महादेवी वर्मा Mahadevi Verma

महादेवी वर्मा Mahadevi Verma का जीवन परिचय

महादेवी वर्मा Mahadevi Verma का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, महादेवी वर्मा की रचनाएं, कविताएं, काव्य संग्रह, भाषा शैली, निबंध, बाल साहित्य

जन्म- 26 मार्च, 1907, फ़र्रुख़ाबाद

पिता- गोविंद प्रसाद

निधन- 11 सितम्बर, 1987, प्रयागराज

आधुनिक साहित्य की मीरा

महादेवी वर्मा का साहित्यिक परिचय

महादेवी वर्मा की रचनाएं

रेखाचित्र

अतीत के चलचित्र (1941)

स्मृति की रेखाएँ (1943)

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महादेवी वर्मा का जीवन परिचय

संस्मरण

पथ के साथी (1956, अपने अग्रज समकालीन साहित्यकारों पर)

मेरी परिवार (1972, पशु-पक्षियों पर)

संस्मरण (1983)

ललित निबंध

क्षणदा (1956)

चुने हुए भाषणों का संग्रह

संभाषण (1974)

कहानियाँ

गिल्लू

निबन्ध

विवेचनात्मक गद्य (1942)

श्रृंखला की कड़ियाँ (1942, भारतीय नारी की विषम परिस्थितियों पर)

साहित्यकार की आस्था और अन्य निबन्ध (1962, सं. गंगा प्रसाद पांडेय, महादेवी का काव्य-चिन्तन)

संकल्पिता (1969)

भारतीय संस्कृति के स्वर (1984)।

चिन्तन के क्षण

युद्ध और नारी

नारीत्व का अभिशाप

सन्धिनी

आधुनिक नारी

स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न

सामाज और व्यक्ति

संस्कृति का प्रश्न

हमारा देश और राष्ट्रभाषा

कविता संग्रह : महादेवी वर्मा का जीवन परिचय

नीहार (1930)

रश्मि (1932)

नीरजा (1934)

सांध्यगीत (1935)

यामा (1940)

दीपशिखा (1942)

सप्तपर्णा (1960, अनूदित)

संधिनी (1965)

नीलाम्बरा (1983)

आत्मिका (1983)

दीपगीत (1983)

प्रथम आयाम (1984)

अग्निरेखा (1990)

पागल है क्या ? (1971, प्रकाशित 2005)

परिक्रमा

गीतपर्व

पुनर्मुद्रित संकलन
(निम्नलिखित संकलनों में महादेवी वर्मा की नयी कवितायें नहीं हैं, बल्कि पुराने संकलनों को ही नयी भूमिकाओं के साथ पुनर्मुद्रित किया गया है।)

यामा (1940)

हिमालय (1960)

दीपगीत (1983)

नीलाम्बरा (1983)

आत्मिका (1983)

गीतपर्व

परिक्रमा

संधिनी

स्मारिका

पागल है क्या ? (1971, प्रकाशित 2005)

बाल साहित्य

ठाकुर जी भोले हैं

आज खरीदेंगे हम ज्वाला

बंगाल के अकाल के समय 1943 में इन्होंने एक काव्य संकलन प्रकाशित किया था और बंगाल से सम्बंधित “बंग भू शत वंदना” नामक कविता भी लिखी थी। इसी प्रकार चीन के आक्रमण के प्रतिवाद में हिमालय (1960) नामक काव्य संग्रह का संपादन किया था।

पुरस्कार और सम्मान : महादेवी वर्मा का जीवन परिचय

1934 ‘नीरजा’ पर ‘सेक्सरिया पुरस्कार

1942 ‘ द्विवेदी पदक’ (‘स्मृति की रेखाएँ’ के लिये)

1943 ‘मंगला प्रसाद पुरस्कार’ (‘स्मृति की रेखाएँ’ के लिये)

1943 ‘ भारत भारती पुरस्कार’, (‘स्मृति की रेखाओं’ के लिये)

1944 ‘यामा’ कविता संग्रह के लिए

1952 उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्या मनोनीत

1956 ‘पद्म भूषण’

1979 साहित्य अकादमी फैलोशिप (पहली महिला)

1982 काव्य संग्रह ‘यामा’ (1940) के लिये ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’

1988 ‘पद्म विभूषण’ (मरणोपरांत)

विशेष तथ्य : महादेवी वर्मा का जीवन परिचय

सन् 1955 में महादेवी जी ने इलाहाबाद में ‘साहित्यकार संसद’ की स्थापना की और पं. इलाचंद्र जोशी के सहयोग से ‘साहित्यकार’ का संपादन सँभाला। यह इस संस्था का मुखपत्र था। वे अपने समय की लोकप्रिय पत्रिका ‘चाँद’ मासिक की भी संपादक रहीं।

हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने प्रयाग में ‘ रंगवाणी नाट्य संस्था’ की भी स्थापना की।

इन्हे ‘वेदना की कवयित्री’ एवं ‘आधुनिक युग की मीरां‘ नाम से भी पुकारा जाता है|

ये प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रचार्य रही हैं।

रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा- “छायावाद कहे जाने वाले कवियों मे महादेवी जी ही रहस्यवाद के भीतर रही है।”

इनको छायावाद साहित्य की ‘शक्ति (दुर्गा)’ कहा जाता है।

कवि निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” भी कहा है।

महादेवी वर्मा कवयित्री और गद्य लेखिका, साहित्य और संगीत में निपुण होने के साथ-साथ कुशल चित्रकार और सृजनात्मक अनुवादक भी थीं।

महादेवी वर्मा कृत ‘सप्तपर्णा’ में ऋग्वेद के मंत्रों का हिन्दी काव्यानुवाद संकलित है।

अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ ने महादेवी वर्मा के काव्य संकलन ‘नीहार’ की भूमिका सन् 1930 ई. में लिखी थी।

महादेवी वर्मा की ब्रजभाषा और आरंभिक खड़ी बोली की कविताओं का संकलन 1984 ई. में ‘प्रथम आयाम’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ।

कवयित्री महादेवी वर्मा को बौद्ध दर्शन से प्रभावित रहस्यवादी कवयित्री के रूप में स्वीकार किया जाता है।

इनके सबसे प्रिय प्रतीक बादल और दीपक हैं।

महादेवी वर्मा द्वारा रचित प्रमुख पंक्तियाँ

सौन्दर्य परिचय -स्निग्ध खंड है और सत्य विस्मय भरा अखण्ड।

कवि का दर्शन जीवन के प्रति उसकी आस्था का दूसरा नाम है।

आस्था मानव के युगान्तर से प्राप्त दार्शनिक लक्ष्य पर केन्द्रित रागात्मक दृष्टि है।

काव्य या कला का सत्य जीवन की परिधि में सौन्दर्य के माध्यम द्वारा व्यक्त अखण्ड सत्य है।

‘‘हिन्दी भाषा के साथ हमारी अस्मिता जुडी हुई है। हमारे देश की संस्कृति और हमारी राष्ट्रीय एकता की हिन्दी भाषा संवाहिका है।’’

छायावाद तो करुणा की छाया में सौन्दर्य के माध्यम से व्यक्त होने वाला भावात्मक सर्ववाद ही रहा है और उसी रूप में उसकी उपयागिता है।

“मां से पूजा और आरती के समय सुने सूर, तुलसी तथा मीरा आदि के गीत मुझे गीत रचना की प्रेरणा देते थे। मां से सुनी एक करुण कथा को मैंने प्रायः सौ छंदों में लिपिबद्ध किया था। पडौस की एक विधवा वधू के जीवन से प्रभावित होकर मैंने विधवा, अबला शीर्षकों से शब्द चित्र् लिखे थे जो उस समय की पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुए थे। व्यक्तिगत दुःख समष्टिगत गंभीर वेदना का रूप ग्रहण करने लगा। करुणा बाहुल होने के कारण बौद्ध साहित्य भी मुझे प्रिय रहा है।”

आदिकाल के साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार

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