भारत रत्न डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन

3 thoughts on “भारत रत्न डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन”

  1. बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा।
    सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥
    अमिअ मूरिमय चूरन चारू।
    समन सकल भव रुज परिवारू॥
    भावार्थ-
    मैं गुरु महाराज के चरण कमलों की रज की वन्दना करता हूँ, जो सुरुचि, सुगंध तथा अनुराग रूपी रस से पूर्ण है। वह अमर मूल (संजीवनी जड़ी) का सुंदर चूर्ण है, जो सम्पूर्ण भव रोगों के परिवार को नाश करने वाला है॥

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