रामवृक्ष बेनीपुरी Ramvriksh Benipuri का जीवन-परिचय
रामवृक्ष बेनीपुरी Ramvriksh Benipuri का जीवन-परिचय – रामवृक्ष बेनीपुरी का साहित्यिक-परिचय – रचनाएं – कविताएं – निबंध – नाटक – भाषा शैली
जन्म- 23 दिसम्बर, 1899 बेनीपुर गाँव, मुजफ्फरपुर (बिहार)
मृत्यु – 9 सितम्बर, 1968 मुजफ्फरपुर
पिता- श्री फूलवंत सिंह
प्रसिद्धि- स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार, साहित्यकार, नाटककार, कहानीकार, निबन्धकार, उपन्यासकार।
रामवृक्ष बेनीपुरी का साहित्यिक-परिचय
रचनाएं
उपन्यास
पतितों के देश में, 1930-33
कहानी संग्रह
माटी की मूरतें
संस्मरण तथा निबन्ध
चिता के फूल – 1930-32
लाल तारा – 1937-39
कैदी की पत्नी – 1940
माटी – 1941-45
गेहूँ और गुलाब – 1948-50
जंजीरें और दीवारें
उड़ते चलो, उड़ते चलो
ललित गद्य : रामवृक्ष बेनीपुरी जीवन-परिचय साहित्यिक-परिचय
वन्दे वाणी विनायक – 1953-54
नाटक : रामवृक्ष बेनीपुरी जीवन-परिचय साहित्यिक-परिचय
अम्बपाली – 1941-46
सीता की माँ – 1948-50
संघमित्रा – 1948-50
अमर ज्योति – 1951
तथागत
सिंहल विजय
शकुन्तला
रामराज्य
नेत्रदान – 1948-50
गाँव के देवता
नया समाज
विजेता – 1953
बैजू मामा
एकांकी : रामवृक्ष बेनीपुरी जीवन-परिचय साहित्यिक-परिचय
अम्बपा
विजेता
संघमित्रा
कुणाल
सम्पादन एवं आलोचना
विद्यापति की पदावली
बिहारी सतसई की सुबोध टीका
जीवनी
जयप्रकाश नारायण
रामवृक्ष बेनीपुरी के पुरस्कार एवं मान-सम्मान
वर्ष 1999 में ‘भारतीय डाक सेवा’ द्वारा रामवृक्ष बेनीपुरी के सम्मान में भारत का भाषायी सौहार्द मनाने हेतु भारतीय संघ के हिन्दी को राष्ट्रभाषा अपनाने की अर्धशती वर्ष में डाक-टिकटों का एक संग्रह जारी किया। उनके सम्मान में बिहार सरकार द्वारा ‘वार्षिक अखिल भारतीय रामवृक्ष बेनीपुरी पुरस्कार’ दिया जाता है।
रामवृक्ष बेनीपुरी संबंधी विशेष तथ्य : रामवृक्ष बेनीपुरी जीवन-परिचय साहित्यिक-परिचय
इन्हें कलम का जादूगर कहा जाता है।
इन्होंने तरुण भारत, किसान मित्र, बालक, जनवाणी , योगी, जनता, युवक, कर्मवीर, हिमालय, नयी धारा’ जैसी पत्रिकाओं का संपादन कार्य किया था।
इनकी समस्त रचनाएँ बेनीपुरी ग्रंथावली नाम से आठ खंडो में प्रकाशित हो चुकी है।
इनका गेहूं और गुलाब उनका प्रतीकात्मक निबंध है इसमें गेहूं, भूख का प्रतीक और गुलाब, कला और संस्कृति का प्रतीक है।
रामवृक्ष बेनीपुरी 1957 में बिहार विधान सभा के सदस्य भी चुने गए थे।
इनके ललित निबंध शेक्सपीयर के गाँव में, नींव की ईंट लेखों में भाव था कि जो लोग इमारत बनाने में तन-मन कुर्बान करते हैं, वे अंधकार में विलीन हो जाते हैं। बाहर रहने वाले गुम्बद बनते हैं और स्वर्ण पत्र से सजाये जाते हैं। चोटी पर चढ़ने वाली ईंट कभी नींव की ईंट को याद नहीं करती।
बेनीपुरी जी हिन्दी साहित्य के शुक्लोत्तर युग के प्रसिद्ध साहित्यकार थे।
इन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में आठ वर्ष जेल में बिताये।
जब राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने रौलट एक्ट के विरोध में असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ किया। बेनीपुरी जी निरंतर स्वतंत्रता संग्राम में जुड़े रहे। इन्होंने अनेक बार जेल की सज़ा भी भोगी। ये अपने जीवन के लगभग आठ वर्ष जेल में रहे।
‘भारत छोड़ो आन्दोलन के समय जयप्रकाश नारायण के हज़ारीबाग़ जेल से भागने में भी रामवृक्ष बेनीपुरी ने उनका साथ दिया और उनके निकट सहयोगी रहे।
1942 में अगस्त क्रांति आंदोलन के कारण उन्हें हज़ारीबाग़ जेल में रहना पड़ा था।
बेनीपुरी जी जेल में भी वह शान्त नहीं बैठे। वे जेल में भी आग भड़काने वाली रचनायें लिखते। जब भी वे जेल से बाहर आते, उनके हाथ में दो-चार ग्रन्थों की पाण्डुलिपियाँ अवश्य होती थीं, जो आज साहित्य की अमूल्य निधि बन गई हैं। उनकी अधिकतर रचनाएँ जेल प्रवास के दौरान लिखी गईं।
कथन
रामधारी सिंह दिनकर ने एक बार बेनीपुरी जी के विषय में कहा था कि-
“स्वर्गीय पंडित रामवृक्ष बेनीपुरी केवल साहित्यकार नहीं थे, उनके भीतर केवल वही आग नहीं थी, जो कलम से निकल कर साहित्य बन जाती है। वे उस आग के भी धनी थे, जो राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों को जन्म देती है, जो परंपराओं को तोड़ती है और मूल्यों पर प्रहार करती है। जो चिंतन को निर्भीक एवं कर्म को तेज बनाती है। बेनीपुरी जी के भीतर बेचैन कवि, बेचैन चिंतक, बेचैन क्रान्तिकारी और निर्भीक योद्धा सभी एक साथ निवास करते थे।”
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