रेखीय अभिक्रमित-अनुदेशन हिन्दी शिक्षण-विधियाँ
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प्रस्तावना
हावर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर बी.एफ.स्किनर ने क्रिया प्रस्तुत अनुकूलन सिद्धांत (Operant Conditioning) का प्रतिपादन किया है।
इस सिद्धांत को लागू करके उन्होंने ‘सक्रिय अनुबद्ध अनुक्रिया शिक्षण प्रतिमान’ (Operant Conditioning Model of Teaching) का विकास किया। जिसका मुख्य लक्ष्य (focus) व्यवहार परिवर्तन है इस प्रतिमान का उदाहरण रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन (Linear Programming) है। स्किनर के शिक्षण प्रतिमान के तत्वों का प्रयोग इस अभिक्रमित अनुदेशन में किया जाता है। रेखीय अनुदेशन में शिक्षार्थी एक पथ द्वारा सीधे ज्ञान प्राप्त करता है। शिक्षार्थी इसी रूप में अनुसरण करके अध्ययन करते है तथा विचलित नहीं होते हैं। इसमें छोटे-छोटे पद (Frame) बनाये जाते है। शिक्षार्थी इनको स्वयं पढ़ता जाता है तथा साथ में अनुक्रिया भी करता जाता है। इसके बाद अनुक्रिया की वह स्वयं जाँच करता है। शिक्षार्थी इस प्रकार एक पद के बाद दूसरे पद का अध्ययन करता है।
रेखीय अभिक्रमित-अनुदेशन की आवश्यकता (Need)
इसका प्रयोग निम्नलिखित समस्याओं के समाधान के लिए किया जाता है –
1. क्रियाशील शिक्षा शिक्षण में शिक्षार्थियों की क्रियाशीलता की अपेक्षा प्रस्तुति करने पर अधिक बल दिया जाता है।
2. सफलता की जांच शिक्षण विधियाँ, पाठ्यपुस्तके तथा सहायक सामग्री शिक्षार्थियों की तत्काल जाँच के लिए कोई ऐसी व्यवस्था नहीं करती जिससे यह जानकारी हो सके कि शिक्षार्थियों को कितनी सफलता मिल रही है ?
3. निदानात्मक एवं उपचारात्मक अनुदेशन शिक्षण में शिक्षार्थियों की कमजोरियों के निदान एवं उपचारात्मक अनुदेशन की व्यवस्था नहीं की जाती है।
4. अनुक्रियाओं का पुनर्बलन विद्यार्थियों को अध्ययन की पाठ्य पुस्तकों तथा अध्ययन की सहायक सामग्री में शिक्षार्थी के व्यवहार तथा अनुक्रियाओं को पुनर्बलन प्रदान करने की कोई व्यवस्था नहीं की जाती है।
रेखीय अभिक्रमित-अनुदेशन की अवधारणाएं
इस अनुदेशन की अवधारणा निम्नलिखित हैं-
1. स्वतंत्रता शिक्षार्थी की सही अनुक्रियाओं अथवा व्यवहारों को प्रेरित करने और गलत अनु क्रियाओं को छोड़ देने से भी अधिक सीखते हैं अनुक्रिया को सही पाने पर उसे पुनर्बलन मिलता है और गलत अनुक्रिया करने पर पद को दोहराना पड़ता है।
2. तत्परता शिक्षार्थी तत्पर रहने से अधिक सीखता है। अनुक्रिया के लिए शिक्षार्थी को तत्पर रहना पड़ता है इस प्रकार अभिक्रमित अनुदेशन का अध्ययन शिक्षार्थी तत्पर रहकर करता है जिससे निष्पत्ति स्तर ऊंचा रहता है।
3. बोधगम्य आकार यदि पाठ्यपुस्तक को छोटे-छोटे पदों में प्रस्तुत किया जाए और पद का आकार शिक्षार्थियों के लिए बोधगम्य हो तो शिक्षार्थी अधिक सीखते हैं रेखीय अधिगम में पाठ्यपुस्तक को छोटे-छोटे पदों में प्रस्तुत किया जाता है शिक्षार्थी एक समय में एक ही पद को पढ़ता है। इसलिए इससे अधिक सीखते हैं।
4. कम से कम त्रुटियां अध्ययन के समय शिक्षार्थी कम त्रुटियां करने पर अधिक सीखता है। रेखीय अनुदेशन में शिक्षार्थियों को त्रुटि नहीं करनी चाहिए। मानक पद वह माना जाता है जिस पर कोई शिक्षार्थी त्रुटि नहीं करता है।
रेखीय अभिक्रमित-अनुदेशन की अवधारणाएं
5. क्रमबद्ध विषय वस्तु रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन में बैठे वस्तु में तार्किक क्रम का मूल्यांकन किया जाता है और मनोविज्ञान की दृष्टि से शुद्ध होने पर अभिक्रमित पुस्तक का प्रकाशन किया जाता है।
6. उभारक अनुबोधक इसके प्रस्तावना पदों में उभारक तथा प्राथमिक दोनों तरह के अनुबोधक प्रयुक्त किए जाते हैं जिससे पूर्व ज्ञान का नवीन ज्ञान से संबंध स्थापित किया जा सके। इसके निर्माण विधि में शिक्षार्थियों के पूर्व व्यवहारों को लिखा जाता है।
7. अवधि की स्वतंत्रता शिक्षार्थियों को उनकी क्षमताओं तथा अध्ययन गति के अनुकूल अवधि की स्वतंत्रता देने से शिक्षार्थी अधिक से अधिक सीखते हैं। इसके अध्ययन के लिए प्रत्येक शिक्षार्थी को पूर्ण स्वतंत्रता दी जाती है, जिससे शिक्षार्थियों को व्यक्तिगत भिन्नता के अनुसार सीखने का अवसर मिलता है। शिक्षार्थियों की अध्ययन अवधि भिन्न-भिन्न होती है, परंतु उनका निष्पादन स्तर समान होता है।
रेखीय अभिक्रमित-अनुदेशन की संरचना एवं स्वरूप (Structure)
इस व्यवस्था में पाठ्यवस्तु को छोटे-छोटे पदों में क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुत किया जाता है। प्रत्येक पद शिक्षार्थी को नवीन ज्ञान प्रदान करता है। प्रत्येक पद पर शिक्षार्थी सही अनुक्रिया करता है। पदों का सम्बन्ध अंतिम व्यवहार से होता है। शिक्षार्थी एक समय में जितना पढ़ता है उसे पद (Frame) कहते हैं। सभी पदों में परस्पर चढ़ाव के क्रम में सम्बन्ध होता है। प्रत्येक पद के निम्नलिखित तीन भाग होते हैं-
1. उद्दीपक
2. पुनर्बलन
3. अनुक्रिया
1. उद्दीपक (Stimulus)
रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन व्यवहारवादी मनोविज्ञान के सिद्धांतों पर आधारित है। इसलिए अधिगम की प्रक्रिया की उद्दीपक-अनुक्रिया (S-R) के रूप में व्याख्या की जाती है।
इसमें वातावरण और परिस्थिति को प्रधानता दी जाती है।
उद्दीपक पाठ्यवस्तु के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
इस स्वतंत्र चर (Independent Variables) भी कहते हैं।
पाठ्यवस्तु उद्दीपक अनुक्रिया के लिए परिस्थिति उत्पन्न करता है।
यह अपेक्षित अनुक्रिया के लिए पर्याप्त नहीं होता इसलिए अतिरिक्त उद्दीपक भी प्रयुक्त किया जाता है, जो सही अनुक्रिया करने में शिक्षार्थियों को सहायता प्रदान करता है। इन्हें उभारक और अनुबोधक (Prompts) कहते है।
2. अनुक्रिया (Response)
शिक्षार्थी को उद्दीपक के लिए अपेक्षित अनुक्रिया करनी होती है, जिसे आश्रित चर (Dependent Variables) कहते हैं। अनुक्रिया उद्दीपक पर निर्भर करती है सही अनुक्रिया करने से शिक्षार्थी नया ज्ञान प्राप्त करता है प्रत्येक अनुक्रिया नए व्यवहार का विकास करती है, जिसका संबंध अग्रिम व्यवहार से होता है। इस प्रकार रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन की अनुक्रियाओं की तीन विशेषताएं-
(1) अनुक्रिया से शिक्षार्थी को नया ज्ञान प्राप्त होता है।
(2) अनक्रिया का सम्बन्ध अन्तिम व्यवहारों से होता है।
(3) अनुक्रिया की पुष्टि शिक्षार्थी को पुनर्बलन प्रदान करती है।
3. पुनर्बलन (Reinforcement)
शिक्षार्थियों को अपनी अनुक्रियाओं की जांच करनी होती है। सही उत्तर पदों के साथ दिया जाता है। सही अनुक्रिया पाने पर शिक्षार्थियों को प्रसन्नता होती है और अगले पद को पढ़ने के लिए पुनर्बलन मिलता है। सही अनुक्रिया परिणाम का ज्ञान प्रदान करती है। इस प्रकार पुनर्बलन से शिक्षार्थी उद्दीपक और अनुकिया के बीच नये सम्बन्ध स्थापित करता है। इसे पुष्टिकरण (Confirmation) कहते है।
इस अनुदेशन का प्रमुख लक्ष्य व्यवहार परिवर्तन (Modification of Behavior) करना है।
पदों की व्यवस्था इस प्रकार की जाती है कि एक पद की अनुक्रिया अगले पद के लिए उद्दीपक का कार्य करती है
प्रथम पद की अनुक्रिया1 द्वितीय पद में उद्दीपक दो का कार्य करती है। द्वितीय पद की अनुक्रिया दो तृतीय में उद्दीपक तीन का कार्य करती है। यह रेखीय श्रृंखला चलती रहती है।
रेखीय अभिक्रमित-अनुदेशन में पदों के प्रकार
1. प्रस्तावना पद
2. शिक्षण पद
3. अभ्यास पद
4. परीक्षण पद
रेखीय अभिक्रमित-अनुदेशन की विशेषताएं (Characteristics of Programmed Instruction) : रेखीय अभिक्रमित-अनुदेशन हिन्दी शिक्षण-विधियाँ
रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन की अपनी कुछ ऐसी विशेषताएं हैं जिनका अधिगम की क्रियाओं में अधिक महत्व है।
इसकी प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित है:
1. शिक्षा की यह एक एसी व्यवस्था है जो मनोविज्ञान के अधिगम के सिद्धांतों पर आधारित है।
2. यह स्वतः अध्ययन सामग्री प्रस्तुत करती है जिसकी सहायता से प्रखर बद्धि, सामान्य बुद्धि तथा मन्द बुद्धि के शिक्षार्थियों को अपनी गति के अनुसार सीखने का अवसर मिलता है।
3. पाठ्यवस्तु को क्रमबद्ध रूप में छोटे-छोटे पदों में प्रस्तुत किया जाता है।
यह तार्किक क्रम मनोविज्ञान की दृष्टि से भी प्रभावशाली होता है।
4. इसकी सहायता से कठिन प्रत्ययों को सरलता एवं सुगमता से बोधगम्य बनाया जाता है।
5. व्यक्तिगत भिन्नता के अनुसार सीखने की स्वतंत्रता प्रदान की जाती है।
6. अधिगम के समय शिक्षार्थी को क्रियाशील रहना पड़ता है जिससे शिक्षार्थी सीखने के लिए तत्पर रहता है
7. शिक्षक की अनुपस्थिति में भी शिक्षार्थी नवीन प्रत्ययों (Concepts) को सुगमता से सीखते है।
8. परंपरागत शिक्षण की अपेक्षा अभिक्रमित अनुदेशन से शिक्षार्थी अधिक सीखते है।
9. अधिगम-अनुक्रिया अधिक प्रभावशाली होती है क्योंकि शिक्षार्थी की सही अनुक्रिया को पुनर्बलन दिया जाता है।
10. शिक्षार्थियों की बोधगम्यता के अनुरूप पाठ्यवस्तु को छोटे-छोटे पदों में प्रस्तुत किया जाता है।
रेखीय अभिक्रमित-अनुदेशन की सीमाएँ (Limitation of Linear Programming)
यह व्यवस्था अपने में पूर्ण नहीं है। इसकी निम्नलिखित सीमाएँ हैं –
1. इसमें प्रत्येक शिक्षार्थी को एक ही क्रम का अनुसरण करना पड़ता है।
उसकी आवश्यकताओं को ध्यान में नहीं रखा जाता है।
2. इसमें ज्ञानात्मक पक्ष के उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सकती है।
3. सृजनात्मक तथा उच्च उद्देश्यों की प्राप्ति में प्रगति नहीं की जा सकती है।
4. इसका प्रयोग केवल प्रत्ययात्मक पाठ्यवस्तु के लिए ही किया जा सकता है।
यह तथ्यात्मक पाठ्यवस्तु के लिए उपयोगी नहीं है।
5. शिक्षार्थी को अनुक्रियाओं के लिए स्वतंत्रता नहीं होती है।
इसमें अधिगम नियंत्रित परिस्थितियों में होता है।
6. इसका निर्माण करना कठिन है।
प्रशिक्षण ग्रहण करने के बाद भी उत्तम प्रकार के अनुदेशन सामग्री का निर्माण नहीं हो पाता है।
7. प्रतिभाशाली शिक्षार्थी इसमें अधिक रुचि नहीं लेते हैं।
8. इसका प्रयोग शिक्षण तथा अनुदेशन के लिए ही किया जाता है।
इसे सुधारात्मक शिक्षण के लिए प्रयुक्त नहीं किया जाता है।
9. इसमें सामाजिक अभिप्रेरणा नहीं दी जाती है।
स्रोत NCERT शिक्षा में सूचना एवं संचार तकनीकी
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