मेजर ध्यानचंद जीवन परिचय
मेजर ध्यानचंद Major Dhayanchand जीवन परिचय पुरस्कार एवं सम्मान तथा संपूर्ण जानकारी
“हमारी टीम से खेलो हम तुम्हें जर्मनी की नागरिकता और जर्मन सेना में जनरल का पद देंगे।”
1936 के बर्लिन ओलंपिक में हॉकी के फाइनल मैच में भारत से मिली करारी हार के बाद जर्मन तानाशाह हिटलर ने यह शब्द हॉकी के जादूगर ध्यानचंद से कहे थे।
ध्यानचंद ने बड़ी निर्भीकता से जर्मन नागरिकता और सेना का पद ठुकरा दिया और भारतीय स्वाभिमान को और अधिक दृढ़ कर दिया।
जीवन परिचय : मेजर ध्यानचंद Major Dhayanchand जीवन परिचय पुरस्कार एवं सम्मान तथा संपूर्ण जानकारी
भारतीय हॉकी के आदिपुरुष मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हुआ।
ध्यानचंद के पिता ब्रिटिश भारतीय सेना में थे, इसलिए स्थानांतरण के कारण एक शहर से दूसरे शहर जाते रहते थे।
ध्यानचंद के जन्म के कुछ समय बाद ही उनके पिता का स्थानांतरण झांसी हो गया और वे झांसी में बस गये।
हॉकी से परिचय : मेजर ध्यानचंद Major Dhayanchand जीवन परिचय पुरस्कार एवं सम्मान तथा संपूर्ण जानकारी
कहा जाता है कि शुरुआत में ध्यानचंद की हॉकी में कोई विशेष रूचि नहीं थी
लेकिन डॉ. विभा खरे के अनुसार ध्यानचंद बचपन से ही हॉकी की ओर आकर्षित थे।
उनके इसी आकर्षण को देखकर उनके पिता ने उन्हें हॉकी खेलने के लिए प्रेरित किया।
उनके खेल से प्रभावित होकर एक अंग्रेज ने उन्हें सेना में भर्ती होने के लिए प्रेरित किया।
उसी अंग्रेज की प्रेरणा पाकर 1922 में ध्यानचंद तात्कालिक ब्रिटिश भारतीय सेना में एक सिपाही के रूप में इकतालीस वी पंजाब रेजिमेंट में शामिल हो गए, जहां उन्हें भोला तिवारी नामक कोच मिले।
तिवारी कोच से ध्यानचंद ने हॉकी के कई मंत्र सीखे, लेकिन हॉकी का असली मंत्र ध्यानचंद के मस्तिष्क में ही था।
वह मैदान की वास्तविक स्थिति और खिलाड़ियों की सही पोजीशन बहुत जल्दी भाँप जाते थे।
पहली अंतरराष्ट्रीय श्रृंखला
ध्यानचंद 1922 में सेना में भर्ती हुए और वहीं से हॉकी की शुरुआत की।
1926 में पहली बार ध्यानचंद को न्यूजीलैंड जाने का अवसर प्राप्त हुआ।
मौका था भारतीय हॉकी टीम का न्यूजीलैंड दौरा।
इस दौरे पर जाने के लिए ध्यानचंद की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, फिर भी वे खुशी-खुशी जैसी व्यवस्था हुई उसी के साथ गए।
इस श्रृंखला में कुल 5 मैच खेले गए थे।
जिनमें से सभी में भारत ने विजयश्री प्राप्त की।
पूरी श्रृंखला में भारतीय दल द्वारा साठ गोल किए गए जिसमें से पैंतीस अकेले ध्यानचंद ने किये थे।
ओलंपिक की यात्रा : मेजर ध्यानचंद Major Dhayanchand जीवन परिचय पुरस्कार एवं सम्मान तथा संपूर्ण जानकारी
1928 का एम्सटर्डम ओलंपिक
वर्ष 1928 में एम्सटर्डम (नीदरलैंड) में ओलंपिक खेलों का आयोजन हुआ।
भारतीय हॉकी टीम ने पहली बार ओलंपिक में भाग लिया।
भारत की शुरुआत बहुत ही भव्य रही।
उसने अपने पहले ही मैच में ऑस्ट्रेलिया को 6-0 से हराया।
इसके बाद बेल्जियम को 9-0 के अंतर से डेनमार्क को 5-0 के अंतर से स्विट्जरलैंड को 6-0 के अंतर से हराकर एक तरफा जीत प्राप्त की।
फाइनल में हॉलैंड को 3-0 से हराकर अपनी जीत का डंका पूरी दुनिया में बजा दिया।
स्वर्ण पदक विजेता भारतीय दल की विजय के नायक ध्यानचंद ही थे।
फाइनल मैच में ध्यानचंद ने दो गोल किए।
1932 का लॉस एंजलिस ओलंपिक
1932 में ओलंपिक खेलों का आयोजन अमेरिका की खूबसूरत शहर लॉस एंजिलिस में हुआ।
भारतीय दल ने इस बार पिछले ओलंपिक से भी जबरदस्त हॉकी खेली और पहले ही मैच में जापान को 11-0 के बड़े अंतर से हराया।
जिसमें ध्यानचंद ने चार गोल किए।
इसी ओलंपिक के में भारतीय टीम ने फाइनल में मेजबान अमेरिका को 24-1 के विशाल अंतर से हराया जो आज भी एक विश्व कीर्तिमान है।
इस मैच की कवरेज करते हुए लॉस एंजेलिस के एक अखबार ने लिखा कि- “भारतीय दल ध्यानचंद और रूप सिंह के रूप में एक ऐसा तूफान लाया है, जिसने नचा-नचा कर अमेरिकी खिलाड़ियों को मैदान के बाहर ला पटका और खाली मैदान पर भारतीय खिलाड़ियों ने मनचाहे गोल किए।”
अखबार ने यह भी लिखा कि- “भारतीय हॉकी टीम तो पूर्व से आया तूफान थी। उसने अपने वेग से अमेरिकी टीम के ग्यारह खिलाड़ियों को कुचल दिया।”
1936 का बर्लिन ओलंपिक
1936 में ओलंपिक खेलों का आयोजन जर्मनी के बर्लिन शहर में हुआ।
भारतीय टीम का डंका पहले ही सारी दुनिया में बज चुका था, लेकिन जर्मनी के साथ अपने अभ्यास मैच में भारतीय टीम 4-1 से पराजित हो गई।
यह भारतीय टीम के लिए इतनी जबरदस्त थी कि पूरी टीम सारी रात सो नहीं सकी।
इस हार के लिए ध्यान चंद अपनी आत्मकथा ‘गोल’ में लिखते हैं-
“मैं जब तक जीवित रहूँगा। इस हार को कभी नहीं भूलूंगा। इस हार ने हमें इतना हिला कर रख दिया कि हम पूरी रात सो नहीं पाए। हमने तय किया कि इनसाइड राइट पर खेलने के लिए आईएनएस दारा को तुरंत भारत से हवाई जहाज़ से बर्लिन बुलाया जाए।”
जर्मनी के ख़िलाफ फ़ाइनल मैच
जर्मनी के ख़िलाफ फ़ाइनल मैच 14 अगस्त 1936 को खेला जाना था, लेकिन उस दिन बहुत बारिश हो गई, इसलिए मैच 15 अगस्त को खेला गया।
मैच से पहले भारतीय टीम के मैनेजर पंकज गुप्ता ने अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का झंडा निकाला (उस समय भारत का कोई ध्वज नहीं था क्योंकि उस समय भारत परतंत्र था।अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का ध्वज ही राष्ट्रीयता का प्रतीक था।)
सभी खिलाड़ियों ने उसे सेल्यूट किया।
40,000 लोगों की क्षमता वाला बर्लिन का स्टेडियम बड़ौदा के महाराजा, भोपाल की बेगम और जर्मन तानाशाह हिटलर सरीखे महत्वपूर्ण लोगों तथा जन सामान्य से खचाखच भरा हुआ था।
भारत ने जर्मनी को 8-1 के बड़े अंतर से हराया
इसमें तीन गोल ध्यानचंद ने किए।
अगले दिन एक अख़बार मॉर्निंग पोस्ट ने लिखा-
“बर्लिन लंबे समय तक भारतीय टीम को याद रखेगा. भारतीय टीम ने इस तरह की हॉकी खेली मानो वो स्केटिंग रिंक पर दौड़ रहे हों। उनके स्टिक वर्क ने जर्मन टीम को अभिभूत कर दिया.”
ऑस्ट्रेलिया न्यूजीलैंड का दौरा 1934
1934 में ऑस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड के दौरे के दौरान भारतीय टीम ने कुल 48 मैच खेले।
(कहीं-कहीं इस दौरे का वर्ष 1935 भी बताया जाता है।)
पूरी टीम ने 584 गोल किये।
ध्यानचंद के खेल में इतनी विविधता, तीव्रता और गति थी कि अकेले ध्यानचंद ने 200 गोल किये।
गोलों की विशाल संख्या देखकर ऑस्ट्रेलिया के महान क्रिकेटर डॉन बैडमेन आश्चर्यचकित होकर बोले कि-
“ये किसी क्रिकेट खिलाड़ी द्वारा बनाए गए दोहरे शतक की संख्या तो नहीं है।”
ध्यानचंद जी के बारे में ऑस्ट्रेलियन प्रेस की टिप्पणी ने तो पूरे विश्व में तहलका मचा दिया था कि-
“देखने में सामान्य सा दिखने वाला खिलाड़ी एक सक्रिय क्रिस्टल की तरह रहता है और किसी भी परिस्थिति से निपटने की उसमें जन्मजात क्षमता है। उसके पास बाज की आंखें और चीते की गति है।”
पुरस्कार एवं सम्मान :मेजर ध्यानचंद Major Dhayanchand जीवन परिचय पुरस्कार एवं सम्मान तथा संपूर्ण जानकारी
भारत सरकार द्वारा सन् 1956 में पद्मभूषण।
सन् 1989 में मरणोपरांत ध्यानचंद के नाम से डाक टिकट।
8 मार्च सन् 2002 को राष्ट्रीय स्टेडियम दिल्ली का पुनः नामकरण ध्यानचंद जी के नाम पर।
झांसी के पूर्व सांसद पंडित विश्वनाथ शर्मा की मांग – मेजर ध्यानचंद जी के जन्म दिवस 29 अगस्त को ‘खेल दिवस’ घोषित किया जाए।
1994 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की सरकार ने 29 अगस्त को विधिवत् राष्ट्रीय खेल दिवस घोषित कर दिया।
उपनाम
ध्यान चंद जी को ‘हॉकी के जादूगर’ के नाम से जाना जाता है
उन्हें यह उपाधि कब और किसने दी इसकी तो कोई सही और निश्चित जानकारी नहीं है
लेकिन इतना अवश्य है कि एमस्टर्डम में एक मैच के दौरान उनकी स्टिक को तोड़कर देखा गया था कि कहीं उसमें कोई मैग्नेट तो नहीं है।
यह सिर्फ एक घटना नहीं है।
ऐसी कई और घटनाएं हैं जब उनकी हॉकी स्टिक की जांच की जाती थी।
ऐसी ही घटनाएं उन्हें हॉकी का जादूगर कहने के लिए काफी हैं।
अंतिम समय
20 नवंबर 1979 को मेजर ध्यानचंद जी अचानक बीमार पड़ गये, उन्हें दिल्ली ले जाया गया। उपचार के बावजूद ध्यानचंद जी ने 3 दिसंबर 1979 को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में इस भौतिक संसार से सदा-सदा के लिए विदा ले ली।
अनेक किंवदंतियां इस महान हॉकी खिलाड़ी के साथ जुड़ी हुई है, जो इसे और भी महान बनाती है। वर्ष 2017 से इन्हें भारत रत्न दिये जाने की मांग लगातार बढ़ती जा रही है।
वर्तमान NDA सरकार से बात की अपेक्षा की जाती है कि वह जनता की इस माह को अवश्य पूरा करेगी।
सुंदर पिचई का जीनव परिचय (Biography of Sundar Pichai)
ये बहुत अच्छी जानकारी दी आपने।
कृप्या ऐसे ही अन्य व्यक्तित्व के बारे में बताते रहें।
हमारी साईट विजिट करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
हमारे साथ यूं ही बने रहियेगा।