचना में इन्होंने सिद्धांत के विभिन्न पक्षों की नई व्याख्या प्रस्तुत की है।

जिन्होंने आलोचना के तीनों रूपों सैद्धांतिक, व्यावहारिक एवं ऐतिहासिक पर अपनी लेखनी चलाई है।

शुक्ल ने भूषण की भाषा की आलोचना की है।

“काव्य में रहस्यवाद” निबंध पर इन्हें हिंदुस्तानी एकेडमी से 500 रुपये का पुरस्कार।

‘चिंतामणि’ पर हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग द्वारा 1200 रुपये का मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था।

“काव्य में रहस्यवाद” निबंध पर इन्हें हिन्दुस्तानी अकादमी से 500 रुपये का तथा चिंतामणि पर हिन्दी साहित्य सम्मलेन, प्रयाग द्वारा 1200 रुपये का मंगला प्रशाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था।

शुक्ल ने जोसेफ़ एडिसन के ‘प्लेजर्स ऑफ़ इमेजिनेशन’ का ‘कल्पना का आनन्द’ नाम से एवं राखलदास वन्द्योपाध्याय के ‘शशांक’ उपन्यास का भी हिन्दी में रोचक अनुवाद किया।

विशेष तथ्य

रामचन्द्र शुक्ल ने ‘जायसी ग्रन्थावली’ तथा ‘बुद्धचरित’ की भूमिका में क्रमश: अवधी तथा ब्रजभाषा का भाषा-शास्त्रीय विवेचन करते हुए उनका स्वरूप भी स्पष्ट किया है।

उन्होंने सैद्धान्तिक समीक्षा पर लिखा, जो उनकी मृत्यु के पश्चात् संकलित होकर ‘रस मीमांसा’ नाम की पुस्तक में विद्यमान है तथा तुलसी, जायसी की ग्रन्थावलियों एवं ‘भ्रमर गीतसार’ की भूमिका में लम्बी व्यावहारिक समीक्षाएँ लिखीं, जिनमें से दो ‘गोस्वामी तुलसीदास ‘ तथा ‘महाकवि सूरदास ‘ अलग से पुस्तक रूप में भी प्रकाशित हैं।

दर्शन के क्षेत्र में भी उनकी ‘विश्व प्रपंच’ पुस्तक उपलब्ध है। यह पुस्तक ‘रिडल ऑफ़ दि युनिवर्स’ का अनुवाद है, पर उसकी लम्बी भूमिका शुक्ल जी के द्वारा किया गया मौलिक प्रयास है।

उन्होंने ‘आलम्बनत्व धर्म का साधारणीकरण’ माना।

काव्य शैली के क्षेत्र में उनकी सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थापना ‘बिम्ब ग्रहण’ को श्रेष्ठ मानने सम्बन्धी है।

शुक्ल ने काव्य को कर्मयोग एवं ज्ञानयोग के समकक्ष रखते हुए ‘भावयोग’ कहा, जो मनुष्य के हृदय को मुक्तावस्था में पहुँचाता है।

वे कविताएँ भी लिखते थे। उनका एक काव्य संग्रह ‘मधुस्रोत’ है।

शुक्ल जी ‘हिंदी शब्दसागर’ के सहायक संपादक नियुक्त किए गए। ‘हिंदी शब्दसागर’ के प्रधान संपादक श्यामसुंदर दास थे। ‘हिंदी शब्दसागर’ का प्रकाशन 11 खंडों में हुआ।

शुक्ल जी ने ‘शब्दसागर की भूमिका’ के लिए ‘हिंदी साहित्य का विकास’ लिखा उसी तरह श्यामसुंदर दास ने ‘हिंदी भाषा का विकास’ लिखा। श्यामसुंदर दास की यह इच्छा थी कि दोनों भूमिकाएँ संयुक्त रूप से प्रकाशित हों और लेखक के रूप में दोनों का नाम छपे। शुक्ल जी ने इसका घोर विरोध किया। यह कहा जाता है कि सभा में लाठी के बल पर रात में अयोध्यासिंह उपाध्याय ने जाकर इतिहास पर शुक्ल जी का नाम छपवाया।

आदिकाल के साहित्यकार

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आधुनिक काल के साहित्यकार

रघुवीर सहाय जीवन परिचय

रघुवीर सहाय जीवन परिचय

रघुवीर सहाय जीवन परिचय – साहित्यिक परिचय – काव्य संवेदना – भाषा शैली – काव्य भाषा – काव्य विशेषता – रचनाएं – काव्यधारा – पुरस्कार एवं सम्मान

  • जन्म -9 दिसंबर, 1929
  • जन्म भूमि- लखनऊ, उत्तर प्रदेश
  • मृत्यु -30 दिसंबर, 1990
  • मृत्यु स्थान -दिल्ली
  • पत्नी- विमलेश्वरी सहाय
  • कर्म-क्षेत्र -लेखक, कवि, पत्रकार, सम्पादक, अनुवादक
  • भाषा- हिन्दी, अंग्रेज़ी
  • विद्यालय- लखनऊ विश्वविद्यालय
  • शिक्षा -एम. ए. (अंग्रेज़ी साहित्य)
  • काल- आधुनिक काल
  • युग- प्रयोगवाद युग (दुसरा सप्तक-1951 के कवि)

साहित्यिक परिचय : रघुवीर सहाय जीवन परिचय

रचनाएं

कविता संग्रह

दूसरा सप्तक

सीढ़ियों पर धूप में (प्रथम)

आत्महत्या के विरुद्ध, 1967

लोग भूल गये हैं, 1982

मेरा प्रतिनिधि

हँसो हँसो जल्दी हँसो (आपातकाल सें संबंधित कविताओं का संग्रह)

कुछ पते कुछ चिट्ठियाँ, 1989

एक समय था

कहानी संग्रह

रास्ता इधर से है

जो आदमी हम बना रहे है

नाटक

बरनन वन (शेक्सपियर द्वारा रचित’मैकबेथ’ नाटक का अनुवाद)

निबंध संग्रह

दिल्ली मेरा परदेस

लिखने का कारण

ऊबे हुए सुखी

वे और नहीं होंगे जो मारे जाएँगे

भँवर लहरें और तरंग

पत्र-पत्रिकाओं में लेखन और संपादन

रघुवीर सहाय ‘नवभारत टाइम्स’, दिल्ली में विशेष संवाददाता रहे। ‘दिनमान’ पत्रिका के 1969 से 1982 तक प्रधान संपादक रहे।

उन्होंने 1982 से 1990 तक स्वतंत्र लेखन किया।

पुरस्कार एवं सम्मान : रघुवीर सहाय जीवन परिचय

साहित्य अकादमी पुरस्कार,1984 (लोग भूल गए हैं)

प्रसिद्ध पंक्तियां : रघुवीर सहाय जीवन परिचय

“तोड़ो तोड़ो तोड़ो
ये पत्‍थर ये चट्टानें
ये झूठे बंधन टूटें
तो धरती का हम जानें
सुनते हैं मिट्टी में रस है जिससे उगती दूब है
अपने मन के मैदानों पर व्‍यापी कैसी ऊब है
आधे आधे गाने”

“राष्ट्रगीत में भला कौन वह
भारत-भाग्य-विधाता है
फटा सुथन्ना पहने जिसका
गुन हरचरना गाता है.”

“पतझर के बिखरे पत्तों पर चल आया मधुमास,
बहुत दूर से आया साजन दौड़ा-दौड़ा
थकी हुई छोटी-छोटी साँसों की कम्पित
पास चली आती हैं ध्वनियाँ
आती उड़कर गन्ध बोझ से थकती हुई सुवास”

“निर्धन जनता का शोषण है
कह कर आप हँसे
लोकतंत्र का अंतिम क्षण है
कह कर आप हँसे
सबके सब हैं भ्रष्टाचारी
कह कर आप हँसे
चारों ओर बड़ी लाचारी
कह कर आप हँसे
कितने आप सुरक्षित होंगे
मैं सोचने लगा
सहसा मुझे अकेला पा कर
फिर से आप हँसे”

आदिकाल के साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार

विष्णु प्रभाकर Vishnu Prabhakar

विष्णु प्रभाकर Vishnu Prabhakar

विष्णु प्रभाकर Vishnu Prabhakar जीवन परिचय – साहित्यिक परिचय – रचनाएं – कहानियाँ – एकांकी – नाटक – बाल साहित्य – भाषा शैली – पुरस्कार एवं सम्मान

जीवन परिचय

अन्य नाम – विष्णु दयाल

जन्म -21 जून, 1912

जन्म भूमि- मीरापुर, ज़िला मुज़फ़्फ़रनगर, उत्तर प्रदेश

मृत्यु -11 अप्रैल, 2009

मृत्यु स्थान -नई दिल्ली (प्रभाकर जी ने अपनी वसीयत में मृत्यूपरांत अपने संपूर्ण अंगदान करने की इच्छा व्यक्त की थी। इसीलिए उनका अंतिम संस्कार नहीं किया गया, बल्कि उनकी पार्थिव देह को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान को सौंप दिया गया।)

अभिभावक -दुर्गा प्रसाद (पिता), महादेवी (माता)

पत्नी – सुशीला

काल: -आधुनिक काल

विधा: -गद्य

विषय:- कहानी, उपन्यास, नाटक

साहित्यिक परिचय

रचनाएं : विष्णु प्रभाकर Vishnu Prabhakar

कविता संग्रह

चलता चला जाऊँगा

कहानी संग्रह

‘संघर्ष के बाद’

‘धरती अब भी धूम रही है’

‘मेरा वतन’,

‘खिलौने’, 1981

‘एक और कुंती’,1985

‘जिन्दगी: एक रिहर्सल’ 1986

‘आदि और अन्त’,

‘एक आसमान के नीचे’,

‘अधूरी कहानी’,

‘कौन जीता कौन हारा’,

‘तपोवन की कहानियाँ’,

‘पाप का घड़ा’,

‘मोती किसके’

एक कहानी का जन्म

रहमान का बेटा

जिंदगी के थपेड़े

सफर के साथी

खंडित पूजा

साँचे और कला

पुल टूटने से पहले

आपकी कृपा

उपन्यास

(ऐतिहासिक/व्यक्तिवादी उपन्यासकार)

‘ढलती रात’,

‘स्वप्नमयी’,

‘अर्द्धनारीश्वर’, 1992 (इस उपन्यास पर 1993 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला)

‘होरी’,

‘कोई तो’,

‘निशिकान्त’, 1955

‘तट के बंधन’,

‘स्वराज्य की कहानी’

‘संकल्प-1993

तट के बंधन

दर्पण का व्यक्ति

परछाई

कोई तो

आत्मकथा

‘क्षमादान’ और ‘पंखहीन’ नाम से उनकी आत्मकथा 3 भागों में राजकमल प्रकाशन से 2004 में प्रकाशित हो चुकी है।

‘पंछी उड़ गया’, 2004

‘मुक्त गगन में’ 2004

नाटक : विष्णु प्रभाकर Vishnu Prabhakar

‘समाधि’,

‘सत्ता के आर-पार’, 1981

‘नवप्रभात’,

‘डॉक्टर’,

‘लिपस्टिक की मुस्कान’,

अब और नही,

टूट्ते परिवेश,

गान्धार की भिक्षुणी और

‘रक्तचंदन’,

‘युगे युगे क्रान्ति’,

‘बंदिनी’

‘श्वेत कमल’
– ‘डॉक्टर’ एक मनोवैज्ञानिक सामाजिक नाटक है,जिसमें डॉ. अनीला के संदर्भ में भावना और नैतिक कर्तव्य का संघर्ष दिखाया गया है |
-‘बंदिनी’ प्रभात कुमार मुखोपाध्याय द्वारा रचित कहानी ‘देवी’ का नाट्य रूपान्तरण है|

एकांकी

प्रकाश और परछाई,

इंसान,

बारह एंकाकी,

क्या वह दोषी था,

दस बजे रात,

ये रेखाएँ ये दायरे,

ऊँचा पर्वत गहरा सागर

जीवनी : विष्णु प्रभाकर Vishnu Prabhakar

आवारा मसीहा (नाथूराम शर्मा प्रेम के कहने से शरच्चंद्र पर आवारा मसीहा नामक जीवनी लिखी। इसे लिखने में 14 वर्ष का समय लगा। यह जीवनी 1974 में प्रकाशित हुई। इसके 3 भाग है-

दिशांत

दिशा की खोज

दिशा हारा

अमर शहीद भगत सिंह

सरदार वल्लभभाई पटेल

काका कालेलकर संस्मरण : जाने-अनजाने

कुछ शब्द : कुछ रेखाएँ

यादों की तीर्थयात्रा

मेरे अग्रज : मेरे मीत

समांतर रेखाएँ

मेरे हमसफर

राह चलते-चलते

निबंध

जन-समाज और संस्कृति : एक समग्र दृष्टि

क्या खोया क्या पाया

बाल साहित्य : विष्णु प्रभाकर Vishnu Prabhakar

मोटेलाल

कुंती के बेटे

रामू की होली

दादा की कचहरी

जब दीदी भूत बनी

जीवन पराग

बंकिमचंद्र

अभिनव एकांकी

स्वराज की कहानी

हड़ताल

जादू की गाय

घमंड का फल

नूतन बाल एकांकी

हीरे की पहचान

मोतियों की खेती

पाप का घड़ा

गुड़िया खो गई

ऐसे-ऐसे

तपोवन की कहानियाँ

खोया हुआ रतन

बापू की बातें

हजरत उमर

बद्रीनाथ

कस्तूरबा गांधी

ऐसे थे सरदार

हमारे पड़ोसी

मन के जीते जीत

कुम्हार की बेटी

शंकराचार्य

यमुना की कहानी

रवींद्रनाथ ठाकुर

मैं अछूत हूँ

एक देश एक हृदय

मानव अधिकार

नागरिकता की ओर

यात्रा वृतान्त

ज्योतिपुन्ज हिमालय

जमुना गंगा के नैहर में

पुरस्कार एवं सम्मान : विष्णु प्रभाकर Vishnu Prabhakar

मूर्तिदेवी पुरस्कार

साहित्य अकादमी पुरस्कार

सोवियत लैंड नेहरु पुरस्कार

महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार

पद्म भूषण

आदिकाल के साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय, जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, रचनाएं, कविताएं, कहानियाँ, काव्य विशेषताएं, भाषा शैली, पुरस्कार एवं सम्मान

जीवन परिचय

जन्म- 7 मार्च 1911 कुशीनगर, देवरिया, उत्तर प्रदेश, भारत

मृत्यु- 4 अप्रैल 1987 दिल्ली, भारत

उपनाम- अज्ञेय

बचपन का नाम- सच्चा

ललित निबंधकार नाम- कुट्टिचातन

रचनाकार नाम- अज्ञेय (जैनेन्द्र-प्रेमचंद द्वारा दिया गया)

पिता- पंडित हीरानन्द शास्त्री

माता- कांति देवी

कार्यक्षेत्र- कवि, लेखक

भाषा- हिन्दी

काल- आधुनिक काल

विधा- कहानी, कविता, उपन्यास, निबंध

विषय- सामाजिक, यथार्थवादी

आन्दोलन- नई कविता, प्रयोगवाद

1930 से 1936 तक इनका जीवन विभिन्न जेलों में कटा।

1943 से 1946 ईसवी तक सेना में नौकरी की।

आपने क्रांतिकारियों के लिए बम बनाने का कार्य भी किया और बम बनाने के अपराध में जेल गए।

इसके बाद उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो में नौकरी की।

सन् 1971-72 में जोधपुर विश्वविद्यालय में ‘तुलनात्मक साहित्य’ के प्रोफेसर।

1976 में छह माह के लिए हइडेलबर्ग जर्मनी के विश्वविद्यालय में अतिथि प्रोफेसर।

इनका जीवन यायावरी एवं क्रांतिकारी रहा जिसके कारण वह किसी एक व्यवस्था में बंद कर नहीं रह सके।

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय | Sachchidanand Heeranand Vatsyayan Ageya | जीवन परिचय | साहित्यिक परिचय, रचनाएं, कविताएं, कहानियाँ, काव्य विशेषताएं, भाषा शैली, पुरस्कार एवं सम्मान
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

साहित्यिक परिचय

कलिष्ट शब्दों का प्रयोग करने के कारण आचार्य शुक्ल ने इन्हें  ‘कठिन गद्य का प्रेत’ कहा है। 

इनको व्यष्टि चेतना का कवि भी कहा जाता है।

‘हरी घास पर क्षणभर’ इनकी प्रौढ़ रचना मानी जाती है इसमें बुलबुल श्यामा, फुदकी, दंहगल, कौआ जैसे विषयों को लेकर कवि ने अपनी अनुभूति का परिचय दिया है।

इंद्रधनुष रौंदे हुएचना में नए कवियों की भावनाओं को अभिव्यक्त किया गया है।

उनका लगभग समग्र काव्य सदानीरा (दो खंड) नाम से संकलित हुआ है।

इन्होंने गधे जैसे जानवर को भी काव्य का विषय बनाया।

इनके काव्य की मूल प्रवृतियां आत्म-स्थापन या अपने आपको को थोपने की रही है अर्थात इन्होंने स्वयं का गुणगान करके दूसरों को तुच्छ सिद्ध करने का प्रयास किया है।

इनकी कविताओं में प्रकृति, नारी, कामवासना आदि विभिन्न विषयों का निरूपण हुआ है किंतु वहां भी यह अपनी ‘अहं और दंभ ‘को छोड़ नहीं पाए हैं।

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय : रचनाएं

कविता संग्रह

भग्नदूत 1933,

चिन्ता 1942,

इत्यलम्1946,

हरी घास पर क्षण भर 1949,

बावरा अहेरी 1954,

इंद्रधनुष रौंदे हुए 1957,

अरी ओ करुणा प्रभामय 1959,

आँगन के पार द्वार 1961,

कितनी नावों में कितनी बार (1967),

क्योंकि मैं उसे जानता हूँ (1970),

सागर मुद्रा (1970),

पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ (1974),

महावृक्ष के नीचे (1977),

नदी की बाँक पर छाया (1981),

प्रिज़न डेज़ एण्ड अदर पोयम्स (अंग्रेजी में,1946)

रूपाम्बरा,

सावन मेघ,

अन्तर्गुहावासी (कविता),

ऐसा कोई घर आपने देखा है- 1986

असाध्य वीणा कविता चीनी (जापानी) लोक कथा पर आधारित है, जो ‘ओकाकुरा’ की पुस्तक ‘दी बुक ऑफ़ टी’ में ‘टेमिंग ऑफ द हार्प’ शीर्षक से संग्रहित है। यह एक लम्बी रहस्यवादी कविता है जिस पर जापान में प्रचलित बौद्धों की एक शाखा जेन संप्रदाय के ‘ध्यानवाद’ या ‘अशब्दवाद’ का प्रभाव परिलक्षित होता है। यह कविता अज्ञेय के काव्य संग्रह ’आँगन के पार द्वार’ (1961) में संकलित है। आँगन के पार द्वार कविता के तीन खण्ड है –
1. अंतः सलिला
2. चक्रान्त शिला
3. असाध्य वीणा

कहानियाँ

विपथगा 1937,

परम्परा 1944,

कोठरीकी बात 1945,

शरणार्थी 1948,

जयदोल 1951

उपन्यास

शेखर एक जीवनी- प्रथम भाग 1941, द्वितीय भाग 1944

नदी के द्वीप 1951

अपने – अपने अजनबी 1961

यात्रा वृतान्त

अरे यायावर रहेगा याद? 1943

एक बूँद सहसा उछली 1960

निबंध संग्रह

सबरंग,

त्रिशंकु, 1945

आत्मनेपद, 1960

आधुनिक साहित्य: एक आधुनिक परिदृश्य,

आलवाल,

भवन्ती 1971 (आलोचना)

अद्यतन 1971 (आलोचना)

संस्मरण

स्मृति लेखा

डायरियां

भवंती

अंतरा

शाश्वती

नाटक

उत्तरप्रियदर्शी

संपादित ग्रंथ

आधुनिक हिन्दी साहित्य (निबन्ध संग्रह) 1942

तार सप्तक (कविता संग्रह) 1943

दूसरा सप्तक (कविता संग्रह)1951

नये एकांकी 1952

तीसरा सप्तक (कविता संग्रह), सम्पूर्ण 1959

रूपांबरा 1960

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय : पत्र पत्रिकाओं का संपादन

विशाल भारत (कोलकता से)

सैनिक (आगरा से)

दिनमान (दिल्ली)

प्रतीक (पत्रिका) (इलाहाबाद)

नवभारत टाईम्स

1973-74 में जयप्रकाश नारायण के अनुरोध पर ‘एवरी मेंस वीकली’ का संपादन।

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय द्वारा कहे गए प्रमुख कथन

‘‘प्रयोगवादी कवि किसी एक स्कूल के कवि नहीं हैं, सभी राही हैं, राही नहीं, राह के अन्वेषी हैं।’’ -तार सप्तक की भूमिका में

‘‘प्रयोगवाद का कोई वाद नहीं है, हम वादी नहीं रहे, नहीं हैं। न प्रयोग अपने आप में इष्ट या साध्य है। इस प्रकार कविता का कोई वाद नहीं।’’ -दूसरा सप्तक की भूमिका में

‘‘प्रयोग दोहरा साधन है।’’

‘‘प्रयोगशील कवि मोती खोजने वाले गोताखोर हैं।’’

‘‘हमें प्रयोगवादी कहना उतना ही गलत है, जितना कहना कवितावादी।’’

‘‘काव्य के प्रति एक अन्वेषी का दृष्टिकोण ही उन्हें (तार सप्तक के कवियों को) समानता के सूत्र में बांधता है।’’

‘‘प्रयोगशील कविता में नये सत्यों, कई यथार्थताओं का जीवित बोध भी है, उन सत्यों के साथ नये रागात्मक संबंध भी और उनको पाठक या सहृदय तक पहुँचाने यानी साधारणीकरण की शक्ति है।’’

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय : पुरस्कार एवं सम्मान

आंगन के पार द्वार रचना के लिए इनको 1964 ई. में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ।

‘कितनी नावों में कितनी बार’ रचना के लिए इनको 1978 ईस्वी में भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ।

1979 में ज्ञानपीठ पुरस्कार राशि के साथ अपनी राशि जोड़कर ‘वत्सल निधि’ की स्थापना।

1983 में यूगोस्लाविया के कविता-सम्मान गोल्डन रीथ से सम्मानित।

1987 में ‘भारत-भारती’ सम्मान की घोषणा।

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय संबंधी विशेष तथ्य

प्रयोगवाद के प्रवर्तन का श्रेय अज्ञेय को है।

अज्ञेय अस्तित्ववाद में आस्था रखने वाले कवि हैं।

अज्ञेय को प्रयोगवाद तथा नयी कविता का शलाका पुरुष भी कहा जाता है।

असाध्य वीणा एक लंबी कविता है। इसका मूल भाव अहं का विसर्जन है।

असाध्य वीणा चीनी लोक कथा ‘टेमिंग आफ द हाॅर्प’ की भारतीय परिवेश में प्रस्तुति है।

‘एक चीड़ का खाका’ जापानी छंद हायकू में लिखा हुआ है।

‘बावरा अहेरी’ की प्रारंभिक पंक्तियों पर फारसी के प्रसिद्ध कवि उमर खैय्याम की रूबाइयों का प्रभाव माना जाता है।

‘बावरा अहेरी’ इनके जीवन दर्शन को प्रतिबिंबित करने वाली रचना है।

‘असाध्य वीणा’ कविता में मौन भी है अद्वैत भी है यह इनकी प्रतिनिधि कविता मानी जाती है यह कविता जैन बुद्धिज्म पर आधारित मानी जाती है।

प्रयोगवाद का सबसे ज्यादा विरोध करने वाले अज्ञेय ही थे।
डाॅ. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इनको ‘‘बीसवीं सदी का बाणभट्ट’’ कहा है।

जैनेंद्र के उपन्यास ‘त्यागपत्र’ का ‘दि रिजिग्नेशन’ नाम से अंग्रेजी अनुवाद किया।

आदिकाल के साहित्यकार

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