नागार्जुन

नागार्जुन का जीवन परिचय

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मूल (वास्तविक) नाम- वैद्यनाथ मिश्र

अन्य नाम – नागार्जुन, यात्री

नोट:- 1936 ईस्वी में श्रीलंका में बौद्ध धर्म की दीक्षा लेने एवं बौद्ध भिक्षु बन जाने पर इनका नाम नागार्जुन पड़ा| ये श्रीलंका में बौद्ध धर्म के ‘विद्यालंकार परिवेण’ में तीन वर्ष तक रहे थे|

जन्म- 30 जून, 1911

जन्म भूमि- मधुबनी ज़िला, बिहार

मृत्यु -5 नवंबर, 1998

मृत्यु स्थान- दरभंगा ज़िला, बिहार

पिता- गोकुल मिश्र

पत्नी – अपराजिता देवी

कर्म-क्षेत्र -कवि, लेखक, उपन्यासकार

युग- प्रगतिवादी युग

नागार्जुन का साहित्यिक परिचय

नागार्जुन की रचनाएं

युगधारा 1953

सतरंगे पंखों वाली 1959

प्यासी पथराई आंखे 1962

तालाब की मछलियां

तुमने कहा था 1980

खिचड़ी विप्लव देखा हमने 1980

हजार-हजार बाहों वाली 1981

भस्मांकुर (खंडकाव्य)

एसे भी हम क्या-ऐसी भी तुम क्या

पुरानी जूतियों का कोरस 1983

रत्नगर्भ

काली माई

रवींद्र के प्रति

बादल को घिरते देखा है (कविता)

प्रेत का बयान

आओ रानी हम ढोएं पालकी

वे और तुम

आकाल और उसके बाद

सिंदूर तिलांकित भाल (कविता)

आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने

मैं मिलिट्री का बूढ़ा घोड़ा

तुम्हारी दंतुरित मुस्कान (कविता)

इस गुब्बारे की छाया में-1989

ओम मंत्र

भुल जाओ पुराने सपनें

उपन्यास

‘रतिनाथ की चाची’ (1948 ई.)

‘बलचनमा’ (1952 ई.)

‘नयी पौध’ (1953 ई.)

‘बाबा बटेसरनाथ’ (1954 ई.)

‘दुखमोचन’ (1957 ई.)

‘वरुण के बेटे’ (1957 ई.)

उग्रतारा

कुंभीपाक

पारो

आसमान में चाँद तारे

मैथिली रचनाएं

हीरक जयंती (उपन्यास)

पत्रहीन नग्न गाछ (कविता-संग्रह)

बाल साहित्य

कथा मंजरी भाग-1

कथा मंजरी भाग-2

मर्यादा पुरुषोत्तम

विद्यापति की कहानियाँ

व्यंग्य

अभिनंदन

निबंध संग्रह

अन्न हीनम क्रियानाम

बांग्ला रचनाएँ

मैं मिलिट्री का पुराना घोड़ा (हिन्दी अनुवाद)

सम्मान और पुरस्कार

नागार्जुन को साहित्य अकादमी पुरस्कार से, उनकी ऐतिहासिक मैथिली रचना ‘पत्रहीन नग्न गाछ’ के लिए 1969 में सम्मानित गया था।

उन्हें साहित्य अकादमी ने 1994 में साहित्य अकादमी फेलो के रूप में भी नामांकित कर सम्मानित किया था।

विशेष तथ्य : नागार्जुन का जीवन परिचय

नागार्जुन मैथिली भाषा में ‘यात्री’ के नाम से कविता लिखते थे|

किसी अंधविश्वास के कारण बचपन में इनका नाम ‘ढ़क्कन’ रखा गया था|

लोग इन्हें प्यार से ‘बाबा’ भी कहते थे|

उन्होंने इंदिरा गांधी की राजनीति को केंद्र बनाकर एवम् उन पर अनेक आरोप लगाकर कविताएं लिखी थी|

यह व्यंग्य में माहिर है इसलिए इन्हें ‘आधुनिक कबीर’ भी कहा जाता है|

इन्होंने प्रगतिवादी काव्यधारा को जन-जन के अभाव व आकांक्षाओं से जोड़कर उसे जन जागरण की कविता बना दिया था|

इनके द्वारा ‘दीपक’ नामक पत्रिका का संपादन कार्य किया गया था

यह जन्म से कवि, प्रकृति से घुमक्कड़ एवं विचारों से मूलतः मार्कसवादी माने जाते हैं|

नागार्जुन ने अपनी भाषा में ‘ठेठ ग्रामीण शैली के मुहावरो’ का प्रयोग किया है|

इनकी मृत्यु के बाद ‘सोमदेव’ तथा ‘शोभाकांत’ के संपादन में इनकी एक लंबी कविता ‘भूमिजा’ प्रकाशित हुई थी|

इनका संपूर्ण कृतित्व ‘नागार्जुन रचनावली’ के ‘सात’ खंडों में प्रकाशित है|

कवि आलोक धन्‍वा ने नागार्जुन की रचनाओं को संदर्भित करते हुए कहा कि उनकी कविताओं में आज़ादी की लड़ाई की अंतर्वस्‍तु शामिल है।

नागार्जुन ने कविताओं के जरिए कई लड़ाईयाँ लडीं।

वे एक कवि के रूप में ही महत्‍वपूर्ण नहीं है अपितु नए भारत के निर्माता के रूप में दिखाई देते हैं।

“नागार्जुन जैसा प्रयोगधर्मा कवि कम ही देखने को मिलता है, चाहे वे प्रयोग लय के हों, छंद के हों, विषयवस्तु के हों।”- नामवर सिंह

प्रसिद्ध पंक्तियां : नागार्जुन का जीवन परिचय

“खिचड़ी विप्लव देखा हमने
भोगा हमने क्रांति विलास
अब भी खत्म नहीं होगा क्या
पूर्णक्रांति का भ्रांति विलास।”

” काम नहीं है, दाम नहीं है
तरुणों को उठाने दो बंदूक
फिर करवा लेना आत्मसमर्पण”

“पांच पूत भारतमाता के, दुश्मन था खूंखार
गोली खाकर एक मर गया, बाकी बच गए चार
चार पूत भारतमाता के, चारों चतुर-प्रवीन
देश निकाला मिला एक को, बाकी बच गए तीन
तीन पूत भारतमाता के, लड़ने लग गए वो
अलग हो गया उधर एक, अब बाकी बच गए दो
दो बेटे भारतमाता के, छोड़ पुरानी टेक
चिपक गया एक गद्दी से, बाकी बच गया एक
एक पूत भारतमाता का, कंधे पर था झंडा
पुलिस पकड़ कर जेल ले गई, बाकी बच गया अंडा !”

“कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास
कई दिनों तक काली कुत्तिया, सोई उसके पास ||”

” बदला सत्य, अहिंसा बदली, लाठी-गोली डंडे है कानूनों की सड़ी लाश पर प्रजातंत्र के झंडे हैं|”

आदिकाल के प्रमुख साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक-काल के साहित्यकार

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