हाइकु कविता (Haiku)

हाइकु कविता (Haiku)

हायकु काव्य छंद का इतिहास, अर्थ, हायकु विधा, हायकु कविता कोश, हायकु काव्य शैली, क्षेत्र, भारतीय और जापानी हायकु सहित अन्य पूरी जानकारी

कविता का कैनवास विश्वव्यापी है।

ब्रह्मांड की प्रत्येक वस्तु कविता का क्षेत्र है।

विश्व की अलग-अलग भाषाओं में कविता रचना की अलग-अलग शैलियां और छंद हैं,

परंतु बहुत कम शैलियां या छंद ऐसे हैं जो विश्वव्यापी हुए हैं।

किसी छंद के वैश्वीकरण के लिए उस छंद में विश्व की अन्य भाषाओं में ढलने की क्षमता और प्रभावोत्पादकता होनी चाहिए।

हाइकु जापानी भाषा का एक ऐसा ही छंद है, जिसका प्रसार विश्व की अनेक भाषाओं में हुआ है।

हाइकु के संबंध में कतिपय विद्वानों के मत इस प्रकार हैं-

हायकु काव्य छंद इतिहास
हायकु काव्य छंद इतिहास

(धर्मयुग, 16 अक्टूबर 1966) उद्धृत हाइकु दर्पण के अनुसार

“हाइकु का जन्म जापानी संस्कृति की परम्परा, जापानी जनमानस और सौन्दर्य चेतना में हुआ और वहीं पला है। हाइकु में अनेक विचार-धाराएँ मिलती हैं- जैसे बौद्ध-धर्म (आदि रूप, उसका चीनी और जापानी परिवर्तित रूप, विशेष रूप से जेन सम्प्रदाय) चीनी दर्शन और प्राच्य-संस्कृति। यह भी कहा जा सकता है कि एक “हाइकु” में इन सब विचार-धाराओं की झाँकी मिल जाती है या “हाइकु” इन सबका दर्पण है।”

प्रो० नामवर सिंह[ हाइकु पत्र, 1 फरवरी 1978, उद्धृत हाइकु दर्पण के अनुसार

“Haiku एक संस्कृति है, एक जीवन-पद्धति है।

तीन पंक्तियों के लघु गीत अपनी सरलता, सहजता, संक्षिप्तता के लिए जापानी-साहित्य में विशेष स्थान रखते हैं।

इसमें एक भाव-चित्र बिना किसी टिप्पणी के, बिना किसी अलंकार के प्रस्तुत किया जाता है, और यह भाव-चित्र अपने आप में पूर्ण होता है।”

हाइकु की पहचान

हाइकु मूलतः जापानी छन्द है।

जापानी हाइकु में वर्ण-संख्या और विषय दोनों के बंधन रहे हैं।

हाइकु की मोटी पहचान 5-7-5 के वर्णक्रम की तीन पक्तियों की सत्रह-वर्णी कविता के रूप में है और इसी रूप में वह विश्व की अन्य भाषाओं में भी स्वीकारा गया है।

महत्त्व वर्ण-गणना का इतना नहीं जितना आकार की लघुता का है। यही लघुता इसका गुण भी बनती है और यही इसकी सीमा भी।

जापानी में वर्ण स्वरान्त होते हैं, हृस्व “अ” होता नहीं।

5-7-5 के क्रम में एक विशिष्ट संगीतात्मकता या लय कविता में स्वयं आ जाती है।

तुक का आग्रह नहीं है।

अनुभूति के क्षण की वास्तविक अवधि एक निमिष, एक पल अथवा एक प्रश्वास भी हो सकती है, अतः अभिव्यक्ति की सीमा उतने ही शब्दों तक है जो उस क्षण को उतार पाने के लिए आवश्यक है।

यह भी कहा गया है कि एक साधारण नियमित साँस की लम्बाई उतनी ही होती है, जितनी में सत्रह वर्ण सहज ही बोले जा सकते हैं।

कविता की लम्बाई को एक साँस के साथ जोड़ने की बात के पीछे उस बौद्ध-चिन्तन का भी प्रभाव हो सकता है, जिसमें क्षणभंगुरता पर बल है। -प्रोफेसर सत्यभूषण वर्मा (“हाइकु”भारतीय हाइकु क्लब का लघु पत्र), अगस्त- 1978, सम्पादक- डा० सत्यभूषण वर्मा, से साभार) उद्धृत हाइकु दर्पण

भारत में हायकु

पिछले कुछ वर्षों में हाइकु ने हिंदी में भी अपनी जोरदार उपस्थिति दर्ज करवाई है।

पहले पहल हाइकु कविता अनुवाद के माध्यम से हिंदी पाठकों के सामने आयी।

रवींद्रनाथ टैगोर तथा सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय ने अपनी जापान यात्रा से लौटकर जापानी हाइकु कविता का अनुवाद किया।

कविवर रवींद्रनाथ टैगोर तथा अज्ञेय से प्रभावित होकर हिंदी के अनेक कवियों ने जापानी हाइकु कविता पर अपने हाथ आजमाएं।

हाइकु कविता को भारत में लाने का श्रेय महाकवि रवींद्रनाथ टैगोर को जाता है।

“भारतीय भाषाओं में रवींद्र नाथ ठाकुर ने जापान यात्रा से लौटने के पश्चात 1919 ईस्वी में जापान यात्री में हाइकु की चर्चा करते हुए बांग्ला में दो कविताओं के अनुवाद प्रस्तुत किए यह कविताएं थी-

     पुरोनो पुकुर

     ब्यांगेर लाफ

     जलेर शब्द

तथा

     पचा डाल

     एकटा को

     शरत्काल

दोनों अनुवाद शब्दिक हैं और बाशो की प्रसिद्ध कविताओं के हैं।”(प्रो. सत्यभूषण वर्मा, जापानी कविताएँ, पृष्ठ-29)

हाइकु कविता का इतिहास

हाइकु कविता का इतिहास अत्यंत पुराना है।

यदि जापानी साहित्येतिहास के अध्ययनमें हम पाते हैं कि हाइकु कविता की रचना सैकड़ों वर्ष पूर्व जापान में हो रही थी।

इसके प्रारंभिक कवि यामजाकी सोकान (1465-1553) और आराकीदा मोरिताके (1472-1549) थे 17 वीं शताब्दी में मृतप्राय हो चुकी हाइकु कविता को मात्सूनागा तोईतोकु (1570-1653) ने नवजीवन प्रदान किया।

उन्होंने हाइकु कि तोईतोकु धारा का प्रवर्तन किया।

बाशो और उनका युग

जापानी हाइकु की प्रतिष्ठा को चरमोत्कर्ष पर पहुंचाने और उसका सर्वांगीण विकास करने का श्रेय प्रसिद्ध कवि मात्सुओ बाशो (1644-1694) को जाता है।

लगभग चालीस वर्ष के छोटे से जीवन काल में ही उन्होंने जापानी साहित्य की इतनी सेवा कर दी कि 17वीं शताब्दी के मध्य से 18 वीं शताब्दी के मध्य के जापानी साहित्येतिहास के कालखंड को बाशो युग कहा जाता है।

बाशो ने हाइकु कविता के लिए अपने विचार व्यक्त करते हुए लिखा है कि “जिसने जीवन में तीन से पांच हाइकु रच डालें वह हाइकु कवि है जिसने दस हाइकु की रचना कर डाली वह महाकवि है।” (प्रो. सत्यभूषण वर्मा, जापानी कविताएँ, पृष्ठ-22)

जापानी काव्यशास्त्र के अनुसार बाशो के काव्य मैं मुख्यतः तीन प्रवृत्तियां मिलती है-

अकेलेपन की स्थिति अर्थात वाबि।

अकेलेपन की स्थिति से उत्पन्न संवेदना परक अनुभूति अर्थात साबि।

सहज अभिव्यक्ति अर्थात करीमि।

1686 ईस्वी में बाशो ने अपने सबसे प्रसिद्ध हाइकु की रचना की-

ताल पुराना

कूदा दादुर

पानी का स्वर

(अनुवाद प्रो. सत्यभूषण वर्मा, जापानी हाइकु और आधुनिक हाइकु कविता पृष्ठ-15)

बुसोन और बुसोन का युग

इस युग के श्रेष्ठ हाइकुकार बुसोन हुए हैं, जो कि प्रख्यात चित्रकार भी थे।

डॉ सत्यभूषण वर्मा ने बाशो और बुसोन को जापानी काव्य गगन के सूर्य और चंद्रमा कहा है

इस्सा

बुसोन के बाद जापानी हाइकु साहित्य में प्रमुख का नाम कोबायाशी इस्सा का आता है। इनकी कविताएं जीवन के अधिक निकट है।

शिकि

शिकि पर बुसोन का अधिक प्रभाव था।

इसने बाशो की आलोचना की तथा मित्रों के सहयोग से ‘हाइकाइ’ नामक हाइकु पत्रिका निकाली।

शिकि ने  नयी कविता और उपन्यासों की भी रचना की।

इनकी एक अन्य हाइकु पत्रिका होतोतोगिसु ने जापानी हाइकु कविता को नया आधार और नयी दिशा दी।

इसके बाद बदलते परिवेश और विचारधाराओं के साथ-साथ हाइकु में भी परिवर्तन आए।

नित नए प्रयोग इस कविता में होने लगे।

डॉ. सत्य भूषण वर्मा के अनुसार 1957 ईस्वी में जापान में लगभग 50 मासिक हाइकु पत्रिका में प्रकाशित हो रही थी।……… प्रत्येक पत्रिका के हर अंक में कम से कम 1500 हाइकु रचनाएं थी।(प्रो. सत्यभूषण वर्मा, जापानी हाइकु और आधुनिक हाइकु कविता पृष्ठ-28)

डॉ. शैल रस्तोगी के कथनानुसार

“….छठे दशक के आसपास चुपचाप प्रविष्ट होने वाली इस जापानी काव्य-विधा ने हिंदी कविता में अपना प्रमुख स्थान बना लिया है और कविता के क्षेत्र में एक युगांतर प्रस्तुत किया। अकविता, विचार कविता, बीट कविता, ताजी कविता, ठोस कविता आदि अनेक काव्यांदोलनों के बीच पल्लवित और पुष्पित होती इस काव्य-शैली ने हिंदी कवियों को बड़ी शिद्दत से विमोहित किया; जिससे साहित्य में हाइकु-लेखन को एक सुदृढ़ परंपरा पड़ी और हिंदी कविता जापान से आने वाले रचना प्रभाव से खिल उठी।”

हाइकु कविता के विकास में अमूल्य योगदान

1956 से 1959 ईस्वी के कालखंड में अज्ञेय द्वारा रचित एवं अनूदित व कविताओं के संग्रह ‘अरी ओ करुणा प्रभामय’ से हिंदी में हाइकु कविता का श्रीगणेश माना जाता है।

अज्ञेय के इस संग्रह में 27 अनूदित और कुछ मौलिक हाइकु संकलित है।

डॉ. प्रभा शर्मा के अनुसार “सन् 1967 ईस्वी में प्रकाशित श्रीकांत वर्मा के कविता संग्रह  ‘माया दर्पण’ में शब्द संयम और मिताक्षरता, बिम्बात्मकता और चित्रात्मकता से युक्त कविताएं संग्रहित हैं, जो हाइकु की पूर्वपीठिका स्वीकार की जानी चाहिए।”

‘आधुनिक हिंदी कविता और विदेशी काव्य रूप’ में डॉ एस नारायण ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक लिखा है कि “डॉ प्रभाकर माचवे ने भी जापान में अपने प्रवास काल में लगभग 250  हाइकुओं के अनुवाद किये।”

डॉ सत्यभूषण वर्मा का मत है कि “हाइकु को एक आंदोलन के रूप में उठाने का प्रयत्न रीवा के आदित्य प्रताप सिंह ने किया।उन्होंने हाइकु और सेनर्यु (व्यंग्य प्रधान हाइकु) के नाम से ढेरों कविताएं लिखी और लिखवायी है।”

इसके साथ-साथ अनेक पत्र-पत्रिकाओं ने भी हाइकु कविता के विकास में अपना अमूल्य योगदान दिया है।

हाइकु कविता का शिल्प सौंदर्य

प्रत्येक भाषा की अपनी रचना शैली होती है, जो दूसरी भाषाओं से पृथक होती है।

सभी भाषाएं ध्वनि विधान, शब्द विधान, स्वर-व्यंजन, उच्चारण, पद क्रम, काल, लिंग, वचन, कारक, क्रिया आदि सभी दृष्टियों में एक दूसरे से सर्वथा भिन्न-भिन्न और विशिष्ट होती हैं।

इन विशेषताओं के कारण ही सभी भाषाओं में काव्य शैलियों भी अलग-अलग होती है।

जापानी और हिंदी दोनों ही भाषाओं में हाइकु कविता का काव्य रूप मुक्तक ही रहा है

यह सर्वविदित है कि हाइकु कविता जापानी भाषा से हिंदी में आई है।

हिंदी में जिस प्रकार इसे एक छंद के रूप में अपनाया गया है, उसी प्रकार इसके शिल्प को भी अपना लिया गया है

हाइकु के शिल्प पर हिंदी में कई प्रश्न हैं, उन प्रश्नों के उत्तर जाने से पहले जापानी तथा हिंदी में हाइकु के शिल्प को समझ लेना आवश्यक है।

प्राचीन काल से ही जापानी मुक्तक काव्य में तीन शैलियां प्रचलित रही है-

ताँका (5 पंक्तियाँ तथा 5,7,5,7,7 वर्णक्रम)

सेदोका (6 पंक्तियाँ तथा 5,7,7,5,7,7 वर्णक्रम)

चोका (पंक्तियाँ अनिश्चित तथा 5,7,5,7 वर्णक्रम)

यह तीनों शैलियां 5-7 संख्या की ओंजि (लघ्वोच्चारणकाल घटक) पर आधारित है।

डॉ. सत्यभूषण वर्मा ने हाइकु भारती पत्रिका में ओंजि को लेकर अपना मत इस प्रकार दिया है- “जापानी लिपि मूलतः चीन की भावाक्षर लिपि से विकसित हुई है; जिसे हिन्दी में सामान्यतः चित्रलिपि कहा जाता है।

अंग्रेजी में इन भावाक्षरों को ‘इडियोग्राफ’ कहा गया है | भावाक्षर किसी ध्वनि को नहीं, एक पूरे शब्द के भाव या अर्थ को व्यक्त करता है|

भारतीय लिपियाँ ध्वनि मूलक हैं जिनमें शब्द को लिखित ध्वनि-चिह्नों में बदलकर उससे अर्थ ग्रहण किया जाता है|

चीनी और जापानी लिपियाँ अर्थमूलक हैं, जिनमें शब्द के लिखित रूप सीधे अर्थ को व्यक्त कर देते हैं।

एक ही भावाक्षर प्रसंग और अन्य भावाक्षर के संयोग से अनेक प्रकार से पढ़ा या उच्चरित किया जा सकता है|

जापानी भावाक्षर को ‘कांजि’ कहा जाता है।

कालांतर में जापान ने चीनी भावाक्षर लिपि को जापानी भाषा की प्रकृति के अनुरूप ढालने के प्रयत्न में इन्हीं भावाक्षरों में अपनी ध्वनि मूलक लिपियों का विकास किया जो ‘हीरागाना और ‘काताकाना’ कहलायीं|

आज की जापानी में ‘कांजि’, ‘हीरागाना’ और ‘काताकाना’ तीनों लिपियों का एक साथ मिश्रित प्रयोग होता है|

रोमन अक्षरों में लिखी गयी जापानी के लिये ‘रोमाजि’ शब्द का प्रयोग होता है|

किसी भी लिखित प्रतीक चिह्न को जापानी में ‘जि’ कहा जाता है|

वह कोई भावाक्षर भी हो सकता है, कानाक्षर भी अथवा कोई अंक भी|

‘ओन’ का अर्थ है ध्वनि, इस प्रकार ‘ओं’ का सीधा सा अर्थ हुआ ध्वनि-चिन्ह जो वर्णया अक्षर का ही पर्याय हो सकता है|” -(उद्धृत डॉ भगवतशरण अग्रवाल हाइकु काव्य विश्वकोश पृष्ठ 19)

ओन, ओंजि एवं सिलेबल्स (Syllables) तथा हायकु कविता का अनुवाद

चूंकि हिंदी में प्रारंभिक हाइकु कविता अनुवाद के माध्यम से आई है।

अनुवाद दो तरह से हुआ पहला- जापानी से सीधे हिंदी में अनुवाद।

दूसरा- जापानी से अंग्रेजी में अनुवाद और पुनः अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद।

इसलिए यह समझना होगा कि जापानी भाषा में जो ओन है,

वह अंग्रेजी और हिंदी में क्या होगा या अंग्रेजी और हिंदी में उसका समानार्थी क्या होगा।

जापानी में जिसे ओन कहा जाता है उसे अंग्रेजी में सिलेबल्स (Syllables) तथा हिंदी में अक्षर कहा जाता है

लेकिन प्रख्यात हाइकुकार डॉ भगवतशरण अग्रवाल उक्त मत से कुछ कम ही सहमत हैं।

इस संबंध में वे लिखते हैं “अनेक समीक्षकों ने ओंजि का अंग्रेजी पर्याय सिलेबल्स माना है जो गलत है।

वास्तव में इसका अंग्रेजी पर्याय मोरा है फिर भी इस संदर्भ में मोरा के स्थान पर सिलेबल्स ही अधिक प्रचलित है।

हिंदी के भाषा वैज्ञानिकों ने सिलेबल्स का पर्याय अक्षर को माना है।”

भले ही विद्वतजन और आलोचक ओन या ओंजि  का अंग्रेजी पर्याय सिलेबल्स और हिंदी पर्याय अक्षर करें;

परंतु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि प्रत्येक भाषा की बनावट अलग अलग होती है,

इसलिए यह कहना संगत नहीं होगा कि जापानी में लिखे हाइकु में जितने ओन या ओंजि होंगे,

अंग्रेजी में उतने ही सिलेबल्स और हिंदी में उतने ही अक्षर होंगे।

जापानी हाइकु कविता में 17 ओन या ओंजि होते हैं, लेकिन यह देखने में आया है,

कि अंग्रेजी के 12 सिलेबल्स में जापानी के लगभग 17 ओन या ओंजि पूरे हो जाते हैं

लेकिन अंग्रेजी हाइकुकार 17 सिलेबल्स का प्रयोग करते हैं।

हाइकु के शिल्प

हाइकु के शिल्प के संबंध में डॉ भगवतीशरण अग्रवाल लिखते हैं ”हाइकु के शिल्प के संबंध में एक दो और बातें मुझे कहनी है-

प्रथम तो यह कि जापानी काव्य में अक्षरों को नहीं  ओन या ओंजि अर्थात अंग्रेजी में मोरा जिसका हिंदी पर्याय लघ्वोच्चारणकाल है को मान्यता मिली है”

रामेश्वर कम्बोज ‘हिमांशु’ ने जापानी हाइकु और हिन्दी में हाइकु की संरचना में वर्ण या अक्षर गणना को लेकर निम्नलिखित वर्णन किया है

“इस तकनीकी शब्दावली के बाद हाइकु के लिए अक्षर, वर्ण या जापानी भाषा का शब्द ग्रहण करें तो परस्पर पर्याय की समानता तलाशना मुश्किल है|

अक्षर के लिए निकटतम शब्द syllable है लेकिन जापानी में इसके लिए कुछ समतुल्य ‘on’ है,

पूरी तरह पर्याय नहीं; क्योंकि जापानी में ‘on’ का अर्थ syllable से थोड़ा कम है|

जैसे – haibun अंग्रेज़ी में दो अक्षर हैं- हाइ-बन परन्तु जापानी में चार अक्षर या चार ‘on’ हैं -(ha-i-bu-n)-हा-इ-ब-न |”

रामेश्वर कम्बोज ‘हिमांशु ने हिंदी में हाइकु की गणना को स्पष्ट करते हुए कहा है कि”हिन्दी की भाषा वैज्ञानिक शब्दावली में इसे 5-7-5 वर्ण का छन्द कहा जाना चाहिए, न कि 5-7-5 अक्षर का छन्द|

इसका कारण है कि हिन्दी में अक्षर का अर्थ है – वह वाग्ध्वनि जो एक ही स्फोट में उच्चरित हो|

उदहारण के लिए कमला= कम-ला=२, धरती=धर-ती=२, मखमल= मख- मल=२, करवट= कर-वट=२,पानी=पा-नी=२, अपनाना = अप – ना – ना = ३, चल= १, सामाजिक= सा-मा-जिक=३ (ये अक्षर=गणना दी गई है) आ,न , ओ हिन्दी मे वर्ण भी हैं, एक ही स्फोट में बोले जाते हैं -अक्षर भी हैं और सार्थक भी हैं (आ-आना क्रिया का रूप , न निषेध के अर्थ में, ओ-पुकारने के अर्थ में , जैसे ओ भाई! इसी तरह गाना आदि भी हैं।]

हिन्दी हाइकु के सन्दर्भ में

हिन्दी हाइकु के सन्दर्भ में कमला-क-म-ला-3, धरती-ध-र-ती-3, मखमल-म-ख-म-ल-4, करवट- क-र-ब-ट-4 पानी=पा-नी=2, अपनाना=अ-प-ना-ना=4, चल=च-ल=2 सामाजिक= सा-मा-जि-क=4 वर्ण गिने जाएँगेहाइकु के बारे में सीधा और सरल शास्त्रीय नियम है – 5-7-5 = 17 वर्ण (स्वर या स्वरयुक्तवर्ण) न कि अक्षर जैसा कि असावधानीवश लिख दिया जाता है।“

इस मत पर आधारित अनेक उदाहरण हैं;

जिनसे यह मत पुष्ट होता है कि हिंदी हाइकु में 5,7,5 के क्रम में 17 वर्णों का छंद विधान हाइकु है न कि अक्षर क्रम का जैसे-

दीपोत्सव-सा

हम सबका

रिश्ता जगमगाए

 

शीत के दिनों

सर्प-सी फुफकारें

चलें हवाएँ

 

घास-सी बढ़ी

गुलाब-सी खिलती

बेटी डराती

हाइकु तुकांत और अतुकांत दोनों ही हो सकते हैं, हिंदी में दोनों प्रकार के हाइकु लिखे गए हैं।

शिल्प के अंतर्गत छंद यति,  गति, तुक के अतिरिक्त

अलंकार, शब्द-शक्ति, बिंब विधान, प्रतीक विधान, मिथक आदि सभी शिल्प गत विशेषताओं से युक्त होता है हाइकु।

हाइकु (Haiku) कविता

संख्यात्मक गूढार्थक शब्द

मुसलिम कवियों का कृष्णानुराग

श्री सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या के मतानुसार प्रांतीय भाषाओं और बोलियों का महत्व

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जून के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of June

जून माह के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of June

जून माह के महत्त्वपूर्ण दिवस एवं सप्ताह | Important Days and Week of June | National International Important Days of June | Important Days

 
जून के महत्वपूर्ण दिन

जून के महत्वपूर्ण दिन

दिनांक दिन महत्व
जून का तीसरा रविवार फादर्स डे
1 जून विश्व अभिभावक दिवस, विश्व दुग्ध दिवस
2 जून तेलंगाना दिवस, International Sex Workers Day
3 जून विश्व साइकिल दिवस
4 जून आक्रमण के शिकार हुए मासूम बच्चों का अंतरराष्ट्रीय दिवस
5 जून विश्व पर्यावरण दिवस अधिक जानकारी
7 जून विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस, अंतरराष्ट्रीय लेवल क्राॅसिंग अवेयरनेस डे
8 जून विश्व समुद्र दिवस, विश्व ब्रेन ट्यूमर दिवस
9 जून शहीद बिरसा मुण्डा की पुण्यतिथि, Coral Triangle Day
10 जून विश्व नेत्रदान दिवस
12 जून विश्व बालश्रम निषेध दिवस
13 जून सिलाई मशीन दिवस, अंतरराष्ट्रीय धवलता दिवस
14 जून विश्व रक्तदाता दिवस
15 जून वैश्विक पवन दिवस, विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस
17 जून मरुस्थलीय एवं अनावृष्टि की रोकथाम हेतु अंतरराष्ट्रीय दिवस
18 जून गोवा क्रांति दिवस, स्वपरायण गौरव दिवस, अंतरराष्ट्रीय पिकनिक दिवस
19 जून संघर्ष में यौन हिंसा के उन्मूलन हेतु अंतरराष्ट्रीय दिवस, विश्व सिकल सेल जागरूकता दिवस, विश्व सौहार्द दिवस
20 जून विश्व शरणार्थी दिवस
21 जून अंतरराष्ट्रीय योग दिवस, विश्व संगीत दिवस, विश्व जलराशि विज्ञान दिवस
23 जून संयुक्त राष्ट्र लोक सेवा दिवस, अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस, अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक दिवस
25 जून अंतरराष्ट्रीय नाविक दिवस
26 जून मादक द्रव्यों के दुरुपयोग एवं अवैध व्यापार विरोधी अंतरराष्ट्रीय दिवस, अत्याचार के पीड़ितों के समर्थन में अंतर्राष्ट्रीय दिवस
29 जून राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस
30 जून हूल/संथाल क्रांति दिवस, विश्व क्षुद्रग्रह दिवस

मई माह के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of May

मई माह के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of May

मई माह के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of May | Important Days and Week of May | National International Days of June | Important Days

मई के महत्वपूर्ण दिन

मई के महत्वपूर्ण दिन

दिनांक दिन महत्व
मई का प्रथम रविवार विश्व हास्य दिवस अधिक जानकारी
मई का प्रथम मंगलवार विश्व अस्थमा दिवस
मई का दूसरा रविवार मदर्स डे
मई और अक्टूबर के दूसरे शनिवार को (वर्ष में दो बार) विश्व प्रवासी पक्षी दिवस
1 मई महाराष्ट्र दिवस, गुजरात दिवस, अंतरराष्ट्रीय श्रम दिवस
2 मई श्री हित हरिवंशचंद्र जयंती, विश्व टूना दिवस
3 मई विश्व प्रैस स्वतंत्रता दिवस, अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा दिवस
4 मई कोयला खदान दिवस, अंतरराष्ट्रीय अग्निशमन दिवस
5 मई अंतरराष्ट्रीय सूर्य दिवस, अंतरराष्ट्रीय दाई दिवस
7 मई सीमा सड़क संगठन का स्थापना दिवस, विश्व एथलेटिक्स दिवस
8 मई अंतरराष्ट्रीय थैलीसिमिया दिवस, विश्व रेडक्राॅस एण्ड क्रिसेंट दिवस
10 मई विश्व लूपस दिवस
11 मई राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस
12 मई अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस
13 मई राष्ट्रीय एकीकरण दिवस
14 मई स्थानिक पक्षी दिवस
15 मई अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस
16 मई शांति से एक साथ रहने का अंतरराष्ट्रीय दिवस, राष्ट्रीय डेंगू दिवस, अंतरराष्ट्रीय प्रकाश दिवस, सिक्किम स्थापना दिवस
17 मई विश्व दूरसंचार और सूचना समाज दिवस, विश्व उच्च रक्तचाप दिवस, होमोफोबिया, ट्रांसफोबिया और बायोफोबिया के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय दिवस
18 मई अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस, विश्व एड्स टीका दिवस, पोखरण परमाणु विस्फोट दिवस
20 मई विश्व मधुमक्खी दिवस, विश्व मेट्रोलॉजी (माप विद्या) दिवस
21 मई अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस, राष्ट्रीय आंतकवाद निरोधक दिवस, संवाद और विकास के लिए सांस्कृतिक विविधता के लिए विश्व दिवस
22 मई अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस
23 मई विश्व कछुआ दिवस, अंतरराष्ट्रीय तिब्बत मुक्ति दिवस
24 मई राष्ट्रमंडल दिवस
25 मई विश्व थायरायड दिवस, अंतरराष्ट्रीय गुमशुदा बाल दिवस
26 मई राष्ट्रीय धातु दिवस
27 मई पूर्व प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू की पुण्यतिथि
28 मई वीर सावरकर जयंती, महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए कार्रवाई का अंतरराष्ट्रीय दिवस, विश्व भूख दिवस
29 मई अंतरराष्ट्रीय मांउट एवरेस्ट दिवस, संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षकों के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस
30 मई हिन्दी पत्रकारिता दिवस
31 मई विश्व तम्बाकू निषेध दिवस

भारत का विधि आयोग

भारत का विधि आयोग (Low Commission)

विधि संबंधी विषयों पर महत्त्वपूर्ण परामर्श देने के लिए सरकार आवश्यकतानुसार आयोग नियुक्त करती है; इन्हें विधि आयोग (Law Commission, लॉ कमीशन) कहते हैं। स्वतन्त्र भारत में अब तक 22 विधि आयोग बन चुके हैं। 22वें विधि आयोग के गठन हेतु केन्द्रीय मंत्रिमण्डल ने 19 फरवरी, 2020 को अनुमति प्रदान कर दी है, इस विधि आयोग का कार्याकाल भारत के राजपत्र में गठन के आदेश के प्रकाशन की तिथि से तीन वर्ष की अवधि के लिये होगा

भारत के विधि आयोग का इतिहास

प्रथम विधि आयोग (First Law Commission)

भारत में प्रथम विधि आयोग का गठन स्वतंत्रता से पूर्व किया गया था

ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन में 1833 का चार्टर एक्ट के अंतर्गत 1834 में ब्रिटिश पार्लियामेंट में मैकाले की सिफारिश पर भारत के पहले विधि आयोग का गठन किया गया था।

विधि एवं सांविधानिक इतिहास में इसका विशेष महत्त्व है।

प्रारंभ में विधि आयोग में चार सदस्य थे- लार्ड मैकाले, कैमरॉन, विलियम एंडरसन तथा मैक लियाड थे।

आयोग में अधिक-से अधिक पाँच सदस्य हो सकते थे। 1837 में मिलेट इसके पाँचवें सदस्य बने थे।

प्रथम विधि आयोग का उद्देश्य थे-

(1) न्यायालय एवं न्यायालयों की कार्यप्रणाली में क्या-क्या सुधार लाया जाए, इस संबंध में सुझाव देना।
(2) न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र एवं शक्तियों की जाँच करना।
(3) भारत में प्रचलित सभी विधियों-दीवानी, फौजदारी, लिखित एवं परंपरागत की जाँच पड़ताल करना।
(4) नियमों, परिनियमों, अधिनियमों आदि में परिवर्तन, परिवर्तन, संशोधन आदि के बारे में सुझाव देना।
(5) पुलिस विभाग की वास्तविक स्थिति की जाँच कर उनमें सुधार के उपाय सुझाना।

प्रथम विधि आयोग ने दंड संहिता आलेख भी (Draft of Indian Penal Code) तैयार किया, भारत का सिविल लॉ उस समय अव्यवस्थित था। उस पर दी गई गई रिपोर्ट, जिसे देशीय विधि (Lex Loci) रिपोर्ट नाम दिया गया, अत्यधिक महत्त्वपूर्ण मानी गयी।

द्वितीय विधि आयोग (Second Law Commission)

भारत के दूसरे विधि आयोग का गठन भी स्वतंत्रता से पूर्व हुआ।

1853 ईस्वी के चार्टर एक्ट के अंतर्गत द्वितीय विधि आयोग की स्थापना 29 नवंबर, 1853 को अंग्रेज न्यायाधीश जॉन रामिली की अध्यक्षता में की गयी। इस विधि आयोग में 8 सदस्य थे, इस आयोग को प्रथम विधि आयोग के द्वारा दिए गए सुझावों की जांच करने का कार्य सौंपा गया इस आयोग ने चार रिपोर्ट प्रस्तुत की जिनके अंतर्गत-

(i) अपनी प्रथम रिपोर्ट में आयोग ने फोर्ट विलियम स्थित सर्वोच्च न्यायालय एवं सदर दीवानी और निजामत अदालतों के एकीकरण का सुझाव दिया।

(ii) प्रक्रियात्मक विधि की संहिताएँ तथा योजनाएँ प्रस्तुत कीं।

(iii) इसी प्रकार पश्चिमोत्तर प्रांतों और मद्रास तथा बंबई प्रांतों के लिए भी तृतीय और चतुर्थ रिपोर्ट में योजनाएँ बनायी गयी फलस्वरूप 1859 ई. में दीवानी व्यवहार संहिता एवं लिमिटेशन एक्ट, 1860 में भारतीय दंडसंहिता एवं 1861 में आपराधिक व्यवहार संहिता बनी।

1861 ई. में ही भारतीय उच्च न्यायालय विधि पारित हुई।

1861 में दीवानी संहिता उच्च न्यायालयों पर लागू कर दी गयी।

अपनी द्वितीय रिपोर्ट में आयोग ने दंड संहिता और दंड प्रक्रिया संहिता को संहिताबद्ध करने की सिफ़ारिश की।यह सुझाव भी दिया कि हिंदुओें और मुसलमानों के वैयक्तिक कानून को स्पर्श करना बुद्धिमत्तापूर्ण न होगा।

इस आयोग का कार्यकाल केवल तीन वर्ष रहा।

तृतीय विधि आयोग (Third Law Commission)

तीसरे भारतीय विधि आयोग का गठन 2 दिसंबर, 1861 ई. में जान रामिली की ही अध्यक्षता में हुआ। और नियुक्ति का आधार द्वितीय विधि आयोग द्वारा तय समय सीमा में अपने कार्य को पूरा न करना माना गया था।
इसके सम्मुख मुख्य समस्या थी मौलिक दीवानी विधि के संग्रह का प्रारूप बनाना। तृतीय विधि आयोग की नियुक्ति भारतीय विधि के संहिताकरण की ओर प्रथम पद था।

आयोग ने कुल सात रिपोर्टें दीं-

प्रथम रिपोर्ट ने आगे चलकर भारतीय दाय विधि 1865 का रूप लिया।

द्वितीय रिपोर्ट में अनुबंध विधि का प्रारूप था।

तृतीय में भारतीय परक्राम्यकरण विधि का प्रारूप।

चतुर्थ में विशिष्ट अनुतोष विधि का प्रारूप।

पंचम में भारतीय साक्ष्य विधि का प्रारूप।

षष्ठ में संपत्ति हस्तांतरण विधि का प्रारूप प्रस्तुत किया गया था।

सप्तम एवं अंतिम रिपोर्ट आपराधिक संहिता के संशोधन के विषय में थी।

आपका मुख्य काम भारत के लिए सैद्धान्तिकी दीवानी विधि को अंग्रेजी विधि के आधार पर तैयार करना था। आयोग के सुझावों एवं रिपोर्टों के आधार पर निम्नलिखित मुख्य अधिनियम पास किए गए थे-

दि रेलिजस एंडाउमेंट्स ऐक्ट 1863
भारत कंपनी अधिनियम 1866
दि जनरल क्लाजेज एक्ट 1868
विवाह विच्छेद अधिनियम 1869
भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872
भारतीय संविदा अधिनियम 1872 उपर्युक्त सभी अधिनियम एच.एस. मैन तथा जे.एफ. स्टीफेन के कार्यकाल में पास हुए थे। स्टीफेन के बाद लार्ड हाय हाउस विधि सदस्य नियुक्त हुए थे। इनके कार्यकाल में विशिष्ट अनुताप अधिनियम 1877 (Specifie Rcl Cf At) बना था। इन्हीं के कार्यकाल में निम्नलिखित सैद्धांतिक विधियों को संहिताबद्ध करने का सुझाव रखा गया था-
न्यास विधि (Trust)

सुख भोगविधि (Eascments)

जलोढ़ और बाढ़ से संबंधित विधि (Alluvion and Diuvition)

मालिक और नौकर से संबंधित विधि

परक्राम्य विलेख (Negotiable Instrument) से संबंधित विधि

अचल संपत्ति के हस्तांतरण से संबंधित विधि।

चतुर्थ विधि आयोग (Fourth Law Commission)

ब्रिटिश भारत में ‘चतुर्थ विधि आयोग’ की स्थापना 11 फरवरी, 1879 को की गई।

इस आयोग में तीन सदस्य थे।

आयोग का मुख्य कार्य तृतीय विधि आयोग द्वारा प्रस्तावित विधियों की जाँच करना तथा अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करना था।

आयोग की सिफारिशों के परिणामस्वरूप भारतीय विधान मंडल ने निम्नलिखित विधियों को पास किया था-

परक्राम्य विलेख अधिनियम, 1881
प्रोबेट एंड एडमिनिस्ट्रेशन ऐक्ट 1881
न्याय अधिनियम, 1882
संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम1882
सुखाधिकार अधिनियम 1882

1912 ई. में चार ऐक्ट पास किए गए थे-

सहकारी समिति अधिनियम
पागलपन (Linuty) अधिनियम
भविष्य बीमा समिति अधिनियम
भारतीय जीवन बीमा कंपनी अधिनियम

चतुर्थ विधि आयोग की समाप्ति के साथ ही ब्रिटिश काल में विधि आयोगों द्वारा संहिताकरण का युग समाप्त हो गया।

शेष काल (14 अगस्त, 1947) तक में विधायन कार्य मुख्य रूप से भारत सरकार के विधायी विभाग द्वारा किया गया।

स्वतंत्र भारत में 19 नवंबर, 1954 ई. को लोकसभा में एक गैर-सरकारी प्रस्ताव के अंतर्गत एक विधि-आयोग बनाने की सिफारिश की,

सरकार द्वारा इसे स्वीकार करते हुए 5 अगस्त, 1955 ई. को तात्कालिक विधि मंत्री सी.सी. विश्वास ने लोकसभा में विधि आयोग की नियुक्ति की घोषणा की थी।

इस आयोग को पंचम विधि आयोग कहा जाता है।

श्री मोतीलाल चिमणलाल सीतलवाड़ इसके चेयरमैन थे और इसमें 11 सदस्य थे।

इसके समक्ष दो मुख्य कार्य रखे गए।

एक तो न्याय शासन का सर्वतोमुखी पुनरवलोकन और उसमें सुधार हेतु आवश्यक सुझाव,

दूसरा प्रमुख केंद्रीय विधियों का परीक्षण कर उन्हें आधुनिक अवस्था में उपयुक्त बनाने के लिए आवश्यक संशोधन प्रस्तुत करना।

भारतीय विधि आयोग, एक गैर-सांविधिक निकाय और गैर वैधानिक निकाय है।

यह भारत सरकार के आदेश से गठित एक कार्यकारी निकाय है।

इसका प्रमुख कार्य है, कानूनी सुधारों हेतु कार्य करना।

22 वां विधि आयोग (22nd Law Commission)

देश के 22वें विधि आयोग के गठन हेतु केन्द्रीय मंत्रिमण्डल ने 19 फरवरी, 2020 को अनुमति प्रदान कर दी है। इसका कार्यकाल भारत के राजपत्र में गठन के आदेश के प्रकाशन की तिथि से तीन वर्ष की अवधि के लिए होगा। इस संबंध में जारी एक संक्षिप्त अधिसूचना में कहा गया है-

‘‘आधिकारिक गजट में इस आदेश के प्रकाशन की तिथि से लेकर तीन साल की अवधि के लिए भारत के 22वें विधि आयोग के गठन को राष्ट्रपति की मंजूरी दी जाती है।’’
इससे पूर्व सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश बलबीर सिंह चौहान की अध्यक्षता वाले 21वें विधि आयोग (Law Commission) का कार्यकाल 31 अगस्त, 2018 को समाप्त हो गया था।

22वे विधि आयोग में निम्नलिखित शामिल होंगे-

(i) एक पूर्णकालिक अध्यक्ष (सामान्यता उच्चतम न्यायालय का कोई सेवानिवृत्त न्यायाधीश या उच्च न्यायालय का कोई सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश होता है।)
(ii) सदस्य सचिव सहित चार पूर्ण कालिक सदस्य।
(iii) कानूनी मामलों के विभाग के सचिव (पदेन सदस्य)।
(iv) सचिव, विधायी विभाग के सचिव (पदेन सदस्य)।
(v) अधिकतम पाँच अंशकालिक सदस्य।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की 19 फरवरी की बैठक में लिए गए निर्णय के तहत यह आयोग निम्नलिखित कार्य करेगा।

(i) यह ऐसे कानूनों की पहचान करेगा, जिनकी अब तक कोई आवश्यकता नहीं है,जो अब अप्रासंगिक है और जिन्हें तुरन्त निरस्त किया जा सकता है।

(ii) डायरेक्टिव प्रिंसीपल्स ऑफ स्टेट पॉलिसी के प्रकाश में मौजूदा कानूनों की जाँच करना तथा सुधार के तरीकों के सुझाव देना और नीति निर्देशक तत्वों को लागू करने के लिए आवश्यक कानूनों के बारे में सुझाव देना तथा संविधान की प्रस्तावना में निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करना।

(iii) विधि और न्याय प्रशासन से संबंधित किसी भी विषय पर विचार करना और सरकार को अपने विचारों से अवगत कराना, जो इसे विधि और न्याय मंत्रालय के माध्यम से सरकार द्वारा सान्द्रण किया गया हो।

(iv) विधि और न्याय मंत्रालय के माध्यम से सरकार द्वारा अग्रेषित किसी बाहरी देश को अनुसधान उपलब्ध कराने के अनुरोध पर विचार करना।

(v) गरीब लोगों की सेवा में कानून और कानूनी प्रक्रिया का उपयोग करने के लिए आवश्यक उपाय करना।

(vi) सामान्य महत्त्व के केन्द्रीय अधिनियमों को संशोधित करना ताकि उन्हें सरल बनाया जा सके और विसंगतियों, संदिग्धताओं और असमानता को दूर किया जा सके। अपनी सिफारिशों को अंतिम रूप देने से पहले आयोग नोडल मंत्रालय/विभागों तथा ऐसे अन्य हितधारकों के साथ परामर्श करेगा, जिन्हें आयोग इस उद्देश्य के लिए आवश्यक समझे उपर्युक्त के अतिरिक्त यह आयोग केन्द्र सरकार द्वारा इसे सौंपे गए या स्वतः संज्ञान पर विधि में अनुसंधान करने व उसमें सुधार करने, प्रक्रियाओं में देरी को समाप्त करने मामलों को तेजी से घटाने, अभियोग की लागत कम करने के लिए न्याय आपूर्ति प्रणालियों में सुधार लाने के लिए अध्ययन और अनुसंधान भी करेगा।

 

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अप्रैल के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of April

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अप्रैल के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of April | January to December important days | जनवरी से दिसंबर तक के महत्वपूर्ण दिवस

अप्रैल के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of April

अप्रैल के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of April

तारीख (Date) महत्त्वपूर्ण दिवस (Important Day)
अप्रैल का अंतिम शनिवारविश्व पशु चिकित्सा दिवस (World Veterinary Day)
1 अप्रैलनैशनल वाकिंग डे (National Walking Day), ओडिशा दिवस (Odisha Day), विश्व मूर्ख दिवस (April Fool Day)
2 अप्रैलविश्व आत्मकेन्द्रित जागरूकता दिवस (World Autism Awareness Day), अंतरराष्ट्रीय बाल पुस्तक दिवस (International Children’s Book Day)
3 अप्रैलहिन्दी रंगमंच दिवस (Hindi Theater Day)
4 अप्रैलखान जागरूकता हेतु अंतरराष्ट्रीय दिवस (International Day for Mine Awareness and Assistance in Mine Action)
5 अप्रैलराष्ट्रीय समुद्री (नौवहन) दिवस (National Maritime (Shipping) Day), समता दिवस (Samata Divas - Birthday of former Deputy Prime Minister Jagjivan Ram)
6 अप्रैलविकास एवं शांति का अंतरराष्ट्रीय खेल दिवस (International Day of Sport for Development and Peace), राष्ट्रीय छात्र एथलीट दिवस (National Student Athletes Day)
7 अप्रैलविश्व स्वास्थ्य दिवस (World Health Day), राष्ट्रीय बीयर दिवस (National Beer Day), 1994 रवांडा नरसंहार पर विचार का अंतरराष्ट्रीय दिवस (International Day of Reflection on the 1994 Rwanda Genocide)
9 अप्रैलसीआरपीएफ शौर्य दिवस (CRPF Valour Day)
10 अप्रैलविश्व वातावरण दिवस (World Environment Day), विश्व होम्योपैथी दिवस (World Homeopathy Day), अंतरराष्ट्रीय भाई बहिन दिवस (International Brother Sisters Day)
11 अप्रैलराष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस (National Safe Motherhood Day), राष्ट्रीय पालतू दिवस (National Pet Day)
12 अप्रैलमानव अंतरिक्ष उड़ान का अंतरराष्ट्रीय दिवस (International Day of Human Space Flight)
13 अप्रैलसियाचिन दिवस (Siachen Day), राजौरी दिवस (Rajouri Day)
14 अप्रैलअम्बेडकर जयंती (Ambedkar Birth Anniversary), अग्निशमन सेवा दिवस (Fire Service Day)
15 अप्रैलविश्व कला दिवस (World Art Day), हिमाचल दिवस (Himachal Diwas/Day)
16 अप्रैलविश्व आवाज दिवस (World Voice Day)
17 अप्रैलविश्व हीमोफीलिया दिवस (World Hemophilia Day)
18 अप्रैलविश्व विरासत दिवस (World Heritage Day OR International Day For Monuments and Sites)
19 अप्रैलविश्व यकृत दिवस (World Liver Day), राष्ट्रीय लहसुन दिवस (National Garlic Day)
20 अप्रैलसंयुक्त राष्ट्र चीनी भाषा दिवस (UN Chinese Language Day)
21 अप्रैलसिविल सर्विस दिवस (Civil Services Day), विश्व सृजनशीलता एवं नवाचार दिवस (World Creativity and Innovation Day)
22 अप्रैलविश्व पृथ्वी दिवस (World Earth Day)
23 अप्रैलविश्व पुस्तक एवं काॅपीराइट दिवस (World Book and Copyright Day), संयुक्त राष्ट्र अंग्रेजी भाषा दिवस और संयुक्त राष्ट्र स्पेनिश भाषा दिवस (UN English Language Day & UN Spanish Language Day), इंटरनेशनल गर्ल्स इन आईसीटी डे (International Girls in ICT Day)
24 अप्रैलराष्ट्रीय पंचायती राज दिवस (National Panchayati Raj Day), प्रयोगशाला जानवरों के लिए विश्व दिवस (World Day for Laboratory Animals), बहुपक्षवाद और शांति के लिए कूटनीति का अंतर्राष्ट्रीय दिवस (International Day of Multilateralism and Diplomacy for Peace)
25 अप्रैलविश्व मलेरिया दिवस (World Malaria Day), अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधि दिवस (International Delegate’s Day)
26 अप्रैलविश्व बौद्धिक सम्पदा दिवस (World Intellectual Property Day), अंतरराष्ट्रीय चेरनोबिल आपदा स्मरण दिवस (International Chernobyl Disaster Remembrance Day)
28 अप्रैलकार्य स्थल पर सुरक्षा एवं स्वास्थ्य दिवस (World Day For Safety And Health At Work), श्रमिक दिवस (Workers’ Memorial Day)
29 अप्रैलअंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस (International Dance Day)
30 अप्रैलअंतरराष्ट्रीय जैज दिवस (International Jazz Day), आयुष्मान भारत दिवस (Ayushman India Day)

संख्यावाची विशिष्ट गूढार्थक शब्द Sankhyavachi Vishisht Gudharthak Shabad

संख्यावाची विशिष्ट गूढार्थक शब्द Sankhyavachi Vishisht Gudharthak Shabad

संख्यावाची विशिष्ट गूढार्थक शब्द Sankhyavachi Vishisht Gudharthak Shabad हिंदी में कुछ संख्यावाची शब्द प्रचलित हैं, जिनका अर्थ प्रयोग विशेष.

पर्यायवाची शब्द – Paryayvachi Shabd – महा भण्डार

संख्यावाची शब्द किसे कहते हैं?

हिंदी में कुछ संख्यावाची शब्द प्रचलित हैं, जिनका अर्थ प्रयोग विशेष संदर्भ में होता है, इन्हें संख्यावाची गूढार्थक शब्द कहते हैं।

हमारी भारतीय संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में इनका एक विशिष्ट अर्थ है, जिसे जानना जरुरी है।

जैसे- त्रिदेव, चारधाम, पंचगव्य, सप्तऋषि, नौ निधि, सोलह शृंगार, छप्पन भोग, 64 कलाएं आदि।

इसी धारा प्रवाह में आपके लिए कुछ ऐसे ही शब्द प्रस्तुत हैं।

संख्यावाची विशिष्ट गूढार्थक शब्द
संख्यावाची विशिष्ट गूढार्थक शब्द

एक (1) : संख्यावाची विशिष्ट गूढार्थक शब्द

एक ईश्वर- सूर्य, पृथ्वी, गणेश का दाँत, ब्रह्म

दो (2)

दो पक्ष- कृष्ण पक्ष, शुक्ल पक्ष

दो मार्ग- प्रवृत्ति मार्ग, निवृत्ति मार्ग

दो उपासना पद्धति- सगुण उपासना पद्धति, निर्गुण उपासना पद्धति

तीन (त्रि) (3)

त्रिदेव, त्रिमूर्ति- ब्रह्मा, विष्णु, महेश

तीन दुःख- दैहिक दुःख, दैविक दुःख, भौतिक दुःख

त्रिलोक- आकाश, पृथ्वी, पाताल

त्रिगुण- सतगुण, रजगुण, तमगुण

त्रिदोष (आयुर्वेद में)- वात, पित्त, कफ

त्रिघट- स्थूल, सूक्ष्म, कारण

त्रिकटुक- (तीन कड़वी वस्तुएं) सोंठ, पीपर, मिर्च

त्रिकर्मा- यज्ञ, दान, वेदाध्ययन

त्रिकाल- भूत, वर्तमान, भविष्य अथवा प्रातः, दोपहर, सांय

त्रिभवन- जन्मकुण्डली का लग्न से पांचवां और नौवां घर

त्रिक्षार- सुहागा, जौखार, सज्जी

पर्यायवाची शब्द – Paryayvachi Shabd – महा भण्डार

त्रिधातु- सोना, चाँदी, तांबा

त्रिपथ- ज्ञान, कर्म, उपासना

त्रिपत्र- तुलसी, बेल, कुंद

त्रिपिंड- पिता, पितामह, प्रपितामह के श्राद्ध

त्रिपुटी- ज्ञान, ज्ञाता, ज्ञेय

त्रिपुर- स्वर्ग, अंतरिक्ष एवं पृथ्वी

त्रिफला- हरड़, बहेड़ा, आँवला

त्रिमधु- घी, शहद एवं चीनी

त्रियुग- सतयुग, द्वापर एवं त्रेता

त्रिवर्ग- (पहला- धर्म, अर्थ एवं काम), (दूसरा- सत, रज, तम), (तीसरा- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैष्य), (चौथा– क्षय, स्थिति एवं वृद्धि)

त्रिवेणी- गंगा, यमुना एवं सरस्वती

त्रिशक्ति- इच्छा, ज्ञान एवं क्रिया

त्रिसंध्य- प्रातः, मध्याह्न एवं सांय

त्रिस्थली- काशी, गया एवं प्रयाग

त्रिस्थान- सिर, गरदन एवं वक्ष

ये भी जानिए- भाषायी दक्षता

पर्यायवाची शब्द – Paryayvachi Shabd – महा भण्डार

चार (चतुष्) (4)

चार वेद- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद

चार धाम- रामेश्वरम, बद्रीनाथ, द्वारका, जगन्नाथ पुरी

चार कुंभ स्थल- उज्जैन, नासिक, हरिद्वार, प्रयाग

चार वर्ण- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र

चार आश्रम- ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास

पर्यायवाची शब्द – Paryayvachi Shabd – महा भण्डार

चार फल- धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष

चतुष्ठय उपाय- साम, दाम, दण्ड, भेद

चार खलीफा- अबूबक्र, उमर, उस्मान, अली

चार सूफी सम्प्रदाय- चिश्तिया, कादिरिया, सुहरवर्दिया, नक्शबन्दिया

पाँच (पंच) (5)

पंच महायज्ञ- ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, भूतयज्ञ, पितृयज्ञ, नृपयज्ञ

पंचमहाव्रत- अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, सूनृता, अस्तेय

पंच तत्त्व- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश

पंच देव- शिव, गणेश, विष्णु, सूर्य, दुर्गा

पंच देवी- दुर्गा, लक्ष्मी, राधा, वाणी, शाकम्भरी

पंच ज्ञानेन्द्रियाँ- आँख, कान, नाक, जिह्वा, त्वचा

पंच कर्मेन्द्रियाँ- मुख, लिंग, गुदा, हाथ, पैर

पंचामृत- दूध, दही, घी, शक्कर, शहद

पंच कन्या- सीता, मंदोदरी, अहल्या, द्रौपदी, तारा

पंच पवन- प्राण वायु, उदान वायु, व्यान वायु, समान वायु, अपान वायु

पंच तिक्त- गलोय, कटकारि, सोंठ, कुट, चिरायता

पंच वाण- द्रवण, शोषण, तापन, मोचन, उन्माद

पंच पुष्पवाण- कमल, अशोक, आम्र, नवमल्लिका, नीलोत्पल

पंच नद- झेलम, रावी, चिनाब, सतलज, व्यास

पंच रत्न- सोना, हीरा, नीलम, लाल, मोती

पंच पीर- जाहर, नरसिंह, भज्जू ग्वारपहरिया, घोड़ा बालाभंजी, रुहर दलेले

पंच ‘ग’कार (वैष्णवों के)- गंगा, गीता, गाय, गोविंद, गायत्री

पंच ‘म’कार (सिद्धों के)- मत्स्य, मांस, मद्य, मुद्रा, मैथुन

पंचकोष- (वेदांत के अनुसार) अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय, आनंदमय

पंचगव्य- दूध, दही, घी, गोबर, गोमूत्र

पंचजन- (पहला- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, निषाद), (दूसरा- गंधर्व, पितर, देव, असुर, राक्षस)

पंचतन्मात्र- शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध

पंचद्रविड़- दक्षिण में महाराष्ट्र, तैलंग, गुर्जर, द्रविड़ एवं कर्णाट क्षेत्र के ब्राह्मण

पंचनद- सतलुज, व्यास, रावी, चनाब, झेलम

पंचपल्लव (पत्ते)– पीपल, बड़ या आम, गूलर, जामुन, बेल

पंचप्राण- प्राण, अपान, समान, व्यान, उदान

पंचमहापातक- ब्रह्महत्या, सुरापान (शराब सेवन), चोरी, गुरु पत्नी से गमन, इन चारों से मेल-जोल

पंचरंग- हल्दी, सुरवाली, मेंहदी का चूरा, अबीर (गुलाल), बुक्का (अबरक का चूर्ण)

पंचरत्न- हीरा, नीलम, मूंगा, मणि, पद्मराग

पंचशील- (पहला- अस्तेय, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, सत्य, मादक पदार्थों का त्याग), (दूसरा- प्रभुसत्ता, अखंडता, समानता, आक्रमण न करना, हस्तक्षेप न करना)

पंचबाण (कामदेव के)- सम्मोहन, उन्मादन, शोषण, तापन, स्तम्भन

छह (षड्/षष्ट्/षट्) (6) : संख्यावाची विशिष्ट गूढार्थक शब्द

षड्ऋतु- ग्रीष्म, वर्षा, शरद, शिशर, हेमंत, वसंत

षड् रिपु- काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर

षड् रस- कड़वा, तीखा, खट्टा, मीठा, कसैला, खारी

षट् रस- मधुर, तीक्ष्ण, तिक्त, कटु, कषाय, अम्ल

षड्शास्त्र- मीमांसा, न्याय, वैशेषिक, योग, सांख्य, वेदांत

षड्दर्शन- सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, पूर्व मीमांसा, उत्तर मीमांसा

षड्ंग- (पहला- शिक्षा, व्याकरण, निरुक्त, छंद, कल्प, ज्योतिष), (दूसरा- दो हाथ, दो पैर, सिर, धड़)

षट्कर्म- अध्ययन, अध्यापन, यजन, याजन, दान, प्रतिग्रह

षट्चक्र– मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूर, अनाहत, विशुद्ध, आज्ञा योग

छह अकाल- अतिवृष्टि, अनावृष्टि, चूहों की अधिकता, दूसरे राजा की चढ़ाई, टिड्डी दल का आना, पक्षियों की अधिकता

छह हास्य- स्मित, हसित, विहसित, अवहसित, अपहसित, अतिहसित

सत (सप्त) (7)

सप्तऋषि
महाभारत के अनुसार- मरीचि, अंगिरा, अत्रि, अगस्त्य, भृगु, वशिष्ठ, मनु
शतपथ ब्राह्मण के अनुसार- गौतम, भारद्वाज, विश्वामित्र, यमदाग्नि, वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि

सप्तमातृका- ब्रह्मी, इंद्राणी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, चामुण्डा

सप्तभुवन- भूलोक, भुवलोक, स्वर्गलोक, महालोक, जनलोक, तपलोक, सत्यलोक

सप्तपुरी अथवा सप्ततीर्थ- अयोध्या, मथुरा, मायानगरी, काशी, काँचीपुरम, उज्जयिनी, द्वारका

सात रंग (सूर्य प्रकाश में)- नीलोत्पल, नीलाभ, आसमानी, नीला, हरा

सात चिंरजीवी- अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम

सप्त द्वीप (विष्णु पुराण अनुसार)- जम्बूद्वीप, प्लक्षद्वीप, शाल्मलद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप

सप्तसिन्धु- सिन्धु, गंगा, यमुना, सरस्वती, परुष्णी (रावी), शतुद्री (सतलुज), वितस्ता (झेलम)

सप्तसागर (विष्णु पुराण अनुसार)- खारे पानी का सागर, इक्षुरस का सागर, मदिरा का सागर, घृत का सागर, दधि का सागर, दुग्ध का सागर, मीठे जल का सागर

सप्तपर्वत- हिमालय, निषघ, विन्ध्य, माल्यवान्, पारियात्रक, गन्धमादन, हेमकूट

सप्तसुर- सा, रे, गा, मा, पा, ध, नि

सप्त स्वर- षड्ज, श्रषभ, गान्धार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद या सप्तम्

ये भी जानिए- ‘रासो’ शब्द की व्युत्पत्ति – विभिन्न मत

पर्यायवाची शब्द – Paryayvachi Shabd – महा भण्डार

आठ (अष्ट) (8)

अष्ट सिद्धि
योग की- अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशत्व, वशित्व
पुराणों की- अंजन, गुटका, पादुका, धातु-भेद, वेताल, वज्र, रसायन, योगिनी
सांख्य की- तार, सुतार, तारतार, रम्यक, आदि भौतिक, आदि दैविक, आध्यात्मिक, आदि दैहिक

अष्ट भैरव- महाभैरव, संहारभैरव, असितांग भैरव, रुरु भैरव, काल भैरव, क्रोध भैरव, ताम्रचूड़ भैरव, चन्द्रचूड़ भैरव

अष्टकुल (नागों के)- वासुक, तक्षक, कुलक, कर्कोटक, पद्म, शंखचूड़, महापद्म, धनंजय

अष्टगन्ध- चन्दन, अगर, देवदारु, केसर, कपूर, शैलज, जटामासी, गोरोचन

अष्ट धातु- सोना, चाँदी, ताँबा, सीसा, राँगा, जस्ता, पारा, लोहा

अष्टांग- हाथ, पैर, सिर, छाती, घुटना, वचन, दृष्टि, बुद्धि

अष्टांग योग- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा, समाधि

अष्टांग आयुर्वेद- शल्य, शालाक्य, कायचिकित्सा, भूतविद्या, कौमारभृत्य, अगदतंत्र, रसायनतंत्र और वाजीकरण

आठ विवाह- देव विवाह, ब्रह्म विवाह, आर्ष विवाह, असुर विवाह, पिशाच विवाह, गन्धर्व विवाह, स्वयंवर

अष्ट सखियाँ (राधा की)- ललिता, विशाखा, चित्रा, चम्पकलता, इन्दुलेखा, तुंगविद्या, रंगदेवी, वसुदेवी

अष्टवसु- प्रभास, अनल, अनिल, धर, सोम, ध्रुव, विष्णु, प्रत्यूष

आठ पहर- (4 दिन के- पूर्वाह्न या प्रातः, मध्याह्न, अपराह्न, सांय) (चार रात्रि के- प्रदोष या रजनीमुख, निशीथ, त्रियामा, उषा भोर या ब्रह्ममुहूर्त)

अष्ट अंग (राज्य के)- राजा, अमात्य (मंत्री), सुहृत, कोष, राष्ट्र, दुर्ग, बल (सेना आदि), पौर समूह (पुरवासियों का समूह)

अष्टताल- आड़, दोज, ज्योति, चन्द्रशेखर, गंजन, पंचताल, रूपक, समताल

नौ (नव) (9)

नवग्रह- सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु

नवनिधि- कच्छप, खर्व, नद, नील, पद्म, महापद्म, मकर, मुकुट, शंख

नवरस- शृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स, अद्भुत, शान्त

नवद्वार (शरीर के)- दो आँखें, दो कान, दो नासिका, एक मुख, गुदा, जननेन्द्रिय

नवदुर्गा- शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघण्टा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महाकाली, सिद्धिधात्री

नवरत्न- मोती, पन्ना, माणिक, गोमेद, हीरा, मूँगा, लहसुनियाँ, पद्मराग, नीलम

नवरत्न (विक्रमादित्य के दरबार के)- क्षपणक, अमरसिंह, शंकु, वेताल भट्ट, घटखर्पर, कालिदास, वराह मिहिर, धन्वंतरि, वररुचि

नवखण्ड- भारत, किंपुरुष, भद्र, हरि, हिरण्य, केतुमाल, इलावृत, कुश, रम्य

नवकन्या- कुमारी, त्रिमूत्ति, कल्याणी, रोहिणी, कालिका, शांभवी, दुर्गा, चंडिका, सुभद्रा

नवशक्ति- वैष्णवी, ब्रह्माणी, रौद्री, माहेश्वरी, नारसिंही, वाराही, इन्द्राणी, कार्तिकी, सर्वमंगला

नवधा भक्ति- श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पदसेवन, अर्चन, वंदन, दास्य, सेव्य, आत्म-निवेदन

दस (दश) (10)

दशमहाविद्या- काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगला, मातंगी, कमला

दशावतार- मच्छ, कच्छप, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि

दशधाभक्ति- श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पदसेवन, अर्चन, वंदन, दास्य, सेव्य, आत्म-निवेदन, प्रेम-लक्षणा

दस धर्म लक्षण- धैर्य, क्षमा, दया, अस्तेय, शौच, इन्द्रिय निग्रह, अहिंसा, सत्य, अक्रोध, विद्या

दस दिशाएँ- पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ईशान, आग्नेय, नैऋत्य, वायव्य, ऊध्र्व, अधो

दश छिद्र- दो आँख, दो कान, दो नासिका, मुख, गुदा, लिंग, ब्रह्माण्ड

ग्यारह (एकादश) (11)

एकादश रुद्र- प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान, नाम, कूकल, कूर्म, देवदत्त, धनंजय, आत्मा

एकादश गण (अग्निपुराण में गंधर्वों के)- शूर्यवर्चा, कृधु, हस्त, सुहस्त, स्वन्, मर्धन्या, आश्राज्य, अंधारि, वंभारि, विश्वावसु, कृशानु

ये भी जानिए- संस्मरण और रेखाचित्र

पर्यायवाची शब्द – Paryayvachi Shabd – महा भण्डार

बारह (द्वादश) (12)

द्वादश राशियाँ- मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ, मीन

बारह महीने- चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, सावन, भादों, क्वार, कार्तिक, अगहन, पौष, माघ, फाल्गुन

द्वादश वन- मधुवन, तालवन, वृंदावन, कामवन, कोटवन, चन्दनवन, लोहवन, महावन, खदिरवन, बेलवन, भाण्डारीवन

द्वाद्वश भानुकला- तपिनी, तापिनी, पूसा, मरिची, ज्वालिनी, रुचि, रुचिनिम्ना, मोगदा, विश्व-बोधिनी, धारिणी, क्षमा, शोषिणी

द्वादश ज्योतिर्लिंग- सोमनाथ, द्वारका, महाकालेश्वर, श्रीशैल, भीमाशंकर, ओमकारेश्वर, केदारनाथ, विश्वनाथ, त्र्यंबकेश्वर, रामेश्वरम, घृष्णेश्वर, बैद्यनाथ

पर्यायवाची शब्द – Paryayvachi Shabd – महा भण्डार

द्वादश आदित्य- सविता, भग, शक्र, उरुक्रम, धाता, विधाता, विवस्वान्, अर्यमा, तवष्टा, पूषा, मित्र, वरुण

चतुर्दश (14)

चौदह विद्याएँ- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष, ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, धर्मशास्त्र, पुराण, मीमांसा, तर्कशास्त्र

चौदह लोक- तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भू, भुवः, स्वः, जन, तप, सत्य, मह

चौदह रत्न (समुद्र मंथन से प्राप्त)- श्री, रम्भा, विष, वारुणी, अमृत, शंख, हाथी, धेनु, धन्वन्तरि, चन्द्रमा, कल्पद्रुम, कौस्तुभमणि, धनु, बाजि

चतुर्दश यम- यम, धर्मराज, मृत्यु, अन्तक, वैयस्वत, नील, दघ्न, काल, सर्वभूतक्षय, परमेष्टि, वृकोदर, औदुम्बर, चित्र, चित्रगुप्त

चतुर्दश ताल- चिह्नताल, चन्द्रमात्रा, देवमात्रा, अर्द्ध ज्योतिका, स्वर्गसार, क्षमाष्ट, धराधरा, वसन्त वाक्, काक कला, वीर शब्दा, ताण्डवी, हर्ष धारिका, भाषा, अर्द्धमात्रा

पन्द्रह (15)

पन्द्रह तिथियाँ- प्रथमा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दसमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा

सोलह (षोडश) (16)

षोडश शृंगार- उबटन, स्नान, वस्त्र धारण, केश प्रसाधन, अंजन, सिंदूर, महावर, तिलक, ठोडी पर तिल बनाना, मेंहदी, सुगंधित द्रव्य, आभूषण, पुष्पहार, पान, मिस्सी

षोडश कलाएं (चन्द्रमा की)- अमृता, मानदा, पूषा, पुष्टि, तुष्टि, रति, धृति, शातिनी, चन्द्रिका, कांति, ज्योत्स्ना, श्री, प्रीति, अंगदा, पूषणा, पूर्णा

षोडश मातृका- गौरी, पद्मा, शची, मेधा, सावित्री, विजया, जया, देवसेना, स्वधा, स्वाहा, शालि, पुष्टि, तुष्टि, मातृ, आत्मदेवता

सोलह संस्कार- गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूड़ाकर्म, विद्यारम्भ, कर्णवेध, यज्ञोपवीत, वेदारम्भ, केशान्त, समावर्तन, विवाह, अन्त्येष्टि

सोलह पूजा विधि- आवाहन, स्थापन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, सिंहासन, स्नान, चन्दन, धूप, फूल, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, प्रदक्षिणा, नमस्कार, आरती

अठारह (18)

अठारह पुराण- ब्रह्म पुराण, विष्णु पुराण, शिव पुराण, पद्म पुराण, भागवत पुराण, नारद पुराण, अग्नि पुराण, मार्कण्डेय पुराण, भविष्य पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, लिंग पुराण, स्कंद पुराण, वामन पुराण, कूर्म पुराण, मत्स्य पुराण, गरुड़ पुराण, ब्रह्माण्ड पुराण

अठारह दानव- द्विमूद्र्धा, तापन, शम्बर, अरिष्ट, हयग्रीव, विभावसु, अयोमुख, शंकुशिरा, स्वर्मानु, कपिल, अरुण, पुलोमा, वृषपव्र्वा, एकचक्र, विरूपाक्ष, धूम्रकेश, विप्रचित्ति, दुर्जय

अठारह विद्याएं- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, ज्योतिष, छन्द, ऋग्वेद, यतुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, मीमांसा, न्याय, धर्मशास्त्र, पुराण, आयुर्वेद, धनुर्वेद, गान्धर्ववेद, अर्थशास्त्र

अठारह व्यसन- मृयया, जुआ खेलना, दिन में सोना, दूसरे का दोष कहना, स्त्रियों में आसक्ति, नशेबाजी, बाजा बजाना, नाचना, गाना, व्यर्थ घूमना, चुगली करना, दुस्साहस, द्रोह, ईष्र्या, असूया, दूसरे की वस्तु हरण, कटुभाषण, अत्यन्त ताड़ना देना

चौबीस (24)

चौबीस अवतार- सनकादि, वाराह अवतार, नारद, नर-नारायण, कपिल, दत्तात्रेय, यज्ञपुरुष, ऋषभ, पृथु, मतस्य, कूर्म, धन्वन्तरि, मोहिनी, नृसिंह, वामन, परशुराम, व्यास, हंस, राम, कृष्ण, हयग्रीव, हरि, बुद्ध, कल्कि

सत्ताईस (27) : संख्यावाची विशिष्ट गूढार्थक शब्द Sankhyavachi Vishisht Gudharthak Shabad

सत्ताईस नक्षत्र- अश्विनी, भरणी, कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्ति, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, पूर्वाषाढ़, उत्तराषाढ़, श्रावण, घनिष्ठा, शतभिषी, पूर्व भाद्रपद, उत्तर भाद्रपद, रेवती, मूल

ये भी जानिए- हाइकु कविता (Haiku)

पर्यायवाची शब्द – Paryayvachi Shabd – महा भण्डार

उनचास (49)

उनचास पवन- श्वसन, स्पर्शन, मातरिश्वा, सदागति, पृषदश्व, गन्धवह, अनिल, आशुग, समीर, मारुत, मरुत्, जगत्प्राण, समीरण, नमस्वान्, वात, पवन, पवमान, प्रभंजन, अजगत्प्राण, खश्वास, वहि, धूलिध्वज, फरिप्रिय, वाति, नमप्राण, भोगिकान्त, स्वकम्पन, अक्षति, कम्पलक्ष्ना, शसीनि, आवक, हरि, वास, मुखाश, मृगवाहन, सार, चंचल, विहग, प्रकम्पन, नमस्वर, निश्वासक, स्तनून, पृषतांपति, प्राण, अपान, समान, व्यान, उदान, सूक

इक्यावन (51)

इक्यावन शक्तिपीठ- हिंगलाज, भवानी, शर्कररे, सुगंध, अमरनाथ, ज्वाला जी, त्रिपुर मालिनी, अम्बाजी, गुजयेश्वरी, दाक्षायनी, विमला, गंडकी चंडी, बाहुला, मंगल चंद्रिका, त्रिपुरसुंदरी, छत्राल भवानी, भ्रामरी, कामाख्या, जुगाड़्या, कालीघाट, ललिता, जयंती, विमला, किरीट, विशालाक्षी, श्रावणी, सावित्री, गायत्री, महालक्ष्मी, श्रीशैल, देवगर्भ, बीरभूमि, अमरकंटक, नर्मदा, शिवानी, उमा, नारायणी, वाराही, अपर्णा, श्री सुंदरी, कपालिनी, चंद्रभागा, अवंति, भ्रामरी, नासिक, विश्वेश्वरी, अम्बिका, कुमारी, उमा, मिथिला, कालिका, जयदुर्गा, महिषमर्दिनी, यशोरेश्वरी, फुल्लरा, नंदिनी, इंद्राक्षी

छप्पन (56)

छप्पन भोग- रसगुल्ला, चन्द्रकला, रबड़ी, मूली, दधि, भात, दाल, चटनी, कढ़ी, साग-कढ़ी, मठरी, बड़ा, कोणिका, पूरी, खजरा, अवलेह, वाटी, सिखरिणी, मुरब्बा, मधुर, कषाय, तिक्त, कटु पदार्थ, अम्ल (खट्टा पदार्थ), शक्करपारा, घेवर, चीला, मालपुआ, जलेबी, मेसूब, पापड़, सीरा, मोहनथाल, लौंगपूरी, खुरमा, गेहूं दलिया, पारिखा, सौंफलघा, लड्डू, दुधीरुप, खीर, घी, मक्खन, मलाई, शाक, शहद, मोहनभोग, अचार, सूबत, मंड़का, फल, लस्सी, मठ्ठा, पान, सुपारी, इलायची

चौंसठ (64) : संख्यावाची विशिष्ट गूढार्थक शब्द Sankhyavachi Vishisht Gudharthak Shabad

चौंसठ कलाएँ- पर्यायवाची शब्द – Paryayvachi Shabd – महा भण्डार

गीत

वाद्य

नृत्य

नाट्य

चित्रकारी

विशेष कच्छेद (तिल के साँचे बनाना)

तन्दुल कुसुमावली विचार (चावलों एवं फूलों का चाॅक पूरना)

पुष्पास्तरण (पुष्पों की सेज रचना)

दशन वसनांग (दाँतों, वस्त्रों और अंगों को रंगना)

मणि भूमिका कर्म (ऋतु के अनुसार घर को सजाना)

शयन रचना

उदक वाद्य (जल तरंग बजाना)

उदक घात (पिचकारी गुलाबपाश से काम लेने की विद्या)

चित्र योग (विचित्र औषधियों का प्रयोग)

माल्य ग्रन्थन विकल्प

केश शेखर की पीड़ योजना (केश प्रसाधन वेणी बंधन द्वारा)

नेपथ्य प्रयोग (देशकाल के अनुरूप वस्त्राभूषण पहनना)

कर्णपत्र भंग (कानों के लिए आभूषण बनाना)

गंध युक्ति (सुगंध बनाना)

भूषण योजन

इन्द्रजाल

कौचुमार योग (उबटन आदि लगाना)

हस्त लाघव (हाथ की सफाई)

चित्र शाक यूष भक्ष्य-विकार क्रिया (अनेक प्रकार के भोजन की विविध सामग्री बनाना)

पानक रस रागासव योजन (अनेक प्रकार के पेय बनाना)

सूची कर्म (सीना, पिरोना, जाली बुनना आदि)

सूत्र कर्म (कसीदा)

प्रहेलिका (पहेली बुझाना)

प्रीतिमाला (अन्त्याक्षरी)

दुर्वाचक योग (कठिन शब्दों या पदों का अर्थ करना)

पुस्तक वाचन

नाटक आख्यायिक दर्शन

काव्य समस्या पूर्ति

पट्टिका वेगवान विकल्प (चारपाई आदि बुनना)

तक्षकर्म

तक्षण (बढ़ई)

वास्तु विद्या

रूप्य रतन परीक्षा

धातुवाद

मणि राग ज्ञान

आकर ज्ञान (खानों की विद्या का ज्ञान)

वृक्षायुर्वेद योग

मेष-कुक्कुट-लावक युद्ध

शुक-सारिका प्रलापन

उत्सादन (उबटन लगाना, सिर, हाथ, पैर आदि दबाना)

केश मार्जन कौशल

अक्षर मुष्टिका कथन

म्लेक्षित कला विशेष (विदेशी भाषा का ज्ञान)

देश भाषा ज्ञान

पुष्प सकटिका निमित्त ज्ञान (दैव लक्षण देखकर भविष्यवाणी करना)

यन्त्र मातृका (यन्त्र निर्माण)

धारण मातृका (स्मरण शक्ति बढ़ाना)

सापठ्य (दूसरे को पढ़ते सुनकर उसी तरह पढ़ लेना)

मानसी काव्य क्रिया (दूसरे के मन के भाव जानकर कविता बनाना)

क्रिया विकल्प (क्रिया के प्रभाव को पलटना)

वस्त्र गापन (वस्त्रों की रक्षा)

अभिधान कोष (छन्दों को ज्ञान)

छलितक योग (ऐय्यारी करना)

द्यूत विशेष

आकर्ष क्रीड़ा (पासा फेंकना)

बाल क्रीड़ा कर्म

वैनायिकी विद्या-ज्ञान (शिष्टाचार)

वैतालिकी विद्या-ज्ञान

व्यायामिक विद्या ज्ञान

चौंसठ कलाएँ विकीपीडिया- https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A5%8C%E0%A4%B8%E0%A4%A0_%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%8F%E0%A4%81

चौंसठ योगिनी-

गौरी | शाकम्भरी | भीमा | रक्तदंतिका | पार्वती | दुर्गा | कात्यायनी | महादेवी | चन्द्रघण्टा | महाविद्या | महातपा | भ्रामरी | सावित्री | ब्रह्मवादिनी | भद्रकाली | विशालाज्ञी | रुद्राणी | कृष्णपिंगला | अग्निज्वाला | रौद्रमुखी | कालरात्रि | तपस्विनी | मेघस्वना | सहस्राक्षी | विष्णुमाया | जलोदरी | महोदरी | मुक्तकेशी | घोररूपा | महाबला | श्रुति | स्मृति | धृति | तुष्टि | पुष्टि | मेधा | विद्या | लक्ष्मी | सरस्वती | अपर्णा | अम्बिका | योगिनी | डाकिनी | शाकिनी | हारिणी | हाकिनी | लाकिनी | त्रिदशेश्वरी | महाषष्टी | सर्वमंगला | लज्जा | कौशिकी | ब्रह्माणी | ऐन्द्री | नारसिंही | बाराही | चामुण्डा | शिवदूती | विष्णुमाया | मातृका | कार्तिकी | विनायकी | कामाक्षी | नारायणी | पर्यायवाची शब्द – Paryayvachi Shabd – महा भण्डार

चौरासी सिद्ध (84) : संख्यावाची विशिष्ट गूढार्थक शब्द Sankhyavachi Vishisht Gudharthak Shabad

  • डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार-
  1. लुइपा – कायस्थ
  2. लीलापा
  3. विरूपा
  4. डोम्बिपा – क्षत्रिय
  5. शबरपा- क्षत्रिय
  6. सरहपा – ब्राह्मण
  7. कंकालीपा – शूद्र
  8. मीनपा- मछुआ
  9. गोरक्षपा
  10. चोरंगिपा – राजकुमार
  11. वीणापा – राजकुमार
  12. शान्तिपा – ब्राह्मण
  13. तंतिपा तँतवा
  14. चमारिपा – चर्मकार
  15. खड्गपा – शूद्र
  16. नागार्जुन – ब्राह्मण
  17. कण्हपा – कायस्थ
  18. कर्णरिपा
  19. थगनपा – शूद्र
  20. नारोपा – ब्राह्मण
  21. शलिपा – शूद्र
  22. तिलोपा-ब्राह्मण
  23. छत्रपा-शूद्र
  24. भद्रपा- ब्राह्मण
  25. दोखंधिपा
  26. अजोगिपा – गृहपति
  27. कालपा
  28. धम्मिपा –  धोबी
  29. कंकणपा –  राजकुमार
  30. कमरिपा
  31. डेंगिपा – ब्राह्मण
  32. भदेपा
  33. तंधेपा – शूद्र
  34. कुक्कुरिपा – ब्राह्मण
  35. कुचिपा – शूद्र
  36. धर्मपा – ब्राह्मण
  37. महीपा – शूद्र
  38. अचितपा – लकड़हारा
  39. भलहपा क्षत्रिय
  40. नलिनपा
  41. भुसुकिपा – राजकुमार
  42. इन्द्रभूति – राजा
  43. मेकोपा – वणिक्
  44. कुठालिपा
  45. कमरिपा – लोहार
  46. जालंधरपा – ब्राह्मण
  47. राहुलपा- शूद्र
  48. मेदनीपा
  49. धर्वरिपा
  50. धोकरिपा – शूद्र
  51. पंकजपा – ब्राह्मण
  52. घंटापा – क्षत्रिय
  53. जोगीपा डोम
  54. चेकुलपा-  शूद्र
  55. गुंडरिपा – चिड़मार
  56. लुचिकपा – ब्राह्मण
  57. निर्गुणपा – शूद्र
  58. जयानन्त – ब्राह्मण
  59. चर्पटीपा – कहार
  60. चम्पकपा
  61. भिखनपा – शूद्र
  62. भलिपा – कृष्ण घृत वणिक्
  63. कुमरिपा
  64. चवरिपा
  65. मणिभद्रा – (योगिनी) गृहदासी
  66. मेखलापा (योगिनी) गृहपति कन्या
  67. कनपलापा (योगिनी) गृहपति कन्या
  68. कलकलपा – शूद्र
  69. कंतालीपा – दर्जी
  70. धहुलिपा – शूद्र
  71. उधलिपा – वैश्य
  72. कपालपा – शूद्र
  73. किलपा – राजकुमार
  74. सागरपा–राजा
  75. सर्वभक्षपा – शूद्र
  76. नागबोधिपा- ब्राह्मण
  77. दारिकपा- राजा
  78. पुतुलिपा- शूद्र
  79. पनहपा- चमार
  80. कोकालिपा – राजकुमार
  81. अनंगपा -शूद्र
  82. लक्ष्मीकरा – (योगिनी) राजकुमारी
  83. समुदपा
  84. भलिपा – ब्राह्मण।

पर्यायवाची शब्द – Paryayvachi Shabd – महा भण्डार

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मार्च के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of March

मार्च के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of March

January to December important days | जनवरी से दिसंबर तक के महत्वपूर्ण दिवस | मार्च के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of March

मार्च के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of March

मार्च के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of March

तारीख (Date) महत्त्वपूर्ण दिवस (Important Day)
मार्च का दूसरा बुधवारधूम्रपान निषेध दिवस (No Smoking Day)
मार्च का दूसरा गुरुवारविश्व वृक्क/गुर्दा/किडनी दिवस (Kidney Day)
1 मार्चशून्य भेदभाव दिवस (Zero Discrimination Day), विश्व नागरिक सुरक्षा दिवस (World Civil Defense Day)
3 मार्चविश्व वन्यजीव दिवस (World Wildlife Day), दुनिया सुनवाई दिन (World Hearing Day)
4 मार्चराष्ट्रीय सुरक्षा दिवस (National Security Day), यौन शोषण के विरुद्ध संघर्ष का विश्व दिवस (World Day of Struggle Against Sexual Exploitation)
7 मार्चजन औषधि दिवस (Jan Aushadhi Diwas/Mass Medicine Day)
8 मार्चअंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (International Women's Day)
13 मार्चविश्व रोटरेक्ट दिवस (World Rotaract Day)
14 मार्चनदी के लिए कार्रवाई का अंतरराष्ट्रीय दिवस (International Day of Action for the River), पाई दिवस अथवा अंतरराष्ट्रीय गणित दिवस (Pi Day OR International Day of Mathematics)
15 मार्चअंतरराष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस (International Consumer Day), विश्व निद्रा दिवस (World Sleep Day)
16 मार्चराष्ट्रीय टीकाकरण दिवस (National Vaccination Day)
18 मार्चराष्ट्रीय आयुध कारखाना दिवस (National Ordnance Factory Day), वैश्विक पुनर्चक्रण दिवस (Global Recycling Day)
20 मार्चविश्व चिड़िया (गौरैया) दिवस (World Bird (Sparrow) Day), अंतरराष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस (International Happiness Day), विश्व मेंढक दिवस (World Frog Day), विश्व मौखिक स्वास्थ्य दिवस (World Oral Health Day)
21 मार्चअंतरराष्ट्रीय वन दिवस (International Forestry Day), विश्व कविता दिवस (World Poetry Day), विश्व लकड़ी दिवस (World Wood Day), विश्व कठपुतली दिवस (World Puppetry Day), अंतरराष्ट्रीय नस्लीय भेदभाव उन्मूलन दिवस (International Racial Discrimination Eradication Day), विश्व डाउन सिंड्रोम (निम्न गुणसूत्र) दिवस (World Down Syndrome Day)
22 मार्चविश्व जल संरक्षण दिवस (World Water Conservation Day), बिहार दिवस (Bihar Day)
23 मार्चविश्व मौसम विज्ञान दिवस (World Meteorological Day), भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु का बलिदान दिवस (Martyrs Day of Bhagat Singh, Sukhdev and Rajguru), पाकिस्तान का राष्ट्रीय दिवस (Pakistan National Day), विश्व संसाधन दिवस (World Resources Day)
24 मार्चविश्व क्षय रोग (टी.बी.) दिवस (World Tuberculosis (TB) Day), सकल मानव अधिकारों के उल्लंघन और पीड़ितों की गरिमा से संबंधित सच्चाई के अधिकार के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस (International Day for the Right to the Truth concerning Gross Human Rights Violations and for the Dignity of Victims)
25 मार्चगुलामी के शिकार और ट्रान्साटलांटिक दास व्यापार का अंतरराष्ट्रीय स्मरण दिवस (International Day of Remembrance of the Victims of Slavery and the Transatlantic Slave Trade), हिरासत में लिए गए और लापता स्टाफ सदस्यों के साथ एकजुटता का अंतरराष्ट्रीय दिवस (International Day of Solidarity with Detained and Missing Staff Members)
26 मार्चबांग्लादेश का स्वतंत्रता दिवस व राष्ट्रीय दिवस (Bangladesh Independence Day and National Day)
27 मार्चअंतरराष्ट्रीय रंगमंच दिवस (International Theater Day)
30 मार्चराजस्थान दिवस (Rajasthan Day), अर्थ आवर (Earth Hour)
31 मार्चविश्व बैकअप दिवस (World Backup Day), अंतरराष्ट्रीय ड्रग जाँच दिवस (International Drug Checking Day), अंतरराष्ट्रीय ट्रांसजेंडर दिवस की दृश्यता (International Transgender Day of Visibility)

पर्यायवाची शब्द Paryayvachi Shabd

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पर्यायवाची शब्द किसे कहते हैं?

पर्यायवाची शब्द का अर्थ।

हिंदी वर्णक्रमानुसार पर्यायवाची

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पर्यायवाची शब्द (Paryayvachi Shabad)

अं-अँ के पर्यायवाची शब्द (भाग-1)

अ के पर्यायवाची शब्द (भाग-2)

‘आ’ के पर्यायवाची शब्द (भाग-3)

‘इ, ई’ के पर्यायवाची शब्द (भाग-4)

‘उ एवं ऊ’ के पर्यायवाची शब्द (भाग-5)

‘ऋ, ए तथा ऐ’ के पर्यायवाची शब्द (भाग-6)

‘ओ औ’ के पर्यायवाची शब्द (भाग-7)

पर्यायवाची शब्द Paryayvachi Shabd

क के पर्यायवाची शब्द | समानार्थी | Synonym | भाग-8

क्ष के पर्यायवाची शब्द | समानार्थी | Hindi Synonym | भाग-9

ख के पर्यायवाची शब्द | समानार्थी | Hindi Synonym | भाग-10

ग के पर्यायवाची शब्द | समानार्थी | Hindi Synonym | भाग-11

घ के पर्यायवाची शब्द | समानार्थी | Hindi Synonym | भाग-12

च के पर्यायवाची शब्द | समानार्थी | Hindi Synonym | भाग-13

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त के पर्यायवाची शब्द | समानार्थी | Hindi Synonym | भाग-21

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जय भारत

सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या – प्रांतीय भाषा-बोलियाँ

सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या – प्रांतीय भाषा-बोलियाँ

श्री सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या के अनुसार प्रांतीय भाषा-बोलियाँ का महत्त्व

भाषा-बोलियाँ का महत्त्व

‘प्रांतीय भाषाओं के पुनरुद्धार से हिन्दी का आंतरप्रदेशिक महत्व किसी तरह कम नहीं हो सकता |

पच्छाहीं के लोगों ने बेशक हिंदी का थोड़ा बहुत फैलाव किया है और टूटी फूटी व्याकरण-भ्रष्ट हिंदी को अपनाकर पच्छाहीं के आसपास के लोगों ने हिन्दी को भारत की राष्ट्रभाषा बनाया है, लेकिन राष्ट्रभाषा या आंतरप्रदेशिक भाषा में और घरेलू बच्चों की शिक्षा की बोली या प्रांतीय कामकाज की बोली में बहुत पार्थक्य है|

मातृभाषा के सिवाय किसी दूसरी भाषा में मनुष्य के हृदय के भावों का पूरा-पूरा प्रकाश नहीं हो सकता और जब तक मनुष्य साहित्य में अपना पूरा प्रकाश नहीं कर सकता, तबतक वह जो साहित्य बनाने की कोशिश करता है, उसमें बहुत सी व्यर्थता आ जाती है |

श्री तुलसीदासजी और विद्यापति ने जो कुछ लिखा, अपनी मातृभाषा में ही लिखा, इसीलिए भारतीय-साहित्य के उद्यान में विद्यापति के पद और तुलसीदास का ‘रामचरितमानस’ हर तरह से सफल रचना होकर अधिक से अधिक लोकप्रिय हो सकी और जन-जन की जिव्हा पर आसानी से स्थान पा सकी|

महत्त्व

भारत में इस वक्त 15 मुख्य भाषाएँ चालू है |

प्रांतीय बोलियों की तो गिनती ही नहीं की जा सकती |

इन मुख्य या साहित्यिक भाषाओं में 11 भाषाएँ उत्तर भारत की गिनी जाती है और 4 दक्षिण भारत की |

इनके अतिरिक्त ऐसी कुछ भाषाएँ भी है

जो आज साहित्यिक महत्त्व की अधिकारिणी तो नहीं है,

परन्तु प्राचीन समय में उनका साहित्य उच्च कोटि का था

और उनकी संतानों के हृदय की सभी बातें उन्हीं भाषाओं में प्रकट होती थी |

राजस्थानी और मैथिली

राजस्थानी और मैथिली– और बोलियों के साथ इन दो भाषाओँ के निकेन्द्रीकरण की बात आज हिंदी संसार में लाई गई है |

‘हिन्दी प्रान्त’ में जो बोलियां सिर्फ घर में और सीमित प्रांत में काम में लाई जाती है, उन बोलियों के दो जबरदस्त और नामी वकील हिन्दी साहित्य क्षेत्र में पधारे हैं|

उनमें से एक हैं श्री बनारसीदास चतुर्वेदी और

दूसरे हैं श्री राहुलजी सांकृत्यायन |

भाषा तात्त्विकी दृष्टि से मेरी राय यह है कि जहां सचमुच व्याकरण का पार्थक्य दिखाई दे|

जहां प्राचीन साहित्य रहने के कारण प्रांतीय बोली के लिए उसके बोलने वालों में अभिमान बोध हो और जहां प्रांतीय बोली बोलने वाले बच्चों और वय:प्राप्त लोगों को हिंदी अपनाने में दिक्कत हो, वहाँ ऐसी प्रान्तीय बोली की शिक्षा और प्रांतीय कामकाज में ला देने का सवाल आ सकता है |

जहां तक हम देखते हैं व्याकरण की दृष्टि से राजस्थानी—खड़ीबोली हिंदी से पार्थक्य रखती है |

राजस्थानी जनता में अपने प्राचीन साहित्य के लिए एक नई चेतना भी दिखाई दे रही है |

राजस्थानी के प्राचीन साहित्य के बारे में कुछ बोलने की जरूरत नहीं |

अगर तथाकथित ‘हिंदी’ साहित्य से राजस्थानी में लिखा हुआ साहित्य निकाल दिया जाय, तो प्राचीन हिंदी साहित्य का गौरव कितना ही घट जाएगा|

चंदबरदाई

चंदबरदाई के पहले के समय में और उसके बाद के समय में राजस्थानमें जितने कवि हो गये हैं,

उन पर ज्यों-ज्यों प्रकाश डाला जाता है, त्यों-त्यों हमारा विस्मय और आनन्द बढ़ता जाता है |

केवल राजस्थानी बोलने वालों ही को इसका गौरव नहीं है, लेकिन समस्त भारत को इसका गौरव है |

इस गौरव के वश यदि राजस्थानी लोग अपनी मातृभाषा का पुनरुद्धार और पुनःप्रतिष्ठा करना चाहते हैं, तो इसमें नाराज होने और बुरा मानने का कुछ नहीं है |

भारत की प्रमुख 15 भाषाओँ में यदि राजस्थानी जैसी दो-चार भाषाएँ प्रतिष्ठित हो जाएं, तो इसमें आशंका और भय की कोई बात नहीं है | राजस्थानी लोग अपनी मूर्च्छित सी आत्मा को फिर सजग और सचेत करना चाहते हैं, इसमें समस्त भारत को लाभ पहुंचेगा, और राष्ट्रीय एकता की कोई भी हानि नहीं होगी |
(श्री सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या—भारतीय भाषातत्त्व के आचार्य –कलकत्ता विश्वविद्यालय 11-2- 1944)

प्रख्यात राजस्थानी कवि और लेखक डॉ आईदान सिंह भाटी की फेसबुक वॉल से साभार प्राप्त

भारत का विधि आयोग (Law Commission, लॉ कमीशन)

मानवाधिकार (मानवाधिकारों का इतिहास)

मानव अधिकार संरक्षण (संशोधन) अधिनियम 2019

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग : संगठन तथा कार्य

भारतीय शिक्षा अतीत और वर्तमान

श्री सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या के मतानुसार प्रांतीय भाषाओं और बोलियों का महत्व

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