मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या – Mokshagundam Visvesvaraya

मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या Mokshagundam Visvesvaraya – आधुनिक भारत के निर्माता

भारतीय इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या – Mokshagundam Visvesvaraya के संपूर्ण जीवन परिचय के साथ-साथ अभियंता दिवस, उनकी शिक्षा, कार्य, पुरस्कार एवं सम्मान के बारे में पूरी जानकारी जानेंगे।

एक 6 वर्षीय बालक अपने घर के बरामदे में खड़ा बारिश का दृश्य देख रहा था बालक के घर के पास बहने वाली नाली का पानी उमड़ घुमड़ रहा था।

उसमें छोटे-छोटे भंवर उठ रहे थे और कहीं कहीं और सोनाली ने प्रपात का रूप ले रखा था बहाव अपने साथ कई छोटे-बड़े कंकड़ मित्रों को भी बधाई ले जा रहा था।

अचानक कुछ अवश्य मालिक ने देखा कि ताड़ पत्र की छतरी हाथ में लिए एक आकृति खड़ी है बालक उस आकृति को भलीभांति पहचानता था उसके कपड़े फटे हुए थे वह एक झोपड़ी में रहती थी उसके बच्चे कभी स्कूल नहीं जाते थे।

वह गरीब थी मैं छोटा सा बालक बड़ी गंभीरता से प्रकृति और गरीबी के कारणों को जानने का प्रयास करता।

अपने अध्यापकों से वाद-विवाद करता परिवार वालों से जानने का प्रयास करता यह बालक था आधुनिक भारत का निर्माता सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया हम भारत के औद्योगिक विकास में इनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी।

मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या
मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या

मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या जीवन परिचय

आइए अब जानते हैं भारतीय इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या के संपूर्ण जीवन परिचय के साथ-साथ अभियंता दिवस, उनकी शिक्षा, कार्य, पुरस्कार एवं सम्मान के बारे में पूरी जानकारी-

विश्वेश्वरैया के पूर्वज आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले के मोक्षगुंडम गांव के निवासी थे।

सैकड़ों वर्ष पूर्व इनका परिवार तात्कालिक मैसूर राज्य (वर्तमान कर्नाटक) के कोलार जिले के मुद्देनाहल्ली गांव में आ बसे।

यह गांव वर्तमान बेंगलुरु शहर से 60 किलोमीटर दूर है।

इसी गांव में मोक्षगुंडम श्रीनिवास शास्त्री और वेंकटलक्ष्म्मा के घर 15 सितंबर 1860 को विश्वेश्वर्या का जन्म हुआ।

यह दशक भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी दशक में रवींद्र नाथ टैगोर (1861), प्रफुल्ल चंद्र राय (1861), मोतीलाल नेहरू 1861, मदनमोहन मालवीय (1861), स्वामी विवेकानंद (1863), आशुतोष मुखर्जी (1864), लाला लाजपत राय (1865), गोपाल कृष्ण गोखले (1866) और महात्मा गांधी (1869) जैसे महापुरुषों का जन्म हुआ।

दक्षिण भारतीय परंपरा के अनुसार यहां के लोग अपने बच्चों के नाम के साथ अपने पैतृक गांव का नाम भी जोड़ते हैं, अतः विश्वेश्वरिया के नाम के साथ भी उनका पैतृक गांव मोक्षगुंडम का नाम उनके माता-पिता ने जोड़ दिया और उनका नामकरण हुआ मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया। मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया आगे चलकर सर एम वी के नाम से विख्यात हुए।

शिक्षा

आइए अब जानते हैं भारतीय इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या के संपूर्ण जीवन परिचय के साथ-साथ अभियंता दिवस, उनकी शिक्षा, कार्य, पुरस्कार एवं सम्मान के बारे में पूरी जानकारी-

विश्वेश्वर्या जो 5 वर्ष के थे तभी उनका परिवार चिकबल्लापुर आ गया चिकबल्लापुर में ही इनकी आरंभिक शिक्षा हुई हाईस्कूल तक की शिक्षा उन्होंने इसी गांव के विद्यालय से प्राप्त की पिता की मृत्यु के बाद यह बेंगलुरु अपने मामा के पास चले आए उस समय इनकी आयु 12 वर्ष थी।

यहां आकर विश्वेश्वर्या ने सेंट्रल कॉलेज में प्रवेश लिया और 1880 में बीए की परीक्षा विशेष योग्यता के साथ उत्तीर्ण की इसके बाद विश्वेश्वर्या इंजीनियरिंग की पढ़ाई करना चाहते थे लेकिन घरेलू परिस्थितियों इस बात की आज्ञा नहीं देती थी कि यह इंजीनियरिंग कॉलेज में जा सके सौभाग्य से ने मैसूर राज्य से छात्रवृत्ति मिल गई और उन्होंने पुणे के साइंस कॉलेज में प्रवेश ले लिया।

यहां उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की 1883 में मुंबई विश्वविद्यालय के समस्त कॉलेजों में सर्वोच्च अंक प्राप्त कर विश्वेश्वरैया ने इंजीनियरिंग की डिग्री भी प्राप्त कर ली। इस सफलता पर उन्हें उस समय का प्रतिष्ठित जेम्स बोर्कले मेडल भी प्राप्त हुआ।

प्रथम नियुक्ति

1884 में विश्वेश्वरय्या की नियुक्ति मुंबई प्रेसिडेंसी सरकार के लोक निर्माण विभाग में नासिक में हुई।

मुंबई प्रेसिडेंसी में आप 1908 ईस्वी तक रहे।

इस समयावधि में विश्वेश्वरैया ने पूना (पुणे), कोल्हापुर, धारवाड़, बेलगाम बीजापुर आदि कई शहरों की जलापूर्ति योजना तैयार की।

नियमित कार्यों के साथ-साथ विश्वेश्वरैया बाढ़ नियंत्रण, बांध सुदृढ़ीकरण, जलापूर्ति, नगरीय विकास, सार्वजनिक निर्माण, सड़क, भवन इत्यादि के निर्माण की महत्वाकांक्षी योजनाओं से जुड़े रहे।

सक्खर में स्वच्छ जल

1892 में जब सक्खर (सिंध) नगर परिषद सक्खर शहर की जलापूर्ति योजना में असमर्थ हो गयी थी।

तो विश्वेश्वरैया ने ही सक्खर शहर को स्वच्छ जलापूर्ति करवायी।

यह उनकी ही बुद्धि का परिणाम था कि सिंधु नदी के पास ही एक कुआं खोदकर उसमें रेत की कई परतें बिछाई गई और उसे एक सुरंग द्वारा नदी से जोड़ दिया गया।

सुरंग से कुएं में आने वाला पानी स्वतः ही रेत से रिस-रिस कर फिल्टर हो जाता।

जिसे पंप द्वारा पहाड़ की चोटी पर ले जाया गया और वहां से शहर में जलापूर्ति की गयी।

पुणे में विश्वेश्वरैया

पुणे में विश्वेश्वरैया ने सिंचाई की नई पद्धति जिसे सिंचाई की ब्लॉक पद्धति कहा जाता है प्रारंभ की।

जिससे नहर के पानी की बर्बादी को रोका जा सके।

1901 में विश्वेश्वरैया ने बांधों की जल भंडारण क्षमता में वृद्धि के लिए विशेष प्रकार के जलद्वारों का निर्माण किया।

इन विशेष जलद्वारों से बांध में 25 प्रतिशत अधिक पानी भंडारण किया जा सकता था।

आज इन्हें विश्वेश्वरय्या फाटक कहते हैं। विश्वेश्वरैया ने इनका पेटेंट अपने नाम से करवाया।

इन फाटकों का पहला प्रयोग मुथा नदी की बाढ़ पर नियंत्रण के लिए खडकवासला में किया गया।

इस सफल प्रयोग के बाद तिजारा बांध ग्वालियर, कृष्णसागर बांध मैसूर और अन्य बड़े बांधों में इन जलद्वारों का सफल प्रयोग किया गया।

अदन बंदरगाह की छावनी में पानी की समस्या

1906 अदन बंदरगाह के सैनिक छावनी पीने के पानी की भारी कमी थी।

इस समस्या के निवारण के लिए विश्वेश्वरिया को वहां भेजा गया।

विश्वेश्वरैया ने अदन से 97 किलोमीटर दूर उत्तर की ओर पहाड़ी क्षेत्र की खोज की जहां पर्याप्त वर्षा होती थी।

क्षेत्र में बहने वाली नदी के तल में बंद मुंह वाले कुएँ बनाए गए और वर्षा जल को एकत्र कर पम्पों द्वारा अदन बंदरगाह तक पहुंचाया गया।

हैदराबाद में सेवाएं

1907-08 तक मुंबई प्रेसिडेंसी में सेवाएं देने के बाद 1909 में हैदराबाद के निजाम का एक अनुरोध विश्वेश्वरय्या को प्राप्त हुआ।

इस अनुरोध पर उन्होंने बाढ़ से नष्ट हुए हैदराबाद शहर का पुनर्निर्माण तथा भविष्य में बाढ़ से बचने की विशेष योजना तैयार की।

मैसूर राज्य के चीफ इंजीनियर और दीवान

मुंबई प्रेसिडेंसी के सेवा में रहते हुए 1907 में कुछ समय के लिए विश्वेश्वरिया तीन सुपरीटेंडेंट इंजीनियरों का उत्तर दायित्व संभाल रहे थे

परंतु वे जानते थे कि यहां रहते हुए वे चीफ इंजीनियर के पद पर कभी नहीं पहुंच सकते।

क्योंकि यह पद केवल अंग्रेजों के लिए ही सुरक्षित था।

1907 में उन्होंने राजकीय सेवा से त्यागपत्र दे दिया और विदेश भ्रमण के लिए चले गए।

1909 में विश्वेश्वरैया को मैसूर राज्य से चीफ इंजीनियर पद के लिए आमंत्रित किया गया।

उन्होंने सरकार से पहले यह आश्वासन लिया कि उनकी योजनाएं पूरी करने में कोई उच्चाधिकारी अकारण ही बाधा नहीं डालेगा।

सरकार द्वारा आश्वस्त किए जाने के बाद 1909 में विश्वेश्वरैया ने चीफ इंजीनियर का कार्यभार संभाल लिया।

इसके साथ ही उन्हें रेल सचिव भी नियुक्त किया गया।

कार्यभार संभालते ही विश्वेश्वरैया ने राज्य में सिंचाई और बिजली की तरफ ध्यान दिया

और रेलों का जाल बिछाने के लिए एक महत्वकांक्षी योजना तैयार की।

1912 में विश्वेश्वर्या को मैसूर राज्य का दीवान बना दिया गया किसी इंजीनियर का इस पद पर पहुंचना पहली बार हुआ था।

इसलिए यह लोगों में एक आश्चर्य का विषय भी था।

मैसूर राज्य में शिक्षा

मैसूर राज्य के दीवान पद पर रहते हुए विश्वेश्वरैया ने अनेक योजनाएं पूरी की।

इसके साथ ही उन्होंने राज्य की शिक्षा की तरफ भी पर्याप्त ध्यान दिया।

उन्हीं के प्रयासों से मैसूर विश्वविद्यालय की स्थापना हुई जो देसी रियासतों में पहला विश्वविद्यालय था।

मैसूर में औद्योगिकरण

विश्वेश्वरैया के अथक प्रयासों से मैसूर राज्य में रेशम, चंदन के तेल, साबुन, धातु, चमड़ा रंगने आदि के कारखाने लगे।

भद्रावती में लौह इस्पात कारखाने की योजना भी विश्वेश्वरिया की ही देन है।

उन्हीं के प्रयासों से अक्टूबर 1913 में बैंक ऑफ मैसूर की स्थापना हुयी।

दीवान का पद त्याग

1917-18 में जब विश्वेश्वरैया की ख्याति अपने चरमोत्कर्ष पर थी तब उनके विरोधी राज्य में तरह-तरह की अफवाहें उड़ा रहे थे।

उन्होंने राजा तथा दीवान के बीच अविश्वास का वातावरण उत्पन्न कर दिया था।

जिसके कारण 1918 में विश्वेश्वरैया ने दीवान का पद छोड़ दिया।

दीवान का पद छोड़ने के बाद विश्वेश्वरैया स्वतंत्र रहकर कार्य करने लगे।

1923 में उन्होंने भद्रावती के लोहे के कारखाने का अध्यक्ष बनना स्वीकार किया, बेंगलुरु के लिए पेयजल योजना तैयार की।

1927 में कृष्णराजा सागर बांध से संबंधित नहरों व सुरंगों का काम पूरा किया।

हीराकुंड बांध और विश्वेश्वरैया

1937 में उड़ीसा में आई विनाशकारी बाढ़ से दुखी होकर महात्मा गांधी ने विश्वेश्वरैया से अनुरोध किया कि वे उड़ीसा जाकर बाढ़ से रोकथाम संबंधी कार्य करें।

1938 में विशेष औरैया में महा नदी के डेल्टा का गहन अध्ययन किया।

और अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी इसी रिपोर्ट के आधार पर हीराकुंड बांध का निर्माण हुआ।

भारत की प्रथम बहुउद्देश्यीय परियोजना

1902 में शिवसमुद्रम झरने पर बिजली घर लगाया गया। लेकिन योजना लगभग असफल रही।

मैसूर सरकार के सामने कोलार की खानों को पर्याप्त बिजली देने की चुनौती आ गयी।

इस समय मैसूर राज्य के चीफ इंजीनियर विश्वेश्वरैया थै जो बिजली विभाग के सचिव भी थे।

उन्होंने एक महत्वकांक्षी योजना तैयार की। इसके अंतर्गत कावेरी नदी पर एक बहुत बड़ा जलाशय बनाने की योजना थी।

यह परियोजना लगभग 253 करोड रुपए की थी।

सबसे बड़ी समस्या इसे वित्त विभाग से मंजूरी दिलवाने की थी।

उसके बाद भी अनेक समस्याएं आ रही, लेकिन सभी समस्याओं पर विजय प्राप्त कर 1911 में बांध की नींव डाली गयी।

केवल नींव डालना ही काफी नही था, बहुत सी मानवीय और प्राकृतिक आपदाएं इस परियोजना में आती रही।

लेकिन फिर भी विश्वेश्वरैया जी ने समय पर परियोजना को पूरा कर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया।

कावेरी नदी पर कृष्णा राजा सागर बांध बन जाने से कर्नाटक कि एक लाख एकड़ भूमि पर सिंचाई होने लगी चीनी के मिलें, रुई की मिलें, सूती कपड़े की मिलें लगाई गयी।

बिजली बनाने के लिए विशाल बिजलीघर लगाया गया, जिससे कोलार की खानों की बिजली आवश्यकता पूरी करने के बाद भी अनेक उद्योगों को बिजली दी गयी।

अनेक शहरों में पेयजल योजनाओं को पूरा इसी जलाशय के माध्यम से किया गया।

अन्य कार्य

देश में उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए विश्वेश्वरैया ने अखिल भारतीय निर्माता संघ की स्थापना की सन 1941 से 1956 तक वहीं संघ के अध्यक्ष रहे।

अनेक सरकारी व गैर सरकारी समितियों से जुड़े रहे 1922 में वे नई दिल्ली नगर निर्माण कमेटी के सदस्य बने उसी वर्ष उन्हे सर्वदलीय प्रतिनिधि राजनीतिक कॉन्फ्रेंस की अध्यक्षता करने का मौका मिला।

विश्वेश्वरैया जी ने लगभग 70 वर्षों तक देश की सेवा की।

1960 में उनका जन्म शताब्दी वर्ष पूरे देश में धूमधाम के साथ मनाया गया।

पुरस्कार एवं सम्मान

आइए अब जानते हैं भारतीय इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या के संपूर्ण जीवन परिचय के साथ-साथ अभियंता दिवस, उनकी शिक्षा, कार्य, पुरस्कार एवं सम्मान के बारे में पूरी जानकारी-

7 सितंबर 1955 के दिन विश्वेश्वरैया को देश के सर्वोच्च नागरिक से भारत रत्न से अलंकृत किया गया।

इससे पूर्व भी इन्हे अनेक पुरस्कार प्राप्त हो चुके थे परंतु भारत रत्न के साथ-साथ जो सबसे महत्वपूर्ण सम्मान भारत सरकार द्वारा प्रदान किया गया वह था।

इनके जन्म दिवस 15 सितंबर को राष्ट्रीय अभियंता दिवस के रूप में बनाए जाने की घोषणा करना।

अन्य पुरस्कार

सन् 1911 में दिल्ली दरबार में उन्हें कम्पैनियन ऑफ इंडियन इम्पायर (सी० आई० ई०) के खिताब से सम्मानित किया गया था।

मैसूर राज्य में वाइसराय की यात्रा के बाद सन् 1915 में वे नाइट कमांडर ऑफ दी आर्डर ऑफ दी इंडियन इम्पायर (के० सी० आई० ई०) से सम्मानित किए गए थे।

इस प्रकार वे सर विश्वेश्वरैया बने।

विश्वेश्वरैया को आठ विश्वविद्यालयों से मानद उपाधियाँ प्राप्त हुईं।

बम्बई और मैसूर विश्वविद्यालयों से एल-एल० डी०
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय और आंध विश्वविद्यालय से डी० लिट्०
कोलकाता, पटना, इलाहाबाद और जादवपुर विश्वविद्यालयों द्वारा उन्हें डी० एस० की मानद उपाधियाँ दी गईं।

उन्होंने समय-समय पर अनेक विश्वविद्यालयों के दीक्षांत-भाषण भी दिए

रायल एशियाटिक सोसायटी, काउंसिल ऑफ बंगाल, कलकत्ता द्वारा फरवरी 1958 में विश्वेश्वरैया को दुर्गा प्रसाद खेतान स्वर्ण पदक प्राप्त हुआ।

वे सन् 1887 में ही इंस्टीट्यूट ऑफ सिविल इंजीनियर्स के सह सदस्य बन गए थे। सन् 1904 में सदस्य।

सन् 1952 में उनका नाम इंस्टीट्यूट की सूची में बगैर शुल्क के रखना तय हुआ।

इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियर्स (भारत) के तो वे सन् 1943 से सम्मानित आजीवन सदस्य थे।

इंडियन साइंस कांग्रेस एसोसिएशन के सम्मानित सदस्य

इंस्टीट्यूट ऑफ टाउन प्लानिंग (भारत) के सम्मानित फैलो भी रहे।

भारत के विश्व प्रसिद्ध संस्थान इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस बंगलौर की कोर्ट के लगातार 9 वर्षों तक अध्यक्ष रहे।

टाटा आयरन और स्टील कम्पनी के लगभग 28 वर्षों तक डायरेक्टर रहे।

उन्होंने जनवरी 1923 में लखनऊ में हुए इंडियन कांग्रेस के अधिवेशन की अध्यक्षता की।

विश्वेश्वरैया के जन्म शताब्दी पर भारत सरकार ने एक विशेष डाक टिकट जारी किया।

मृत्यु

अपने 102 वर्ष के लंबे जीवन काल में इन्होंने छोटे-बड़े अनेक कार्य किए और 1962 में उन्होंने अपनी भौतिक दे को त्याग कर परलोक गमन किया।

आशा है कि आपको भारतीय इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या के संपूर्ण जीवन परिचय के साथ-साथ अभियंता दिवस, उनकी शिक्षा, कार्य, पुरस्कार एवं सम्मान के बारे में पूरी जानकारी पसंद आयी होगी।

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