रीतिकाल की पूरी जानकारी – कवि, रचनाएं, प्रकार, वर्गीकरण, विशेषताएं

रीतिकाल की पूरी जानकारी

इस आलेख में रीतिकाल की पूरी जानकारी एवं कवि तथा रचनाएं, प्रमुख काव्य धाराएं, रीतिकाल का वर्गीकरण तथा विशेषताएं पढेंगे।

रीतिकाल का नामकरण : रीतिकाल की पूरी जानकारी

रीतिकाल को रीतिकाल क्यों कहा जाता है?

हिंदी साहित्य का उत्तर मध्यकाल (1643 ई. – 1842ई. तक लगभग) जिसमें सामान्य रूप से श्रृंगार परक लक्षण ग्रंथों की रचना हुई है रीतिकाल कहलाता है।

नामकरण की दृष्टि से रीतिकाल के संबंध में विद्वानों में पर्याप्त मतभेद है–

अलंकृत काल— मिश्र बंधु

रीतिकाल— आचार्य शुक्ल

कलाकाल— डॉ रामकुमार वर्मा

कलाकाल— डॉ रमाशंकर शुक्ल प्रसाद

श्रृंगारकाल— पं. विश्वनाथ प्रसाद मिश्र

रीतिकाल की पूरी जानकारी
रीतिकाल की पूरी जानकारी

सर्वमान्य मान्यता के अनुसार रीतिकाल नाम उपयुक्त है।

सामान्य के संस्कृत के लक्षण ग्रंथों का अनुसरण करके हिंदी में भी रस, छंद, अलंकार, शब्द शक्ति, रीति, गुण, दोष, ध्वनि, वक्रोक्ति आदि का वर्णन किया गया इसे ही रीतिकाल कहा जाता है।

रीतिकाल के प्रवर्तक कवि एवं काव्य धाराएं

रीतिकाल का वर्गीकरण

रीतिकाल को कितने भागों में बांटा गया है?

रीतिकाल कितने प्रकार के होते हैं?

रीतिकाल के उदय के कारण

अपने आश्रय दाताओं की रुचि के कारण रीतिकालीन साहित्य का उदय हुआ— आचार्य शुक्ल

संस्कृत साहित्य के लक्षण ग्रंथों से प्रेरित होकर विधि साहित्य लिखा गया था— आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी

दरबारी संस्कृति होने के कारण कभी हताश और निराश हो गए थे अतः अपनी निराशा को दूर करने के लिए रीति साहित्य का उदय हुआ— डॉ. नगेंद्र

रीतिकाल के पतन के कारण

मंगल की भावना का भाव।

चमत्कार की अतिशयता।

श्रृंगार की अतिशयता।

रीतिकालीन काव्य की प्रवृत्तियां : रीतिकाल की पूरी जानकारी

रीति निरूपण की प्रवृत्ति

काव्य में साहित्य के विविध अंगों पर (रस, छंद, अलंकार, शब्द शक्ति, गुण, दोष, रीति, ध्वनि, वक्रोक्ति, काव्य लक्षण, काव्य हेतु, काव्य प्रयोजन प्रकाश डाला जाता है वह रीति निरूपण प्रवृत्ति होती है। इसके दो प्रकार हैं—

सर्वांग निरूपण प्रवृत्ति– उपर्युक्त सभी अंगों की विवेचना करना।

विशिष्टांग निरूपण प्रवृत्ति― रस, छंद, अलंकार इन तीनों अथवा किसी एक अंग की विवेचना करना।

श्रृंगार निरुपण― श्रृंगारिक रीतिकाव्य का प्राण है

वीर काव्य तथा राज प्रशस्ति

भक्ति की प्रवृत्ति

नीति

लक्षण ग्रंथों की प्रधानता

कवि तथा आचार्य बनाने की प्रवृत्ति

आलंकारिकता

नारी के प्रति भोगवती दृष्टिकोण

आश्रय दाताओं की प्रशंसा

ब्रजभाषा की प्रधानता

मुक्तक काव्य शैली का प्रधान्य

रीतिकालीन कवियों का वर्गीकरण : रीतिकाल की पूरी जानकारी

रीतिकाल के प्रमुख लक्षण : रीतिकाल की पूरी जानकारी

आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र द्वारा रीतिकालीन कवियों को तीन श्रेणियों में विभक्त किया गया है―

रीतिबद्ध कवि।

रीतिसिद्ध कवि।

रीतिमुक्त कवि।

रीतिबद्ध कवि

इस वर्ग में वे कवि आते हैं जो रीति के बंधन में बंधे हुए थे और जिन्होंने रीति परंपरा का अनुसरण कर लक्षण ग्रंथों की रचना की।

इस वर्ग के प्रमुख कवियों में चिंतामणि त्रिपाठी, केशवदास, देव, मंडन मिश्र, मतिराम, सुरति मिश्र, कुलपति मिश्र, पद्माकर, भिखारी दास ग्वाल आदि कवि आते हैं।

डॉ नगेंद्र ने इन्हें रीतिकार या आचार्य कवि कहा है।

रीतिबद्ध काव्य की प्रमुख विशेषताएं

रस, छंद, अलंकार आदि तीन आधारों पर लक्षण ग्रंथों की रचना।

कवियों में कवित्व और आचार्यत्व दोनों गुण।

शास्त्र प्रधान काव्य।

पांडित्य के पूर्ण काव्य।

श्रृंगार रस की प्रधानता मांसल श्रृंगार वर्णन।

ब्रजभाषा का प्राधान्य।

मुक्तक शैली।

अलंकारों की प्रधानता।

अंगीरस― श्रृंगार।

रीतिसिद्ध कवि

इस वर्ग में भी कभी आते हैं जिन्होंने रीति ग्रंथों की रचना न करके उसके अनुसार उत्कृष्ट काव्य की रचना की है।

इस वर्ग के प्रमुख कवियों में बिहारी हैं, अन्य कवि पजनेश, रसनिधि, बेनी प्रवीण, निवाज, हटी जी, कृष्ण कवि आदि हैं।

डॉ. नगेंद्र ने इन्हें रीतिबद्ध कवि कहा है

रीतिसिद्ध काव्य की प्रमुख विशेषताएं

श्रृंगार रस की प्रधानता।

भक्ति एवं नीति।

प्रकृति वर्णन।

ब्रजभाषा का माधुर्य।

मुक्तक शैली।

अलंकारों की प्रधानता।

अंगीरस― श्रृंगार।

रीतिमुक्त कवि : रीतिकाल की पूरी जानकारी

वे कवि जिन्होंने न ही तो लक्षण ग्रंथ रखें और न ही उनके नियमों के अनुसार काव्य रचना की, अपितु वे अपनी स्वतंत्र मनोवृति के अनुसार काव्य सृजन करते थे, रीतिमुक्त कवि कहलाए। घनानंद, आलम, बोधा, ठाकुर, द्विज देव आदि प्रमुख रीतिमुक्त कवि है।

रीतिमुक्त काव्य की प्रमुख विशेषताएं

रीतिमुक्त काव्य अनुभूतिप्रवण आत्मप्रधान एवं व्यक्तिपरक काव्य है।

इन कवियों का प्रेम एकांतिक, अनन्यता, तन्मयता आदि संपूर्ण भावों से ओतप्रोत है।

इस काव्य की मूल संवेदना प्रेम है जो वासनात्मक, मांसल और पंकिल न होकर हृदय की अनुभूति और उदात्त भावना पर आधारित है।

रीतिमुक्त कवियों का प्रेम व्यथा प्रधान है, संयोग में भी वियोग की कसक है।

प्रेम की पीर और विरहानुभूति रीतिमुक्त काव्यधारा की आत्मा है।

रीतिमुक्त कवियों ने नारी सौंदर्य का चित्रण स्वस्थ मानसिकता और परिष्कृत रुचि के साथ किया है।

ब्रजभाषा का प्रयोग ।

आत्मपरक मुक्तक शैली।

लोकोक्ति-मुहावरों का प्रयोग।

कवित्त, सवैया, दोहा आदि छंद।

श्रृंगार रस की प्रधानता― श्रृंगार का उदात्त रूप।

प्रेम की पीर का चित्रण।

कृष्ण लीला का प्रभाव।

अलंकारों की प्रधानता।

रीति काव्य का प्रवर्तक : रीतिकाल की पूरी जानकारी

इस संबंध में दो मत प्रचलित है―

डॉ श्याम सुंदर दास और डॉ नगेंद्र केशवदास को रीतिकाल का प्रवर्तक मानते हैं।

आचार्य रामचंद्र शुक्ला चिंतामणि त्रिपाठी को रीतिकाल का प्रवर्तक कवि स्वीकार करते हैं।

“इसमें संदेह नहीं है कि रीति काव्य का सम्यक समावेश पहले पहल आचार्य केशव ने ही किया………….. पर केशव के 50 वर्षों के पश्चात रीति ग्रंथों की अखंड परंपरा चिंतामणि त्रिपाठी से चली और वह भी एक भिन्न आदर्श के साथ अतः रीतिकाल का आरंभ चिंतामणि त्रिपाठी से मारना चाहिए।” आ. शुक्ल

सर्वमान्य मत के अनुसार केशव ही रीतिकाल के प्रवर्तक कवि हैं।

“हिंदी रीति निरूपण परंपरा का आरंभ कृपाराम की ‘हित तरंगिणी’ से ही माना जाना चाहिए।”― डॉ नगेंद्र

पर्यायवाची शब्द (महा भण्डार)

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अरस्तु और अनुकरण

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