लेखक कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ Kanhaiyalal Mishra

लेखक कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ Kanhaiyalal Mishra ‘Prabhakar’

लेखक कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ Kanhaiyalal Mishra जीवन परिचय, कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ की रचनाएं, कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ की भाषा शैली

जीवन परिचय

जन्म -29 मई, 1906

जन्म भूमि -देवबन्द, सहारनपुर

मृत्यु -9 मई 1995

कर्म-क्षेत्र -पत्रकार, निबंधकार

लेखक कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ की रचनाएं

निबंध

जिन्दगी लहलहाई

बाजे पायलिया के घुंघरू

महके आंगन चहके द्वार

जिएँ तो ऐसे जिएँ

कारवाँ आगे बढ़े

अनुशासन की राह में

कहानी संग्रह

आकाश के तारे

धरती के फूल

संस्मरण

जिन्दगी मुस्करायी, 1953

दीप जले शंख बजे, 1959

भूले हुए चेहरे

संस्मरणात्मक संघर्ष-कथा

तपती पगडंडियों पर पदयात्रा

रिपोर्ताज

क्षण बोले कण मुस्कराएं

रेखाचित्र

माटी हो गई सोना, 1959

नई पीढ़ी नये विचार

आकाश के तारे धरती के फूल (लघुकथा)

आत्मकथा (आत्म परिचय)

हमारी जापान यात्रा (यात्रा-साहित्य)

दूध का तालाब : एक मामूली पत्थर (बाल साहित्य)

अन्य रचनाएं

उत्तर प्रदेश स्वाधीनता संग्राम की झाँकी

यह गाथा वीर जवाहर की

इंदिरा गाँधी

कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ के पुरस्कार एवं मान-सम्मान

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उदंत मार्तण्ड पुरस्कार (साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए)।

बिहार राजभाषा विभाग द्वारा शिखर सम्मान।

भारतीय भाषा परिषद् से पराड़कर सम्मान।

उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान से संस्थान सम्मान।

1990 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री सम्मान।

‘तपती पगडंडियों पर पदयात्रा’ के लिए भारतेंदु पुरस्कार।

मेरठ विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट.की उपाधि।

लेखक कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ की भाषा-शैली

कन्‍हैयालाल मिश्र प्रभाकर की भाषा प्रवाहमयी है। इन्होंने मुहावरों तथा उक्त्यिों का प्रयोग बहुत ही सहजता से किया है। इनके लेखन में आलंकारिक सौन्दर्य है। इन्होंने छोटे वाक्यों में भी गंभीर अर्थ प्रकट किया है। इनकी भाषा में व्‍यंग्‍यात्‍म्‍कता, सरलता, मार्मिकता, चुटीलापन तथा भावाभिव्‍यक्ति की क्षमता है। ये हिन्‍दी के मौलिक ौल्‍ीकार हैं। इनकी गद्य-शेैली चार प्रकार की है- भावात्‍मक शैली, वर्णनात्‍मक शैली, नाटकीय शैली एवं चित्रात्‍मक शैली।

लेखक कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ संबंधी विशेष तथ्य

रामधारी सिंह दिनकर ने इन्हें ‘शैलियों का शैलीकार’ कहा था।

राजनीतिक एवं सामाजिक कार्यों में गहरी दिलचस्पी लेने के कारण कन्हैयालाल को अनेक बार जेल-यात्रा करनी पड़ी।

1933 से 1947 तक ‘विकास’ (स्वतंत्रता संग्राम के समय का महत्वपूर्ण पत्र) का संपादन।

इसके अतिरिक्त विश्व विज्ञान, मनोरंजन, शांति, राष्ट्रधर्म, ज्ञानोदय तथा नया जीवन आदि अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सफल संपादन।

आदिकाल के साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार

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