सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जीवनी
सर्वपल्ली राधाकृष्णन Sarvepalli Radhakrishnan | 5 सितंबर | 5 September | राष्ट्रीय शिक्षक दिवस | National Teacher’s Day
बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा।
सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥
अमिअ मूरिमय चूरन चारू।
समन सकल भव रुज परिवारू॥
भावार्थ-
मैं गुरु महाराज के चरण कमलों की रज की वन्दना करता हूँ, जो सुरुचि, सुगंध तथा अनुराग रूपी रस से पूर्ण है। वह अमर मूल (संजीवनी जड़ी) का सुंदर चूर्ण है, जो सम्पूर्ण भव रोगों के परिवार को नाश करने वाला है॥
तमिलनाडु के सर्वपल्ली गांव का एक ब्राह्मण परिवार वर्षों पहले आजीविका की तलाश में मद्रास वर्तमान चेन्नई से लगभग 60 किलोमीटर दूर धार्मिक स्थल तिरुत्तनी में आ बसा।
इस ब्राह्मण परिवार में 5 सितंबर 1888 में पिता सर्वपल्ली वीरा स्वामी तथा माता सीतम्मा के यहां एक तेजस्वी पुत्र जन्म लिया।
वीरस्वामी के पूर्वज सर्वपल्ली ग्राम से तिरुत्तनी में आए थे लेकिन वह अपने पूर्व ग्राम का नाम अपने से अलग नहीं कर पाए इसलिए वे सभी अपने नाम से पूर्व अपने पूर्व ग्राम का नाम भी जोड़ते थे इसलिए इस तेजस्वी बालक का नाम रखा गया सर्वपल्ली राधाकृष्णन।
राधा कृष्ण के भाई बहनों में दूसरे स्थान पर थे। राधाकृष्णन के पिता अधिक धनवान नहीं थे।
उनके जीवनचर्या सुखपूर्वक चल रही थी। वह विद्यानुरागी, ईश्वर भक्त और धर्म आचरण करने वाले उदार ब्राह्मण थे। जिसका अत्यधिक प्रभाव राधाकृष्णन पर भी पड़ा।
प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा दीक्षा : सर्वपल्ली राधाकृष्णन Sarvepalli Radhakrishnan
राधाकृष्णन का प्रारंभिक जीवन तिरूत्तनी और तिरुपति जैसे धार्मिक स्थलों पर बीता। गांव तथा परिवार के धार्मिक विचारों ने बालक राधाकृष्णन को पर्याप्त प्रभावित किया।
इनके पिता धार्मिक प्रवृत्ति के ब्राह्मण थे, फिर भी इन्होंने राधाकृष्णन को 1896 में लूथर्न मिशन स्कूल तिरुपति में प्रवेश दिलाया जो कि क्रिश्चियन मिशनरी स्कूल था।
सन् 1900 में आप पढ़ने के लिए वेल्लूर चले गये और इसके बाद क्रिश्चियन कॉलेज मद्रास में शिक्षा प्राप्त की।
राधाकृष्णन ने 1902 में मैट्रिक तथा 1904 में कला संकाय प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण कर उच्च अध्ययन के लिए छात्रवृत्ति प्राप्त की।
1911 में राधाकृष्णन ने दर्शन शास्त्र में एम. ए. की उपाधि भी प्राप्त कर ली।
वैवाहिक जीवन : सर्वपल्ली राधाकृष्णन जीवनी 5सितंबर राष्ट्रीय शिक्षक दिवस
तात्कालिक परिस्थितियों और परंपराओं के अनुसार ही राधाकृष्णन् का विवाह अल्पायु में ही 1903 में शिवाकामू से हो गया।
राधाकृष्णन्-शिवाकामू दंपत्ति को अपने वैवाहिक जीवन में पांच पुत्रियां और एक पुत्र की प्राप्ति हुई।
शैक्षिक जीवन
डॉ राधाकृष्णन् ने अपने शिक्षक जीवन की शुरुआत 20 वर्ष की अवस्था में 1960 में की।
आप सर्वप्रथम प्रेसिडेंसी कॉलेज मद्रास में दर्शनशास्त्र के सहायक अध्यापक के रूप में नियुक्त हुए।
1917 तक यहां सेवाएं देते हुए आपकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गयी।
तत्कालिक मैसूर राज्य के दीवान और प्रसिद्ध इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के आमंत्रण पर आप 1918 में मैसूर चले गये।
श्री विश्वेश्वरैया ने इन्हें महाराजा कॉलेज मैसूर में दर्शनशास्त्र का प्रोफेसर नियुक्त किया।
डॉक्टर राधाकृष्णन् 1921 तक मैसूर में रहे। जहां इनका काम अत्यंत सराहनीय रहा।
सर्वपल्ली राधाकृष्णन और कोलकाता विश्वविद्यालय
सुविख्यात शिक्षा शास्त्री सर आशुतोष मुखर्जी ने कलकत्ता विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर विभाग की स्थापना की।
इस विभाग की एक पीठ जॉर्ज पंचम प्रोफेसर ऑफ फिलॉसफी में श्री मुखर्जी ने डॉक्टर राधाकृष्णन को नियुक्त किया।
सन 1921 से 1931 तक आप कोलकाता विश्वविद्यालय में रहे।
सर्वपल्ली राधाकृष्णन और आंध्र विश्वविद्यालय
सन 1931 में राधाकृष्णन कलकत्ता विश्वविद्यालय से आंध्र विश्वविद्यालय में कुलपति नियुक्त हुए 1932 से 1941 तक डॉ राधाकृष्णन आंध्र विश्वविद्यालय तथा ऑक्सफोर्ड में स्पालडिंग चेयर ऑफ ईस्टर्न एंड एथिक्स के प्रोफेसर रहे।
यह उनकी विद्वत्ता के कारण ही संभव हो सका कि एक व्यक्ति एक साथ दो जगह पर नियुक्त हो।
डॉ राधाकृष्णन और काशी हिंदू विश्वविद्यालय
सन 1939 में सर्वपल्ली डॉ राधाकृष्णन् काशी हिंदू विश्वविद्यालय में स्वैच्छा से अवैतनिक सेवा देने लगे।
अब वे कलकत्ता विश्वविद्यालय, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय एवं काशी विश्वविद्यालय तीनों में अपनी सेवाएं दे रहे थे।
किसी भी विद्वान के लिए बहुत ही दुर्लभ क्षण होता है कि वह एक साथ ही तीन तीन विश्व प्रसिद्ध शिक्षण संस्थानों में अपनी सेवाएं दे रहा हो। यह क्रम 1948 तक सतत् चलता रहा।
सर्वपल्ली डॉक्टर राधाकृष्णन और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय
ऑक्सफोर्ड में रहते हुए राधाकृष्णन ने अनेक व्याख्यान दिए। आपके द्वारा दिए गए व्याख्यानमाला के संबंध में हिवर्ट जनरल ने लिखा “भारत के बाहर हमारे विश्वविद्यालय में व्याख्यान देखकर आपने हमारा गौरव बढ़ाया है।”
राजनीतिक जीवन
सर्वपल्ली राधाकृष्णन की कार्यकुशलता, अनुभव, बुद्धिमत्ता और प्रतिभा थी कि राजनीति से प्रत्यक्ष संबंध में होने के बाद भी स्वतन्त्रता के बाद इन्हें संविधान निर्मात्री सभा का सदस्य बनाया गया। वे 1947 से 1949 तक इसके सदस्य रहे।
राधा कृष्ण आयोग 1948
स्वतंत्रता के पश्चात भारत सरकार ने विश्वविद्यालय शिक्षा की समीक्षा के लिए सर्वपल्ली डॉक्टर राधाकृष्णन् की अध्यक्षता में राधाकृष्णन् आयोग अथवा विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग का गठन किया।
आयोग ने अपनी रिपोर्ट अगस्त 1949 में दी। यूजीसी की स्थापना राधाकृष्णन् आयोग की ही देन है।
रूस में भारत के राजदूत
1950 में राधाकृष्णन् की विद्वता और योग्यता को देखकर भारत सरकार ने उन्हें रूस में भारत का राजदूत नियुक्त किया वह समय शीतयुद्ध का समय था और उसका दृष्टिकोण भारत के प्रति सकारात्मक नहीं था परंतु डॉ. राधाकृष्णन के कुशल नेतृत्व ने रूसी नेताओं को ऐसा मोहित किया कि सुषुप्त पड़े मैत्री संबंध प्रगाढ़ मैत्री में बदल गये।
के सी व्हियर ने डॉ राधाकृष्णन् के बारे में लिखा कि “मास्को में राधाकृष्णन् के राजदूत नियुक्त होने का विशेष अर्थ था। वहां वे पूर्णतया सफल राजदूत के रूप में विश्व के समक्ष आए।”
उप राष्ट्रपति सर्वपल्ली डॉ राधाकृष्णन् : सर्वपल्ली राधाकृष्णन Sarvepalli Radhakrishnan
सन 1952 में सर्वपल्ली डॉ राधाकृष्णन् स्वतंत्र भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति निर्वाचित हुए।
आप दो बार इस पद के लिए निर्वाचित हुए और 1962 तक इस पद को सुशोभित किया।
उपराष्ट्रपति पद के साथ-साथ आप दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे।
उपराष्ट्रपति के रूप में आपकी कार्यशैली की बहुत सराहना की गयी।
राष्ट्रपति: डॉ. राधाकृष्णन्
भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद का चयन इस सर्वोच्च पद के लिए दो बार हुआ।
डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद 1962 तक भारत के राष्ट्रपति रहे।
इसी समयावधि में सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन् उपराष्ट्रपति रहे डॉ. राजेंद्र प्रसाद के बाद राधाकृष्णन् राष्ट्रपति निर्वाचित हुए।
12 मई 1962 को आपने विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली।
इस अवसर पर बर्टेण्ड रसेल ने कहा- “फिलोसोफी सम्मानित हुई समस्त विश्व के शांतिप्रिय विवेकशील समाज ने इस चुनाव का अभिनंदन किया है।”
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व्याख्यान
डॉ राधाकृष्णन द्वारा दिए गए प्रमुख व्याख्यान
1926 में डॉ राधाकृष्णन ने आक्सफोर्ड के मैनचेस्टर कालेज में “दी हिन्दू न्यू आफ लाइफ” पर व्याख्यान दिया जिसमें उन्होंने हिन्दू धर्म को एक प्रगतिशील ऐतिहासिक प्रवाह के रूप में प्रतिस्थापित किया। उनके अनुसार हिन्दू धर्म आज भी गतिशील है, जिसमें दोष परम्परा और सत्य के अन्तर को भुला देने के कारण है।
डॉ राधाकृष्णन ने ब्रिटिश साम्राज्य के विश्वविद्यालयों के सम्मेलन में भाग लेते हुए अपनी प्रतिभा से पाश्चात्य जनमानस को आश्चर्यचकित किया।
1929 में डॉ राधाकृष्णन ने एन “आइडियालिस्ट न्यू आफ लाइफ” शीर्षक से व्याख्यान लन्दन तथा मैनचेस्टर विश्वविद्यालय में दिया। इस व्याख्यान मे उन्होंने सत्य के विषय में हिन्दू धर्म की अवधारणा प्रस्तुत कि जिसका पाश्चात्य जगत के अनेक विद्वानों ने समर्थन किया।
आक्सफोर्ड में उनके अनेक भाषण ईस्ट एण्ड वेस्ट इन रिलीजन’ के नाम से प्रकाशित हुए।
लन्दन की प्रतिष्ठित ब्रिटिश ऐकेडमी ने उन्हें गौतम बुद्ध पर भी भाषण देने हेतु आमंत्रित किया तथा उन्हें अपनी संस्था का सदस्य भी बनाया।
डॉ राधाकृष्णन ने कोलंबिया विश्वविद्यालय की शताब्दी समारोह के अवसर पर भारतीय संस्कृति के महत्व को स्पष्ट करते हुए अपने व्याख्यान दिया।
साहित्य सृजना : सर्वपल्ली राधाकृष्णन Sarvepalli Radhakrishnan
प्रमुख रचनाएं तथा उनके प्रकाशन वर्ष
दी इसेन्सयल्स ऑफ फिलासफी 1911
The फिलासफी ऑफ रविन्द्र नाथ टैगोर 1918
दी रेन ऑफ रिलीजन इन कन्टेम्पररी फिलॉसफी 1920
इण्डियन फिलासफी (वाल्यूम वन) 1923
दी हिन्दू व्यू ऑफ लाइफ 1926
इण्डियन फिलॉसफी (वाल्यूम टू) 1927
द रिलीजन वी नीड 1928
काल्की या दी फ्यूचर ऑफ सिविलाइजेशन 1929
एन आडियालिस्ट व्यू ऑफ लाइफ ईस्ट एण्ड वेस्ट इन रिलीजन 1932
दी हार्ट ऑफ हिन्दुस्तान 1933
फ्रीडम एण्ड कल्चर 1936
कन्टेम्पररी इंडियन फिलॉसफी 1936
रिलीजन इन ट्राजिशन 1936
‘गौतम बुद्ध 1937
‘महात्मा गांधी 1938
इण्डिया एण्ड चाइना 1939
‘एजुकेशन, पॉलिटिक्स एण्ड वॉर’ 1944
‘इज दिस पीस 1944
‘रिलीजन एण्ड सोसायटी’ 1945
‘भगवद्गीता 1947
‘ग्रेट इण्डियन्स’ 1948
‘दी यूनिवर्सिटी एजुकेशन कमीशन रिपोर्ट 1949
द धर्मपद 1949
‘एन एन्थोलोजी ऑफ राधाकृष्णन राइटिंग 1950
‘दी रिलीजन ऑफ दी स्प्रिट एण्ड वर्ल्डस नीड, 1952
‘फ्रेगमेण्टस ऑफ कन्वेंशन 1952
हिस्ट्री ऑफ फिलासफी इन ईस्ट एण्ड वेस्ट (दो वाल्यूम) 1952
दि प्रिंसिपल उपनिषद्स 1953
ईस्ट एण्ड वेस्ट, ‘सम रिफलेक्शन्स’ 1955
रिकवरी ऑफ फेथ 1956
ए सोर्स बुक इन इंडियन फिलॉस्फी (राधाकृष्णन तथा चार्ल्स मूर द्वारा सम्पादित) 1957
दी ब्रह्मसूत्र दी फिलासफी आफ स्प्रिचुअल लाइफ 1960
दी कॉन्सेप्ट आफ मेन 1960
फेलोशिप आफ फेशस 1961
आन नेहरू 1965
रिलीजन इन ए चेजिंग वर्ल्ड 1967
रिलीजन एण्ड कल्चर 1969
आवर हेरीटेज 1970
लिविंग विद ए परपज 1976
टू नालेज 1978
उपर्युक्त पुस्तकों के अतिरिक्त “राधाकृष्णन रीडर एन एनथालाजी” नामक ग्रन्थ का प्रकाशन भारतीय विद्या भवन द्वारा 1969 में किया गया है।
इसके अतिरिक्त उनके भाषणों तथा लेखों का प्रकाशन भारत सरकार द्वारा किया गया।
पुरस्कार सम्मान एवं उपलब्धियां : सर्वपल्ली राधाकृष्णन Sarvepalli Radhakrishnan
सर्वपल्ली डॉक्टर राधाकृष्णन एक महान शिक्षाविद थे देश-विदेश के अनेक विश्वविद्यालयों में उन्होंने शिक्षक के रूप में कार्य किया।
1908 से 1917 तक मद्रास प्रेसिडेंसी कॉलेज में सहायक प्राध्यापक रहे।
1918 से 1921 तक महाराजा कॉलेज मैसूर में दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर रहे।
1921 से 1948 कोलकाता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे।
सन् 1931 से 36 तक आन्ध्र विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर रहे।
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में 1936 से 1952 तक प्राध्यापक रहे।
कलकत्ता के अन्तर्गत आने वाले जॉर्ज पंचम कॉलेज के प्रोफेसर के रूप में 1937 से 1941 तक कार्य किया।
सन् 1939 से 48 तक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के चांसलर रहे।
1953 से 1962 तक दिल्ली विश्वविद्यालय के चांसलर रहे।
1946 में युनेस्को में भारतीय प्रतिनिधि के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
एक शिक्षक के रूप में इनके अतुलनीय योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उनके जन्मदिन 5 सितंबर को राष्ट्रीय शिक्षक दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया।
भारत रत्न
एक महान दार्शनिक और महान शिक्षक के रूप में इनकी उपलब्धियों और योगदान को देखते हुए 1954 में भारत सरकार ने इन्हें भारत के सबसे बड़े नागरिक सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया।
निधन
17 अप्रैल 1975 को लंबी बीमारी के बाद इस महान दार्शनिक और शिक्षक ने इस भौतिक संसार से सदा सदा के लिए विदा ले ली।
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मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या – आधुनिक भारत के निर्माता
भारत रत्न डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
सुंदर पिचई का जीनव परिचय (Biography of Sundar Pichai)
Happy tr. Day
शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा।
सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥
अमिअ मूरिमय चूरन चारू।
समन सकल भव रुज परिवारू॥
भावार्थ-
मैं गुरु महाराज के चरण कमलों की रज की वन्दना करता हूँ, जो सुरुचि, सुगंध तथा अनुराग रूपी रस से पूर्ण है। वह अमर मूल (संजीवनी जड़ी) का सुंदर चूर्ण है, जो सम्पूर्ण भव रोगों के परिवार को नाश करने वाला है॥