त्रिलोचन शास्त्री Trilochana Shastri

त्रिलोचन शास्त्री Trilochana Shastri

Trilochana Shastri त्रिलोचन शास्त्री – जीवन परिचय – त्रिलोचन शास्त्री का साहित्य – रचनाएं – त्रिलोचन शास्त्री की काव्य कला – प्रसिद्ध काव्य

त्रिलोचन शास्त्री का जीवन परिचय

मूल नाम – वासुदेव सिंह

जन्म -20 अगस्त, 1917 सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश

मृत्यु -9 दिसम्बर, 2007 गाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश

विद्यालय -काशी हिन्दू विश्वविद्यालय

शिक्षा -एम.ए. (अंग्रेज़ी) एवं संस्कृत में ‘शास्त्री’ की डिग्री

विद्या- गद्य व पद्य

प्रसिद्धि -कवि तथा लेखक

काल- आधुनिक काल

युग- प्रगतिवादी युग

साहित्यिक आन्दोलन -प्रगतिशील धारा यथार्थवाद

त्रिलोचन शास्त्री Trilochana Shastri
त्रिलोचन शास्त्री Trilochana Shastri

त्रिलोचन शास्त्री का साहित्य

रचनाएँ

त्रिलोचन शास्त्री Trilochana Shastri के कविता संग्रह

धरती (1945)

गुलाब और बुलबुल (1956)

दिगंत (1957)

ताप के ताए हुए दिन (1980)

शब्द (1980)

उस जनपद का कवि हूँ (1981)

अरधान (1984)

तुम्हें सौंपता हूँ (1985)

मेरा घर

चैती

अनकहनी भी

काव्य और अर्थबोध

अरधान

अमोला मेरा घर

फूल नाम है एक (1985)

सबका अपना अपना आकाश-1987

जीने की कला (2004)

संपादित

मुक्तिबोध की कविताएँ

कहानी संग्रह

देशकाल

डायरी

दैनंदिनी

त्रिलोचन शास्त्री Trilochana Shastri के पुरस्कार एवं सम्मान

त्रिलोचन शास्त्री को 1989-90 में हिंदी अकादमी ने शलाका सम्मान से सम्मानित किया था।

हिंदी साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हे ‘शास्त्री’ और ‘साहित्य रत्न’ जैसे उपाधियों से सम्मानित किया जा चुका है।

1982 में ताप के ताए हुए दिन के लिए उन्हें साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिला था।

उत्तर प्रदेश हिंदी समिति पुरस्कार,

हिंदी संस्थान सम्मान,

मैथिलीशरण गुप्त सम्मान,

शलाका सम्मान,

भवानी प्रसाद मिश्र राष्ट्रीय पुरस्कार,

सुलभ साहित्य अकादमी सम्मान,

भारतीय भाषा परिषद सम्मान

त्रिलोचन शास्त्री Trilochana Shastri संबंधी विशेष तथ्य

इन्हें हिंदी सॉनेट (अंग्रेजी छंद) का साधक (स्थापित करने वाला कवि) माना जाता है। उन्होंने इस छंद को भारतीय परिवेश में ढाला और लगभग 550 सॉनेट की रचना की।

इन्होंने ‘प्रभाकर’, ‘वानर’, ‘हंस’, ‘आज’ और ‘समाज’ जैसी पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया।

ये जीवन में निहित मंद लय के कवि हैं|

इन्हें हिंदी के अनेक शब्द कोशों के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है|

“उनकी राष्ट्रीयता चेतना और व्यापकता सांस्कृतिक दृष्टि, उनकी वाणी का ओज और काव्यभाषा के तत्त्वों पर बल, उनका सात्त्विक मूल्यों का आग्रह उन्हें पारम्परिक रीति से जोड़े रखता है।” -अज्ञेय

“हमारे क्रान्ति-युग का सम्पूर्ण प्रतिनिधित्व कविता में इस समय दिनकर कर रहा है। क्रान्तिवादी को जिन-जिन हृदय-मंथनों से गुजरना होता है, दिनकर की कविता उनकी सच्ची तस्वीर रखती है।” -रामवृक्ष बेनीपुरी

“दिनकर जी सचमुच ही अपने समय के सूर्य की तरह तपे। मैंने स्वयं उस सूर्य का मध्याह्न भी देखा है और अस्ताचल भी। वे सौन्दर्य के उपासक और प्रेम के पुजारी भी थे। उन्होंने ‘संस्कृति के चार अध्याय’ नामक विशाल ग्रन्थ लिखा है, जिसे पं. जवाहर लाल नेहरू ने उसकी भूमिका लिखकर गौरवन्वित किया था। दिनकर बीसवीं शताब्दी के मध्य की एक तेजस्वी विभूति थे।” -नामवर सिंह

आदिकाल के साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार

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